दोस्तो जिस टाइटल से ये लेख लिख रहा हूँ यदि यही सवाल आप से किया जाये तो आपका जवाब क्या होगा ........ ?
सच कहूँ तो आप अपने आप को जाट, ब्राह्मण, नाई, धोबी, चामर, पांचाल (लोहार), सैनी (छिप्पि), बाल्मिकी आदि ही कहेंगें .............. आप अपने आप को इंसान कभी नही कहेंगे (शायद कोई कहे भी), क्योंकि हम में से कोई भी जब से होस सम्भलता तभी से उसको जाति से बाँध दिया जाता है और मृत्यु ही हो जाती है ये जाति हमारा पीछा नही छोड़ती .........
जीव का जब दुनिया मे आगमन होता है तो उसकी जाति क्या होती है, मेरे विचार से उसकी जाति और धरम सिर्फ़ मानव धरम ही होता है, चाहे वो किसी के घर में जनम ले अमीर, ग़रीब, हिंदू, मुस्लिम या किसी देश में|
हम धरम, जाति आदि में कब बँट जाते है हमें भी नही पता लगता| यहाँ मैं प्रत्यन कर रहा हूँ (अपनी समझ के अनुसार) शायद आप सहमत हो या ना भी हों ये मुझे पता नही, मेरा काम प्रत्यन करना है जोकि मैं करने की कोशिश कर रहा हूँ| इसके लिए मैने कोई शोध नही किया है ये मेरे साथ घटित एक घटना है .............. और आप के साथ भी कभी घटित हुई होगी या भविष्य में ज़रूर घटित होगी ..........
दोस्तो मैं अपने विचारों का एक अलग ही नमूना हूँ, मैं दिल से किसी धरम या जाति को नही मानता हूँ| सभी जातियों में, धरमों में मेरे दोस्त हैं| सबके यहाँ आना जाना, उठना बैठना, खाना पीना (दारू नहीं) हैं, किंतु मेरे विचारों से उनके विचार कभी मेल नही खाते इसलिए गहरी दोस्ती आज तक किसी से नही हो पाई| अपनी सोच विचारों के कारण ही जल्दी ही किसी से भी घुलमिल जाता हूँ और धोखा भी खा लेता हूँ यहाँ आप लोग मुझे मूर्ख भी समझ सकते हो| जीवन में बहुत सी मुस्किलों से दो चार होना पड़ता है, लेकिन जीवन ऐसे ही चलता है| खैर जिस विषय पर आज लिखने का मन हुआ है उस पर आते हैं|
कब हम जाति में बँट जाते हैं .........
एक दिन स्कूल से आते मेरी बेटी ने मुझ से एक सवाल किया कि पापा जी मेरी जाति क्या है? ये सवाल एसा था कि किसी ने मुझ पर मिसाइल दाग दी हो| मैने जवाब ना देकर बच्ची से ही सवाल किया कि बिटिया ये आप से किसने पूछा है बिटिया का जवाब था मेरी एक फरेन्ड ने| बिटिया का जवाब सुन कर मैं हैरान था की इतनी छोटी बच्ची खुद तो ये सवाल नही पूछ सकती, क्योंकि पाँच साल का बालक क्या जाने जाति - धरम| मैने अपनी बिटिया को बड़े प्यार से समझाते हुए कहा की बिटिया हमारी जाति है मानव धरम| बेटी को उसके सवाल का जवाब मिल गया था| दोस्तों उस रात मैं ठीक से सो नही सका| क्योंकि जो परम्परा चली आ रही थी वो एक पायदान और आगे कदम रखती दिख रही थी| बच्चे नई नई बातों को जानने के इच्छुक होते हैं| तीसरे दिन बिटिया ने स्कूल से आकर मुझे झूठा साबित कर दिया, उसने कहा कि पापा आप झूठ बोल रहे थे| मैने पूछा बेटा जी मैने कब झूठ बोला| बेटी ने तुरंत कहा आप ने मेरी जाति ठीक से नही बताई, मेरी फरेन्ड के पापा ने कहा जाट, चामर, धोबी, नाई, लुहार, सुनार ऐसी जातियाँ होती हैं|और आप ने तो अपनी जाति मानव धरम बताई थी| किसी तरह मैने बिटिया को समझाया और वो किसी हद तक मान गयी|अभी कुछ समय ही बिता था कि एक दिन बिटिया और बेटा स्कूल से एक फार्म लेकर आए और कहा की मेरे टीचर ने इसे ��ील करने को कहा है| मैने फार्म फील कर दे दिया| अगले दिन बच्चे फार्म वापिस लेकर आए और कह������������� की पापा टीचर ने कहा है की अपनी सही जाति लिख कर लाना|
कैसे हो सकता है मानव धरम ......... ?
दोस्तो सच आज की दुनिया में कही भी तो मानव धरम नाम की कोई जाति नही है,हम सब जाट, चामर, धोबी, तेलि, नाई, लुहार आदि आदि में बँट चुके हैं| सोने पे सुहागा राज नेताओं ने रच डाला जनगणना जाति के आधार पर करवा कर|जिस क्षेत्र में जिस जाति का बाहुल्य होता है वहाँ उसी जाति कॅंडिडेट को टिकिट मिलता है चाहे वो काबिल हो या ना हो| दूसरी जाति का उससे काबिल कॅंडिटेट देखता ही रह जाता है| जनता भी अपनी ही जाति वाले को वोट देती है चाहे मन मारकर ही दे क्योंकि पार्टियाँ जनता के सामने विकल्प ही नही छोड़ती| जिस दिन हम सब अपनी जाति धरम से उचें उठ कर एक हो जाएँ तो देश आतंक, मुफ़लिसी आदि से मुक्त हो जाएगा|
संविधान ने ही हमें जातियों में बाँट रखा है ........ !
हमारे सविधान निर्माताओं ने हमें खाक अच्छा संविधान दिया है, हमें आरक्षण के चक्कर में डाल कर बाँट दिया, किसी को सवर्ण तो किसी को अनुसूचित और किसी को पिछड़ा बना दिया| उन्होने ये संविधान भारत की जनता के लिए नही बनाया बल्कि अँग्रेज़ों की नीतियों को ध्यान में रख कर राजनेताओं की खातिर बनाया लगता है| कैसे ये नेता ग़रीब और अनपढ़ जनता पर राज कर सके ये रास्ता उन्होंने दिखाया है| उन्होने आरक्षण की पट्टी जनता की आँखों पर बाँध दी| जो लोग आरक्षण का लाभ नही उठा रहे उनको लगता है की आरक्षण में ना जाने कितने सुविधा छुपी है वो नही जानते की आरक्षण का डॅंक उनको नपुंसक बना देगा| आरक्षण के चक्कर में वो मेहनत करना छोड़ देंगे| जबकिआगे बढ़ने के लिए आरक्षण की नही सच्ची शिक्षा की अवशकता है ना की डिग्रियों की क्योंकि डिग्री तो धनवान लोग खरीद ही लेते हैं (3 ईडियट में दिखाया भी है) लेकिन शिक्षा को तो शिक्षा की तरह ही प्राप्त किए जा सकता है| यदि संविधान निर्माता भारत जी आम जनता का भला चाहते तो कभी भी आरक्षण का प्रावधान नही डालते वो एक ऐसा प्रावधान (सस्ती और ज़रूरी शिक्षा) करते जिससेजो अभाव ग्रस्त है चाहे किसी भी जाति में हो किसी भी धरम में हो उनको शिक्षा मिल सके और जो शिक्षित होगा वो अपने लिए रोटी, कपड़ा और मकान का जुगाड़ कर ही लेगा| आज 64 सालों के बाद भी वोटिंग प्रतिशत 60 से आस पास रहता है, यदि सभी शिक्षित हो जाते (जबकि ये संभव है) तो यही वोटिंग प्रतिशत 80-90 होता और काफ़ी हद तक जागरूक जनता अपने अधिकार को जानकर अपने भले के लिए आवाज़ बुलंद करती| आज जो नेता संसद की आड़ में अपना गंदा खेल खेल रहे हैं उनको भी ये मोका नही मिलता| ना ही आतंक फैलता, ना ही ग़रीबी होती, ना ही अंधविश्वास बचता| जब सब का पेट भरा हो वो क्यों यहाँ वहाँ भटकेगा|
अच्छी शिक्षा, अच्छा रहन सहन, अच्छा पहनावा और सुख सुविधाए हो तो किस को पड़ी है ग़लत रास्ते अपनाने की......... और ये सब संभव है सिर्फ़ सच्ची शिक्षा से ना की अँग्रेज़ों की थोपी हुई वर्तमान शिक्षा प्रणाली से .......|