चार राज्यों में लोकसभा की चार सीटों और विधानसभा की पांच सीटों के लिए
उपचुनाव रविवार को शांतिपूर्वक संपन्न हुआ। इन उपचुनावों के नतीजे पांच जून
को
घोषित किए जाएंगे।
वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनावों के मद्देनजर इन उपचुनावों को अत्यंत
महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पश्चिम बंगाल की हावड़ा लोकसभा सीट पर सर्वाधिक
66 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। बिहार की महाराजगंज
लोकसभा सीट पर 45 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया।
गुजरात में दो लोकसभा सीटों पोरबंदर और बनासकांठा सीट के लिए तथा चार
विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुआ। पोरबंदर में 30 फीसदी और बनासकांठा में
36 फीसदी मतदान दर्ज किया गया।
भाजपा शासित गुजरात में इन उपचुनावों को विपक्षी कांग्रेस के लिए एक
अग्निपरीक्षा माना जा रहा है जिसने पिछले चुनाव में छह सीटें जीती थीं।
बनासकांठा लोकसभा सीट कांग्रेस के सांसद मुकेश गढ़वी के निधन की वजह से
रिक्त हुई थी। पोरबंदर सीट विटठल रडाडिया के इस्तीफे की वजह से रिक्त हुई
थी जो एक पथकर केंद्र के कर्मचारी पर बंदूक तानने की वजह से सुर्खियों में
आए थे।
रडाडिया ने फरवरी में कांग्रेस छोड़ी और भाजपा में शामिल हो गए थे। लोकसभा उपचुनाव के लिए भाजपा ने उन्हें ही उम्मीदवार बनाया।
पश्चिम बंगाल में हावड़ा लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ। यह सीट तृणमूल
कांग्रेस की सांसद अंबिका बनर्जी के निधन के कारण रिक्त हुई थी। हजारों
निवेशकों को धोखा देने वाले सारदा चिटफंड घोटाले के उजागर होने के बाद हो
रहा यह उप चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह राज्य में पंचायत
चुनावों से ठीक पहले हो रहा है।
इस सीट पर 13 प्रत्याशी भाग्य आजमा रहे हैं लेकिन मुख्य मुकाबला तृणमूल
कांग्रेस, कांग्रेस और माकपा के बीच है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने
भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान प्रसून बनर्जी को, कांग्रेस ने अधिवक्ता
सनातन मुखर्जी को और माकपा ने पार्टी के पूर्व जिला सचिव सुदीप भट्टाचार्य
को टिकट दिया है।
भाजपा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के आदेश पर हावड़ा में
उपचुनाव नहीं लड़ा। प्रतीत होता है कि उसने राजग की पूर्व सहयोगी तृणमूल
कांग्रेस के लिए राह आसान की है। बहरहाल, स्थानीय भाजपा नेता रंजन पाल
निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में हैं।
कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस भले ही अब अलग अलग हो गए हों लेकिन इस सीट पर
2009 में दोनों ने मिल कर चुनाव लड़ा था। माकपा को उम्मीद है कि इस बार
तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच मतों के बंटवारे से फायदा उसे होगा।
कांग्रेस के लिए यह उपचुनाव महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हार पंचायत चुनाव
और अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी के लिए बड़ा झटका
साबित हो सकती है।
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