Friday, 20 January 2012

प्रकृति के इस चमत्कार को देखने उमड़ा जनसैलाब


सिवाना .उपखंड के जीनपुर गांव में एक गाय ने अदभुत बछड़े को जन्म दिया। दो मुंह, चार आंखें व दो कान का यह बछड़ा कौतूहल बना है।


इसकी सूचना मिलने के बाद ग्रामीणों का उसे देखने के लिए तांता लग गया। जीनपुर निवासी हरीराम मेघवाल की एक गाय ने गुरुवार को बछड़े को जन्म दिया।

इस बछड़े के दो मुंह, चार आंखें व दो कान है। इस अनोखे बछड़े को देखने के लिए भीड़ उमड़ी। इधर, सूचना मिलने पर पशुपालन विभाग के चिकित्सक भी मौके पर पहुंचे ओर बछड़े के स्वास्थ्य की जांच की।

पाकिस्‍तान में उड़ा सचिन का मजाक!


ऑस्‍ट्रेलिया दौरे पर बुरी तरह पिट चुकी टीम इंडिया की देश में तो आलोचना हो ही रही है, विदेशों में भी इसका मजाक उड़ रहा है। शुरुआती तीन टेस्‍ट मैच हार कर सीरीज गंवा चुकी टीम इंडिया को पहली जीत की दरकार है जबकि मास्‍टर ब्‍लास्‍टर सचिन तेंडुलकर शतकों के महाशतक के इंतजार में हैं। हालांकि पाकिस्‍तानी मीडिया सचिन के सौंवे शतक को लेकर चुटकी भी ले रहा है (विस्‍तार से जानने के लिए रिलेटेड लिंक पर क्लिक करें)।
'सौंवा शतक जरूरी नहीं'
पूर्व क्रिकेटर इमरान खान ने कहा है कि इस वक्‍त टीम इंडिया की जरूरत सौंवा शतक नहीं जीत की पटरी पर लौटना है। हालांकि उन्‍होंने उम्‍मीद जताई है कि सचिन अपना सौंवा शतक जरूर पूरा कर लेंगे। लेकिन उन्‍होंने यह भी कहा कि टीम इंडिया की यूथ ब्रिगेड में फिलहाल कोई भी टेस्‍ट खिलाड़ी नहीं है।

धोनी के बचाव में कपिल, सिद्धू
भारत के पूर्व क्रिकेटरों ने टीम इंडिया का बचाव किया है। पूर्व क्रिकेटर और सांसद नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा है कि महेंद्र सिंह धोनी बेहतर भारतीय कप्‍तान हैं और उन पर भरोसा किया जाना चाहिए। 

वहीं भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान कपिल देव ने कहा कि टीम के खराब खेल के कारण लोगों के निशाने पर आए धोनी का तब तक साथ दिया जाना चाहिए जब तक कि वह कप्तान बने हुए हैं। 1983 में विश्व कप जीतने वाली टीम के कप्तान रहे कपिल ने कहा, ‘धोनी हमारे कप्तान हैं और हमें उनका साथ देना चाहिए। टीम को भी हमारे समर्थन की जरूरत है।’ कपिल ने कहा कि प्रशंसकों को भी इस नाजुक मौके पर टीम का साथ देना चाहिए।


कपिल देव ने माना कि भारतीय टीम ऑस्‍ट्रेलिया में अब तक बहुत खराब खेली है। उन्‍होंने कहा, ‘हां, टीम खराब खेली है और इससे हम सब नाराज हैं लेकिन इन सब बातों की चर्चा सीरीज के बाद भी की जा सकती है। लेकिन सीरीज के दौरान हमें खिलाड़ियों का साथ देना चाहिए।’

आस्ट्रेलिया में जारी चार मैचों की टेस्ट सीरीज में भारतीय टीम 0-3 से पिछड़ रही है। इस सीरीज में भारतीय टीम दो मैच पारी के अंतर से हार चुकी है। चौथा मैच 24 जनवरी से एडिलेड में खेला जाएगा।

Monday, 16 January 2012

अगले दिन राम सभा में थे कि कोई कुत्ता बाहर आकर भौंका। लक्ष्मण यह जानकर कि कुत्ता राम से कोई फरियाद करना चाहता था, राम की अनुमति पर उसको सभा में ले गए।
कुत्ते को, जिसके सिर पर जबर्दस्त चोट लगी हुई थी, देखकर राम ने कहा - ‘‘तुम अपने कष्ट के बारे में निर्भय होकर बताओ।’’
‘‘सर्वार्थसिद्धि नाम के भिक्षु ने मेरा सिर तोड़ दिया है। मैंने उसका कुछ नहीं बिगाड़ा था।’’ कुत्ते ने कहा। राम ने तुरंत उस भिक्षु को बुलाकर पूछा - ‘‘तुमने इस कुत्ते का सिर क्यों तोड़ा? इसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?’’
‘‘राजा, मैं भिक्षा के लिए सुबह से घर-घर घूम रहा था । मुझे कहीं कोई भीख नहीं मिली? उस हालत में यह कुत्ता मेरे रास्ते में आया। मैंने इसे बहुत मना किया। पर यह माना नहीं। यह सच है कि मैं अपना गुस्सा काबू में न रख सका और मैंने उसके सिर पर मार दिया। इसका जो भी कुछ दण्ड है मुझे दीजिये।’’ सर्वार्थसिद्धि ने कहा।
राम ने सभासदों से पूछा कि उसको कैसा दण्ड दिया जाना अच्छा होगा। सभा में वहुत से पण्डित थे, पर किसी ने भी दिए जाने योग्य दंड के लिए कोई तर्कपूर्ण और स्पष्ट उत्तर न दिया। राम को पूरे दरबार से कोई उत्तर न मिल सका।
तब कुत्ते ने राम से कहा - ‘‘हे राम, इसने मेरा बुरा किया है। अतः इसको जो दण्ड मैं बताऊं, वह दिया जाए। कालंभर नामक स्थल में इसको कुलपति का काम दो।’’ राम ने कुत्ते के कहे अनुसार न्याय कर दिया। भिक्षु को वह काम दिया और हाथी पर सवार करके उसे भेज दिया। भिक्षु भी बड़ा प्रसन्न हो चला गया।

उसके चले जाने के बाद, राम और मन्त्रियों ने उस कुत्ते से पूछा - ‘‘इस भिक्षु को तुमने इस प्रकार का दण्ड क्यों दिलवाया जिसे सीधे-सीधे दंड की जगह पुरस्कार माना जा सकता है? इसका अवश्य कोई कारण है। हम सभी वह कारण जानने को उत्सुक हैं।’’
‘‘मैंने पिछले जन्म में वहीं काम किया था। तब मुझे सुन्दर भोजन, दास दासी, सब कुछ मिले हुए थे। मैं दयालु, विनयशील, चरित्रवान के रुप में प्रसिद्ध था। देवताओं और ब्राह्मणों की मैंने पूजा की फिर भी चूंकि मैं उस पद पर था, इसलिए मुझ को यह हीन जन्म लेना पड़ा। महाकोपी भिक्षु जव वह काम करेगा, तो जन्म जन्मान्तर में नरक में सड़ेगा। यह अच्छी तरह पता होने के कारण ही मैंने उसके लिए यह दंड निर्धारित किया है,’’ कुत्ते ने कहा।
कुत्ते के चले जाने के बाद, एक उल्लू और गिद्ध में झगड़ा हुआ और वे राम के पास फैसले के लिए आये। एक जंगल में एक घर था, दोनों पक्षी यह कहकर झगड़ने लगे कि वह घर उसका था।
राम ने दोनों पक्षों की बात सुनी किन्तु कुछ निर्णय न ले सके। यह निर्धारित करने के लिए कि वह घर किसका था, वे पुष्पक विमान में अपने मन्त्रियों के साथ सवार होकर उस जगह आये जहॉं वह घर था।
‘‘इस घर को तुमने कब बनाया था?’’ राम ने गिद्ध से पूछा ।
‘‘भूमि पर जब मनुष्य पैदा हुए तब मैंने यह अपना घर बनाया था। यह तभी से मेरा ही घर है।’’ गिद्ध ने कहा ।
तुरंत उल्लू ने कहा - ‘‘हे राम, जब पृथ्वी पर पेड़ पैदा हुए तब मैंने यह घर बनाया था।’’
तुरंत राम के मन्त्रियों ने निर्णय किया कि वह घर उल्लू का ही था, चूंकि पृथ्वी पर पहिले वृक्ष आये थे। जब यह निर्धारित हो गया कि घर उल्लू का है, तो राम ने गिद्ध को दण्ड देने की सोची।
तभी वहॉं आकाशवाणी हुईः ‘‘हे राम! इस शापग्रस्त गिद्ध को क्यों और सताते हो? यह गिद्ध ब्रह्मदत्त नाम का राजा है। इसके घर गौतम अतिथि बनकर आये। राजा ने स्वयं गौतम का स्वागत किया। गौतम ब्रह्मदत्त का आतिथ्य स्वीकार कर रहे थे कि एक दिन उनके भोजन में, कहीं से मांस का टुकड़ा आ गया। यह देख गौतम क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने शाप दिया कि ब्रह्मदत्त गिद्ध हो जाये। गौतम ने यह भी कहा कि ईक्ष्वाकु वंश में पैदा होनेवाले राम जब उसको छुयेंगे, तब वह शाप-विमुक्त हो सकेगा।’’

 यह सुनकर राम ने उस गिद्ध को छुआ। तुरन्त गिद्ध एक दिव्य पुरुष बन गया। वह पुरुष राम को अपनी कृतज्ञता दिखाकर चला गया।
एक दिन यमुना तट के वासी सौ से अधिक मुनि राम के दर्शनार्थ आये। राम ने उनके लाये हुए फलों आदि के उपहारों को स्वीकार किया, उनको आसन दिया और पूछा कि वे किस काम से आये थे?
मुनियों ने राम को बताया कि लवणासुर नामक असुर उनको बहुत तंग कर रहा था। वन में और नदी किनारे ईश्वर उपासना या हवन-यज्ञ में रत किसी भी मुनि को वह चैन से नहीं बैठने देता था। यज्ञ विध्वंस करना और साधुओं को परेशान करना उसका प्रिय काम था। अतः वे चाहते थे कि राम उसके उत्पात से उन्हेंे बचायें।
यह लवणासुर मधुव राक्षस का लड़का था। मधुव ने बहुत लंबे समय तक रुद्र की तपस्या की और उनको सन्तुष्ट किया। तब रुद्र ने अपने त्रिशूल में से एक और त्रिशूल बनाकर उसको देते हुए कहा - ‘‘यह जब तक तुम्हारे साथ है, तब तक तुम्हें कोई नहीं जीत सकता। फिर मधुव ने शिव से प्रार्थना की कि यह त्रिशूल हमेशा उसी के वंश में सुरक्षित रहे।’’
‘‘तुम्हारे बाद यह त्रिशूल तुम्हारे लड़के के पास ही रहेगा। लेकिन उसके बाद यह वहॉं नहीं रहेगा।’’ शिव ने कहा। इस मधुव ने रिश्ते की रावण की छोटी बहिन कुम्भीनस से विवाह किया। उनके घर लवण पैदा हुआ। वह छुटपन से ही महा पापी था। मधुव उसको अच्छे मार्ग पर न ला सका। मधुव ने वरुण लोक जाते हुए शिव का दिया हुआ त्रिशूल लवण को दे दिया। लवण उसकी अद्भुत शक्ति से परिचित था ही इसलिए वह और उद्धत हो गया। वह मुनियों को भी बहुत सताने लगा।
मुनियों की बातें सुनकर राम ने उनसे कहा - ‘‘लवणासुर का वध मैं करवाऊँगा। आप लोग निश्र्चिन्त रहें।’’ इसके बाद उन्होंने अपने भाइयों को देखकर पूछा - ‘‘लवणासुर को मारने का काम कौन करेगा?’’
भरत ने इस काम को करने का बीड़ा उठाया। लेकिन शत्रुघ्न को यह बात पसंद नहीं आई। उन्होंने कहा कि उनके होते भरत का कष्ट उठाना अच्छा न था अतः यह वह काम करेंगे। उन्होंने कहा कि जो कुछ कष्ट भरत को उठाने थे, वे उन्हेंे पहले ही नन्दीग्राम में रहते समय झेल चुके हैं। अतः अब उन्हें कष्टप्रद कार्य शत्रुघ्न को सौंप देने चाहिये।
राम इसके लिए मान गये। उन्होंने कहा कि किसी एक राजा के मर जाने पर, तुरन्त उसका राज्य भार उठाने के लिए कोई और योग्य व्यक्ति उपलब्ध होना चाहिये। अतः उन्होंने शत्रुघ्न को मधुपुर का राजा नियुक्त करने की व्यवस्था की।


 शत्रुघ्न के राज्याभिषेक उत्सव समाप्त होते ही, राम ने उन्हेंे एक बाण देते हुए कहा - ‘‘इस बाण ने मधुकैटभ को मारा है। इसका मैंने रावण पर भी उपयोग न किया था। इससे तुम लवणासुर को मारो। एक और बात। लवण के पास शिव के त्रिशूल-सा एक त्रिशूल है । जब तक वह उसके हाथ में है, तब तक उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। लवण अपना त्रिशूल अपने घर में ही रखता है। इसलिए, जब वह नगर छोड़कर कहीं गया हुआ हो, तुम नगर को घेर लेना। जब वह वापस आये, तो नगर के द्वार पर ही उससे मुकाबला करना और उसको मार देना। किसी भी परिस्थिति में वह नगर के अन्दर न जाये और त्रिशूल उसके हाथ में न आने पाये।’’
यही नहीं, राम ने शत्रुघ्न से कहा कि वह पहले अपनी सेना भेज दें और बाद में अकेले जाएँ। लवण को यह न पता लगे कि कोई उसे मारने आ रहा था। ग्रीष्म ऋतु में सेनाओ को गंगा पार करके, उस तरफ पड़ाव करना चाहिये । शत्रुघ्न वर्षा के आरम्भ में युद्ध के लिए सज्जित होकर जाएँ और लवणासुर को मारें।
तदनुसार शत्रुघ्न ने पहिले अपनी सेना भेज दी। एक मास बाद वे स्वयं निकले। रास्ते में दो दिन के लिए वे वाल्मीकी आश्रम में रहे। वाल्मीकी ने उसको आतिथ्य दिया। फिर संध्याकाल में मुनि कई प्रकार के इतिहासों का वर्णन करते रहे। शत्रुघ्न सभी बातें विनयपूर्वक और बड़ी रुचि के साथ सुनते रहे। मुनि ने शत्रुघ्न को बताया कि कभी वह आश्रम रधुवंशवालों का ही था। इसके पीछे की कथा मुनि ने यूँ सुनाईः
रघुवंश में कभी सुदासु नाम राजा हुए थे। उनका लड़का वीरसह बड़ा बलवान था। छुटपन में ही एक बार जब वह शिकार खेलने गया, तो उसने दो राक्षसों को देखा। वे राक्षस शेर के रूप में इधर उधर घूमते और जानवरो को खाया करते। जानवरों मो मार-मार कर उन्होंने सारा जंगल ही मानो निर्जीव-सा कर दिया। कहीं भी कोई जानवर न रहा। यह देख वीरसह को बड़ा गुस्सा आया। उसने उन राक्षसों को देखते ही उनमें से एक को मार दिया। तब दूसरे ने कहा - ‘‘पापी, तुमने मेरे साथी को मार दिया। देखो तुम्हारा क्या करता हूँ?’’ कहकर वह तब अदृश्य हो गया।
कुछ समय बीता। उस राजा ने इसी आश्रम में एक बहुत बड़ा अश्र्वमेघ यज्ञ किया। वशिष्ट मुनि ने उस यज्ञ का पौरोहित्य किया। यज्ञ पूरा होने को था कि वह राक्षस वशिष्ट के रूप में, राजा से बदला लेने आया। ‘‘राजा, यज्ञ पूरा हो गया है। मुझे अच्छे मांस का भोजन दो ।’’
 


 राजा ने सन्तुष्ट होकर रसोइये को बुलाकर कहा - ‘‘गुरु जी के लिए यज्ञ के मांस से भोजन तैयार करो।’’ इस बीच राक्षस ने रसोइये का रूप धारण  कर लिया। नर मांस से भोजन तैयार करके, राजा को दिखाकर उसने कहा - ‘‘देखिये, यज्ञ के मांस से मैंने कितना अच्छा भोजन बनवाया है?’’ राजा ने अपनी मन्त्री से वह नरमांस परोसवाया। वशिष्ट के पास कई तरह की शक्तियॉं थक्षं औ वे त्रिकालदर्शी थे। मांस को देखकर वे तुरन्त समझ गए कि वह यज्ञ का नहीं बल्कि नरमांस है। यह देखकर, क्रुद्ध होकर मुनि ने राजा को शाप दिया - ‘‘तुम नरभक्षी हो जाओ।’’ राजा को गुस्सा आया। उसने भी वशिष्ट को शाप देने के लिए हाथ में पानी लिया। पर इससे पहिले कि वह शाप देता, उसके मन्त्री ने उसे रोका। वह बोला - ‘‘वे हमारे लिए देवतुल्य है। आप उनको शाप न दीजिये।’’ तब राजा ने अपने हाथ का पानी अपने पैरों पर ही डाल लिया। उस पानी के कारण, राजा के पैर कल्मशपूर्ण हो गये। तब से उसका नाम कल्मशपाद पड़ा।
बाद में मुनि वशिष्ट को इस पूरी घटना के पीछे की बात पता लगी। सब जानकर उन्होंने कल्मशपाद पर शाप की अवधि बारह वर्ष तय कर दी। वह बारह वर्ष तक नरभक्षक के रूप में जीता रहा और शाप के खतम हो जाने के बाद, वह हमेशा की तरह राज्य पालन करने लगा।
इस प्रकार कई इतिहास सुनकर शत्रुघ्न अपनी पर्णशाला में जा रहे थे कि उसी समय आश्रम में रह रही माता सीता ने दो जुड़वे बच्चों को जन्म दिया। सीताजी को जुड़वां पुत्रों की प्राप्ति पर वशिष्टाश्रम में उत्सव का महौल हो गया। मुनिकुमारों से सूचना मिलने पर ऋषि वाल्मीकी वहॉं गये। चन्द्रमा की तरह तेजवान्‌ बच्चों को देखकर, उन्होंने बड़े का नाम कुश रखा और दूसरे का लव।
राम के पुत्रों के जन्म का यह वृत्तान्त ठीक आधी रात के समय हुआ। आश्रम में मौजूद शत्रुघ्न भी यह पता लगते ही तुरन्त सीता और दोनों बालकों को देखने गए। अपने वंश की अगली पीढ़ी देखकर बहुत खुश हुए। इस अवसरपर अपने परिवार के एक सदस्य का मौचूद होना सीताजी के लिए भी सन्तोष का विषय था।

राम-कृष्ण story

भूपाल नारायणपुर के धनाढ्यों में से एक था। वह सब के साथ बड़ा अच्छा व्यवहार करता था। जो भी मदद मांगता, मना नहीं करता था। एक दिन सबेरे नहा चुकने के बाद पूजा करने के लिए जब वह घर के सामने के पेड़ से फूल तोड़ रहा था, तब बारह साल का एक बालक वहॉं आया और कहने लगा, ‘‘महोदय, नमस्ते, क्या आप ही भूपाल हैं?’’
‘‘हॉं, मैं ही भूपाल हूँ। तुम कौन हो? तुम्हें क्या चाहिये?’’ भूपाल ने पूछा।

‘‘मेरा नाम कृष्ण है। आपके घर में मुझे नौकरी चाहिये,’’ हाथ जोड़कर बड़े ही विनय के साथ बालक ने कहा।

भूपाल ने हँसते हुए पूछा, ‘‘तुम क्या काम कर सकते हो?’’

‘‘जो भी काम आप सौंपेंगे, मैं करूँगा। बचपन में ही मेरे मॉं-बाप मर गये। अपने मामा के घर में पला हूँ। मेरी मामी घर का सारा काम मुझ से ही कराती थी। उनके बच्चे अब बड़े हो गये। खर्च भी बढ़ गया, इसलिए उन्होंने चाहा कि मैं घर से चला जाऊँ और कोई नौकरी करके अपना पेट खुद भर लूँ। इस गॉंव में आपकी बड़ी शोहरत है। सब आपकी प्रशंसा करते हैं। इसी वजह से आपकी सेवा में आया हूँ।’’

भूपाल ने कहा, ‘‘अब मुझे किसी नौकर की ज़रूरत नहीं है। पर हॉं, पढ़ना चाहोगे तो उसका इंतज़ाम करूँगा।’’

कृष्ण तुरंत भूपाल के पैरों पर गिर पड़ा । ‘‘पढ़ाई-लिखाई में मेरी बड़ी अभिरुचि है। मेरी मामी ने इसी साल मेरी पढ़ाई बंद कर दी,’’ यह कहते हुए उसकी आँखों में आँसू छलक आये।

भूपाल ने अपने बेटे राम को बुलाया, जो कृष्ण की ही उम्र का था। उससे कहा, ‘‘इस बालक का नाम कृष्ण है। तुम्हारे साथ तुम्हारे ही कमरे में रहेगा। इसे भी अपने साथ स्कूल ले जाना। मैं भी अध्यापक से बता दूँगा।’’

बड़ी खबर-एक 10 साल के बच्चे ने रोक दिया बड़ा रेल हादसा


मंडावली में रविवार सुबह कूड़ा बीनने वाले 10 वर्षीय एक बच्चे ने रेल हादसा होने से बचा लिया। उसने टूटी हुई पटरी को देखकर तुरंत रेलवे कर्मचारियों को सूचना दी, जिसके बाद आने वाली सभी गाड़ियों को टूटी हुई लाइन से पहले ही रोक दिया गया। इससे लगभग नौ गाड़ियां प्रभावित हुईं। सबसे ज्यादां पटना राजधानी को 55 मिनट तक रुके रहना पड़ा।
घटना सुबह सात बजकर 20 मिनट की है। मंडावली रेलवे स्टेशन के पास रेलवे लाइन पर अक्सर कूड़ा बीनने के लिए आने वाला 10 वर्षीय दीपक जब यहां पहुंचा तो रेलवे लाइन पर एक ट्रेन तेजी से गुजर रही थी। दीपक ने देखा कि लाइन पर एक स्थान से जब-जब पहिया गुजर रहा है तब-तब चिंगारियां उठ रही हैं।
वह कुछ समझ पाता इससे पहले यह ट्रेन गुजर गई। इसके बाद वह नीचे उतरा और लाइन पर पहुंचा। यहां उसने टूटी हुई लाइन देखी और कुछ सोचने के बाद तुरंत दौड़ कर इलेक्ट्रिक सिग्नल मेंटेनर (ईएसएम) दौलत सिंह के पास पहुंचकर इस संबंध में जानकारी दी।
ईएसएम ने बुकिंग क्लर्क सुरेंद्र को लाइन टूटे होने की सूचना मिलने की बात कही। दौलत सिंह व सुरेन्द्र उस तरफ भागे, जहां लाइन टूटी हुई थी। यह देखकर एक बार तो इन दोनों के भी होश उड़ गए, क्योंकि पटना राजधानी तेजी से दौड़ी चली आ रही थी।
गनीमत यह रही कि दौलत सिंह ने लाल रंग का स्वेटर पहन रखा था। उसने जल्दी से स्वेटर उतारा और पटरी पर उतरकर उसे हवा में लहराने लगा। सवारियों से भरी पटना राजधानी इस कारण टूटी पटरी से पहले ही रुक गई। मौके पर पहुंचे स्टाफ ने देखा कि 3/25 व 326 जीएफ के बीच की पटरी तीन से चार ईंच तक टूटी हुई थी।
उन्होंने तुरंत पटरी की मरम्मत शुरू कर दी और इस दौरान पटना राजधानी को लगभग 55 मिनट तक रुके रहना पड़ा। इसके बाद आने वाली दो मेल, एक राजधानी व पांच पैसेंजर ट्रेन भी रोकी गई, जिन्हें पटरी ठीक होने के बाद रवाना किया गया।
हालांकि नॉर्दर्न रेलवे के सीनियर प्रवक्ता वाईएस राजपूत ने पटरी में मिले क्रेक को ज्यादा गंभीर नहीं बताया है। उनका कहना है कि निश्चित ही रेल लाइन टूटी थी, लेकिन मौसम के कारण इस तरह के क्रेक होते रहते हैं। मगर खतरे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देर शाम तक पूरी पटरी को ही बदलना पड़ गया।

 

बच्चा दीपक: को किया जाएगा सम्मानित रेलवे प्रवक्ता वाईएस राजपूत के मुताबिक टूटी हुई पटरी की जानकारी देने वाले बच्चे को सम्मानित करने के लिए अधिकारियों से बात की जा रही है। मंडा वली इलाके में ही रहने वाले दीपक के पिता दलीप पीओपी की काम करके रोजी-रोटी चलते हैं, जबकि दीपक भी कूड़ा बीनकर अपने गरीब परिवार की रोजी-रोटी जुटाने में मदद करता है। वह कूड़ा बीनने पहुंचा तो सुबह 7:20 बजे श्रमजीवी एक्सप्रेस ट्रेन गुजरने के दौरान लाइन से चिंगारियां उठते हुए देखी थीं।

अप्रैल से मिलेगा ‘आकाश-2’

 
दुनिया के सबसे सस्‍ते टैबलेट लैपटाप ‘आकाश’ से जुड़ रहे विवादों के बीच सरकार ने साफ किया है कि डाटाविंड के साथ करार जारी रहेगा। मानव संसाधन एवं विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने सोमवार को कहा कि ‘आकाश’ की पहली खेप के लिए निर्धारित एक लाख में से शेष बचे 70 हजार टैबलेट के उन्नत संस्करण की आपूर्ति डाटाविंड करेगी। उन्‍होंने बताया कि उन्नत संस्करण आकाश-2 इस साल अप्रैल तक मुहैया करा दिया जाएगा।  

सि‍ब्‍बल ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘आकाश’ की मांग बहुत अधिक है। हम सभी कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में छात्रों तक इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना चाहते हैं। कई राज्यों ने इसकी मांग की है।’

आकाश से जुड़ी समस्याओं के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘आकाश के पहले संस्‍करण के बारे में छात्रों एवं अन्य वर्ग से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर इसमें सुधार किए जा रहे हैं। डाटाविंड ने परीक्षण के लिए अभी तक 30 हजार टैबलेट की ही आपूर्ति की है। कंपनी हालांकि इसकी वाणिज्यिक बुकिंग कर रही है।

उन्होंने कहा, ‘पहली खेप के तहत शेष 70 हजार टैबलेट के उन्नत संस्करण (आकाश-2) की आपूर्ति डाटाविंड करेगी। शुरू में परीक्षण के लिए एक लाख ‘आकाश’ बनाने का फैसला किया गया था लेकिन इससे मकसद हल नहीं होने वाला है।’

गौरतलब है कि मानव संसाधन मंत्रालय ने आने वाले वर्षों में 22 करोड़ ‘आकाश’ की जरूरत बताई है। इतनी संख्या में आकाश के निर्माण के लिए नए सिरे से निविदा जारी करने और डाटाविंड (आकाश का निर्माण करने वाली कंपनी) के अलावा अन्य को भी मौका दिए जाने की बात कही गई है।
 
मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि टेंडर की तैयारी चल रही है। इस सस्ते टैबलेट लैपटाप की बैटरी, प्रोसेसर और आर्किटेक्चर के संबंध में शिकायत मिली थी। इसमें सुधार किया जा रहा है। बैटरी की क्षमता में जहां डेढ़ गुना वृद्धि की गई है, वहीं प्रोसेसर को 366 मेगा हर्ट्ज से बढ़ाकर 700 मेगा हर्ट्ज कर दिया गया है। इसके आर्किटेक्चर को भी बेहतर बनाया गया है जबकि कीमत 2,276 रुपये ही रखी गई है।

उन्नत आकाश की क्षमता में पहले की तुलना में तीन गुना वृद्धि की गई है, साथ ही इसपर यू ट्यूब से भी डाउनलोड किया जा सकता है। इसकी मेमोरी क्षमता में भी वृद्धि की गई है।

सम्पूर्ण कहानियाँ

किस बिन्दु पर एक छोटी, भोली-भाली, नासमझ लड़की गम्भीर हो जाती है, अपने बारे में, अपने आसपास के संसार में, लिखने-पढ़ने में; किस बिन्दु पर देस-परदेस का भूगोल, परिभाषा और संज्ञा बदल जाती है, कब अपनी और परदेस की भाषाएँ आपस में भिन्न हो गुँथ जाती हैं- शायद यह विभाजन रेखा बहुत क्षीण और धुंधली सी है।
वास्तविक और काल्पनिक चरित्रों, उनके गढ़े हुए जीवन की उलझी-सुलझी गुत्थियों का हल ढ़ूँढ़ने और उन्हें अपनी दृष्टि से स्वाभाविक और सहज समापन पर लाते हुए, अपने वर्तमान और अतीत को भी एक समीक्षक की दृष्टि से देखने की आदत बन गई है। जैसे मेरा जीवन एक पुस्तक है, जिसमें एकदम कुछ खुला है और कुछ एकदम गोप्य-जो मेरा प्राप्य और संचित पूँजी है; जो कि मेरी प्रेरणा का स्रोत्र और उत्स है, पर जब वह कहानी या उपन्यास के माध्यम से पृष्ठों पर बिखरता है तब वह इतना बदला हुआ होता है कि उसमें मेरा कुछ भी अंश नहीं होता। शायद आत्मकथा और गल्प में यही अन्तर होता है। जीवन अनुभवों, भावनाओं, विचारों, अनुभूतियों के एक पुतले से तन्तु को लेकर एकदम नया संसार गढ़ सकना, उसे तरह-तरह के चरित्रों से आबाद करना, इसी से मेरी वास्तविकता, प्रेरणा और कल्पना का मिश्रण है।

जहाँ तक मुझे याद पड़ता है, मैंने हमेशा ही कहानियाँ गढ़ी और कहीं-बचपन में भतीजियों, भानजियों, ममेरी और मौसेरी बहनों को विचित्र मेढ़कों, सियारों और काली बिल्लियों की कहानियाँ सुनाने में आनन्द आता था। गर्मियों में तारे भरे खुले आसमान के नीचे खूब तर की हुई छत की मुँडेर पर बैठकर वे कहानियाँ कहाँ से उपजती थीं और कहाँ खो जाती थीं ? रोज़-रोज़ नई कहानियाँ-जैसे उनका अन्त ही न था। जैसे मेरे बारह तेहर साल के मन में से एक अनजान कथाकार बैठा हुआ था, जो न जाने कहाँ-कहाँ से यहाँ कहानियाँ गढ़ता रहता था। कभी-कभी बच्चों के आग्रह से थक भी जाती थी और ‘एक था राजा, एक थी रानी, राजा मर गया, रह गई रानी’ कहकर कथा उत्सव का समापन कर देती थी। तब ‘नहीं, नहीं, और-और’ के आग्रह को मैं एक कठोरता से ठुकरा देती थी।

तब क्या था मेरा बाल जीवन; कानपुर, लखनऊ और गर्मियों की छुट्टियों में मामा ब्रजभूषण हजेला की खुली, फैली हुई हवेली या कोठी-जहाँ पर मामा जी के दो बेटियों के अनन्य स्नेह की अयाचित, अनर्जित वर्षा और छोटे मामा की चार बेटियों की कहानी सुनने का आग्रह।
पिता का देहान्त मेरी शिशु अवस्था में ही हो चुका था; उस समय परिवार में माँ, दो बड़ी बहनें; दो ब़ड़े भाई शिब्बन लाल और होरी लाल सक्सेना, पिता के चाचा, चाची, और उनकी बेटी, चाचा के साले और सलहज, मेरी विगत बुआ की सौत, जिन्हें पिता ने बहन की तरह अपना लिया था, दादी; और नौकर-चाकर-महाराज, महाराजिन, मेरी नेपाली आया और ऊपर का काम करने के लिए बालक मैकू-भैंस, और फोर्ड मोटर कार ! इसके अतिरिक्त भी लोग घर में रहा ही करते थे; जैसे ममेरे भाई प्रकाश, जो कानपुर में पढ़ रहे थे। पिता की मृत्यु होते ही घर छिन्न-भिन्न हो गया-चचेरे बाबा अपना घर खरीदकर साले-सलहज समेत विदा हो गए। शायद प्रकाश की पढ़ाई भी समाप्त हो गई। मेधावी शिब्बन लाल अपनी प्रोफ़ेसर की नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में व्यस्थ हो गए थे।

उस घर में हम तब तक रहे जब तक मैं छह वर्ष की नहीं हुई-परन्तु जब हम, यानी माँ और मैं प्राय: छुट्टियों में फतेहगढ़ जाने लगे, तभी मेरे रचनाकार ने आँखे खोलीं-दादा तब उन्नीस सौ बयालीस के क्रान्ति आन्दोलन के दौरान वर्षों से जेल में थे, और मैं और माँ (प्रियंवदा देवी) कानपुर लौटकर सम्मिलित परिवार में रह रहे थे। वह बड़ा सा शानदार घर पिता के चाचा का था, परन्तु उसमें मेरी युवा, विधवा माँ, या बच्चों का कोई हिस्सा न था। पूरा घर वह अपने छोटे भाई की पत्नी को दे गए थे, क्योंकि वह भी विधवा हो चुकी थीं और उन्हें बेटे पालने थे। यह सामाजिक क्रूरता थी या कठोरपन, कि माँ और उनकी बेटियों के पालन पोषण की जिम्मेदारी में उनका कुछ भी योग न था। जिस समय की मैं बात कर रही हूँ, वह मेरे जीवन के वह क्षण थे जिन्होंने मेरी प्रारम्भिक और छात्रजीवन के दौरान लिखी कहानियों को बहुत प्रभावित किया। मेरी माँ सुन्दर थीं, शिक्षित और आभिजात्य जमींदार परिवार की-पर पिता की मृत्यु के बाद और दादा की जेल अवधि के दौरान ही मैंने उस छोटी-सी उम्र में देख और समझ लिया कि भारतीय समाज और संबंधी एक आश्रयहीन महिला के प्रति कितने क्रूर हो सकते हैं। उनकी हर अवज्ञा और अवहेलना मेरे मन को तीक्ष्ण तीरों से बांधती, पर छटपटाने और चुप रह जाने के अतिरिक्त उपाय ही क्या था। माँ हर प्रकार से सुरुचिपूर्ण और सलीकेवाली थीं-जाड़ों भर वह समृद्ध पड़ोसियों की साटन की रज़ाइयों में पतली-पतली तिरछी गोट लगाकर महीन-महीन डोरे डालती रहती थीं। किसी ब्याही जाने वाली लड़की को साटन के पेटीकोट और अन्य वस्त्र सीने में व्यस्त रहती थीं- कभी-कभी कोई साटन का टुकड़ा उठाकर मुझे दिखातीं और कहतीं-तुम्हारा गरारा-कुर्ता इसमें कैसा अच्छा लगेगा ?

‘‘लगेगा तो !’’ कहकर हम दोनों चुप हो जाते; मेरा यथार्थ था उस कम उम्र में ही भारी, मोटी खादी, और माँ के सफेद वस्त्र। कानपुर में लौटने के पहले माँ ने कभी खाना नहीं बनाया था; पर अब सुबह की ड्यूटी उनकी थी, फिर भी उन्हें इतना अधिकार न था कि एक पराठा या दो पूरी बनाकर मुझे स्कूल के लंच के लिए दे सकें। मैं सुबह एक प्याला चाय पीकर स्कूल चली जाती और खाने की छुट्टी में स्कूल की लाइब्रेरी में वह घण्टा बिता देती या स्कूल की वाटिका में। माँ की अवज्ञा और अपमान देखकर मेरा बाल हृदय फटने लगता; यह बात मेरी समझ में बहुत बाद में आई कि वे सब निरादर करनेवाले निष्ठुर या दयाहीन नहीं थे; वे तो बिना सोचे-समझे एक लीक पकड़कर चल रहे थे जिसमें एक स्त्री को स्त्रीमात्र ही होने से हीन और क्षुद्र समझा जाता है। वह एक परिपाटी थी, एक रूढ़िग्रस्त अचेतना और अज्ञान, जिसमें किसी स्त्री का रूप, गुण, शील न देखकर केवल यह देखा जाता था कि उसका पति कौन है, क्या है। किसी भी स्त्री को किसी प्रकार अपने ‘स्व’ की पहचान, अपने अनुसार जीवन-यापन करने की स्वतन्त्रता तो दशकों के बाद मिली।

ननिहाल (कानपुर) जाना मुझे बहुत अप्रिय लगता था, क्योंकि वहाँ सब पुरुषों और बालकों के बाद भोजन मिलता था; माँ और मैं बरामदे में चुपचाप बैठी प्रतीक्षा करतीं कि कब बड़े मामाजी और ममेरे भाई भोजन करके निकलें तो अपनी बारी आए; मेरी बालोचित पर संवेदनशील दृष्टि ने यह भी ग्रहण किया कि स्त्रियों को जो भोजन मिलता था उसमें रबड़ी, मलाई, जो नियमित रूप से पुरुषों को परसी जाती थी, न उतने प्रकार के व्यंजन ही। शायद और परिवार की स्त्रियाँ कभी अपने को इस योग्य ही नहीं समझती होंगी कि उन व्यंजनों की कामना करें। ऐसा नहीं कि अपने परिवार में माँ का आदर नहीं था, पर मुझे वहाँ हमेशा अस्तित्व की भावना होती थी; उस पर मेरा तीखा आक्रोश : कि मैं क्यों भाइयों के कार्य और- गतिविधियों से अलग रखी जाती हूँ। जब मेरे हम उम्र ममेरे भाई बाहर साइकिल चलाना सीखते तो मैं खिड़की से उन्हें ललचाई आँखों से देखती रहती। मैंने एक बार सीखने की जिद भी की तो नानी ने हल्के से कहा, ‘‘तुम लड़की हो...।’’ और मैं मुँह फुलाकर जब स्कूल की बस ददिहाल की सड़क परेड़ से गुजरी तो मैं वहीं उतर गई। दादी ने, जो मेरे पिता की चाची थीं; जब पूछा ‘‘माँ को कहाँ छोड़ आई ?’’ तो मैंने बताया कि मैं वहाँ नहीं जाऊँगी क्योंकि वहाँ मैं लड़की हूँ-कहकर प्रतिबिम्ब लगाए जाते हैं....।’’ तब दादी ने कहा, ‘‘बिलकुल सही है। तुम लड़की हो, टाँग-वाँग टूट गई तो लँगड़ी से शादी कौन करेगा ? मैं तो तुम्हें आगे पढ़ाने के ही पक्ष में नहीं हूँ, अभी से चश्मा चढ़ गया है।’’

तब मैं छठी कक्षा पास करके सातवीं में आई थी, दादी के अनुसार मिडिल पास लड़की काफ़ी क़ाबिल थी।
पर मैं फिर ननिहाल गई जो दादी के घर के केवल मील डेढ़ मील ही दूर था, क्योंकि माँ मेरे लिए चन्दकान्ता सन्तति के कुछ भाग वहाँ से ले आई थीं। उन्हें तुरन्त पढ़ लेने के बाद जब मैंने नौकर मैकू को आगे के हिस्से लेने भेजा तो मामी ने हँसकर कहाँ, ‘‘उससे कहना यहीं आकर पढ़ ले।’’

वह गर्मी मैंने ननिहाल में बिताई; पिता की मृत्यु के बाद घर खाली करने पर माँ ने काफ़ी सामान मामाजी के घर भिजवा दिया था, सोफ़ा सेट, बर्तनों के बक्से; और अपनी प्रिय पत्रिकाएँ-चादँ, माधुरी और उपन्यास। यह सब मैंने छत पर, बरामदे में या नानी के कमरे में अपने खटोले पर लेटकर दीमक की तरह चाट डाले। स्कूल खुलने के बाद वहाँ की एक कमरे की लाइब्रेरी में मैंने नियमित रूप से पढ़ना शुरू किया-शुरूआत हुई बंगला अनुवादों से; ‘माधवी कंकण’, ‘शशांक’, ‘आनन्द मठ’-उसी के साथ जैसे मुझे पढ़ने का नशा सा चढ़ गया। जब फतेहगढ़ में छोटी मामी की अलमारी में प्रेमचन्द्र, कौशिक, भगवतीचरण वर्मा आदि की पुस्तके मेरे हाथ लगीं तो जैसे एक अलभ्य कोष मिल गया। उन उपन्यासों में मुझे पहली बार अनुभव हुआ कि स्त्री जाति की परवशता उसे समाज से मिली है। मेरे अन्दर जो विद्रोह और अक्रोश के बिन्दु थे, धीरे-धीरे प्रकट होने लगे- फिर भी मेरा दृष्टिकोण सीमित ही रहा। मेरी प्रारम्भिक कहानियों में अधिकतर स्क्षी पात्र समाज और परिस्थितियों से उबर नहीं पाए, उनमें एक प्रकार की हताशा भरी स्वीकृति थी। जो पुस्तकें मेरे मस्तिष्क का पोषण कर रहीं थीं उनमें त्याग, उदारता, नि:स्वार्थ और अपने सुख का हनन ही चित्रित था- ‘सेवा सदन’ का आदर्शवाद अन्त: ‘विषवृक्ष’ और ‘कृष्णकान्त का बिल’ में पत्नियों का मौं अन्याय सहन; विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक की ‘माँ’ में अपने वात्सल्य प्रेम की बलि।

कानपुर, फतेहगढ़; घर से स्कूल, स्कूल से घर-इसमें मेरा जीवन दर्शन या विस्तृत अनुभवों का समावेश कैसे होता ? मेरी गतिविधियाँ बहुत मर्यादित और संकुचित थीं, संगीत सुनना, फिल्में देखना या सहेलियों के घर आना-जाना बिलकुल वर्जित था; छोटी दादी (पिता की चाची नम्बर दो) का रोब सारे घर के सदस्यों पर था : उनका विश्वास था कि इन सब बातों से लड़कियाँ बिगड़ जाती हैं; पर अधिक शिक्षित न होने के कारण उन्हें उपन्यास या कहानियों में रुचि नहीं थी। वह हमारे खंड की ओर कम ही आती थीं, और जब भी आतीं मुझे किताब में डूबा पाकर बहुत प्रसन्न होतीं और समझती कि मैं स्कूली पुस्तक पढ़ रही हूँ। वैसे वह बड़ी दादी गुलाब देवी के विपरीत लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई के पक्ष में थीं और उन्होंने अपनी एकमात्र पुत्री सुशील को बी.ए. कराया था, वह भी लड़कों के कॉलेज भेजकर, जो कानपुर की कायस्थ बिरादरी के लिए एक क्रान्तिकारी और पथनिर्देशक घटना थी; जिसका पूरा-पूरा लाभ मुझे मिला-क्योंकि घर में छोटी दादी रामदेवी का ही दबदबा था, इसलिए ये गुलाब देवी किसी प्रकार मेरी पढ़ाई न रुकवा सकीं, यद्यपि अपने दो बेटों को उन्होंने कभी स्कूल जाने या पढ़ने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया, जिससे वह अपेक्षाकृत अनपढ़ ही रह गए।

इस सब उथल-पुथल और विरोधी दिशाओं में अलग-अलग खिंचने के तनाव के कब मेरे अन्दर एक कहानीकार को जन्म दिया, मुझे लौटकर देखने पर भी याद नहीं पड़ता। माँ की स्मरण शक्ति अद्भुत रूप से तीक्ष्ण और विस्तृत थीं, और पूरे परिवार के सदस्यों में, रस ले-लेकर, रोचक रूप से औरों के किस्से और कार्य-कलापों का वर्णन बहुत प्रचलित था, शायद वही शैली अनायास, सहज और स्वाभाविक रूप से मेरी विरासत में आई।

मेरी पहली कहानी बालिका विद्यालय की स्कूल पत्रिका में छपीं थी- उदासी भरी, करुण और दु:खद अन्त के साथ। शायद आठवीं या नवीं कक्षा में पढ़नेवाली, अन्तर्मुखी, चुप रहनेवाली एकान्तप्रिय लड़की के अनुभवों का जीवन दर्शन इसके अतिरिक्त क्या हो सकता था। मैंने तब तक यहीं देखा था, दु:ख को चुपचाप घूँट लेना; अन्याय के बावजूद कोई प्रतिक्रिया न दिखाना; परिस्थितियों को रो-धोकर स्वीकार कर लेना; सीमित दायरों में बद्ध रहना, मैं हर ओर यही देख पा रही थी-और यह स्थितियाँ मेरी सारी प्रारम्भिक कहानियों में चित्रित हुई हैं। मेरे लेखन का प्रथम सोपान था, उस समय की जनप्रिय पत्रिका  ‘सरिता’ में प्रकाशित होने का-तब तक मैं कॉलेज में आ चुकी थी; और छात्रावास में रहने लगी थी। जब भी ‘सरिता’ का नया अंक, जिसमें मेरी कहानी होती, आता तो छात्रावास में उल्लास की एक हिलोर-सी उठती, पत्रिका के लिए छीना-झपटी होती-पर उस भोलेपन और बेखबरी की अवस्था में मेरे लिए वही क्षण प्रतीक्षित रहता जबकि ‘सरिता’ से बीस रुपए में हर कहानी के पारिश्रमिक के रूप में मिलते। तुरन्त मैं रिक्शा लेकर बाज़ार जाती और सोलह-सत्रह रुपयों में बेगम बेलिया के किसी खिलते रंग की सी नागपुरी सूती साड़ी लेकर, सहेलियों के साथ रसगुल्ले और समोसे खाकर मुदित छात्रावास लौट आती।

कानपुर का बचपन, जिसमें मैंने क्षुधा, तृष्णा और आकांक्षाओं को बहुत नीचे दफ़ना दिया था, अब पीछे छूट चुका था, अब अपने श्रम और कल्पना से अर्जित बीस रुपयों का एक शाम में ही उड़ा देना बहुत नशीला अनुभव था। साथ ही, पहली बार मैं अपनी पसन्द को पहचान रही थी और अपने अनुसार अपने कपड़े खरीदने और पहनने का सुख भी। मैं नियमित रूप से लिख रही थी, परन्तु मैंने गम्भीरता पूर्वक नहीं लिया-कथानकों, चरित्रों का एक अनवरत प्रवाह कहीं अन्दर से प्रस्फुटित होता रहता था, परन्तु उसको तराशने, काँट-छाँट या मोड़ने-तोड़ने का विचार मुझे कभी नहीं आया। कहानी लिख गई तो बिना कापी रखे उसे वैसा का वैसा ही छपने के लिए भेज दिया-इसी कारण मेरी प्रारम्भिक कहानियों में पचास प्रतिशत उपलब्ध नहीं हैं।

अचानक मेरा ‘सरिता’ के लिए लिखना और कहीं भी प्रकाशित होना चूक गया। मेरे लेखन जीवन में अक्सर लम्बे-लम्बे अन्तराल आए हैं, शायद यह पहला लम्बा अन्तराल था, जिसमें पाठकों में प्रिय ‘उषा’ मौन हो गई थी। कहीं खो सी गई थी।
इसका एक बहुत बड़ा बाह्य कारण था मेरा बदलता हुआ परिवेश, दादा स्वतन्त्रता के बाद जेल से छूटकर संसद सदस्य हो गए थे और हम सब; माँ, मैं, बड़ी बहन कामिनी, छोटे भाई और उनकी बेटियाँ एक भव्य कोठी में रहने लगे थे जो संसद सदस्यों के लिए ही थी। उसमें बाहर उद्यान भी था, माली, नौकर, पर सबसे बड़ा अन्तर जो मेरे जीवन में आया, वह भारत के नामी, प्रथम पंक्तिवाले स्वतन्त्रता सेनानियों को देखना, सुनना। जो नाम अख़बार में अगले दिन पढ़ने में आते थे, वह विगत शाम अपनी बैठक में दादा के साथ दिखाई दे चुके होते थे।

Sunday, 15 January 2012

गली मोहल्लों में गूंजा सुंदर मुंदरिए हो.. प्रवासी भारतीयों के मनोरंजन के दौर में उतर है कान्हा!


चारों तरफ ढोल की थाप पर थिरकते लोग। सुंदर मुंदरिए के बीच एक-दूसरे को लोहड़ी की बधाई और मूंगफली, गजक रेवड़ी के गिफ्ट पैक का आदान प्रदान। शुक्रवार को शहर में देर रात तक लोहड़ी की धूम रही।

जगह-जगह रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस व सामाजिक संगठनों ने लोहड़ी का त्योहार मनाया। कहीं घर में नई शादी पर पहली लोहड़ी मनाई गई तो कहीं लड़का होने पर। लेकिन शहर में कई लोगों ने घर में कन्या के जन्म पर भी धूमधाम से लोहड़ी का त्योहार मनाया। घरों के आगे आग जलाकर लोग ने मिल-बैठकर लोहड़ी के त्योहार का मजा लिया।

नारी जागृति मंच ने सेक्टर 40 हनुमंत धाम में कन्याओं की लोहड़ी धूमधाम से मनाई। मंच कई वर्षो से लाडो की पहली लोहड़ी मना रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता नीना तिवारी के नेतृत्व में महिलाओं ने लोहड़ी के गीत गाए व लोगों को कन्याओं के जन्म पर भी धूमधाम से लोहड़ी मनाने का संदेश दिया।

मेयर भी पहुंचीं लोहड़ी उत्सव में

चंडीगढ़. सेक्टर 47 सी, सेक्टर 40 और सेक्टर 37, 22, 35 में रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से आयोजित लोहड़ी उत्सव में स्थानीय लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। सेक्टर 47 सी में मेयर राजबाला मलिक ने लोहड़ी के त्योहार में शिरकत की। सेक्टर 22 के सामाजिक संगठनों ने लोहड़ी के अवसर पर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को वस्त्र दान दिए।

ओल्ड एज होम में बुजुर्गो के साथ मस्ती

चंडीगढ़. सेक्टर 15 के ओल्ड एज होम में शुक्रवार सुबह से ही बुजुर्गो के साथ लोहड़ी मनाने वालों को तांता लगा हुआ था। डीएवी स्कूल सेक्टर 15, जीसीजी-11 और डीएवी कॉलेज-10 के स्टूडेंट्स ने यहां डांस और मस्ती की। रोट्रेक्ट क्लब, साईं उम्मत तारा फाउंडेशन, पंजाब कंप्यूटर्स एजूकेशन एंड वैलफेयर सोसायटी के सदस्यों ने भी यहां लोहड़ी मनाई। कॉलेज ऑफ कॉमर्स की रोजी त्रेहन और उनके स्टूडेंट्स ने यहां डीजे की व्यवस्था की ओर बुजुर्गो के साथ डांस किया।

पंजाबी गीतों पर डांस

चंडीगढ़. सेक्टर 11 स्थित पोस्ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज फॉर गल्र्स में और सेक्टर 26 स्थित खालसा कॉलेज फॉर वूमन में छात्राओं ने पंजाबी गीतों पर डांस किया। इस दौरान छात्राओं ने एक-दूसरे को लोहड़ी की बधाई दी।

हाईकोर्ट में सुरों पर हाथ आजमाए वकीलों ने

चंडीगढ़. पैरवी के साथ वकीलों ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में सुरों पर भी अपने हाथ आजमाए। किसी ने गजल तो किसी ने भजन सुनाया। इस मौके पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सभी वकीलों को लोहड़ी की बधाई दी।

गुरुकुल कॉलेज में रंगारंग कार्यक्रम

डेराबस्सी. दिव्य शिक्षा गुरुकुल कॉलेज फॉर वूमेन स्टाफ सदस्यों के साथ छात्राओं ने लोहड़ी पर डांस किया। लालडू में बाल विकास प्रोजेक्ट विभाग ने भ्रूण हत्या को रोकने का आह्वान किया। यूनिवर्सल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज, स्वामी परमानंद ग्रुप ऑफ कॉलेजेज व सुखमनी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस में फैकल्टी के साथ स्टूडेंट्स ने रंगारंग प्रोग्राम पेश किया। जीरकपुर के बचपन स्कूल में भी नन्हें मुन्नों ने नाच गाकर एक दूसरे को बधाई दी।

सेंट विवेकानंद स्कूल में भंगड़ा

पिंजौर. सेंट विवेकानंद मिलेनियम स्कूल एचएमटी पिंजौर में टीचर्स और प्रिंसिपल पीयूष पुंज ने भी बच्चो के उत्साह को बढ़ाते हुए उनके साथ भंगड़ा किया।

बीमारियों से बचाव की दी जानकारी

मोहाली. फोर्टिस अस्पताल मोहाली के एसोसिएट सलाहकार व किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. प्रियादर्शनी रंजन ने बताया कि लोहड़ी पर अस्पताल की तरफ से किडनी बीमारी ओर यूरोलॉजिकल समस्याओं से बचाव के बारे में लोगों को जानकारी दी गई।


प्रवासी भारतीय सम्मेलन के दूसरे दिन आगरा रोड स्थित सिसोदिया रानी के बाग में लोक गायन, लोक नृत्य और हिंदुस्तानी फिल्म संगीत का आयोजन किया गया। भारतीय प्रवासी दिवस के तहत आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेने आए मेहमानों को रविवार शाम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से भोज दिया गया। इस भोज में स्टील किंग लक्ष्मी निवास मित्तल सहित राज्य सरकार के विभिन्न मंत्री और प्रवासी भारतीय शरीक हुए।

सांस्कृतिक संध्या के अंतर्गत सारेगामापा लिटिल चैंप अजमत ने अपने गीतों से मेहमानों को आनंद विभोर कर दिया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत धोरों की धरती जैसलमेर और बाड़मेर के गाजी खान, अनवर खान, बूंदु लंगा जैसे लोक कलाकारों की प्रस्तुति से हुई। इसके बाद कालबेलिया नृत्य ने पूरे माहौल को राजस्थानी रंग में रंग दिया।

इसके बाद अजमत ने इक हसीना थी गाने से अपनी प्रस्तुति शुरू कर धीरे-धीरे रियलिटी शो के दूसरे फेम आर्टिस्ट शारिब, तोषी, राजा हसन और स्वरूप खान को भी अपनी प्रस्तुति में जोड़ा। अजमत ने अपना पसंदीदा गाना सैंया भी सुनाया। समारोह शुरू होते ही बड़ी संख्या में वाहन पहुंचने लगे। कुछ ही देर में न केवल पार्किग की जगह भर गई, बल्कि सभी बाग के आसपास के चारों ओर के रास्तों पर जाम लग गया।

 

 

 

 

 

 

किस्मत बदल सकती है अगर आपके साथ रहें ये लोग...



आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? भला कोई किसी की किस्मत कैसे बदल सकता है लेकिन ये बात सच है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो खुद तो भाग्यशाली होते ही हैं साथ ही लोगों की किस्मत बदलने की ताकत रखते हैं। ऐसे लोग अगर पैसों के लेनदेन या बिजनेस के बड़े सौदों में किसी के साथ रहे तो उसे बड़ा फायदा दिलाते हैं। अगर आपके साथ कुछ बुरा होने वाला है तब आपके साथ ऐसे किस्मती लोग हों तो वो बला भी टल जाती है। ऐसे लोगों को साथ रख कर काम करने से हर काम में सफलता मिलती है और किस्मत का साथ भी मिलता है।







जानें कैसे होते हैं ये लोग





- जिन लोगों के नीचे वाले होंठ पर तिल होता है वो लोग अपने लिए तो लकी होते ही है दूसरों के लिए भी भाग्यशाली होते हैं।



- जिन लोगों के सीने पर तिल हो यानी गले से थोड़ा नीचे वक्ष स्थल पर हो तो ऐसे लोग भी दूसरों की किस्मत बदल देते हैं।



- ऐसी लड़कियां जिनकी आंखें बड़ी, सुंदर या कमल की तरह होती हैं वो दूसरों की किस्मत भी बदल देती हैं।



- ऐसी लड़कियां जिनकी कुंडली में लक्ष्मी योग बनता है वो दूसरों की किस्मत भी बदल देती है।



- ऐसी महिलाएं या लड़कियां जिनके बाल कमर तक लंबे हों वो बहुत भाग्यशाली होती हैं।



- जिन लोगों के आंख के नीचे तिल हो और वो उन्हें दिखता हो ऐसे लोग भी किस्मत बदलने वाले होते हैं।



- जिन लोगों के पैर या हथेली में मछली का निशान हो।



- जिस महिला के पैर की मध्यमा अंगुली, अंगुठे से बड़ी हो वो बहुत भाग्यशाली होती है।

अपने देश के बारे में इन सच्चाइयों को पढ़ दंग रह जाएंगे!



भारत विविध धर्मों और अलग-अलग संस्कृतियों का मिला जुला संगम हमारा देश भारत अपने आप में ढेरों रोचक तथ्य छिपाए हुए है। जी हां, भारत में जहां आज भी कोस-कोस पर पानी और बानी बदलने की बात प्रचलित है।

उसी देश में कई दिलचस्प तथ्य भी हैं जिनके बारे में आपने शायद ही आपने कहीं सुना होगा। भारत से जुड़े ऐसे ही कुछ रोचक तथ्य आपके लिए लाया है भास्कर डॉट कॉम।

तो जानें भारत को और अपने भारतीय होने पर गर्व करें...

-भारत ने अपने आखिरी 100000 वर्षों के इतिहास में किसी भी देश पर हमला नहीं किया है।

-दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान हिमाचल प्रदेश के चायल नामक स्‍थान पर है। इसे समुद्री सतह से 2444 मीटर की ऊंचाई पर भूमि को समतल बना कर 1893 में तैयार किया गया था।

-योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यह 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद है।

-वर्ष 1896 तक भारत ही विश्‍व में हीरे का एक मात्र स्रोत था। (स्रोत: जेमोलॉजिकल इंस्‍टी‍ट्यूट ऑफ अमेरिका)

-बीज गणित, त्रिकोणमिति और कलन का उद्भव भी भारत में हुआ था।

-विश्‍व का सबसे प्रथम विश्‍वविद्यालय भारत में 700 बी सी में तक्षशिला में स्‍थापित किया गया था।
 

रिश्तों के झुलसने की ये कहानी सुन कांप जाएगी आपकी रूह

पति-पत्नी के बीच विवाद की गत दिन मर्मातक परिणति हुई। गर्भवती पत्नी आग में झुलसी तो पति ने गांधीसागर तालाब में छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली। शनिवार को घटे इस प्रकरण को देख-सुन लोग द्रवित हो उठे।

मृतक प्रमोद परसराम हाटे (35) इमामवाड़ा निवासी था। वह ऑटो चालक था। शनिवार की दोपहर को प्रमोद गांधीसागर तालाब में पहुंचा और तालाब में छलांग लगा दी। कुछ प्रत्यक्षदर्शी लोगों ने फोन द्वारा तत्काल इसकी सूचना पुलिस को दी।

कुशल तैराक जगदीश खरे की मदद से जब तक पुलिस प्रमोद को बाहर निकालती, तब तक बहुत देर हो गई थी। उसकी मृत्यु हो चुकी थी। तालाब के किनारे से पुलिस को एक प्लास्टिक की बैग मिली है, जिसमें प्रमोद की चप्पल, पैसे व ड्रायविंग लायसन्स था।

उसी के आधार पर पुलिस ने शव की पहचान की है। इस बीच प्रमोद के परिजन भी वहां पर पहुंचे थे। करीब चार, पांच वर्ष पहले प्रमोद ने बस्ती की ही रानी नामक महिला से अंतरजातीय प्रेम विवाह किया था। अभी दोनों अपने तीन वर्षीय पुत्र टुकटुक


के साथ हिंगणा रोड पर रह रहे थे। बताया जा रहा है कि मंगलवार 10 तारीख को प्रमोद व रानी में किसी बात को लेकर विवाद हुआ था। इस बीच रानी जल गई। उसे जलाया गया या वह खुद जली इस बारे में अभी भ्रम की स्थिति है। उसी रात प्रमोद ने रानी को गंभीर हालत में मेडिकल में भर्ती किया, जहां पर वह मौत से संघर्ष कर रही है।

सूत्रों के अनुसार घटना के समय रानी करीब 7 महीने के गर्भ से थी। झुलसने से उसके पेट में पल रहे अंश की भी मृत्यु हो गई। जब चिकित्सकों ने इसकी जा
नकारी प्रमोद को दी तो वह यह सुनकर सन्न रह गया। इसके लिए प्रमोद स्वयं को दोषी मान रहा था। घटना के दिन से ही वह काफी विचलित था।

आखिरकार दोपहर को वह तालाब पर पहुंचा और अपनी जान दे दी। घटना से परिजन भारी सदमे में हैं। उन्होंने अभी तक इसकी जानकारी रानी को नहीं दी है। गणोशपेठ पुलिस ने आकस्मिक मृत्यु दर्ज कर जांच शुरू की है।

Friday, 13 January 2012

वीरप्पन की इन अनसुनी कहानियों को सुन चौंक जाएंगे!


चंदन तस्कर वीरप्पन की पत्नी मुथुलक्ष्मी ने कहा है कि उसके पति की जिंदगी पर आधारित एक फिल्म के लिए उसकी सहमति नहीं ली गई। उन्होंने दावा किया कि फिल्म में दोनों की ‘गलत छवि’ पेश की गई है। वीरप्पन 2004 में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया था।

मुथुलक्ष्मी ने कहा कि वह इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की योजना बना रही हैं। उन्होंने कहा, ‘निर्माता रमेश ने मेरी सहमति के बगैर फिल्म बनाई और मुझे और मेरे दिवंगत पति की खराब छवि पेश की है।’ फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई है लेकिन उन्होंने इसका ट्रेलर देखा है। कन्नड में फिल्म का नाम ‘अत्तागसम’ और तमिल में ‘वानायुथम’ है।

कौन था वीरप्पन

कूज मुनिस्वामी वीरप्पा गौड़न उर्फ़ वीरप्पन का जन्म 18 जनवरी 1952 को हुआ था। 18 वर्ष की उम्र में वह अवैध रूप से शिकार करने वाले गिरोह का सदस्य बन गया। कुछ सालों में ही वह जंगल का बादशाह बन गया। उसने चंदन तथा हाथीदांत से पैसा कमाया। कहा जाता है कि उसने कुल 2000 हाथियों को मार डाला। वीरप्पन की बहन और भाई की हत्या के बाद उसने इसके लिए पुलिस जिम्मेदार मान लिया। यही कारण है कि वह पुलिस और अधिकारियों का अपरहण और हत्या करने लगा।

रॉबिन हुड जैसी छवि

वीरप्पन की अपने गांव गोपीनाथम में रॉबिन हुड की तरह छवि थी। गांववाले छत्र की तरह काम करते थे। उसे पुलिस की गतिविधियों के बारे में सूचनाएं दिया करते थे। उसकी हर तरह की मदद किया करते थे।

कलाकार वीरप्पन

वीरप्पन कई पक्षियों की आवाज निकाल लेता था। उसे संगीत काफी प्रिय था। उसे अपनी लम्बी घनी मूंछे बहुत पसन्द थीं । वह मां काली का बहुत भक्त था। कहा जाता है कि उसने एक काली मंदिर भी बनवाया था।

पुलिस से बचने के लिए बेटे का गोला घोंट डाला

कर्नाटक सरकार ने 1990 में वीरप्पन को पकड़ने के लिए विशेष पुलिस दस्ते का गठन किया। पुलिसवालों ने उसके कई आदमियों को पकड़ लिया। 1993 में पुलिस ने उसकी पत्नी मुत्थुलक्ष्मी को गिरफ्तार कर लिया। कहा जाता है कि बेटे के रोने तथा चिल्लाने के कारण पुलिस की पकड़ में ना आए इसके लिए गला घोंट कर मार दिया।

मौत के बाद वफादार कुत्ता बना गवाह

18 अक्टूबर 2004 को वीरप्पन को मार दिया गया। उसका कुत्ता और बंदर मरने के बाद मिले। कुत्ता कई मामलों में गवाह की भूमिका निभा रहा है। वह भौंक कर अपनी भावना व्यक्त करता है।

(कंटेंट साभार विकीपीडिया)

Thursday, 12 January 2012

तस्वीरों में देखे घर के आंगन में लौट आई ‘खुशी’

नौकर ने दिनदहाड़े हकीकत नगर में मकान मालकिन को चाकू मार दिया और अढ़ाई साल की बच्ची का अपहरण करके ले गया। पुलिस ने पीछा करके उसे महम में दबोच लिया। जहां अपहरणकर्ता ने कार से एसएचओ की गाड़ी को टक्कर मार दी। इसमें अपहरणकर्ता के साथ-साथ एसएचओ भी घायल हो गए।

किस्मत से बच्ची बाल-बाल बच गई, जिसे सकुशल पुलिस ने परिजनों को सौंप दिया। वहीं अपहरणकर्ता को गंभीर अवस्था में पीजीआई में दाखिल करवाया गया है, जबकि थाना प्रभारी को महम सीएचसी में भर्ती करवाया गया है। हकीकत नगर निवासी बजरंग सिंह सेटरिंग व पेंट का कारोबार करता है। उसकी झज्जर चुंगी पर दुकान है।

जहां चार माह पहले ही झांसी निवासी 20 वर्षीय मंजीत अली उर्फ मियां जी को नौकर रखा था। बुधवार देर शाम मंजीत अपने साथी के साथ दुकान से घर पहुंचा और मकान मालकिन शिल्पी से कहा कि दुकान का सामान लेने आया हूं। शिल्पी ने उसे दूसरे कमरे में रखा सामान दे दिया। इसी बीच मंजीत की नियत बदल गई। उसने चाकू निकाला और घर में रखी नगदी व जेवरात निकालने के लिए कहा।

शिल्पी ने विरोध किया तो उसके हाथ पर वार कर दिया। वह फर्श पर गिर पड़ी। मंजीत ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया और मकान मालिक की अढ़ाई वर्षीय बेटी खुशी को उठा लिया। घर के बाहर खड़ी मकान मालिक की कार में बैठकर झज्जर चुंगी की तरफ दौड़ पड़ा। उसका साथी पहले ही गायब हो गया था। दिनदहाड़े अपहरण से पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया। वारदात की वीटी होने से पुलिस ने नाकेबंदी कर दी।

पुलिस को अपहरणकर्ता की लोकेशन बहु अकबरपुर के पास दर्ज हुई, जिससे महम पुलिस सक्रिय हो गई। महम एसएचओ रामकिशन दहिया के नेतृत्व में मदीना के पास नाका लगा दिया गया, लेकिन अपहरणकर्ता ने नाके पर कार नहीं रोकी और महम की तरफ दौड़ा दी। पुलिस ने तुरंत उसका पीछा किया। महम सिटी में पुलिस की दूसरी टीम नाके लगाए हुए थी। जहां ओवरटेक करते हुए एसएचओ की गाड़ी ने कार को रोकने का प्रयास किया, लेकिन अपहरणकर्ता ने साइड मार दी, जिससे कार पलट गई। अपहरणकर्ता बुरी तरह घायल हो गया। एसएचओ के हाथ में गहरी चोट आई, लेकिन खुशी पूरी तरह सुरक्षित बच गई। अपहरणकर्ता को पीजीआई में दाखिल करवाया गया है।

जब सम्मान के लिए अड़ गया पूर्व सरपंच

जब मीडिया के समक्ष एएसपी विकास धनखड़ पुलिस का गुनगान कर रहे थे तो मौके पर ही मौजूद और इस मामले में आरोपियों की गाड़ी का पीछा करने वाले खरावड़ गांव के पूर्व सरपंच उदयभान मलिक ने कहा कि इस मामले में उन्होंने पुलिस की काफी मदद की, लेकिन उनका नाम क्यों नहीं लिया। वे एसपी के सामने पेश होंगे।


एक नौकर ने यहां दिनदहाड़े मकान मालकिन को चाकू मारकर उसकी अढ़ाई साल की बच्ची का अपहरण कर लिया। कार से भाग रहे अपहरणकर्ता ने कार से एसएचओ की गाड़ी को टक्कर मार दी। इसमें अपहरणकर्ता के साथ-साथ एसएचओ भी घायल हो गए। किस्मत से बच्ची बाल-बाल बच गई, जिसे सकुशल पुलिस ने परिजनों को सौंप दिया। अपहरणकर्ता को गंभीर अवस्था में पीजीआई में दाखिल करवाया गया है, जबकि थाना प्रभारी को महम सीएचसी में भर्ती करवाया गया है।


 
हकीकत नगर निवासी बजरंग सिंह सेटरिंग व पेंट का कारोबार करता है। उसकी झज्जर चुंगी पर दुकान है। जहां चार माह पहले ही झांसी निवासी 20 वर्षीय मंजीत अली उर्फ मियां जी को नौकर रखा था। बुधवार देर शाम मंजीत अपने साथी के साथ दुकान से घर पहुंचा और मकान मालकिन शिल्पी से कहा कि दुकान का सामान लेने आया हूं। शिल्पी ने उसे दूसरे कमरे में रखा सामान दे दिया।

 
इसी बीच मंजीत की नीयत बदल गई। उसने चाकू निकाला और घर में रखी नगदी व जेवरात निकालने के लिए कहा। शिल्पी ने विरोध किया तो उसके हाथ पर वार कर दिया। वह फर्श पर गिर पड़ी। मंजीत ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया और मकान मालिक की अढ़ाई वर्षीय बेटी खुशी को उठा लिया। घर के बाहर खड़ी मकान मालिक की कार में बैठकर झज्जर चुंगी की तरफ दौड़ पड़ा। उसका साथी पहले ही गायब हो गया था।

 
दिनदहाड़े अपहरण से पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया। पुलिस को अपहरणकर्ता की लोकेशन बहु अकबरपुर के पास दर्ज हुई, जिससे महम पुलिस सक्रिय हो गई। महम एसएचओ रामकिशन दहिया के नेतृत्व में मदीना के पास नाका लगा दिया गया, लेकिन अपहरणकर्ता ने नाके पर कार नहीं रोकी और महम की तरफ दौड़ा दी। पुलिस ने तुरंत उसका पीछा किया। महम सिटी में पुलिस की दूसरी टीम नाके लगाए हुए थी।

 
जहां ओवरटेक करते हुए एसएचओ की गाड़ी ने कार को रोकने का प्रयास किया, लेकिन अपहरणकर्ता ने साइड मार दी, जिससे कार पलट गई जिससे अपहरणकर्ता और एसएचओ के हाथ में गहरी चोट आई, लेकिन खुशी कार में पूरी तरह सुरक्षित बच गई। अपहरणकर्ता को पीजीआई में दाखिल करवाया गया है।

 
आधा घंटे के अंदर ही पुलिस ने अपहरणकर्ता को काबू कर बच्ची को बरामद कर लिया है। यह पुलिस की अहम कामयाबी है।

लेनी है मर्दानगी की निशानी, युवाओं में बढ़ा गजब का क्रेज


लड़कों में मौजूदा टाइम वैसे भी शैबी लुक वाली दाढ़ी का है, मूंछें भी अब सिंघम और दबंग जैसी फिल्मों के बाद फिर से रखी जाने लगी हैं। जिनके चेहरे पर बाल उगते हैं वो तो इस तरह अपना लुक बदल लेते हैं, पर जिनके दाढ़ी या मूंछ उगती ही नहीं है, दिक्कत उन्हें है।


 
उनकी दिक्कतों को दूर कर रही है शहर में हो रही ‘बियर्ड/मुशटेश रीकंस्ट्रक्शन’ सर्जरी। जिसके चेहरे पर दाढ़ी नहीं आ रही, जिसकी मूछों के बीच गैप है, जिन लेडी के एक आइब्रो नहीं है या जिस गर्ल की हेयर लाइन बहुत पीछे है.. ये सब इन रीकंस्ट्रक्शन सर्जरी का फायदा उठा रहे हैं। ये लोग सिर्फ शहर के ही नहीं है बल्कि मोगा से लेकर सऊदी अरब तक से आ रहे हैं।

 
बिना दाढ़ी के सरपंच कैसे बनूं

 
यंगस्टर्स कभी गोटी दाढ़ी रखते हैं तो कभी फ्रैंच कट रखकर अपनी लुक बदलते रहते हैं। ज्यादातर कूल दिखने के लिए।मगर कई टीनएजर इन दिनों कूल की बजाय मैच्योर दिखने के लिए ‘बियर्ड/मुशटेश रीकंस्ट्रक्शन’ करवा रहे हैं। मोगा के नवनीत सिंह को ही लीजिए। चूंकि चेहरे पर दाढ़ी नहीं उगती थी तो इन्होंने बियर्ड रीकंस्ट्रक्शन करवाई है। इस ट्रीटमेंट में सिर के कुछ बालों को निकालकर चेहरे में जड़ समेत रोपा जाता है। इसे ग्राफ्टिंग कहते हैं।

 
इसके बाद फेस पर इन बालों की ग्रोथ होना शुरू हो जाती है। नवनीत सरपंच बनना चाहते हैं। उनके पिता भी सरपंच हैं। लेकिन बिना दाढ़ी-मूंछ वाली लुक इसके आड़े आ रही थी।वह कहते हैं, ‘मैं कट सर्ड हूं लेकिन गांव में पगड़ी के साथ दाढ़ी-मूंछ वाली इमेज ही ज्यादा पसंद की जाती है। इस वजह से मैंने चंडीगढ़ आकर अपने चेहरे पर बियर्ड रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी करवाई है।’

 
चेहरा बिगड़ा लगे तो क्या करें

 
ऐसे ब्यूटी ट्रीटमेंट करवाने की रेस में बॉयज ही नहीं गल्र्स और औरतें भी हैं। क्योंकि इसमें नेचरल ग्रोथ होती है और कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता। शहर के डार्लिग बड्स क्लिनिक से मृणाली मिन्हास ने हाल ही में आइब्रो रीकंस्ट्रक्शन करवाया है। उनकी सर्जरी करने वाली डॉक्टर तेजिन्दर भट्टी बताती हैं, ‘मृणाली 45 साल की हैं। उनके आइब्रो ही नहीं थी, इसलिए वह ब्लैक पेंसिल यूज करती थीं।

 
पहले लोग ध्यान नहीं देते थे, पर जब किटी पार्टीज में जाना शुरू किया तो दबी जबान में लेडीज उनके आइब्रो पर कमेंट करती थीं। सर्जरी करवाने की वजह यही थी।’ अपने चेहरे की बिगड़ी लुक पर कमेंट सुनने वाले लोगों के केस ज्यादा हैं। शहर में रियल एस्टेट का बिजनेस करने वाले अनिल गुप्ता का किस्सा भी कुछ ऐसा ही है। वह कहते हैं, ‘मेरी दाढ़ी-मूंछ तो आती है लेकिन मूंछों के बीच अजीब सा गेप है जिसमें बाल नहीं आते और मेरी वाइफ इस लुक देखकर मजाक बनाती हैं। पर अब मैंने इस खाली जगह पर सर्जरी करवाकर बाल उगवा लिए हैं।’

 
सउदी अरब से आई तसनीम

 
सिर्फ पंजाब से ही नहीं, इटली, मस्कट और सऊदी अरब जैसे देशों से भी सर्जरी करवाने के लिए लोग चंडीगढ़ आ रहे हैं। सऊदी अरब की तसनीम अपनी अनोखी प्रॉब्लम लेकर सिटी आईं थीं। तसनीम के एक आइब्रो ही नहीं थी।कई ट्रीटमेंट भी करवाए पर नाकाम। वह कहती हैं, ‘बुर्का पहनती हूं पर उसमें भी आंखें और आइब्रो नजर आती हैं। जब लोग मेरी दूसरी भौंह देखते तो कहते कि बुर्का ऊपर करो, तुम्हारी आइब्रो नहीं दिख रही। लेकिन मैं उन्हें क्या कहती।इसलिए अब दूसरी आइब्रो को सर्जरी से ठीक करवाया है।’ इसी तरह सऊदी अरब में साइड बर्न काफी होता है। कान के पास की कलमें शेखों के स्मार्ट बनाती हैं। और जिनके कलमें नहीं हैं वो शहर आते हैं सर्जरी के लिए।

 
कितना आता है खर्चा

 
आइब्रो, आइलैश और आइब्रो रीकंस्ट्रक्शन (आइब्रो और मूंछें लगवाने के लिए): 30 हजार से 50 हजार रुपये तक बियर्ड रीकंस्ट्रक्शन (दाढ़ी लगवाने के लिए): कितनी थिक रखनी है उसके हिसाब से ज्यादा से ज्यादा एक लाख रुपये बर्न केस पर हेयर रीकंस्ट्रक्शन: 30 से 50 हजार रुपये सर्जरी ड्यूरेशन: एक दिन

 
उम्र से पहले दाढ़ी-मूंछ की चाहत

 
बॉलीवुड स्टार्स की क्लीन्ड शेव या शैबी लुक वाली दाढ़ी भी यंगस्टर्स की स्टाइल में जगह बनाती है।शहर में हेयर रीकंस्ट्रक्शन करने वाले डॉक्टर बताते हैं कि टीनएजर उम्र से पहले जवान दिखने के लिए दाढ़ी-मूंछ लगवाने आ जाते हैं।डॉ. भट्टी के मुताबिक महीने में तीन-चार केस ऐसे आ ही जाते हैं। हम उन्हें कहते हैं कि आपकी उम्र नहीं है अभी, जब टाइम आएगा तो आपके चेहरे पर बाल अपने आप उग जाएंगे।लेकिन वह नहीं मानते और ‘रॉकस्टार’ में रणबीर और ‘डॉन-2’ में शाहरुख की बिखरी दाढ़ी पाने की इच्छा रखते हैं। ये गलत है।

सड़क पर बही दूध की नदी, बर्तन लेकर दौड़े लोग!


दौसा से दूध लेकर जयपुर डेयरी आ रहा सरस डेयरी का टैंकर बुधवार सुबह करीब नौ बजे खो नागोरियान में अनियंत्रित होकर बिजली के पोल से टकरा कर पलट गया। दुर्घटना में पोल टूट जाने से बिजली के तार पास ही स्थित फार्म हाउस की चार दीवारी पर लगे तारों पर गिर गए।
जिससे पूरे फार्म हाउस में करंट फैल गया। पुलिस ने बिजली सप्लाई बंद करवा कर घायल चालक तथा परिचालक को सवाई मानसिंह अस्पताल पहुंचाया। जिनकी हालत सामान्य है। इधर टैंकर में भरा 23 हजार लीटर दूध सड़क पर बह निकला। जिसे आसपास के लोग बर्तनों में भर ले गए।
खो नागौरियान बाइपास पर सामने से तेजी से आ रहे डंपर को बचाने के प्रयास में दूध से भरे के टैंकर चालक ने गाड़ी को कच्चे में उतार दिया। टैंकर की स्पीड तेज होने के करण चालक टैंकर पर नियंत्रण नहीं रख सका तथा टैंकर बिजली के पोल से जा भिड़ा और पलट गया। दुर्घटना से दोनों तरफ वाहनों की लंबी कतार लग गई।
चालक-परिचालक तड़पते रहे, लोग दूध के लिए झगड़ते रहे
इधर टैंकर से दूध बहने की सूचना फैलते ही कई लोग बर्तन लेकर दूध भरने पहुंच गए। तब तक टैंकर चालक जोधपुर निवासी जगदीश (28) तथा साथी कालू विश्नोई (23) टैंकर में ही फंसे थे लेकिन उनको किसी ने निकालने की जहमत नहीं उठाई। बाद में मौके पर पहुंची मालवीय नगर पुलिस ने एंबुलेंस बुलाकर घायलों को सवाई मानसिंह अस्पताल पहुंचाया। टैंकर से बह रहे दूध को बर्तनों में भरने के दौरान स्थानीय लोगों में तीन चार बार झगड़ पड़े।
शुक्र है किसी ने हाथ नहीं लगाया तारों के
दुर्घटना में बिजली के तार टूट कर पास स्थित फार्म हाऊस की दीवार पर लगे तारों पर जा गिरे। जिससे फार्म हाउस की तारों में करंट दौड़ गया। उस दौरान किसी ने भी तारों के हाथ नहीं लगाया नहीं तो बड़ा हादसा हो सकता था। वहीं तार अगर टैंकर पर गिर जाते तो टैंकर में भी आग लग सकती थी।

टी सी उम्र में इस लड़के ने वो कर दिया, जो बड़े ना कर पाएं


 

स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की अध्यक्षता में निर्णायक मंडल की बैठक में प्रदेश के पांच साहसी बालकों का चयन किया गया है। निर्णायक मंडल ने शहर के उत्तम कुमार सार्वा का चयन किया है। साथ ही विश्वनाथ चौहान रायगढ़, शुभम तिवारी, विपिन पटेल और राजू ध्रुव बिलासपुर का चयन किया है। उल्लेखनीय है कि राज्य शासन के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा अदम्य साहस, सूझ-बूझ, वीरता और बुद्धिमता का परिचय देते हुए प्रशंसनीय कार्य करने वाले बच्चों को पुरस्कृत करने के उददेश्य से वर्ष 2004 से राज्य वीरता पुरस्कार दिया जा रहा है। पुरस्कार के रूप में प्रत्येक चयनित बच्चे को दस हजार नगद, मेडल और प्रशस्ति पत्र दिए जाते हैं। राज्य वीरता पुरस्कार के लिए चयनित बच्चों को महामहिम राज्यपाल 26 जनवरी 2012 को स्थानीय पुलिस मैदान में आयोजित गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में पुरस्कृत करेंगे।


बैठक में राज्य वीरता पुरस्कार से सम्मानित बच्चों को पुलिस विभाग तथा अन्य विभागों में भर्ती में प्राथमिकता देने, उनकी शिक्षा की पूरी व्यवस्था करने, पुरस्कार राशि बढ़ाने तथा छात्रवृत्ति की राशि में वृद्धि करने का प्रस्ताव राज्य शासन को भेजने का निर्णय लिया गया । निर्णायक मंडल के अध्यक्ष श्री अग्रवाल ने महिला एवं बाल विकास विभाग के बजट के पुरस्कार मद में राशि बढ़ाकर पांच लाख रूपए करने के लिए जरुरी कार्रवाई करने के निर्देश भी अधिकारियों को दिए। निर्णायक मंडल की बैठक में छत्तीसगढ़ राज्य बाल कल्याण परिषद के उपाध्यक्ष मोहन चोपड़ा, प्रमुख सचिव गृह एनके असवाल, कलेक्टर रायपुर डॉ. रोहित यादव, छत्तीसगढ़ राज्य बाल कल्याण परिषद के महासचिव पीपी सोती, एनसीसी बटालियन रायपुर के लेफ्टिनेंट कर्नल जीपी कुमार, राज्य वीरता पुरस्कार के संयोजक एवं छत्तीसगढ़ राज्य बाल कल्याण परिषद के सदस्य सचिव राजेन्द्र निगम तथा महिला एवं बाल विकास विभाग की संयुक्त संचालक क्रिसटिना एस लाल उपस्थित थे।


ऐसे बचाई जान


धमतरी के कोष्टापारा निवासी नौ वर्षीय बालक उत्तम सार्वा पिता विरेन्द्र सार्वा ने रविवार 13 नवम्बर 2011 को शाम 5 बजे संदीप यादव की तीन वर्षीय पुत्री पवनी को तालाब में डूबने से बचाया था। उत्तम ने पवनी को पचरी पर लिटाने के बाद उसका पेट दबाकर पानी बाहर निकाला,फिर पवनी को सामुदायिक भवन उनके दादा-दादी के पास ले गया। इस प्रकार बालक के साहस एवं सूझबूझ से पवनी की जान बच गई।

हैरान करने वाला है रियल लाइफ के मुन्नाभाई का यह कारनामा


आरटीओ में एक कर्मचारी ने ही 118 लोगों की ऑनलाइन लर्निग लाइसेंस की परीक्षा दे दी, सभी पास। एक व्यक्ति की तीन मिनट में होने वाली परीक्षा में समय भी सिर्फ एक मिनट ही लगा। यह तो सिर्फ बुधवार का आंकड़ा है जबकि एक महीने में 2500 से ज्यादा लर्निग लाइसेंस यहां बनते हैं। आवेदक परीक्षा देने आए बिना अधिकारियों-एजेंटों की सेटिंग से लर्निग लाइसेंसधारी बन जाते हैं।

विजयनगर आरटीओ के लाइसेंस सेक्शन में ऑनलाइन लर्निग लाइसेंस की परीक्षा में फर्जीवाड़े की हदें पार हो चुकी हैं। कुछ लोग ही नियमानुसार आते हैं। जिस आवेदक से सेटिंग हो जाती है उससे ही ऑनलाइन लर्निग लाइसेंस फॉर्म भरवाया जाता है, रसीद कटवाई जाती है और फोटो खिंचवाकर भेज दिया जाता है। इसके बाद शुरू होता है मिलीभगत का खेल। फॉर्म इकट्ठे होते हैं और विभाग का एक कर्मचारी बैठकर सभी की परीक्षा दे देता है।

एक-एक मिनट में बन गए लर्निग लाइसेंस
- विजयनगर आरटीओ में ऑनलाइन लर्निग लाइसेंस के लिए वैसे तो दो सिस्टम है लेकिन एक सिस्टम पर ही परीक्षा होती है।
- जो 118 ऑनलाइन लर्निग लाइसेंस बने हैं वह दोपहर 1.18 से 3.35 बजे के बीच (137 मिनट में) बने। यानी एक मिनट में एक लाइसेंस।
- वैसे यदि देखा जाए तो एक सिस्टम पर एक व्यक्ति बैठेगा। उसका डाटा खुलेगा, उसके बाद परीक्षा शुरू होगी।
- एक-एक करके व्यक्ति पूछे गए 10 प्रश्नों के जवाब देगा। इन सभी प्रक्रियाओं में कम से कम तीन मिनट का समय लगता है। परिवहन विभाग के अधिकारी और एक्सपर्ट भी इस बात को स्वीकारते हैं कि एक मिनट में नियमानुसार परीक्षा संभव नहीं है।

परीक्षा ऐसे ..
- आवेदक को ऑनलाइन आवेदन भरना होता है। व्यक्ति को परीक्षा के लिए निश्चित दिन और समय मिलता है।
- व्यक्तिआरटीओ पहुंचकर फोटो खिंचवाता है। इसके बाद परीक्षा होती है।

ऐसे होती है मिलीभगत
- ज्यादातर एजेंट ही ऑनलाइन फॉर्म भर तारीख ले लेता है।
- व्यक्ति को परीक्षा से पहले ही फोटो खिंचवाकर भेज दिया जाता है।
- सभी फॉर्म एकत्रित कर लिए जाते हैं और परिवहन विभाग का एक कर्मचारी बैठकर परीक्षा दे देता है। उसे सभी प्रश्नों के जवाब और तरीके पता है इसलिए कम समय लगता है।
- २00 रु. प्रति लाइसेंस लिए जाते हैं।

आपके ही घर में छुपा है किस्मत और पैसा डबल करने का राज


जी हां आपको यकीन नहीं होगा कि इतना बड़ा राज आपके ही घर में छुुपा हो सकता है, लेकिन ये सच है। अगर आप गोर करें तो आपको पता चल जाएगा कि कैसे आसानी से पैसा और किस्मत डबल कर सकते हैं।

पैसा, धन, रुपए की ज
रूरत आज सभी को है, इसे हासिल करने के लिए कई प्रकार के जतन किए जाते हैं। कई लोगों की किस्मत में थोड़ी मेहनत के बाद ही काफी धन प्राप्त हो जाता है लेकिन कुछ लोग कड़ी मेहनत करते हैं फिर भी उन्हें पर्याप्त पैसा नहीं मिल पाता है। ऐसे में वास्तु के अनुसार कुछ ऐसी टिप्स बताई गई हैं जिससे आपके परिवार की ओर महालक्ष्मी की कृपा बढ़ेगी, फिर मिलेगा धन ही धन।

वास्तु के अनुसार सबसे अधिक जरूरी है कि घर सभी चीजे सही जगह पर रखी रहें अन्यथा गरीबी का निवास बहुत जल्दी हो जाता है। इसलिए इन बातों को अपनाएं...



कौन सी वस्तु कहां रखें



- सोते समय सिर दक्षिण में पैर उत्तर दिशा में रखें। या सिर पश्चिम में पैर पूर्व दिशा में रखना चाहिए।

- अलमारी या तिजोरी को कभी भी दक्षिणमुखी नहीं रखें।

- पूजा घर ईशान कोण में रखें।

- रसोई घर मेन स्वीच, इलेक्ट्रीक बोर्ड, टीवी इन सब को आग्नेय कोण में रखें।

- रसोई के स्टेंड का पत्थर काला नहीं रखें।

- दक्षिणमुखी होकर रसोई नहीं पकाए।

- शौचालय सदा नैर्ऋत्य कोण में रखने का प्रयास करें।

- फर्श या दिवारों का रंग पूर्ण सफेद नहीं रखें।

- फर्श काला नहीं रखें।

- मुख्य द्वार की दाएं ओर शाम को रोजाना एक दीपक लगाएं।



इन बातों को अपनाने निश्चित की धन संबंधी कई परेशानियां दूर होंगी।

अब ईसाई समुदाय ने किया सूर्य नमस्कार का विरोध



मध्य प्रदेश के स्कूलों में आज लाखों की संख्या में छात्रों ने विवादों के बीच सूर्य नमस्कार किया। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार की इस मुहिम पर राजनीति भी तेज हो गई है। मुस्लिम धर्मगुरुओं की तरफ से सूर्य नमस्कार के खिलाफ फतवा जारी करने के बाद ईसाई समाज ने भी सूर्य नमस्कार का विरोध किया है।

ईसाई महासंघ (आईएमएस) ने कहा है कि वह गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के अधिकारियों से संपर्क करेगा ताकि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रायोजित यह कार्यक्रम रिकॉर्ड के तौर पर दर्ज न किया जाए।

ईसाई महासंघ की नज़र में सूर्य नमस्कार बहुधर्मी समाज में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देता है। ईसाई महासंघ के मध्य प्रदेश ईकाई के महासचिव जेरी पॉल ने कहा, राज्य में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। मुस्लिम धर्म गुरुओं ने भी सूर्य नमस्कार को मूर्ति पूजा जैसा मानते हुए गैर इस्लामी ठहराया था और इसके खिलाफ फतवा जारी कर दिया था।

इस बीच, मध्य प्रदेश के 6 हजार से ज़्यादा स्कूलों में गुरुवार को बच्चों ने एक साथ सूर्य नमस्कार किया। सूर्य नमस्कार शुरू करने का संकेत आकाशवाणी के जरिए दिया गया था। यह कार्यक्रम स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर आयोजित किया गया। भोपाल के नवीन कन्या हायर सेकंडरी (ओल्ड कैंपियन) स्कूल में सूर्य नमस्कार कार्यक्रम में शामिल होने के बाद पत्रकारों से बातचीत में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरे विवाद पर सफाई देते हुए कहा, 'सूर्य नमस्कार का संबंध बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य से है। किसी धर्म विशेष के फायदे के लिए हम सूर्य नमस्कार नहीं कर रहे हैं। यह एक योग का आसन है, जिसे करने से हर व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है। हमने वैसे भी कार्यक्रम को स्वैच्छिक रखा है। किसी पर दबाव नहीं है कि उसे जरूर करे।'

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सूर्य नमस्कार कार्यक्रम रिकार्ड के लिए भी नहीं किया जा रहा है। हमारा उद्देश्य योग शिक्षा को घर-घर तक पहुंचाना है, उसी कड़ी में इसे स्कूलों में बच्चों को करवाया जा रहा है। बताया जा रहा है कि चौहान ने अपने बाएं हाथ में हुए ऑपरेशन और 15 टांके लगे होने के बाद भी सूर्य नमस्कार किया। आयोजन के रिकॉर्ड को दर्ज करने के लिए प्रदेश सरकार ने अधिकारियों को नियुक्त किया था। इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के अधिकारियों को भेजा जाएगा। लेकिन रिकॉर्ड बना या नहीं, यह साफ होने में कुछ हफ्तों का वक्त लग सकता है।

Wednesday, 11 January 2012

इस बार 23 मार्च को बदल जाएगा ग्रहों का मंत्रिमंडल


नया संवत 2069 इस बार एक सदी बाद अनूठा संयोग लेकर आ रहा है। इस संवत के ग्रहों का मंत्रिमंडल 23 मार्च को बदल जाएगा। इसके राजा और मंत्री के दोनों पद शुक्र को मिलेंगे। नए संवत आधुनिक तकनीक पर जोर रहेगा। नए अविष्कार भी होंगे।

ज्योतिषियों के मुताबिक राजा और मंत्री दोनों के पद शुक्र को मिलने से ऐसा संयोग एक सदी पहले तक देखने को नहीं मिला। अगली बार 16 साल बाद संवत 2086 में वापस शुक्र को राजा और मंत्री के पद पर रहने का अवसर मिलेगा।

पं. रमेश भोजराज द्विवेदी के अनुसार दोनों पदों पर एक ही ग्रह के आसीन रहने का अवसर तो कई बार आया करता है लेकिन शुक्र को यह अवसर एक सदी बाद मिल रहा है। विश्वस्त नाम का संवत्सर प्रजा में आध्यात्मिक रुचि व आस्था बढ़ाने वाला रहेगा।

नए संवत में रोहिणी का वास पर्वत पर होने से कहीं कहीं वर्षा की कमी के संकेत मिलेंगे, तो समय का वास कुंभकार के पास होने से भ्रष्टाचार में बढ़ोत्तरी होगी और भौतिकता का बोलबाला रहेगा।

समय का वाहन मेढ़क होने से अच्छी वर्षा के संकेत हैं। वहीं दूसरी ओर शनि का उच्चस्थ परिभ्रमण फिर वक्री होकर कन्या राशि में परिभ्रमण करने से डीजल, पेट्रोल, गैस और ऑयल आदि के दामों में भारी वृद्धि होगी। साथ ही देश के आर्थिक हालात में भी अधिक उतार चढ़ाव रहेगा।

इनसे छिनेगी सत्ता

संवत 2068 के दुर्गेश, मेघेश और धनेश बुध नव संवत में तीनों पदों से विहीन हो जाएंगे। वहीं इस बार ये सभी पदों से वंचित रहेंगे। बुध के सभी पद संवत 2069 में गुरु के पास रहेंगे। उधर संवत के राजा चंद्रमा से राजा का पद छिन जाएगा। इससे इस बार खासे प्रभाव देखने को मिलेंगे।

इस संवतों में राजा-मंत्री समान रहे


संवत 2063 : गुरु

संवत 2048 : सूर्य

संवत 2046 : गुरु

संवत 2040 : गुरु

संवत 2029 : गुरु

संवत 2023 : बुध

संवत 2006 : बुध

संवत 2004 : सूर्य

संवत 1981 : शनि

आगे भी ऐसा संयोग

संवत 2071 : चंद्रमा

संवत 2078 : मंगल

संवत 2082 : सूर्य

संवत 2084 : बुध

संवत 2086 : शुक्र

पंडितों के अनुसार भविष्य में आने वाले इन अनूठे संयोगों के असर से आर्थिक और सामाजिक बदलाव देखने को मिलेंगे। कुछ क्षेत्रों में इसके दूरगामी परिणाम भी सामने आएंगे।

जुगाड़ टेक्नोलॉजी की बनेगी विश्व स्तर पर पहचान


पेसिफिक यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने साउथ एशिया के जुगाड़ अविष्कारों के संरक्षण और पेटेंट की दीर्घकालिक योजना बनाई है। पेसिफिक पेटेंट फेसिलिटेशन, जुगाड़ टेक्नोलॉजी, मुंबई एजुकेशन ट्रस्ट के सहयोग से इस मुद्दे पर ब्रेन स्टार्मिग के लिए प्रथम चरण में साउथ एशिया स्तर पर उदयपुर में जुगाड़ वर्कशाप का आयोजन करेगा। वर्कशाप 18 अप्रैल को प्रस्तावित है।

जुगाड़ टेक्नोलॉजी के तहत किए गए लगभग एक हजार अविष्कारों को इस वर्कशाप में शामिल किया जाएगा। सर्वश्रेष्ठ जुगाड़ को 5 लाख का पुरस्कार तो मिलेगा ही साथ ही उसका पेटेंट बनाकर रिसर्च वर्क भी किया जाएगा। भास्कर इस वर्कशाप में मीडिया पार्टनर होगा।

आपको फिल्म 3 इडियट का वह दृश्य याद होगा, जब पिया (करीना) की बहन की डिलिवरि होनी थी। बिजली गुल। रैंचो (आमिर) और उसके साथियों ने कार बैट्रियों से बिजली और वैक्यूम क्लीनर से रिवर्स पंप बनाकर प्रसव करवाया।

भारत में रोजमर्रा के जीवन में कठिन काम को आसान बनाने के लिए जुगाड़ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल आम बात है। इसमें खास यह है कि जुगाड़ टेक्नोलॉजी के जरिए किए गए अविष्कार बेहद सस्ते होने के साथ काफी व्यावहारिक होते हैं। इस जुगाड़ टेक्नोलॉजी का यदि शोध और संरक्षण किया जाए तो चमत्कारिक परिणाम मिल सकते हैं। पेसिफिक यूनिवर्सिटी के सचिव राहुल अग्रवाल कहते हैं कि इस सोच के तहत पेसिफिक प्रबंधन ने यह महत्वपूर्ण कदम उठाया है।

इस पूरे प्रयास के पीछे उद्देश्य यह निहित है कि देशभर में जुगाड़ करने वालों की कमी नहीं है, लेकिन उनके द्वारा किया गया जुगाड़ सिर्फ उन्हीं तक सिमट कर रहा जाता है। इन जुगाड़ों के लाभ को सर्व सुलभ करवाने के उद्देश्य से इनका पेटेंट करवाकर रिवर्स इंजीनियरिंग से जोड़ा जाएगा।

ताकि, सभी के लिए हो बहुत कुछ

मुंबई एजुकेशन ट्रस्ट के विजय पागे ने बताया कि जुगाड़ से आम आदमी अंजान है। खुद जुगाड़ करने वाला भी नहीं जानता कि उसने ऐसा प्रोजेक्ट तैयार कर दिया है, जो विश्व स्तर पर पहचान बना सकता है। इन्हीं जुगाड़ों पर शोध कर उन्हें इस कोटी का बनाया जाना है, जिसमें सभी के लिए बहुत कुछ की भावना छीपी हो। इससे शोध के विषयों की संख्या भी बढ़ जाएगी।

होगा जुगाड़ों का जमावड़ा

पेसिफिक ग्रुप के प्रो. बीपी शर्मा ने बताया कि जुगाड़ वर्कशॉप में भारत, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, बर्मा, श्रीलंका तथा पाकिस्तान आदि से जुगाड़ करने वाले विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे। जिनकों इंटरनेट, संबंधित इंडस्ट्री, मेल, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आदि के माध्यम से आमंत्रित किया जा रहा है। चयनित होने वाले जुगाड़ पर शोध कार्य होगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय, ऐसे शोध को कॉमर्शियली और फाइनेंशिल सपोर्ट भी करता है।

जुगाड़ टेक्नोलॉजी की बनेगी विश्व स्तर पर पहचान

यूं तो दुनियाभर में जुगाड़ियों की कमी नहीं मगर हमारे देश में लोगों का ज्यादातर काम जुगाड़ में चलता है।अपने इर्द गिर्द नजर डालिए राजसमंद के हाईवे पर चलने वाले डीजल इंजन का। जो सुबह फसलों की सिंचाई में काम आता है, तो दोपहर में मार्बल सप्लाई के तौर पर। शादी ब्याह में जाना होता तो वह गाड़ी बन जाता है।

अब तक यह सिर्फ जुगाड़ ही माना गया है। यदि इस पर शोध किया जाता, तो आज इस इंजन को मल्टीपरपज व्हीकल का रूप भी दिया जा सकता था। यह कहना है पेसिफिक ग्रुप के राहुल अग्रवाल का। कहते हैं जुगाड़ टेक्नोलॉजी का मुख्य उद्देश्य यही रखा है कि जुगाड़ पर शोध करवाकर ऐसा माध्यम बनाया जाए जो सस्ता और सर्व सुलभ हो।

इंजीनियर से लेकर मिस्त्री तक करेंगे चर्चा

प्रो.शर्मा ने बताया कि 18 अप्रैल को उदयपुर के पेसिफिक हिल्स में होने वाले जुगाड़ वर्कशॉप में आए जुगाड़ों पर सिद्धहस्त इंजीनियर से लेकर मिस्त्री वर्ग तक के लोग संभावनाएं तलाशेंगे। सर्वश्रेष्ठ रहने वाले जुगाड़ों पर रिसर्च करवाया जाएगा तथा पेटेंट करवा कर उपयोगी तकनीक का विकास किया जाएगा। पेसिफिक कॉलेज ऐसी प्रतिभाओं को मंच प्रदान करेगा, जो कभी न कभी किसी तरह का जुगाड़ ईजाद कर चुके हैं, लेकिन गुमनाम से रह गए।

इसलिए पड़ी आवश्यकता

पाहेर ग्रुप के प्रो. बी.पी. शर्मा बताते हैं कि हमारे पास इनोवेटिव आइडिया, मैन पावर, लेटेस्ट टेक्नोलॉजी, रिसर्च फील्ड आदि की कोई कमी नहीं है। बावजूद इसके भी वर्तमान में हम काफी पिछड़े हुए हैं। देशभर में हर रोज जुगाड़ टेक्नोलॉजी के तहत कई आविष्कार होते हैं, लेकिन सीमित सीमा में ही रह जाते हैं। जुगाड़ सिर्फ एक शब्द नहीं है। यदि इसकी सफल क्रियान्वित हो जाए, तो हम किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रहेंगे।

क्या-क्या हैं संभावनाएं

प्रो. शर्मा बताते हैं कि जुगाड़ टेक्नोलॉजी में यदि हमने किसी एक मॉडल का भी पेटेंट बना दिया तो काफी हद तक सफलता प्राप्त कर लेंगे। इस पेटेंट में रिसर्च मैथर्ड को शामिल कर देश या विश्व स्तर पर नई तकनीक पैदा कर सकते हैं। ईजाद करने वाले को भी इससे फायदा मिलेगा। इससे होने वाली आय से वो प्रोत्साहित होगा।

क्या होगा फायदा

इस प्रयास से सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि हमारे पास ऐसे कई विकल्प होंगे, जिनमें कई नई संभावनाएं छिपी होंगी। शोधार्थियों के पास भी कई विषय होंगे। देश में रिवर्स इंजीनियरिंग का नया कंसेप्ट भी शुरू हो जाएगा। सीधे शब्दों में कहा जाए तो आउट सोर्सिग से क्राउड सोर्सिग तक का सफर शुरू हो जाएगा।

जुगाड़ कैसे-कैसे

स्पेनिश कंपनी के अधिकारी ने दिल्ली में कमरा लिया। सुबह से शाम तक कमरे में रहने के बाद होटल संचालकों ने जानकारी ली। बताया, सूटकेस का ताला खराब हो गया है। जिसे न तोड़ा जा सकता है और न खोला। जो खोल देगा उसे सूटकेस कंपनी 2 लाख का इनाम देगी। होटल संचालक ने सड़क पर घूम रहे ताला चाबी बनाने वाले को बुलाया और उसने 2 मिनट में ताला खोलकर इनाम ले लिया। उसके पास कोई आधुनिक उपकरण नहीं थे।

कमल देख बने आधुनिक कांच

कमल के पत्ते पर धूल और पानी नहीं टिकता देख, इंगलैंड की एक कंपनी ने बायो मिमिक्री का कंसेप्ट अपनाया। मॉलीक्यूल टेक्नोलॉजी वाले कांच बनाकर भवनों में लगाए गए। इससे फायदा यह हुआ बड़ी और ऊंची इमारतों के संचालकों को कांच की सफाई पर लाखों रुपए खर्च नहीं करने पड़ते हैं।

डबल कटर ने बढ़ाया उत्पादन

राजस्थान में मार्बल माइनिंग में स्लैब कटाने के लिए पहले उसे गलाना पड़ता था और ब्लास्टिंग करनी पड़ती थी। तब हर रोज 30 गाड़ियां सप्लाई की जाती थीं। डबल कटर के जुगाड़ से ब्लास्टिंग के बिना भी 300 गाड़ियां हर रोज सप्लाई की जाने लगीं। तीन करोड़ रुपए में होने वाला काम 25 हजार रुपए में होने लगा।

शिप में शिफ्ट हो गया गैंगसा

चाइना में मार्बल की जब मांग की जाती तो उसके ट्रांसपोर्टेशन में समय और खर्च काफी लगता था। मार्बल में लगे गैंग शा संचालक ने ऐसे ही राय दे दी कि गैंगशा को जहाज में ही शिफ्ट कर दो। ऐसा ही किया गया। समय और खर्च तो बचा ही साथ ही मार्बल से निकलने वाली स्लरी को ठिकाने लगाने की परेशानी भी समाप्त हो गई।

आपने जुगाड़ तैयार किया है तो हमें बताएं

यदि आपने जुगाड़ टेक्नोलॉजी के जरिए कोई नई चीज ईजाद की है तो हमें बताएं। हम उसके बारे में विस्तार से प्रकाशित करेंगे। आपकी एंट्री 18 अप्रैल को होने वाली वर्कशॉप में शामिल होगी और आप जीत सकेंगे 5 लाख रुपए तक के इनाम और जुगाड़ का आविष्कारक होने का नाम।

मौत का था खौफ, पर खुद की कब्र बनाने का राज क्या है?


पेसिफिक कॉलेज के छात्र शेखर पांचाल के अपहरण और फिरौती मांगने के मामले में पुलिस ने सोमवार को मुख्य आरोपी के दोस्त मुकेश सोनी को कोटा से गिरफ्तार कर लिया है।

उस पर अपहरण से लेकर फिरौती मांगने तक मुख्य अपहर्ता के संपर्क में रहने और साजिश में शामिल होने का आरोप है। पुलिस को अपहृत छात्र शेखर पांचाल और मुख्य आरोपी प्रदीपसिंह भाटी का कोई सुराग हाथ नहीं लगा है। कोटा गया पुलिस दल सोमवार रात को उदयपुर के लिए रवाना हो गया।

उधर, सुविवि की छात्र संघर्ष समिति ने 36 घंटे में अपहृत छात्र व मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार नहीं करने पर बुधवार को संभागभर के शिक्षण संस्थान को बंद कराने व उग्र आंदोलन करने की चेतावनी दी है। एएसपी सिटी तेजराज सिंह ने बताया कि कोटा में दादावाड़ी निवासी मुकेश पुत्र चंदालाल सोनी को गिरफ्तार कर लिया गया है।

बताया गया कि आरोपी ने कई लोगों से रुपए उधार ले रखे हैं। यह मुख्य आरोपी प्रदीप सिंह भाटी और उसका पड़ोसी मुकेश पूरी योजना में शामिल रहा। भाटी द्वारा शेखर का अपहरण करने के बाद फिरौती की राशि एक करोड़ रुपए और 5 किलो सोना लेकर बुलाया गया था, तब मुकेश मौके पर मौजूद था और प्रदीपसिंह को सूचना दे रहा था।

मुकेश ने मुख्य आरोपी को बताया कि शेखर के माता-पिता के साथ कौन-कौन आया है? उसे पुलिस अफसरों के साथ होने की भी सूचना दी गई थी। मुकेश ने अपहरण में प्रयुक्त कार भी अपनी मित्र की सहायता से मुख्य आरोपी प्रदीप को उपलब्ध करवाई थी।

छात्र का सुराग नहीं : पुलिस को दसवें दिन सोमवार को भी शेखर पांचाल के बारे में पता नहीं चल सका। इसके लिए पुलिस मुख्य आरोपी प्रदीपसिंह भाटी की तलाश में जुटी है। इस संबंध में हिरासत में ली गई प्रदीप की पत्नी प्रीति, चचेरा भाई भगवान सिंह, ताऊ का लड़का बहादुर सिंह, साला सुमित, दोस्त पिंटू सहित सात जनों से पूछताछ जारी है।

उदयपुर और कोटा पुलिस के अलग-अलग दल ने मोबाइल कॉल लोकेशन के आधार पर सोमवार को फिर कोटा और आसपास के इलाकों में दबिश देकर मुख्य आरोपी तक पहुंचने का प्रयास किया। इसके अलावा उदयपुर में भी शेखर के मित्रों व परिचितों से पूछताछ कर अनुसंधान किया जा रहा है।

यह है मामला

31 दिसंबर को पेसिफिक कॉलेज के छात्र शेखर पांचाल का बोहरा गणेशजी क्षेत्र से उसके परिचित प्रदीप सिंह भाटी घूमाने के बहाने अपहरण कर ले गया था। मुख्य आरोपी प्रदीप सिंह द्वारा शेखर की मां को फोन कर एक करोड़ रुपए व पांच किलो सोने की फिरौती मांगी गई थी। कोटा में आरोपी की मिली कार में खून के आधार पर पुलिस का मानना है कि शेखर के साथ अनहोनी हुई है।

खुद की कब्र बनाने का राज क्या है?

शेखर पिछले कुछ दिनों से मौत के खौफ से गुजर रहा था, उसकी यह मनस्थिति उसका फेसबुक प्रोफाइल देखने से साफ प्रतीत होती है। पुलिस, आईटी एक्सपर्ट्स और साइक्लॉजिस्ट्स की मदद से पांचाल के फेसबुक प्रोफाइल पर की गई दो फोटोज के संकेत को समझने की कोशिश कर रही है।

पुलिस का मानना है कि अपहरण के एक दिन पहले और ठीक एक दिन बाद इस तरह की फोटोज पोस्ट करना इस बात का साफ संकेत था कि कुछ ऐसा चल रहा था, जिससे शेखर के मन में अनहोनी की आशंका जन्म ले चुकी थी।

शेखर के फेसबुक प्रोफाइल में अपहरण से एक दिन पूर्व 30 दिसम्बर को रात 10:50 बजे डेथ क्लॉक नाम से उसने एक कब्रिस्तान का फोटो पोस्ट किया था। जिसमें एक कब्र पर शेखर की फोटो ऐसे पोस्ट की गई थी, जैसे उसकी कब्र हो। उस फोटो पर क्लिक करने पर लिंक वेलकम टू डेथ क्लॉक पर खुल रहा है। जिसमें सैकंड स्टेप पर लिखा है, फाइन्ड माई डेथ डेट। इस लिंक पर क्लिक करने पर एरर की वजह से आगे नहीं जा सके।

फेसबुक पर शेखर के 251 दोस्त हैं, जिनमें से से ज्यादातर युवा और बड़ी संख्या में खूबसूरत क़ॉलेज गल्र्स हैं। मोट तौर पर प्रोफाइल और साथियों को जायजा लेने पर शेखर का जो व्यक्तित्व ऊभर कर सामने आता है, वह अल्हड़, मस्त, रंगीन दुनिया में जीने वाला है। फिर अचानक 30 दिसंबर को क्या हो गया जो वह मौत, कब्रिस्तान और डेथ टाइम के बीच उलझ गया। ऐसे कई रहस्य हैं जो पुलिस को सुलझाने हैं?

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक शेखर का अपहरण 31 दिसंबर को हुआ। आश्चर्य की उसने एक जनवरी को सुबह 7:12 बजे दोबारा 30 दिसंबर को पोस्ट की गई कब्रिस्तान की फोटो पोस्ट की, नाम दिया सेमेटरी (कब्रिस्तान)। वह एक जनवरी को अपहर्ताओं के कब्जे में था, ऐसे में सवाल उठता है कि उसे कंप्यूटर, इंटरनेट की सुविधा कैसे हासिल हुई ?

क्या वह उस वक्त अपहर्ताओं की निगरानी में उसे नेट की सुविधा हासिल थी। फेसबुक के जरिए दोस्तों को वह खुद के मौत के मुंह में फंसे होने का संकेत देना चाह रहा था। आईटी एक्सपर्ट्स फोटो पोस्ट करने के समय के मुताबिक फोटो लोड करने के लिए इस्तेमाल कंप्यूटर और उसकी लोकेशन पता कर सकते हैं।

पुलिस ऐसा कर भी रही होगी, यह बात अलग है कि इस मुद्दे पर सभी अधिकारी जरूरत से ज्यादा एहतियात बरत रहे हैं। अब तक मिले संकेत अनहोनी की ओर इशारा जरूर कर रहे हैं, मगर शेखर के परिजन, दोस्त, पुलिस अधिकारी और हर संवेदनशील व्यक्ति परमपिता से यही प्रार्थना कर रहा है, मिले संकेत गलत साबित हों। शेखर दीर्घजीवी हो, सकुशल लौटे। भास्कर परिवार की यही प्रार्थना है।

छात्रों ने दी आंदोलन की चेतावनी

दस दिन बाद भी शेखर पांचाल का पता नहीं चल पाने से विद्यार्थियों में रोष है। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष दिलीप जोशी के नेतृत्व में सोमवार को कार्यकर्ताओं ने शेखर पांचाल के अपहरणकर्ताओं की 36 घंटों में गिरफ्तार करने की मांग को लेकर जिला पुलिस अधीक्षक के नाम पर ज्ञापन दिया।

छात्रों ने 11 जनवरी को संभाग के सभी शिक्षण संस्थान बंद कराने व उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है। इस दौरान सुविवि अध्यक्ष परमवीर सिंह, हरीश चौधरी, प्रवक्ता राहुल नागदा, दीपक मेघवाल, अमित पालीवाल, दीपक शर्मा, अनिल गारु सहित अन्य कार्यकर्ता उपस्थित थे।

इसी प्रकार सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अध्यक्ष विक्रम खटीक, पूर्व अध्यक्ष दिलीप सिंह सिसोदिया के प्रतिनिधि मंडल ने गिरफ्तारी की मांग को लेकर एडीएम प्रशासन बीआर भाटी को ज्ञापन पेश किया।

मंदिर के इस 'भगवान' की कहानी बहुत दिलचस्प है भाई


नॉलेज पैकेज के अंतर्गत आज हम आपको ओरछा स्थित राम राजा मंदिर के पीछे की कहानी बता रहे हैं। ओरछा मध्य प्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक स्थान है। यह हमेशा से पर्यटकों के केंद्र में रहा है। यहां स्थित भगवान श्रीराम का मंदिर पूरे देश में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां वे भगवान के रूप में नहीं, बल्कि एक राजा के रूप में पूजे जाते हैं।

यहां भगवान श्रीराम की स्थापना के पीछे की एक बहुत मजेदार कहानी है। कहानी के अनुसार तात्कालीन समय में ओरछा के राजा मधुकर शाह भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे, जबकि उनकी पत्नी गणोशकुंवरी भगवान श्रीराम की उपासना करती थीं। वे हमेशा रानी को भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करने को कहा करते थे, लेकिन रानी तो श्रीराम का ही नाम जपते रहती थीं।

एकबार उन्होंने यह मन बना लिया कि वे ओरछा में भगवान श्रीराम की स्थापना करेंगी। इसके लिए उन्होंने अयोध्या जाकर उपासना करने का मन बनाया। एक दिन वे राजा को बिना बताए, अयोध्या के लिए निकल गईं। अयोध्या के लिए प्रस्थान करने से पहले उन्होंने अपने नौकरों को यह आदेश दिया कि वे चतुभरुज मंदिर का निर्माण करवाएं, जहां भगवान श्रीराम की स्थापना की जाएगी।

अयोध्या पहुंचने के बाद रानी ने राम मंदिर में भगवान श्रीराम के लिए कई दिनों तक उपवास रखा। उनकी इस भक्ति को देखकर भगवान श्रीराम उनके सामने प्रकट हुए। इसके बाद रानी ने उन्हें अपने साथ ओरछा जाने का आग्रह किया। भगवान श्रीराम तैयार हो गए, लेकिन इसके लिए उन्होंने रानी के सामने तीन शर्ते रखीं।

1. भगवान श्रीराम ने कहा कि वे ओरछा बाल रूप में जाएंगे।
2. ओरछा पहुंचने के बाद वहां न कोई राजा होगा और न कोई रानी।
3. उनकी स्थापना पुरुष नक्षत्र में होगी।

रानी ने भगवान श्रीराम की सभी शर्ते मान लीं। रानी जब श्रीराम के बालरूप के साथ ओरछा पहुंचीं, तब राजा ने धूमधाम से उनका स्वागत करने का मन बनाया। लेकिन रानी ने सभी को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद वे श्रीराम के बालरूप के साथ महल में गईं। अगले दिन जब उन्होंने भगवान राम को चतुभरुज मंदिर में स्थापित करने का शुभ मुहूर्त बनाया, तब भगवान राम ने कहा कि वे मां का दामन छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे।

इसके बाद वे महल से बाहर नहीं गए और उनकी स्थापना वहीं हो गई। इसके बाद से रानी का वही महल मंदिर के रूप में विख्यात हो गया, जो आज राम राजा मंदिर के नाम से विश्व विख्यात है।

पर्दे में रहने दो, पर्दा ना उठाओ, पर्दा जो उठ गया तो..



चुनाव आयोग के निर्देश पर उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर और लखनऊ में मुख्यमंत्री मायावती और बसपा के चुनाव चिह्न हाथी की प्रतिमाओं को ढकने का काम मंगलवार को शुरू हो गया। गौतमबुद्ध नगर के डीएम हृदयेश कुमार ने बताया कि ग्रेटर नोएडा में हाथी की सभी 36 मूर्तियों तथा मुख्यमंत्री की दो प्रतिमाओं को ढका जा चुका है।

लखनऊ में सामाजिक परिवर्तन स्थल, कांसीराम स्मारक, कांसीराम विश्राम थल, रमाबाई स्थल आदि स्थानों पर ढकने काम शुरू हुआ। मायावती के पैतृक गांव बादलपुर तथा गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में बने पार्कों में भी मूर्तियों को ढका जा रहा है। चुनाव आयोग ने इस काम के लिए 11 जनवरी तक का समय दिया है।

 

 
 

जानिए मकर संक्रांति पर क्यों खाते हैं तिल-गुड़ के लड्डू


भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। त्योहारों की बात हो और मिठाई न हो ऐसा तो हो नहीं सकता। हर त्योहार पर विशेष पकवान बनाने व खाने की परंपराएं भी हमारे यहां प्रचलित हैं।

मकर संक्रांति के अवसर पर विशेष रूप से तिल व गुड़ के पकवान बनाने व खाने की परंपरा है। कहीं तिल व गुड़ के स्वादिष्ट लड्डू बनाए जाते हैं तो कहीं चक्की बनाकर तिल व गुड़ का इनका सेवन किया जाता है। तिल व गुड़ की गजक भी लोगों को खूब भाती है। मकर संक्रांति के पर्व पर तिल व गुड़ का सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक आधार है।


सर्दी के मौसम में जब शरीर को गर्मी की आवश्यकता होती है तब तिल व गुड़ के व्यंजन यह काम बखूबी करते हैं। तिल में तेल की प्रचुरता रहती है जिसका सेवन करने से हमारे शरीर में पर्याप्त मात्रा में तेल पहुंचता है जो हमारे शरीर को गर्माहट देता है। इसी प्रकार गुड़ की तासीर भी गर्म होती है। तिल व गुड़ को मिलाकर जो व्यंजन बनाए जाते हैं वह सर्दी के मौसम में हमारे शरीर में आवश्यक गर्मी पहुंचाते हैं। यही कारण है कि मकर संक्रांति के अवसर पर तिल व गुड़ के व्यंजन प्रमुखता से खाए जाते हैं।

तस्वीरों में देखिए दुनिया के 5 सबसे क्रूर हत्यारे

तस्वीरों में देखिए दुनिया के सबसे क्रूर हत्यारे....
 

ठग बहराम, भारत (900 लोगों की हत्या) - मानवीय इतिहास में सीरियल किलिंग की घटनाएं काफी पुरानी हैं। सीरियल किलर के रूप में ठग बहराम पूरी दुनिया में कुख्यात है। 50 वर्षों के समय में ठग बहराम ने हथकड़ी के जरिए गला घोंटकर 900 से अधिक लोगों की हत्या की थी। ठग बहराम को 75 वर्ष की उम्र में पकड़ लिया गया और बहराम ने अपना अपराध कबूल कर लिया। बहराम को वर्ष 1840 में फांसी की सजा दी गई।
 

गिल्स डे रेस, फ्रांस (चाइल्ड किलर, 400 हत्याएं) - गिल्स शाही आर्मी में कमांडर था और अपने देश के लिए जंग लड़ा करता था। वर्ष 1434 में सेना से रिटायर होने के बाद उसने हत्याएं करनी शुरू की। अपनी क्रूरता के बारे में स्वयं गिल्स ने कहा था कि वह हत्या करने के बाद मृतक की लाश को चूमा करता था और बच्चों की हत्या करते हुए उनके पेट पर बैठ कर हंसता था और उन्हें मरते हुए देखता।
 

पेड्रो लोपेज, कोलंबिया (360 हत्याएं) - पेड्रो के बचपन की कुछ दुखद घटनाएं काफी चर्चित हैं। उसकी मां एक वेश्या थी। बचपन में पेड्रो का कई बार बलात्कार किया गया। 18 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते पेड्रो ने लड़कियों की हत्याएं करनी शुरू कर दी थी। वह पकड़ा भी गया, लेकिन अमेरिकन मिशनरियों के सहयोग से फरार होने में कामयाब रहा। आंकड़ों के अनुसार पेड्रो ने कोलंबिया, इक्वेडर और पेरू में 360 से अधिक लड़कियों की हत्या की थी।
 

हेरोल्ड शिपमैन, ब्रिटेन (लगभग 457 हत्याएं) - हेरोल्ड शिपमैनको डॉक्टर डेथ के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 1998 में उसे गिरफ्तार किया गया और सजा सुनाई गई। वर्ष 2004 में हेरोल्ड ने जेल में ही आ
त्महत्या कर ली।
 

हेनरी ली लुकास, अमेरिका (213 हत्याएं) - कुख्यात हत्यारे पेड्रो की ही तरह हेनरी की मां भी एक वेश्या थी और पिता शराब पीने का आदी। बचपन में अपनी मां द्वारा अत्यधिक शोषण की वजह से हेनरी के चरित्र में आपराधिक लक्षण उभरने लगे। बाद में उसने बदला लेने की नीयत से अपनी मां की हत्या कर दी। उसे 213 लोगों की हत्या का दोषी पाया गया था। हेनरी की मौत 15 सितंबर 1996 को हुई।
 

योग को जानलेवा बताने पर अमेरिका में बखेड़ा

अमेरिका में योग को लेकर एक नया विवाद शुरू हो गया है। इस विवाद की जड़ में है अमेरिकी पत्रकार विलियम ब्रॉड की जल्द प्रकाशित होने जा रही किताब हाऊ योगा कैन रेक योर बॉडी। इस किताब के कुछ अंश न्यूयॉर्क टाइम्स की वेबसाइट पर प्रकाशित किए गए हैं, जिसमें बताया गया है कि योग करने से आपकी जान भी जा सकती है। ब्राउन ने अपनी किताब में दावा किया है कि योग करने से इंसान के कूल्हे अपनी जगह से हट सकते हैं, स्नायु तंत्र नष्ट हो सकता है। इनके अलावा ब्रेन डैमेज, दिल का दौरा पड़ने की भी पूरी आशंका रहती है।

किताब में मिसाल के तौर पर एक 28 साल की युवती का जिक्र है, जिसके बारे में बताया गया है कि उसने योग के एक आसान के दौरान जैसे ही अपनी गर्दन पीछे की तरफ पूरी झुकाई उसे दिल का दौरा पड़ गया। एक अनुमान के मुताबिक अमेरिका में 2 करोड़ लोग योग करते हैं और वहां यह बड़े उद्योग की शक्ल ले चुका है। लेकिन ताज़ा विवाद से अमेरिका में योग करने और सिखाने वाले खफा हैं। अमेरिका के योग टीचरों का कहना है कि योग को लेकर इतनी नकारात्मक बातें नहीं की जानी चाहिए। वे सवाल उठा रहे हैं कि 100 मीटर की फर्राटा रेस में दौड़ने से क्या-क्या हो सकता है, जैसे विषयों पर लेख या किताबें क्यों नहीं लिखी जा रही हैं? क्यों सिर्फ योग को ही निशाना बनाया जा रहा है? 
 

अखबार पर यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि उसने कुछ अभिनेताओं की योग करते हुए तस्वीरें खींच कर प्रकाशित की हैं, जिनमें वे जानबूझकर ऐसे भाव दे रहे हैं, जिससे लगे कि योग कष्ट दे रहा है या फिर खतरनाक हो सकता है। अमेरिका के योग टीचरों का कहना है कि योग और उसके मानव शरीर की रचना और उसके कामकाज पर पड़ने वाले असर से जुड़े लेख में बढ़ाचढ़ाकर पेश किया गया है कि योग करने से गर्दन टूट सकती है या दिल का दौरा पड़ सकता है।