Tuesday, 3 January 2012

जिन्हें हंसते-खेलते भेजा, वो लौटे लाश की शक्ल में



सबका और पसियाला से

अम्बाला जिले के सबका और पसियाला गांव की जमीन उपजाऊ है और लोग मेहनती। एक दिन पहले तक दोनों गांवों में नए साल का जश्न मनाया जा रहा था..हर घर में ठहाके गूंज रहे थे लेकिन साल के दूसरे ही दिन, सोमवार को यहां तस्वीर बदली हुई थी। हर आंख में आंसू थे। दोनों गांवों के कुल 11 बच्चे असमय काल का ग्रास बन चुके थे।

गांव में सिर्फ रोने की आवाजें और एंबुलेंस के सायरन गूंज रहे थे। ज्यादातर घरों में चूल्हा भी नहीं जला क्योंकि देर शाम तक बच्चों की लाशें पहुंचने का सिलसिला जारी था। इसके अलावा यहां के बहुत से बच्चे पीजीआई चंडीगढ़ में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे थे। 15 मिनट पहले तक अपने बच्चों को हंसते-खेलते स्कूल रवाना करने वाले अभिभावकों को इस बात का गुमान तक नहीं था कि थोड़ी ही देर में वह लाशों की शक्ल में लौटेंगे।



दो भाइयों के तीन बच्चे घायल, एक की मौत


पसियाला डेरे में रहने वाले दो भाइयों रामशरण व पवन कुमार के भी चारों बच्चे दिव्या, नवनीत, शुभम व साहिल इसी स्कूल में पढ़ते हैं और इसी टाटा मैजिक में स्कूल जा रहे थे। चारों बच्चे जख्मी हुए। पवन की बेटी दिव्या की तो मौत हो गई। पवन जब रोता-बिलखता अस्पताल पहुंचा तो अपने बच्चों को ढूंढता रहा।

दिव्या की लाश अस्पताल के एक कमरे में सात अन्य बच्चों के साथ पड़ी थी। उसका स्कूल आई कार्ड देखकर पवन बिलख उठा और अस्पताल में डाक्टरों से कहना लगा ‘देखो दिव्या की सांसें तो अभी चल रही हैं, उसका इलाज करो, वो ठीक हो जाएगी।’ दिव्या दूसरी क्लास में पढ़ती थी। शेष तीनों बच्चों को पीजीआई रेफर किया गया।

क्या पता था, अंतिम बार लग रहे हैं गले
पसियाला गांव में रहने वाले राजकुमार के दो बेटे थे आशीष और शिवम। बड़े चाव से उन्होंने दोनों के नाम रखे थे। आशीष पहली क्लास में पढ़ता था तो शिवम नर्सरी में। सुबह दोनों बच्चे अपने मां-बाप से गले लगने के बाद स्कूल के लिए निकले थे और कुछ ही देर बाद स्कूल वाहन का हादसा होने की खबर आ गई।

राजकुमार तुरंत मौके पर दौड़ा.. फिर अस्पताल गया लेकिन उसका एक भी बेटा नहीं बच सका। बेटों की मौत की खबर सुनते ही राजकुमार की पत्नी तो जमीन पर गिरकर बेसुध हो गई। राजकुमार खुद तो दिहाड़ी करता था मगर उसका सपना था कि उसके बेटे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़कर कुछ बन जाएं लेकिन सारे सपने धरे रह गए।

अब कौन रखेगा बहनों का ख्याल

फूड एंड सप्लाई विभाग में इंस्पेक्टर, सबका गांव के पवन कुमार का इकलौता बेटा आशुतोष भी हादसे का शिकार हो गया। आठवीं में पढ़ने वाला आशुतोष सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली अपनी बहन दिव्या और अपने चाचा बलकार सिंह, जो गांव के सरपंच हैं, की बेटी ईशा (नर्सरी) के साथ सोमवार सुबह टाटा मैजिक में स्कूल रवाना हुआ था। हादसे में तीनों भाई बहन घायल हो गए जिनमें से आशुतोष ने बाद में दम तोड़ दिया। आशुतोष बड़ा होने के नाते स्कूल में दोनों बहनों का पूरा ख्याल रखता था। आसपड़ोस के लोग भी इस बात की तारीफ करते थे कि आशुतोष स्वभाव से बेहद अच्छा है।

काजल भी नहीं बचा पाया मौत की नजर से

पसियाला गांव के राजेश ने अपने बेटे कुनाल को कुछ समय पहले ही नर्सरी क्लास में दाखिल कराया था। राजेश की एक छोटी बेटी भी है। कुनाल घर में ही नहीं, आस पड़ोस में भी सबका चहेता था। सोमवार सुबह जब वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहा था तो मां ने काजल का टीका लगा दिया था, ये सोचते हुए कि किसी की नजर न लगे पर उन्हें क्या मालूम था कि उसके बेटे पर तो मौत की नजर है।

डाक्टर साहब हमारे तीन बच्चों में से एक को तो जिंदा कर दो..

सबका गांव के प्रमोद कुमार और विनोद सगे भाई हैं। दोनों प्राइवेट नौकरी करते हैं। दोनों भाइयों का हंसता-खेलता परिवार था। प्रमोद के दो बेटों राहुल व ऋषभ और विनोद के इकलौते बेटे लविश को मौत ने छीन लिया। राहुल व लविश दूसरी क्लास और ऋषभ चौथी में पढ़ता था।

प्रमोद व विनोद मिलकर नया मकान बना रहे थे इस प्लानिंग के साथ कि तीन पोर्शन हो जाएंगे तीनों बच्चों के लिए अलग-अलग ताकि बड़े होने पर उन्हें कोई दिक्कत न हो। दोनों भाइयों ने बहुत दूर की योजना बनाई थी लेकिन मौत ने सब ध्वस्त कर दिया। अब राहुल, ऋषभ व लविश नहीं हैं। घर में जब बच्चों की लाशें आई तो प्रमोद तो बेहोश होकर ही गिर गया।

विनोद की जुबान पर भी एक ही बात थी, ‘हमारा सबकुछ खत्म हो गया, अब हम क्या करें।’ जब डाक्टर्स की टीम घर पहुंची तो विनोद उनके आगे हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा ‘डाक्टर साहब, हमारे तीन बच्चों में से एक तो जिंदा कर दो.।’ बच्चों की माताएं भी कभी लाश बन चुके बेटों का माथा चूमती तो कभी उन्हें गोद में लेने की कोशिश करते हुए दहाड़े मारकर रोने लगतीं।
 
 
 
 

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