‘‘हॉं, मैं ही भूपाल हूँ। तुम कौन हो? तुम्हें क्या चाहिये?’’ भूपाल ने पूछा।
‘‘मेरा नाम कृष्ण है। आपके घर में मुझे नौकरी चाहिये,’’ हाथ जोड़कर बड़े ही विनय के साथ बालक ने कहा।
भूपाल ने हँसते हुए पूछा, ‘‘तुम क्या काम कर सकते हो?’’
‘‘जो भी काम आप सौंपेंगे, मैं करूँगा। बचपन में ही मेरे मॉं-बाप मर गये। अपने मामा के घर में पला हूँ। मेरी मामी घर का सारा काम मुझ से ही कराती थी। उनके बच्चे अब बड़े हो गये। खर्च भी बढ़ गया, इसलिए उन्होंने चाहा कि मैं घर से चला जाऊँ और कोई नौकरी करके अपना पेट खुद भर लूँ। इस गॉंव में आपकी बड़ी शोहरत है। सब आपकी प्रशंसा करते हैं। इसी वजह से आपकी सेवा में आया हूँ।’’
भूपाल ने कहा, ‘‘अब मुझे किसी नौकर की ज़रूरत नहीं है। पर हॉं, पढ़ना चाहोगे तो उसका इंतज़ाम करूँगा।’’
कृष्ण तुरंत भूपाल के पैरों पर गिर पड़ा । ‘‘पढ़ाई-लिखाई में मेरी बड़ी अभिरुचि है। मेरी मामी ने इसी साल मेरी पढ़ाई बंद कर दी,’’ यह कहते हुए उसकी आँखों में आँसू छलक आये।
भूपाल ने अपने बेटे राम को बुलाया, जो कृष्ण की ही उम्र का था। उससे कहा, ‘‘इस बालक का नाम कृष्ण है। तुम्हारे साथ तुम्हारे ही कमरे में रहेगा। इसे भी अपने साथ स्कूल ले जाना। मैं भी अध्यापक से बता दूँगा।’’
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