Tuesday 1 May 2012

400 गरीब बच्‍चों की पढ़ाई का खर्च उठाता हूं: सचिन


मुंबई. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने सचिन तेंडुलकर के राज्यसभा में मनोनयन पर संवैधानिक सवाल खड़े किए तो मंगलवार को सचिन तेंडुलकर ने भी अपनी योग्यता के बारे में विस्तार से बता दिया। सचिन ने कहा कि मैं 400 गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाता हूं।

सोमवार को कश्यप ने कहा था कि संवीधान की धारा 80 (G) के तहत सिर्फ कला, साहित्य, विज्ञान या समाजसेवा क्षेत्र से संबंधित
व्यक्ति को ही नामित किया जा सकता है।

राज्यसभा के लिए मनोनीत होने के बाद पहली बार मीडिया से मुखातिब हुए सचिन ने जोर देकर कहा कि वो खिलाड़ी हैं और खिलाड़ी ही रहेंगे। उन्‍होंने कहा कि वह 22 सालों से देश के लिए क्रिकेट खेल रहे हैं और  इसी नाते उनका राज्‍यसभा के लिए मनोनयन किया गया है। इसे उन्‍होंने बहुत बड़ा सम्‍मान बताया।

सचिन ने कहा कि सबसे पहले यही कहना चाहूंगा कि महामहिम राष्ट्रपति जब आपका नाम उस सूची में मनोनीत करती हैं जिसमें पहले कई बड़ी-बड़ी हस्तियां जैसे लता मंगेशकर जी और पृथ्वीराज कपूर जैसे लोग मनोनीत हो चुके हैं तो आपको अच्छा लगता है। मनोनयन किसी क्षेत्र में योगदान के आधार पर होता है।
मैं साढ़े 22 साल देश के लिए क्रिकेट खेला हूं, मुझे लगता है कि देश के लिए इतने लंबे वक्त तक खेलने के कारण राष्ट्रपति ने मेरा नाम मनोनीत किया, मैं खिलाड़ी हूं, राजनेता नहीं हूं और हमेशा खिलाड़ी ही रहूंगा।
मुझे ये लगता है कि काफी जिम्मेदारियां हैं लेकिन मैं ये मानता हूं कि मुझे आज तक जो भी सम्मान मिला है वो क्रिकेट के कारण ही मिला है। क्रिकेट मेरी जिंदगी है और क्रिकेट ही मेरी जिंदगी रहेगा।   मुझे याद है कि कुछ समय पहले इंडियन एयरफोर्स ने भी सम्मानित करते हुए ग्रुप कैप्टन बनाया था लेकिन मैंने आज तक हवाई जहाज नहीं उड़ाया है।

मुझे लगता है कि क्रिकेट के बाहर खिलाड़ियों के लिए मैं जो भी कर पाया वो करूंगा। मैं खेल के लिए जरूर कुछ न कुछ करना चाहूंगा। मुझे उम्मीद है कि आपका मुझे इस काम में पूरा सहयोग मिलेगा। मैं जो आगे करना चाहता हूं उसमें मुझे आपके सपोर्ट की आवश्यक्ता है। मैं फिर दोहराता हूं कि मैं खिलाड़ी हूं और हमेशा खिलाड़ी ही रहूंगा।

सचिन ने जीवन के हर पहलू पर बात की। उन्होंने कहा कि मैं भी आज  बच्चों का पिता हूं और अब महसूस करता हूं कि बचपन  में जब मैं शिवाजी पार्क के पास अपने चाचा के घर रहता था तो मेरी मां मुझसे मिलने क्यों आती थी।

अपनी निजी जिंदगी के बारे में खुलकर बात करते हुए सचिन ने कहा कि वो भाग्यशाली हैं कि उनके जीवन में अंजलि जैसी साथी हैं। सचिन ने यह भी कहा कि अंजलि और उनका परिवार बचपन से एक दूसरे को जानता था।

जब सचिन से पूछा गया कि वो इतनी प्रसंशा और आलोचना के साथ कैसे एडजस्ट करते हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि यह मैंने अपने परिवार से सीखा है, यह घर में एक बिना लिखा हुए कानून जैसा था, जो हो गया उसे तुम वापस नहीं ला सकते, सही तरीका यह है कि बस जीवन में आगे बढ़ते रहो।

कई तरह से समाजसेवा में संलिप्त रहने वाले सचिन ने यह भी कहा कि उन्हें अपने समाजसेवा के कामों के बारे में बात करना अच्छा नहीं लगता। सचिन ने कहा, मुझे इस बारे में बोलना अच्छा नहीं लगता, मैं बच्चों की शिक्षा में सहयोग करता हूं, मैं सोचता हूं कि जब मेरे बच्चे अच्छी शिक्षा पा सकते हैं तो फिर दूसरों के बच्चे क्यों नहीं। मैं 400 गरीब बच्चों की शिक्षा का जिम्मा उठा रहा हूं, हर व्यक्ति को अपनी हैसियत के हिसाब से समाजसेवा करनी चाहिए, देने का सुख असीम होता है।

सचिन ने कहा कि मैं भूतकाल या भविष्य के बारे में नहीं सोचता, मैं सिर्फ वर्तमान में जीता हूं, मैं समस्याओं को समाधान के रूप में देखता हूं और इसी तरह उनसे निपटता हूं। सब कुछ आपके नजरिए पर हैं। जैसा आपका नजरिया और तरीका होता है वैसा ही आपका जीवन भी हो जाता है।

बैटिंग के दौरान में अपने पल्स रेट को कम रखने की कोशिश करता हूं, आप जितना कम दवाब महसूस करेंगे उतनी ही सक्षमता से बैटिंग कर पाएंगे।  बैटिंग के दौरान  ध्यान केंद्रित करना और दिमाग को खाली रखना भी जरूरी है।

सचिन ने यह भी कहा कि उनका सौंवा शतक भी विश्वकप जीतने से महान नहीं है। सचिन ने कहा कि विश्व कप जीतना मेरे जीवन का सबसे महान पल था। हालांकि सचिन ने यह भी कहा कि यह उनके जीवन का सबसे बड़ा मैच नहीं था।

जीवन के सबसे बड़े मैच को याद करते हुए सचिन ने कहा कि यह पाकिस्तान के खिलाफ 2003 विश्वकप के दौरान खेला गया मैच था। सचिन ने कहा कि 2003 विश्वकप में पाकिस्तान के खिलाफ खेला गया मैच उनके जीवन का सबसे बड़ा था। इस मैच को लेकर 2002 से ही चर्चाएं शुरु हो गई थी। 3 मार्च भारत और पाकिस्तान के बीच के मुकाबले के लिए तय की गई थी। मैंने इस मैच में खेलने के लिए बहुत पहले से तैयारी शुरु कर दी थी। उस समय  पाकिस्तान के पास विश्व के सबसे बेहतरीन गेंदबाज थे। 274 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए हमारा उद्देश्य यह था कि विकेट न गंवाए जाएं। मैंने एक सकारात्मक एप्रोच अपने खेल में दिखाया और इसका विपक्षियों पर असर हुआ।  मैंने वीरू से कहा था कि मैं वसीम अकरम का ज्यादा मुकाबला करूंगा। उस वक्त मुझे अकड़न की समस्या हो गई। यह मेरे क्रिकेट करियर में पहली बार था जब मैंने रनर की सहायता ली। लेकिन मैं 98 रन के स्कोर पर आउट हो गया। गौरतलब है कि भारत ने यह मैच जीत लिया था।

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