गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे अमेरिका और यूरोप के बाद अब इसकी छाया एशिया पर भी दिखाई देने लगी है। जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि आर्थिक रूप से सुरक्षित समझा जा रहा एशिया ज़्यादा दिनों तक मंदी की मार से बच नहीं पाएगा और यहां अगले कुछ महीनों में गंभीर आर्थिक संकट होने वाले हैं। एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत में आर्थिक आंकड़े परेशान करने वाले हैं।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की सही हालत बताने वाले सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ताजा आंकड़े पिछले 27 महीनों में सबसे कम हैं। भारत के निर्यात के आंकड़ों में जबर्दस्त गिरावट दर्ज की जा रही है। वहीं, शेयर बाजारों में गिरावट का दौर देखा जा रहा है। आज सुबह 9. 20 बजे सेंसेक्स 95 प्वॉइंट गिरकर 15,914.10 के स्तर पर आ गया वहीं, निफ्टी में भी 30 प्वॉइंट की गिरावट देखी गई। निफ्टी 4,774.60 के स्तर पर रहा। वहीं, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट दर्ज की जा रही है। आज दिन में पौने 12 बजे एक डॉलर की कीमत 52.09 रुपये थी। कुछ महीने पहले ही यह 40 रुपये के आसपास थी।
सितंबर में खत्म हुए वित्तीय वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही के लिए जीडीपी का आंकड़ा 6.9 फीसदी रहा। बीते 27 महीनों में सितंबर में खत्म हुई तिमाही में देश का जीडीपी सबसे कम रहा है। मतलब यह है कि जुलाई से सितंबर के बीच भारत ने बीते सवा दो सालों में सबसे कम विकास किया है। सितंबर में खत्म हुई तिमाही लगातार तीसरी ऐसी तिमाही है, जब देश के जीडीपी का आंकड़ा 8 फीसदी से नीचे रहा है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इन आंकड़ों पर हैरानी जाहिर करते हुए कहा कि सरकार को इससे ज्यादा विकास दर की उम्मीद थी। उन्होंने कहा कि इस तिमाही के आंकड़ों के बावजूद इस वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 7.3 प्रतिशत रहेगा। वित्त मंत्री ने कहा कि पिछली दोनों तिमाहियों के आंकड़े देखने के बाद मुझे उमीद है कि 2011-12 में जीडीपी विकास दर 7.3 प्रतिशत रहेगी।
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि महंगाई, बढ़ती ब्याज दरें और अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार में जारी संकट के चलते भारत की जीडीपी में गिरावट आई है। हालत यह है कि निर्माण क्षेत्र महज 2.7 फीसदी की दर से विकास कर रहा है जबकि खनन क्षेत्र की हालत भी ज़्यादा बेहतर नहीं है। खनन क्षेत्र 2.9 फीसदी की दर से ही विकास कर पा रहा है। आशंका जाहिर की जा रही है कि लगातार दरकती अमेरिका और यूरोप की अर्थव्यवस्था का असर एशिया पर आने वाले कुछ महीनों में होगा।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 71 फीसदी योगदान देने वाले अमेरिकी उपभोक्ता इनदिनों मंदी की मार से जूझ रहे हैं। 2008 की शुरुआत से अब तक 15 तिमाही में अमेरिकी उपभोक्ताओं का खर्च 0.4 फीसदी की सालाना दर से ही बढ़ा है। इन आंकड़ों से अमेरिकी अर्थव्यवस्था और उसके उपभोक्ताओं का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
वहीं, यूरोप की आर्थिक सेहत का अंदाजा यूरोपियन कमीशन की तरफ से हाल ही में साल 2012 के लिए जारी जीडीपी के अनुमानित आंकड़े से लगाया जा सकता है। कमीशन ने अंदाजा लगाया है कि यूरोप में 2012 में जीडीपी का आंकड़ा 0.5 फीसदी रहेगा। अमेरिका और यूरोप में आर्थिक संकट के चलते विदेश से होने वाले आयात में लगातार गिरावट आ रही है। जानकार मानते हैं कि मंदी से जूझ रहे यूरोपीय देशों-ग्रीस, आयरलैंड, पुर्तगाल, इटली और स्पेन के आर्थिक संकट का असर जल्द ही पूरे यूरोप को अपनी चपेट में ले लेगा।
जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि पिछले तीन सालों में यह दूसरा मौका है जब एशियाई देशों को समय रहते चेत जाना चाहिए। एशिया के देशों की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा यूरोप और अमेरिका को होने वाले निर्यात पर निर्भर है। लेकिन जानकारों की सलाह है कि निर्यात के लिए एशियाई देशों को पश्चिमी देशों की तरफ देखने की बजाय अपने ही क्षेत्र के 3.5 अरब उपभोक्ताओं पर ध्यान देना चाहिए। उनके मुताबिक अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारत और चीन की भी आर्थिक तस्वीर अमेरिका और यूरोप से ज़्यादा अलग नहीं होगी। जानकारों के मुताबिक भारत और चीन समेत एशिया के आर्थिक तौर पर मजबूत समझे जाने वाले देशों को अब अमेरिका और यूरोप को निर्यात करने की बजाय वैकल्पिक रणनीति तैयार करनी चाहिए।
2008 में पश्चिमी देशों में आई आर्थिक मंदी की मार एशियाई बाज़ार पर बुरी तरह पड़ी थी। यही वजह है कि माना जा रहा है कि अमेरिका और यूरोप के आर्थिक संकट की चपेट में एशिया जल्द आ जाएगा। इसके संकेत भी मिलने शुरू हो गए हैं। भारत में निर्यात पर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में दर्ज की जा रही गिरावट का असर साफ देखा जा सकता है। अगस्त, 2011 में जहां भारत 44 फीसदी निर्यात कर रहा था वहीं, अक्टूबर आते-आते यह आंकड़ा 11 फीसदी हो गया। चीन और हॉन्गकॉन्ग में निर्यात में गिरावट दर्ज की गई है। चीन में अक्टूबर, 2010 की तुलना में अक्टूबर, 2011 में निर्यात तकरीबन आधा हो गया। अक्टूबर, 2010 में चीन के निर्यात का आंकड़ा 31 फीसदी था जबकि अक्टूबर, 2011 में यह 16 फीसदी पर आ गया है। वहीं, हॉन्गकॉन्ग का निर्यात का आंकड़ा 3 फीसदी पर आ गया है, जो वहां 23 महीनों में निर्यात का सबसे कम स्तर है।
जानकार की राय 'सरकार के खर्च में कमी और लोगों द्वारा निवेश से हाथ खींच लिए जाने से विकास दर पर फर्क पड़ा है। सरकारी खर्च अमूमन बुनियादी ढांचे जैसी योजनाओं में होता है जिससे विकास होता है। लेकिन इधर सरकार ने भी इन पर खर्च कम कर दिया है। मैन्युफैक्चरिंग में उद्यमी कम पैसा लगा रहे हैं। दूसरी ओर, महंगाई से परेशान लोग कम खर्च कर रहे हैं। निर्यात भी नहीं बढ़ पा रहा है। यूरोप में संकट के कारण हमारे निर्यात पर भी असर पड़ा है। इसका भी जीडीपी विकास दर पर पड़ा है। काबरा ने कहा कि सबसे ज्यादा पैसा स्टॉक मार्केट और कमोडिटी फ्यूचर्स में लग रहा है जिससे विकास दर का कोई लेना देना नहीं है। सबसे बड़ी बात है कि उत्पादकता नहीं बढ़ पा रही है।'
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