Tuesday, 22 November 2011

मुंह में अन्न का एक भी निवाला गया तो हो सकती है इस मासूम की मौत!


अन्न को प्राण माना गया है मगर जब अन्न किसी के लिए जहर बन जाए तो कोई व्यक्ति कैसे जीवित रह सकता है। सुनने में यह असंभव सी बात लगे मगर आठ साल के मोहित पर यह अक्षरश: खरी उतरती है।
वो अगर गेहूं और जौ से बनी रोटी खा ले तो उसकी जान के लाले पड़ सकते हैं। पिछले आठ साल से उसने अन्न नहीं खाया है। इसका कारण है विश्व में दुर्लभ और अब तक लाइलाज रोग ‘सीलियक’, जिसका वो जन्म से शिकार है। उसे ठीक कर पाना मेडिकल साइंस के लिए चुनौती भी है क्योंकि इस रोग को नष्ट करने की कारगर तकनीक फिलहाल ढूंढी नहीं जा सकी है।
पहली कक्षा में पढ़ने वाले मोहित की इच्छा तो बहुत होती है कि दूसरे बच्चों की तरह मैगी नूडल्स, बिस्किट या बाटी आदि खाए। बावजूद इच्छा और सामने रखा होने के बाद भी नहीं खा सकता।
अपनी बड़ी बहन और रिश्तेदार बच्चों को ये चीजें खाते हुए देखता है, लेकिन उनका साथ नहीं दे सकता। कारण, ये चीजें उसके लिए हानिकारक हैं और इनके खाते ही उसकी तबीयत बिगड़ जाती है। पहली कक्षा में ही वह बेहद समझदार है और जानता है कि इन चीजों न खाना ही उसके लिए बेहतर है।
जब 9 महीने का था तब चला पता
मोहित के पिता दिलीप सिंह बताते हैं कि मोहित की उम्र करीब 9 महीने की थी। जब वह रोता तो परिजन उसे बिस्किट आदि खिलाते लेकिन खाते ही मोहित को दस्त हो जाते।बार-बार दवाएं दिलाई जातीं लेकिन कोई दवा नहीं लगी। थक हार कर उसे जयपुर के दुर्लभ जी मेमोरियल अस्पताल में शिशु रोग विभाग में दिखाया।
बच्चे की हिस्ट्री जानने के बाद एलर्जी टेस्ट किया गया। बच्चे के मल और ब्लड का टेस्ट कराया गया। एलर्जी टेस्ट रिपोर्ट में पता चला कि बच्चा बेहद दुर्लभ रोग ‘सीलियक’ का शिकार है। प्रोटीन में ग्लूटीन की उपस्थिति के चलते बच्चा गेहूं और जौ नहीं खा सकता।
इससे उसे ऑस्टियोपोरोसिस, एनीमिया और कैंसर जैसे रोग भी जकड़ सकते हैं।दोनों का ही किसी भी प्रकार का सेवन बच्चे की जिंदगी के लिए नुकसानदायक है। दिलीप सिंह के मुताबिक ये सुनकर सभी घर वाले लगभग रुआंसे हो गए। गेहूं और जौ जैसी चीजें ही बंद हो जाएंगी, तो बच्चा खाएगा क्या?
फिर क्या खाएगा ?
दिलीप सिंह बताते हैं कि इससे बच्चे के सामने खाने का संकट आ गया। इसे खाने के लिए क्या दें। मालूम हुआ कि शुगर फ्री की तर्ज पर ही एक विशेष प्रकार का सीलियक फ्री आटा ही इस बच्चे का अब भोजन रहेगा। यह विशेष प्रकार का आटा भी शुरू में यहां नहीं मिला। जयपुर से ही बच्चे के लिए आटा मंगाना पड़ता। अब शहर में एक मेडिकल स्टोर ने इस आटे की व्यवस्था की है।
यह राज्य में असाधारण केस है
पुलिस लाइन डिस्पेंसरी प्रभारी डॉ. प्रदीप जयसिंघानी कहते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक आबादी के .01 प्रतिशत बच्चों में इस रोग की आशंका होती है। कभी-कभार ही ऐसा बच्चा देखने में आता है। वे बताते हैं, प्रोटीन में ग्लूटीन नामक एमीनो एसिड होता है। इसका मुख्य कार्य पाचन क्रिया में सहायता देना है।
कतिपय बच्चों में यह एमीनो एसिड सक्रिय नहीं हो पाता है। इसका सीधा असर छोटी आंत पर होता है। छोटी आंतों को नुकसान होता है और भोजन बिना पचे ही दस्त के माध्यम से निकल जाता है। जब ग्लूटीन के कारण भोजन नहीं पचता तो बच्चे का वजन कम होना शुरू हो जाता है।
भोजन के विभिन्न आवश्यक तत्वों की कमी का असर बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है। आयरन की कमी से एनीमिया हो जाता है। पेट फूल जाता है और पतले दस्त लगते रहते हैं।
घर में अन्य बच्चों को मिठाई आदि खाते देख कई बार मोहित भी जिद करता है, लेकिन अब उसे समझ आ गई है कि ये चीजें उसके लिए नुकसानदायक हैं। स्कूल में भी मोहित के शिक्षक खास ध्यान रखते हैं कि कहीं लंच में किसी अन्य बच्चे के साथ यह कोई चीज खा न ले।
यह खा सकता है
बच्चे को विकल्प के तौर पर अब केवल बेसन से बनी चीजें, मिठाई का मन होने पर काजू कतली उसे खिलाई जा सकती है। शादी समारोह में भी जाना है तो पहले घर पर मोहित के लिए अलग भोजन पका कर खिला कर ले जाना पड़ता है।
कब लगता है इस रोग का पता
आम तौर पर बच्चा कुछ खाना पीना शुरू कर देता है, तब ही इस रोग का पता लगता है। इसका कोई कारण नहीं है। यह कुदरती तौर पर ही किसी बच्चे में हो सकता है। अब तक इस रोग का कोई टीका भी नहीं बना है। एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक नॉर्थ इंडिया में इस रोग के शिकार बच्चे अधिक मिलते हैं।
इस रोग के सटीक और कारगर निदान पर विश्व में शोध चल रहा है। हालांकि वैज्ञानिक ‘कैप्सूल एंडोस्कोपी’ तकनीक को आशा की किरण मान रहे हैं। इस तकनीक के जरिये इस असाध्य रोग का इलाज खोजने की कोशिशें देश भर में वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही हैं।
किसी से भी हो सकती है एलर्जी
डॉ. जयसिंघानी के मुताबिक व्यक्ति को एलर्जी किसी भी चीज से हो सकती है। गेहूं, बाजरे से भी होती है, खाने-पीने की किसी भी चीज से हो सकती है। सब्जियों से हो सकती है। फल, फूल, सुगंध, बदबू, डस्ट किसी भी चीज से एलर्जी हो सकती है। इसका पता एलर्जी टेस्ट कराने के बाद ही लगता है।
गर्मी का मौसम सताता है..
दिलीप सिंह का कहना था कि गर्मी इसके लिए काफी परेशान करने वाला मौसम है। पूरी एहतियात के बाद भी बार-बार दस्त लगते हैं। इसे देखते हुए अधिक से अधिक ठंडी चीजें उसे खिलाई जाती हैं।

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