.पीएचडी थीसिस की नकल रोकने के लिए राजस्थान यूनिवर्सिटी सिंडिकेट के फैसले के अनुसार दो साल पहले ही सभी थीसिस ऑनलाइन डाली जानी थी, लेकिन अभी तक दो हजार को ऑनलाइन नहीं किया जा सका है।
ये थीसिस 2003 के बाद की हैं। यूनिवर्सिटी में भी एक दशक में दूसरों की थीसिस की कॉपी करके पीएचडी करने व शिक्षक बनने के दो दर्जन से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं।
गड़बड़ी रोकने के लिए सरकार के निर्देश पर कई कमेटियां भी बनीं। शिक्षकों का यहां तक कहना है कि नकल से तैयार की गई थीसिस और हजारों अन्य थीसिस मिलीभगत से कबाड़ में डाल दी गईं, जिनको चूहे कुतर रहे हैं।
1990 से 2000 के बीच का मामला
: वर्ष 1990 से 2000 के बीच पीएचडी थीसिस नकल करने का मामला सामने आने के बाद तीन सहायक और एसोसिएट प्रोफेसरों को राजस्थान यूनिवर्सिटी छोड़नी पड़ी
: पीएचडी में नकल की शिकायतों पर करीब 19 मामलों पर कमेटी बैठी। इनमें 18 को क्लीन चिट
: पीएचडी में नकल की शिकायत पर यूनिवर्सिटी के ही एक शिक्षक के संबंध में निर्णय होना शेष
प्रोफेसरों की राय: गाइड रोकें नकल
:नकल रोकने का काम सबसे पहले गाइड का होता है। अगर गाइड आपत्ति करे तो नकल रुकेगी।
:पीएचडी में वायवा लेने वाले भी नकल पकड़ सकते हैं, लेकिन वायवा लेने वाले प्रोफेसरों के नाम संबंधित विभाग से मिलते हैं। ऐसे में गाइड को पता रहता है कि कौन आएगा।अगर वायवा लेने वालों के नाम यूनिवर्सिटी प्रशासन तय करे तो नकल रुक सकती है।
:विदेशों की अधिकांश रिसर्च अंतरराष्ट्रीय स्तर के जनरल्स में प्रकाशित होती है। अगर राज. यूनिवर्सिटी का रिसर्च वर्क भी ऐसे प्रकाशित हो तो नकल रुक सकती है।
हम भेज चुके थीसिस
"हमने तो कल ही दो ट्रॉलियों में भरकर थीसिस भेजी है। थीसिस ऑनलाइन नहीं होने के लिए सेंट्रल लाइब्रेरी के लोग जिम्मेदार हैं। हम तो नियमित रूप से भेज रहे हैं।"
ये थीसिस 2003 के बाद की हैं। यूनिवर्सिटी में भी एक दशक में दूसरों की थीसिस की कॉपी करके पीएचडी करने व शिक्षक बनने के दो दर्जन से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं।
गड़बड़ी रोकने के लिए सरकार के निर्देश पर कई कमेटियां भी बनीं। शिक्षकों का यहां तक कहना है कि नकल से तैयार की गई थीसिस और हजारों अन्य थीसिस मिलीभगत से कबाड़ में डाल दी गईं, जिनको चूहे कुतर रहे हैं।
1990 से 2000 के बीच का मामला
: वर्ष 1990 से 2000 के बीच पीएचडी थीसिस नकल करने का मामला सामने आने के बाद तीन सहायक और एसोसिएट प्रोफेसरों को राजस्थान यूनिवर्सिटी छोड़नी पड़ी
: पीएचडी में नकल की शिकायतों पर करीब 19 मामलों पर कमेटी बैठी। इनमें 18 को क्लीन चिट
: पीएचडी में नकल की शिकायत पर यूनिवर्सिटी के ही एक शिक्षक के संबंध में निर्णय होना शेष
प्रोफेसरों की राय: गाइड रोकें नकल
:नकल रोकने का काम सबसे पहले गाइड का होता है। अगर गाइड आपत्ति करे तो नकल रुकेगी।
:पीएचडी में वायवा लेने वाले भी नकल पकड़ सकते हैं, लेकिन वायवा लेने वाले प्रोफेसरों के नाम संबंधित विभाग से मिलते हैं। ऐसे में गाइड को पता रहता है कि कौन आएगा।अगर वायवा लेने वालों के नाम यूनिवर्सिटी प्रशासन तय करे तो नकल रुक सकती है।
:विदेशों की अधिकांश रिसर्च अंतरराष्ट्रीय स्तर के जनरल्स में प्रकाशित होती है। अगर राज. यूनिवर्सिटी का रिसर्च वर्क भी ऐसे प्रकाशित हो तो नकल रुक सकती है।
हम भेज चुके थीसिस
"हमने तो कल ही दो ट्रॉलियों में भरकर थीसिस भेजी है। थीसिस ऑनलाइन नहीं होने के लिए सेंट्रल लाइब्रेरी के लोग जिम्मेदार हैं। हम तो नियमित रूप से भेज रहे हैं।"
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