Monday 26 September 2011

इस किताब में बताया गया है कैसे बनाते हैं सोना?

क्या आप जानते हैं?प्राचीन काल में आयुर्वेदिक रस -शास्त्र के महारथी अन्य धातुओं से सोना बनाया करते थे। सुनने में यह बात अजीब लगती हो, पर है बिल्कुल सत्य, ये आयुर्वेदिक रस औषधियों को सिद्ध करने की एक सिद्ध विधि थी, जिसे पाकर रस-शास्त्री वैद्य मनचाही इच्छा की पूर्ती कर लेते थे। कुछ संस्कारों एवं औषधि पादपों की मदद से संस्कार कर धातुओं को सोने में परिवर्तित किया जाता था, कहा जाता है कि पारद इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।

सोने को दीर्घायु होने का प्रतीक वैदिक काल से ही माना जाता रहा है ,इसी प्रकार के कुछ सन्दर्भ चीन के ऐतिहासिक ग्रथों में भी मिलते हैं। किसी भी धातु को सोने में बदलने की कला बुद्ध काल में भी प्रचलित रही,थी इसे 'अल्कीमी ' या किमियागीरी कहा जाता था, आज भी सोने की भस्मों जैसे वृहत वातचिंतामणि रस ,स्वर्णसूतशेखर रस,स्वर्ण कल्प ,स्वर्ण पर्पटी ,स्वर्णगजकेशरी जैसी औषधियों का त्वरित प्रभाव देखा जाता है, सम्भवत: सोने का महत्व एवं आकर्षण हर युग में लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है, इसलिए लोगों ने इसे सरलता से प्राप्त करने के उपाय के रूप में कीमियागिरी को चुना होगा।

कहा जाता है, कि उज्जैनी में व्याड़ी नामक पति पत्नी इस कला को पाने के लिए आयुर्वेदिक रस-शास्त्र के पुस्तकों का अध्ययन करते -करते अपना सब कुछ गवां बैठे, पर धातुओं से सोना नहीं बना पाए। इस बात से वे इतने विक्षिप्त हो गए कि़ दोनों पति-पत्नी क्षिप्रा के तट पर सभी आयुर्वेद के ग्रथों के पन्नों को फाड़-फाड़ कर बहाने लगे तथा विरक्त होकर प्राण त्यागने की तैयारी  करने लगे ,उनकी इस प्रकार की लगन और श्रद्धा देख रसराज शिव से उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई और वे रस-सिद्ध वैद्य बन गए कहा जाता है कि इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद व्याड़ी दंपत्ति हवा में उडऩे लगे।

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