गजल सम्राट जगजीत सिंह का आज चंदनवाड़ी में अंतिम संस्कार कर दिया गया। ब्रेन हैमरेज के चलते करीब 15 दिन अस्तपाल में रहने के बाद सोमवार (10 अक्टूबर) को उनका निधन हो गया था। लेकिन बताया जाता है कि यह उनके निधन का तात्कालिक कारण था। असल में उनका निधन उस दर्द के चलते हुआ, जो उन्हें जवान बेटे की मौत के बाद मिला था।
मशहूर गायिका आशा भोंसले के मुताबिक जगजीत कभी भी लोगों के साथ अपना दुख नहीं बांटते थे और न ही लोगों के सामने उसे जाहिर होने देते थे। वह याद करती हैं कि जब उनके बेटे के निधन के बाद उन्हें सांत्वना देने गई थीं, तब उन्होंने कहा था कि इस बारे (बेटे की मौत) में बात नहीं करें। बकौल आशा, वह सारा गम अपने सीने में दबा कर रखते थे और शायद इसका उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा।
1990 में जगजीत और चित्रा के बेटे विवेक की एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी। उसके बाद जगजीत को जुबां पर गीत लाने में छह महीने लग गए थे और चित्रा की आवाज तो खामोश ही हो गई थी। चित्रा दो साल पहले अपनी बेटी को भी खो चुकी हैं। उनकी पहली शादी से जन्मी मोनिका ने बांद्रा के अपने फ्लैट में खुदकुशी कर ली थी।
जगजीत शुरू से ही अंतरमुखी स्वभाव के थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि किशोरावस्था में वे एक लड़की पर फिदा हो गए थे। जालंधर में पढ़ाई के दौरान साइकिल पर ही आना-जाना होता था। लड़की के घर के सामने साइकिल की चेन टूटने या हवा निकलने का बहाना कर बैठ जाते और उसे देखा करते थे। बहरहाल, उनका यह प्यार परवान नहीं चढ़ सका था।
जगजीत सिंह के बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है कि कपड़े प्रेस करना उनकी हॉबी थी। उन्हें घुड़दौड़ का भी बहुत शौक था, उन्होंने घोड़े पाले भी थे। बचपन में फिल्मों के शौक के चलते अक्सर सिनेमाहॉल में गेटकीपर को घूस देकर घुसते थे।
चैरिटी के अनेक कार्यों में वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। कई समाजसेवी संस्थाओं के सहायतार्थ गाया। ‘क्राई फॉर क्राई’ एलबम भी निकाला। मेहदी हसन के इलाज के लिए उन्होंने पाकिस्तान जाकर तीन लाख रुपए की मदद की थी। अपने संघर्ष के दिनों को याद कर नए कलाकारों की मदद के लिए तैयार रहते थे।
कहां तुम चले गए...
जन्म 8 फरवरी, 1941 को श्रीगंगानगर (राजस्थान) में। जन्म के समय पिता ने नाम दिया जगमोहन, पर अपने गुरु की सलाह पर बाद में कर दिया जगजीत।
पीडब्ल्यूडी में कार्यरत, पिता अमर सिंह पंजाब में दल्ला गांव के मूल निवासी थे और मां थीं बचन कौर। आर्थिक हालात ये थे कि बकौल जगजीत, ‘पतंग और रेडियो भी लक्जरी हुआ करते थे।’ शुरुआती साल बीकानेर में बीते, फिर श्रीगंगानगर लौटे।
पिता ने पं. छन्नूलाल शर्मा से संगीत की शिक्षा लेने भेजा। फिर छह साल उस्ताद जमाल खान से भी तालीम ली। कॉलेज के दिनों में एक रात चार हजार की भीड़ के सामने गा रहे थे कि बिजली चली गई। साउंड सिस्टम बैटरी के जरिए चालू रहा। जगजीत गाते रहे और क्या मजाल कि अंधेरे के बावजूद कोई उठकर गया हो!
स्नातक शिक्षा के लिए वे डीएवी जालंधर पहुंचे। यहां आकाशवाणी ने उन्हें ‘बी’ वर्ग के कलाकार की मान्यता दी। 1962 में जालंधर में ही उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के लिए स्वागत गीत रचा।
1961 में वे मुंबई पहुंचे। संघर्ष में पैसे खत्म हो गए थे। इसी हालत में ट्रेन के शौचालय में छुपकर बिना टिकट जालंधर गए।
मार्च 1965 में वे दुबारा मुंबई लौटे। सस्ती जगह पर रहते थे। खटमलों के साथ सोते थे। एक रात तो चूहे ने पैर काट खाया।
छोटी-मोटी महफिलों, घरेलू आयोजनों, फिल्मी पार्टियों, विज्ञापन जिंगल्स आदि में गाते थे। इसी बीच एचएमवी ने एक रिकॉर्ड के लिए उनसे दो गजलें गवाईं। इसी के कवर पर छपने वाले चित्र के लिए उन्होंने पहली बार दाढ़ी और पगड़ी हटाई।
एक जिंगल की रिकॉर्डिंग के दौरान अपनी भावी जीवन संगिनी चित्रा दत्ता से मिले। 19६९ में बिना धूम-धड़ाके, रिसेप्शन या उपहार के उनकी शादी हो गई। शादी पर खर्च हुए कुल जमा 30 रुपए।
एक कमरे के मकान में रहते थे। 1971 में पुत्र विवेक का जन्म। आर्थिक मजबूरियां ऐसी कि चित्रा ने 20 दिन के बच्चे को गोद में लेकर माइक पर जिंगल गाया। बावजूद इसके जगजीत महसूस करते थे कि तब वे ‘दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति’ थे।
1975 में एचएमवी से पहला एलपी ‘द अनफॉरगेटबल्स’ आया। इसकी रिकॉर्ड कामयाबी के बाद उन्होंने मुंबई में फ्लैट खरीदा।
1980 में फिल्म ‘साथ-साथ’ और ‘अर्थ’ में स्वर और संगीत दिया। 1987 में उनका ‘बियॉन्ड टाइम’ देश का पहला संपूर्ण डिजिटल सीडी एलबम बना। अगले साल टीवी सीरियल ‘मिर्जा गालिब’ में स्वर और संगीत दिया।
28 जुलाई, 1990 को एकमात्र पुत्र विवेक की सड़क दुर्घटना में मृत्यु के बाद आध्यात्मिकता और दर्शन की ओर झुकाव बढ़ा। पहला एलबम आया ‘मन जीते जगजीत’ (गुरबानी)।
संगीत के प्रति ऐसी प्रतिबद्धता कि 2001 में मां के अंतिम संस्कार के बाद उसी दोपहर कोलकाता में पूर्व निर्धारित कॉन्सर्ट के लिए पहुंचे।
2003 में पद्मभूषण सम्मान मिला।
नई दिशा (1999) व संवेदना (2002) के लिए प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के गीतों को सुर और संगीत दिया।
10 मई, 2007 को संसद के केंद्रीय कक्ष में प्रस्तुति दी।
लोकप्रिय एलबम
इकोज, द अनफॉरगेटबल्स, माइलस्टोन, कम अलाइव, द लेटेस्ट, बियॉन्ड टाइम, साउंड अफेयर, कहकशां, मिर्जा गालिब (सभी चित्रा सिंह के साथ) फेस टू फेस, लाइव विद जगजीत सिंह, मरासिम, मिराज, इनसाइट, क्राई फॉर क्राई, मां, सांवरा, हे राम।
यादगार गजलें
सरकती जाए है रुख से नकाब.., ये दौलत भी ले लो.., किया है प्यार जिसे.., मेरी जिंदगी किसी और की.., कोई चौदहवीं रात का चांद बनकर.., चराग आफताब गुम.., झूम के जब रिंदों ने पिला दी.., पहले तो अपने दिल की रजा जान जाइए.., मैं नशे में हूं.., अपने होंठों पर सजाना चाहता हूं.., जब किसी से कोई गिला रखना.., सच्ची बात कही थी मैंने.., कोई पास आया सवेरे-सवेरे...।
लोकप्रिय गीत
होंठों से छू लो तुम...(प्रेमगीत), झुकी झुकी सी नजर..(फिल्म अर्थ) तुमको देखा तो...(साथ-साथ), तुम इतना जो मुस्करा रहे हो...(अर्थ), फिर आज मुझे तुमको...(आज), हमसफर बनके हम...(आशियां), चिट्ठी न कोई संदेश...(दुश्मन), होशवालों को खबर क्या...(सरफरोश)।
मशहूर गायिका आशा भोंसले के मुताबिक जगजीत कभी भी लोगों के साथ अपना दुख नहीं बांटते थे और न ही लोगों के सामने उसे जाहिर होने देते थे। वह याद करती हैं कि जब उनके बेटे के निधन के बाद उन्हें सांत्वना देने गई थीं, तब उन्होंने कहा था कि इस बारे (बेटे की मौत) में बात नहीं करें। बकौल आशा, वह सारा गम अपने सीने में दबा कर रखते थे और शायद इसका उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा।
1990 में जगजीत और चित्रा के बेटे विवेक की एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी। उसके बाद जगजीत को जुबां पर गीत लाने में छह महीने लग गए थे और चित्रा की आवाज तो खामोश ही हो गई थी। चित्रा दो साल पहले अपनी बेटी को भी खो चुकी हैं। उनकी पहली शादी से जन्मी मोनिका ने बांद्रा के अपने फ्लैट में खुदकुशी कर ली थी।
जगजीत शुरू से ही अंतरमुखी स्वभाव के थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि किशोरावस्था में वे एक लड़की पर फिदा हो गए थे। जालंधर में पढ़ाई के दौरान साइकिल पर ही आना-जाना होता था। लड़की के घर के सामने साइकिल की चेन टूटने या हवा निकलने का बहाना कर बैठ जाते और उसे देखा करते थे। बहरहाल, उनका यह प्यार परवान नहीं चढ़ सका था।
जगजीत सिंह के बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है कि कपड़े प्रेस करना उनकी हॉबी थी। उन्हें घुड़दौड़ का भी बहुत शौक था, उन्होंने घोड़े पाले भी थे। बचपन में फिल्मों के शौक के चलते अक्सर सिनेमाहॉल में गेटकीपर को घूस देकर घुसते थे।
चैरिटी के अनेक कार्यों में वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। कई समाजसेवी संस्थाओं के सहायतार्थ गाया। ‘क्राई फॉर क्राई’ एलबम भी निकाला। मेहदी हसन के इलाज के लिए उन्होंने पाकिस्तान जाकर तीन लाख रुपए की मदद की थी। अपने संघर्ष के दिनों को याद कर नए कलाकारों की मदद के लिए तैयार रहते थे।
कहां तुम चले गए...
जन्म 8 फरवरी, 1941 को श्रीगंगानगर (राजस्थान) में। जन्म के समय पिता ने नाम दिया जगमोहन, पर अपने गुरु की सलाह पर बाद में कर दिया जगजीत।
पीडब्ल्यूडी में कार्यरत, पिता अमर सिंह पंजाब में दल्ला गांव के मूल निवासी थे और मां थीं बचन कौर। आर्थिक हालात ये थे कि बकौल जगजीत, ‘पतंग और रेडियो भी लक्जरी हुआ करते थे।’ शुरुआती साल बीकानेर में बीते, फिर श्रीगंगानगर लौटे।
पिता ने पं. छन्नूलाल शर्मा से संगीत की शिक्षा लेने भेजा। फिर छह साल उस्ताद जमाल खान से भी तालीम ली। कॉलेज के दिनों में एक रात चार हजार की भीड़ के सामने गा रहे थे कि बिजली चली गई। साउंड सिस्टम बैटरी के जरिए चालू रहा। जगजीत गाते रहे और क्या मजाल कि अंधेरे के बावजूद कोई उठकर गया हो!
स्नातक शिक्षा के लिए वे डीएवी जालंधर पहुंचे। यहां आकाशवाणी ने उन्हें ‘बी’ वर्ग के कलाकार की मान्यता दी। 1962 में जालंधर में ही उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के लिए स्वागत गीत रचा।
1961 में वे मुंबई पहुंचे। संघर्ष में पैसे खत्म हो गए थे। इसी हालत में ट्रेन के शौचालय में छुपकर बिना टिकट जालंधर गए।
मार्च 1965 में वे दुबारा मुंबई लौटे। सस्ती जगह पर रहते थे। खटमलों के साथ सोते थे। एक रात तो चूहे ने पैर काट खाया।
छोटी-मोटी महफिलों, घरेलू आयोजनों, फिल्मी पार्टियों, विज्ञापन जिंगल्स आदि में गाते थे। इसी बीच एचएमवी ने एक रिकॉर्ड के लिए उनसे दो गजलें गवाईं। इसी के कवर पर छपने वाले चित्र के लिए उन्होंने पहली बार दाढ़ी और पगड़ी हटाई।
एक जिंगल की रिकॉर्डिंग के दौरान अपनी भावी जीवन संगिनी चित्रा दत्ता से मिले। 19६९ में बिना धूम-धड़ाके, रिसेप्शन या उपहार के उनकी शादी हो गई। शादी पर खर्च हुए कुल जमा 30 रुपए।
एक कमरे के मकान में रहते थे। 1971 में पुत्र विवेक का जन्म। आर्थिक मजबूरियां ऐसी कि चित्रा ने 20 दिन के बच्चे को गोद में लेकर माइक पर जिंगल गाया। बावजूद इसके जगजीत महसूस करते थे कि तब वे ‘दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति’ थे।
1975 में एचएमवी से पहला एलपी ‘द अनफॉरगेटबल्स’ आया। इसकी रिकॉर्ड कामयाबी के बाद उन्होंने मुंबई में फ्लैट खरीदा।
1980 में फिल्म ‘साथ-साथ’ और ‘अर्थ’ में स्वर और संगीत दिया। 1987 में उनका ‘बियॉन्ड टाइम’ देश का पहला संपूर्ण डिजिटल सीडी एलबम बना। अगले साल टीवी सीरियल ‘मिर्जा गालिब’ में स्वर और संगीत दिया।
28 जुलाई, 1990 को एकमात्र पुत्र विवेक की सड़क दुर्घटना में मृत्यु के बाद आध्यात्मिकता और दर्शन की ओर झुकाव बढ़ा। पहला एलबम आया ‘मन जीते जगजीत’ (गुरबानी)।
संगीत के प्रति ऐसी प्रतिबद्धता कि 2001 में मां के अंतिम संस्कार के बाद उसी दोपहर कोलकाता में पूर्व निर्धारित कॉन्सर्ट के लिए पहुंचे।
2003 में पद्मभूषण सम्मान मिला।
नई दिशा (1999) व संवेदना (2002) के लिए प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के गीतों को सुर और संगीत दिया।
10 मई, 2007 को संसद के केंद्रीय कक्ष में प्रस्तुति दी।
लोकप्रिय एलबम
इकोज, द अनफॉरगेटबल्स, माइलस्टोन, कम अलाइव, द लेटेस्ट, बियॉन्ड टाइम, साउंड अफेयर, कहकशां, मिर्जा गालिब (सभी चित्रा सिंह के साथ) फेस टू फेस, लाइव विद जगजीत सिंह, मरासिम, मिराज, इनसाइट, क्राई फॉर क्राई, मां, सांवरा, हे राम।
यादगार गजलें
सरकती जाए है रुख से नकाब.., ये दौलत भी ले लो.., किया है प्यार जिसे.., मेरी जिंदगी किसी और की.., कोई चौदहवीं रात का चांद बनकर.., चराग आफताब गुम.., झूम के जब रिंदों ने पिला दी.., पहले तो अपने दिल की रजा जान जाइए.., मैं नशे में हूं.., अपने होंठों पर सजाना चाहता हूं.., जब किसी से कोई गिला रखना.., सच्ची बात कही थी मैंने.., कोई पास आया सवेरे-सवेरे...।
लोकप्रिय गीत
होंठों से छू लो तुम...(प्रेमगीत), झुकी झुकी सी नजर..(फिल्म अर्थ) तुमको देखा तो...(साथ-साथ), तुम इतना जो मुस्करा रहे हो...(अर्थ), फिर आज मुझे तुमको...(आज), हमसफर बनके हम...(आशियां), चिट्ठी न कोई संदेश...(दुश्मन), होशवालों को खबर क्या...(सरफरोश)।
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