संसद में सोमवार को गोरखपुर से भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने
कहा कि मुलायम सिंह यादव खुद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, दो भाई पार्टी
के महास
चिव और बेटा प्रदेश अध्यक्ष है। यह समाजवाद है या परिवारवाद? योगी
के इस सवाल ने भारतीय राजनीति में परिवारवाद के मुद्दे को एक बार फिर से
गरम कर दिया है। भारत की राजनीति में परिवारवाद का बोलबाला अब काफी बढ़ गया
है। शायद ही कोई पॉलिटिकल पार्टी ऐसी हो, जिसमें परिवारवाद और वंशवाद की
बेल दिखाई नहीं पड़ती हो।
कांग्रेस से लेकर तमाम क्षेत्रीय दलों में परिवारवाद की जड़ें काफी
मजबूत हो गई हैं। काडर आधारित दलों जैसे कम्युनिस्ट पार्टियों और भाजपा में
परिवारवाद भले न दिखाई पड़े, पर दक्षिण की क्षेत्रीय पार्टियां हों या
उत्तर भारत के अनेकानेक दल, सभी में परिवारवाद और वंशवाद मजबूत होता चला
गया है।
परिवारवाद को लोकतंत्र के लिए कभी अच्छा नहीं समझा गया, लेकिन तथ्य यह
है कि कांग्रेस में ही इस प्रवृत्ति की शुरुआत हुई और धीरे-धीरे यह
संक्रामक हो गई। कांग्रेस के अलावा यह प्रवृत्ति समाजवादी कहे जाने वाले
नेताओं और पार्टियों में भी दिखलाई पड़ती है। लालू हों या मुलायम या
रामविलास पासवान, कोई भी राजनीति में कोई भी परिवारवाद और वंशवाद को आगे
बढ़ाने के मोह से बच नहीं पाए।
देश के सबसे बड़े राज्य और केंद्र में सरकार बनाने की चाबी अपने पास
रखने का दावा करने वाले यूपी में सत्तानशीं समाजवादी पार्टी में परिवारवाद
काफी मजबूत होकर उभरा है। आज यूपी की कमान सपा प्रमुख मुलायम सिंह के पुत्र
अखिलेश के हाथों में है। सिर्फ अखिलेश ही नहीं, मुलायम के परिवार की तीसरी
पीढ़ी का भी अब राजनीति में दखल हो चुका है। यही नहीं, मुलायम परिवार की
महिलाएं भी राजनीति में आगे बढ़ रही हैं।
देश के इस सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे से कुल 13 लोग क्रमश: मुलायम सिंह
यादव, अखिलेश यादव, डिंपल यादव, शिवपाल यादव, राम गोपाल यादव, अंशुल यादव,
प्रेमलता यादव, अरविंद यादव, तेज प्रताप सिंह यादव, सरला यादव, अंकुर
यादव, धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव राजनीतिक धरातल पर जोर-आजमाइश कर रहे
हैं।
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