किसी भी महिला के जीवन में तीन चरण सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। सबसे पहला जब
मासिक चक्र शुरू होता है, फिर जब वह मां बनती है और सबसे आखिरी जब प्रजनन
काल खत्म होता है और मासिक चक्र बंद हो जाता है। यह चरण किसी महिला के शरीर
में होने वाले जीव विज्ञानी
बदलावों तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि इनका
प्रभाव शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक भी होता है। इन तीन चरणों के दौरान
कैसे संभालें अपनी सेहत, बता रही हैं शमीम खान
पीरियड्स के दौरान ऐसे संभालें सेहत
अधिकतर महिलाओं के लिये पीरियड्स एक छोटी-सी असुविधा से अधिक नहीं होते हैं, लेकिन कुछ महिलाओं के लिए यह बड़ी समस्या बन जाती है। पीरियड्स की शुरुआत 12-16 वर्ष के बीच होती है। फीमेल सेक्स हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन पीरियड्स को नियंत्रित करते हैं। पीरियड्स में ठंडी चीजें जैसे दही और चावल न खाएं। अत्यधिक पीरियड्स होने से आयरन की कमी हो जाती है, इससे एनीमिया, थकान, त्वचा का पीला पड़ जाना, ऊर्जा की कमी और सांस फूलना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हार्मोन असंतुलन, तनाव, गर्भधारण या गर्भपात, थायरॉइड का कम या ज्यादा होना, डाइटिंग या अत्यधिक एक्सरसाइज और पोलीसिस्ट ओवरी सिंड्रोम के कारण पीरियड्स के चक्र में गड़बड़ी आ जाती है। डॉक्टर से संपर्क करें यदि
आपके पीरियड्स अचानक 90 दिन से अधिक समय के लिये बंद हो जाते हैं और आप गर्भवती नहीं हैं।
सात दिनों से अधिक समय तक ब्लीडिंग होती रहती है और बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है।
पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग होना।
पीरियड्स का अंतराल 21 दिन से कम या 35 दिन से अधिक होना।
पीरियड्स के दौरान अत्यधिक दर्द होना। सेहत भरी प्रेग्नेंसी के लिए
मां बनने को स्त्री के जीवन का सबसे बेहतरीन चरण माना जाता है। लेकिन एक बच्चे को अपने शरीर में आकार देकर जन्म देना कोई सामान्य बात नहीं है। इस दौरान एक महिला को कई शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है। इस वक्त खानपान का सबसे अधिक खयाल रखना चाहिए। संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करना चाहिए ताकि शरीर बच्चे के विकास और मां के शरीर में हो रहे बदलावों के लिए तैयार हो सके। एक गर्भवती महिला को आमतौर पर 300 अतिरिक्त कैलोरी की जरूरत होती है। इस दौरान ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज, दूध, दुग्ध उत्पाद और अगर मांसाहारी हों तो मछली और अंडे का सेवन जरूर करें। गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त आराम और नींद की जरूरत होती है। उन्हें रात में कम से कम आठ घंटे और दिन में दो घंटे सोना चाहिए। स्त्रीरोग विशेषज्ञ की सलाह के बिना कोई दवाई न लें। इससे बच्चे और आपको नुकसान पहुंच सकता है। गर्भवती महिलाओं के लिये कुछ टिप्स
प्रतिदिन 27 मि.ग्रा. आयरन सौ दिन तक जरूर लें।
विटामिन बी6 का सेवन गर्भवती महिलाओं को मॉर्निग सिकनेस से बचाता है।
चाय और कॉफी का कम से कम सेवन करें, क्योंकि इनमें टेनिन होता है, जो आयरन के अवशोषण को रोकता है।
सामान्य महिलाओं को प्रतिदिन जहां 1,000 मिलिग्राम कैल्शियम की आवश्कता होती है, वहीं गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 1,300 मिलिग्राम की आवश्यकता होती है। मेनोपॉज में सेहतमंद
मेनोपॉज किसी महिला के जीवन का वह दौर है, जब उसके पीरियड्स बंद हो जाते हैं। यह उसके प्रजनन क्षमता के खत्म होने का संकेत है। सामान्य तौर पर 45-55 वर्ष की आयु में यह अवस्था आती है। इससे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन का निर्माण भी लगभग बंद हो जाता है। हॉट फ्लेश, रात में अत्यधिक पसीना आना, पसीने और गर्मी के कारण सोने में समस्या आना, सेक्स की इच्छा कम होना, मूड बदलना आदि मेनोपॉज के दौरान होने वाली आम परेशानियां हैं। लंबी अवधि के लिये पड़ने वाले प्रभाव
मेनोपॉज के कारण एस्ट्रोजन हार्मोन में होने वाली कमी का प्रभाव शरीर के प्रत्येक सिस्टम पर पड़ता है।
ऑस्टियोपोरोसिस और गंभीर हृदय बीमारियों का खतरा कईं गुना बढ़ जाता है।
मस्तिष्क की कार्यप्रणाली गड़बड़ जाती है और अल्जाइमर्स का खतरा बढ़ जाता है।
त्वचा का लचीलापन खत्म होता है और त्वचा पर झुर्रियां होने लगती हैं।
कई महिलाओं की नजर कमजोर हो जाती है, कुछ का वजन अत्यधिक बढ़ जाता है।
यूरिनरी ट्रैक इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
सिरदर्द, हृदय की धड़कन तेज हो जाना, चेहरे पर बाल उग आना जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। मेनोपॉज के प्रभाव से बचने के लिए
संतुलित भोजन लें, जिसमें फाइबर की मात्रा अधिक और वसा की मात्रा कम हो।
रोजाना एक गिलास दूध पिएं।
कैफीन, चीनी, नमक का सेवन कम करें।
शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। नियमित रूप से एक्सरसाइज करें या पैदल घूमें।
हॉट फ्लैशेज और पसीने से बचने के लिए ढीले सूती कपड़े पहनें।
पीरियड्स के दौरान ऐसे संभालें सेहत
अधिकतर महिलाओं के लिये पीरियड्स एक छोटी-सी असुविधा से अधिक नहीं होते हैं, लेकिन कुछ महिलाओं के लिए यह बड़ी समस्या बन जाती है। पीरियड्स की शुरुआत 12-16 वर्ष के बीच होती है। फीमेल सेक्स हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन पीरियड्स को नियंत्रित करते हैं। पीरियड्स में ठंडी चीजें जैसे दही और चावल न खाएं। अत्यधिक पीरियड्स होने से आयरन की कमी हो जाती है, इससे एनीमिया, थकान, त्वचा का पीला पड़ जाना, ऊर्जा की कमी और सांस फूलना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हार्मोन असंतुलन, तनाव, गर्भधारण या गर्भपात, थायरॉइड का कम या ज्यादा होना, डाइटिंग या अत्यधिक एक्सरसाइज और पोलीसिस्ट ओवरी सिंड्रोम के कारण पीरियड्स के चक्र में गड़बड़ी आ जाती है। डॉक्टर से संपर्क करें यदि
आपके पीरियड्स अचानक 90 दिन से अधिक समय के लिये बंद हो जाते हैं और आप गर्भवती नहीं हैं।
सात दिनों से अधिक समय तक ब्लीडिंग होती रहती है और बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है।
पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग होना।
पीरियड्स का अंतराल 21 दिन से कम या 35 दिन से अधिक होना।
पीरियड्स के दौरान अत्यधिक दर्द होना। सेहत भरी प्रेग्नेंसी के लिए
मां बनने को स्त्री के जीवन का सबसे बेहतरीन चरण माना जाता है। लेकिन एक बच्चे को अपने शरीर में आकार देकर जन्म देना कोई सामान्य बात नहीं है। इस दौरान एक महिला को कई शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है। इस वक्त खानपान का सबसे अधिक खयाल रखना चाहिए। संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करना चाहिए ताकि शरीर बच्चे के विकास और मां के शरीर में हो रहे बदलावों के लिए तैयार हो सके। एक गर्भवती महिला को आमतौर पर 300 अतिरिक्त कैलोरी की जरूरत होती है। इस दौरान ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज, दूध, दुग्ध उत्पाद और अगर मांसाहारी हों तो मछली और अंडे का सेवन जरूर करें। गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त आराम और नींद की जरूरत होती है। उन्हें रात में कम से कम आठ घंटे और दिन में दो घंटे सोना चाहिए। स्त्रीरोग विशेषज्ञ की सलाह के बिना कोई दवाई न लें। इससे बच्चे और आपको नुकसान पहुंच सकता है। गर्भवती महिलाओं के लिये कुछ टिप्स
प्रतिदिन 27 मि.ग्रा. आयरन सौ दिन तक जरूर लें।
विटामिन बी6 का सेवन गर्भवती महिलाओं को मॉर्निग सिकनेस से बचाता है।
चाय और कॉफी का कम से कम सेवन करें, क्योंकि इनमें टेनिन होता है, जो आयरन के अवशोषण को रोकता है।
सामान्य महिलाओं को प्रतिदिन जहां 1,000 मिलिग्राम कैल्शियम की आवश्कता होती है, वहीं गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 1,300 मिलिग्राम की आवश्यकता होती है। मेनोपॉज में सेहतमंद
मेनोपॉज किसी महिला के जीवन का वह दौर है, जब उसके पीरियड्स बंद हो जाते हैं। यह उसके प्रजनन क्षमता के खत्म होने का संकेत है। सामान्य तौर पर 45-55 वर्ष की आयु में यह अवस्था आती है। इससे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन का निर्माण भी लगभग बंद हो जाता है। हॉट फ्लेश, रात में अत्यधिक पसीना आना, पसीने और गर्मी के कारण सोने में समस्या आना, सेक्स की इच्छा कम होना, मूड बदलना आदि मेनोपॉज के दौरान होने वाली आम परेशानियां हैं। लंबी अवधि के लिये पड़ने वाले प्रभाव
मेनोपॉज के कारण एस्ट्रोजन हार्मोन में होने वाली कमी का प्रभाव शरीर के प्रत्येक सिस्टम पर पड़ता है।
ऑस्टियोपोरोसिस और गंभीर हृदय बीमारियों का खतरा कईं गुना बढ़ जाता है।
मस्तिष्क की कार्यप्रणाली गड़बड़ जाती है और अल्जाइमर्स का खतरा बढ़ जाता है।
त्वचा का लचीलापन खत्म होता है और त्वचा पर झुर्रियां होने लगती हैं।
कई महिलाओं की नजर कमजोर हो जाती है, कुछ का वजन अत्यधिक बढ़ जाता है।
यूरिनरी ट्रैक इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
सिरदर्द, हृदय की धड़कन तेज हो जाना, चेहरे पर बाल उग आना जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। मेनोपॉज के प्रभाव से बचने के लिए
संतुलित भोजन लें, जिसमें फाइबर की मात्रा अधिक और वसा की मात्रा कम हो।
रोजाना एक गिलास दूध पिएं।
कैफीन, चीनी, नमक का सेवन कम करें।
शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। नियमित रूप से एक्सरसाइज करें या पैदल घूमें।
हॉट फ्लैशेज और पसीने से बचने के लिए ढीले सूती कपड़े पहनें।
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