कुछ ही दिनों में भारत अपना 67वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है।
प्रत्येक भारतीय के लिए उसकी आजादी के भिन-भिन्न मायने रहे हैं
। कोई
स्वतंत्रता को किसी नजरिए से देखता है तो किसी के लिए स्वतंत्रता का अर्थ
कुछ अलग होता है। लेकिन एक बात जो हम सभी स्वीकार करते हैं वो यह है कि
आजादी के बाद और आजादी के पहले वाले भारत में बहुत सी असमानताएं विद्यमान
हैं। हालांकि बहुत से लोग इस बात पर एकमत हैं कि बढ़ते भ्रष्टाचार, महंगाई,
आपराधिक घटनाओं की वजह से, आज का भारत वो नहीं है जिसकी कल्पना आजादी के उन
मतवालों ने की थी लेकिन सच यही है कि हम जिस आजाद भारत में जी रहे हैं उसे
दुनिया के सबसे बड़े और महान लोकतांत्रिक देश होने का भी गौरव प्राप्त है।
भारत की सांस्कृतिक एकता इसकी एक ऐसी विशेषता है जिसे चुनौती दे पाना किसी भी अन्य राष्ट्र के लिए टेढ़ी खीर है। इतना ही नहीं, जहां दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों पर, कभी मिलट्री राज की वजह से तो कभी तानाशाही के कारण, उनकी संप्रभुता व अखंडता के छिनने का खतरा बना ही रहता है, वहीं दूसरी ओर भारत अपने मौलिक रूप में एक सफल लोकतांत्रिक देश का बेजोड़ उदाहरण बनकर पेश होता है।
आर्थिक और सामाजिक विकास की बात करें तो हर पड़ाव पर भारत ने शानदार विकास का मुजाहिरा किया है। इसी वजह से कुछ साल पहले विश्व बैंक ने भी भारत को विकासशील नहीं बल्कि ट्रांसफॉर्मिंग (बदलाव की ओर अग्रसर) राष्ट्र की उपाधि दी थी। संविधान ने भले ही भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य का दर्जा दिया हो लेकिन भारतीय किसी कानून की वजह से नहीं बल्कि पूरी निष्ठा के साथ सभी धर्मों का आदर करते हैं। यही वजह है कि भारत में धार्मिक संघर्ष भी कम ही देखे जाते हैं। विभिन्न नकारात्मक और सकारात्मक राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं के बीच हमारा आपसे बस यही सवाल है कि ‘क्यों है सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा’?
भारत की सांस्कृतिक एकता इसकी एक ऐसी विशेषता है जिसे चुनौती दे पाना किसी भी अन्य राष्ट्र के लिए टेढ़ी खीर है। इतना ही नहीं, जहां दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों पर, कभी मिलट्री राज की वजह से तो कभी तानाशाही के कारण, उनकी संप्रभुता व अखंडता के छिनने का खतरा बना ही रहता है, वहीं दूसरी ओर भारत अपने मौलिक रूप में एक सफल लोकतांत्रिक देश का बेजोड़ उदाहरण बनकर पेश होता है।
आर्थिक और सामाजिक विकास की बात करें तो हर पड़ाव पर भारत ने शानदार विकास का मुजाहिरा किया है। इसी वजह से कुछ साल पहले विश्व बैंक ने भी भारत को विकासशील नहीं बल्कि ट्रांसफॉर्मिंग (बदलाव की ओर अग्रसर) राष्ट्र की उपाधि दी थी। संविधान ने भले ही भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य का दर्जा दिया हो लेकिन भारतीय किसी कानून की वजह से नहीं बल्कि पूरी निष्ठा के साथ सभी धर्मों का आदर करते हैं। यही वजह है कि भारत में धार्मिक संघर्ष भी कम ही देखे जाते हैं। विभिन्न नकारात्मक और सकारात्मक राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं के बीच हमारा आपसे बस यही सवाल है कि ‘क्यों है सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा’?
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