Tuesday 11 October 2011

30 हजार 'बच्चों' के इस बाप से मिलकर हैरान रह जाएंगे जनाब!


बुंदेलखण्ड में एक शख्स ऐसा भी है जो बेटे की मौत के बाद वृक्षों को ही अपनी औलाद मानकर उनकी सेवा कर रहा है। धरती को हरा-भरा बनाने का संकल्प लेने वाले भैयाराम आज हजारों वृक्षों के 'पिता' हैं।

  
चित्रकूट जिले में 40 वर्षीय भैयाराम पिछले तीन सालों से जिले के पहरा वनक्षेत्र के करीब 30,000 वृक्षों की अपनी संतान की तरह सेवा और देखरेख कर रहे हैं। वन क्षेत्र के अंदर घास-फूस की झोपड़ी बनाकर रह रहे भैयाराम पेड़ों को काटने वाले चोरों से उनकी रक्षा करने से लेकर उनकी निराई-गुड़ाई,कीड़ों से बचाव और सिंचाई तक का पूरा ख्याल रखते हैं।

  
भैयाराम ने कहा, "ये पेड़ ही मेरे बेटे हैं..आज की तारीख में मेरे लिए इनसे बढ़कर कोई नहीं है। मेरे दिन और रात इन्हीं पेड़ों के साथ गुजरता है। मैं इन्हीं के बीच अपनी आखिरी सांस लेना चाहता हूं।"

  
उन्होंने कहा, "मुझ्झे इस बात का गर्व है कि इन हरे-भरे वृक्षों से पर्यावरण संरक्षण में मदद के साथ-साथ लोगों को सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा मिलेगी। पर्यावरण और मानव जाति का कल्याण मेरा इकलौता पुत्र शायद दुनिया में होकर भी नहीं कर पाता।"

  
तीन साल पहले इकलौते बेटे की मौत के बाद भैयाराम ने इन पेड़ों को अपनी संतान मानकर इनकी सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। वह बताते हैं, "पुत्र के जन्म के समय दस साल पहले मेरी पत्नी की मौत हो गई थी। उसके बाद मैंने अपने बेटे को पाल-पोषकर सात साल का किया। एक दिन अचानक रात को उसे उल्टियां हुईं और अस्पताल ले जाते समय रास्ते में उसकी मौत हो गई। पत्नी और फिर इकलौते बेटे की मौत के बाद मैं पूरी तरह से टूट गया। बिना किसी मकसद के अकेलेपन में जिंदगी गुजारने लगा।"

  
जुलाई 2008 में राज्य वन विभाग की तरफ से इस इलाके में विशेष पौधरोपण अभियान के तहत 30 हजार शीशम, नीम, चिलवल और सागौन जैसे पेड़ों को लगाया गया था। तब भैयाराम ने श्रमिक के तौर पर पेड़ों को रोपित कराया था। भैयाराम के मुताबिक पेड़ों को लगाने के दौरान उनके मन में ख्याल आया कि क्यों न इन पेड़ों को ही वह अपनी संतान मानकर इनकी देखभाल करें।

  
उन्होंने स्थानीय वन अधिकारियों से अपने दिल की बात कही तो थोड़ी मान मनौवल के बाद वे राजी हो गए। कर्वी रेंज के क्षेत्रीय वन अधिकारी नरेंद्र सिंह ने आईएएनएस से कहा, "शुरू में तो हमें थोड़ा संशय था कि भैयाराम इतना बड़ी जिम्मेदारी संभाल पाएगा या नहीं। लेकिन इन सालों में जिस तरह उसने अपनी संतान की तरह वृक्षों की देखभाल की, हम सभी लोग देखकर दंग रह गए।"

  
सिंह ने कहा, "शुरुआत में हमने उससे वृक्षों की देखभाल के लिए मेहनताने की पेशकश की थी लेकिन उसने साफ मना करते हुए कहा था कि 'अगर मैं मजदूरी लूंगा तो फिर मैं इन्हें न तो अपना पुत्र मान पाऊंगा और न ही उस तरह की फिक्रके साथ परवरिश कर सकूंगा'। उन्होंने कहा, "हम सभी भैयाराम के जज्बे को सलाम करते हैं कि पूरे परिवार को खोने के बाद उसने पेड़ों को अपना परिवार बनाया और आज देश-दुनिया को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहा है।"

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