आज की व्यस्त शहरी दिनचर्या में, खासकर काम
काजी लोग व्यायाम पर ध्यान नहीं
दे पाते, जिस कारण उन्हें हड्डियों से संबंधित दर्द और तकलीफ का सामना करना
पड़ रहा है। थकावट और आलस्य का अनुभव इसी की प्रारम्भिक अवस्था है। इससे
कैसे बचे रह सकते हैं, बता रहे हैं मूलचंद ऑथरेपेडिक्स हॉस्पिटल के सलाहकार
डॉ. संजय गुप्ता
इन दिनों खासकर शहरी युवाओं में सेहत से संबंधित तरह-तरह की समस्याएं देखने को मिल रही हैं। डॉक्टरों की मानें तो इसकी वजह है युवाओं में बढ़ता मोटापा, खानपान का असंतुलन और दिनचर्या से गायब होता व्यायाम। ये तीन ऐसे कारण हैं, जो उनके शरीर के विभिन्न अंगों की हड्डियों में रोगों को जन्म दे रहे हैं। इन्हीं के कारण जोडमें में फासला बढ़ने से रीढ़ समेत कई अंगों की हड्डियों में दर्द पैदा हो रहा है। हड्डियों को जानना है जरूरी
हमारी हड्डियां कैल्शियम के अलावा कई तरह के मिनरल से मिल कर बनी होती हैं। अनियमित जीवनशैली की वजह से ये मिनरल खत्म होने लगते हैं और हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है। धीरे-धीरे उनके घिसने और कमजोर होने की रफ्तार तेज हो जाती है। इस कारण ऐसा व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम करने में असमर्थ होता जाता है। हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि मामूली चोट पर भी फ्रैक्चर की स्थिति आ जाती है। हड्डी कैसे होती है बीमार
हड्डी से जुड़ी समस्याएं, जो पहले वृद्धावस्था में हुआ करती थीं, अब कॉरपोरेट परिवेश और कंप्यूटर पर लगातार निर्भरता के कारण युवा पीढ़ी में भी बढ़ती जा रही हैं। इन दिनों 20 से 35 उम्र के युवा भी इसकी चपेट में खूब आ रहे हैं। व्यायाम न करने से शरीर कैल्शियम नहीं सोक पता, जिस कारण हड्डी और मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। इससे फ्रैक्चर, जोड़ों की हड्डियों में फासला बढ़ना, छोटी उम्र में जोड़ों में डीजेनेरेटिव बदलाव आना, ज्वॉइंट्स में टूट-फूट, डिस्क प्रोलेप्स, डिस्क का खिसकना, रीढ़ समेत किसी भी अंग की हड्डी में दर्द पैदा होना आदि प्रमुख हैं। जिम कहीं न बन जाए दर्द का सबब
अगर आप यह मान कर आश्वस्त हो जाते हैं कि जिम जाना सेहत के लिए फायदेमंद रहेगा तो सावधान हो जाएं, क्योंकि बिना अच्छे प्रशिक्षक के मार्गदर्शन के व्यायाम करना दर्द का सबब बन सकता है। कितना व्यायाम जरूरी है, वह आपके शारीरिक ढांचे पर निर्भर करता है। इसलिए अपनी शारीरिक क्षमताओं को पहचानें और हल्के-फुल्के व्यायाम पर ही ज्यादा जोर दें। रोजाना स्ट्रेचिंग करें, पर ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा न खिंचें। हफ्ते में कम-से-कम चार-पांच दिन सुबह में 4 किलोमीटर पैदल चलें। कंप्यूटर पर काम करते हुए
कंप्यूटर पर काम करते वक्त कुर्सी की ऊंचाई इतनी रखें कि स्क्रीन पर देखने के लिए झुकना न पड़े और न ही गर्दन को जबरन ऊपर उठाना पड़े। कुहनी और हाथ कुर्सी पर रखें। इससे कंधे रिलेक्स रहेंगे। कुर्सी ऐसी हो, जो लोअर बैक को सपोर्ट करे। पैरों के नीचे सपोर्ट के लिए छोटा स्टूल या चौकी रखें। किसी भी पॉजिशन में 30 मिनट से ज्यादा लगातार न बैठें। बैठ कर काम करते हुए या पढ़ते हुए हर घंटे के बाद पांच मिनट का ब्रेक लेना जरूरी है। अगर आप दो घंटे पर भी ब्रेक नहीं लेते हैं तो अपने शरीर के साथ ज्यादती कर रहे हैं। सिटिंग पॉश्चर का ध्यान रखें। कुर्सी के पीछे तक बैठें। खुद को ऊपर की तरफ तानें और कमर के कर्व को जितना मुमकिन हो, उभारें। कुछ सेकेंड के लिए रोकें। अब पोजिशन को थोडम रिलेक्स करें। यह अच्छा सिटिंग पॉश्चर होगा। शरीर का भार दोनों हिप्स पर बराबर बनाए रखें। रोजाना गर्दन का व्यायाम भी जरूर करें, इससे कई बीमारियों से दूर रहेंगे। आप ड्राइव कर रहे हैं तो ध्यान रखें
घुटने हिप्स के बराबर या थोड़े ऊंचे हों।
सीट को स्टेयरिंग के पास रखें, ताकि पीछे के कर्व को सपोर्ट मिल सके।
कमर के नीचे वाले हिस्से में सपोर्ट के लिए छोटा तौलिया या लंबर रोल रखें।
इतना लेग-बूट स्पेस जरूर हो, जिसमें आराम से घुटने मुड़ सकें और पैर पैडल तक आराम से पहुंच सकें। सोने का तरीका ऐसा हो
कभी भी बेड से सीधे न उठें। पहले साइड में करवट लें, फिर बैठें, उसके बाद उठें।
ऐसी पोजिशन में सोने की कोशिश करें, जिसमें आपकी बैक का प्राकृतिक कर्व बना रहे। पीठ के बल सोएं तो घुटनों के नीचे पतला तकिया या हल्का तौलिया रख लें। जिनकी कमर में दर्द है, वे जरूर ऐसा करें।
घुटनों को हल्का मोड़ कर साइड से भी सो सकते हैं, लेकिन घुटने इतने न मोड़ें कि वे सीने से लग जाएं।
पेट के बल सोने से बचना चाहिए। इसका असर पाचन पर पड़ता है। कमर में दर्द की आशंका भी बढ़ती है। कमर दर्द है तो पेट के बल बिल्कुल नहीं सोना चाहिए।
इन दिनों खासकर शहरी युवाओं में सेहत से संबंधित तरह-तरह की समस्याएं देखने को मिल रही हैं। डॉक्टरों की मानें तो इसकी वजह है युवाओं में बढ़ता मोटापा, खानपान का असंतुलन और दिनचर्या से गायब होता व्यायाम। ये तीन ऐसे कारण हैं, जो उनके शरीर के विभिन्न अंगों की हड्डियों में रोगों को जन्म दे रहे हैं। इन्हीं के कारण जोडमें में फासला बढ़ने से रीढ़ समेत कई अंगों की हड्डियों में दर्द पैदा हो रहा है। हड्डियों को जानना है जरूरी
हमारी हड्डियां कैल्शियम के अलावा कई तरह के मिनरल से मिल कर बनी होती हैं। अनियमित जीवनशैली की वजह से ये मिनरल खत्म होने लगते हैं और हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है। धीरे-धीरे उनके घिसने और कमजोर होने की रफ्तार तेज हो जाती है। इस कारण ऐसा व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम करने में असमर्थ होता जाता है। हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि मामूली चोट पर भी फ्रैक्चर की स्थिति आ जाती है। हड्डी कैसे होती है बीमार
हड्डी से जुड़ी समस्याएं, जो पहले वृद्धावस्था में हुआ करती थीं, अब कॉरपोरेट परिवेश और कंप्यूटर पर लगातार निर्भरता के कारण युवा पीढ़ी में भी बढ़ती जा रही हैं। इन दिनों 20 से 35 उम्र के युवा भी इसकी चपेट में खूब आ रहे हैं। व्यायाम न करने से शरीर कैल्शियम नहीं सोक पता, जिस कारण हड्डी और मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। इससे फ्रैक्चर, जोड़ों की हड्डियों में फासला बढ़ना, छोटी उम्र में जोड़ों में डीजेनेरेटिव बदलाव आना, ज्वॉइंट्स में टूट-फूट, डिस्क प्रोलेप्स, डिस्क का खिसकना, रीढ़ समेत किसी भी अंग की हड्डी में दर्द पैदा होना आदि प्रमुख हैं। जिम कहीं न बन जाए दर्द का सबब
अगर आप यह मान कर आश्वस्त हो जाते हैं कि जिम जाना सेहत के लिए फायदेमंद रहेगा तो सावधान हो जाएं, क्योंकि बिना अच्छे प्रशिक्षक के मार्गदर्शन के व्यायाम करना दर्द का सबब बन सकता है। कितना व्यायाम जरूरी है, वह आपके शारीरिक ढांचे पर निर्भर करता है। इसलिए अपनी शारीरिक क्षमताओं को पहचानें और हल्के-फुल्के व्यायाम पर ही ज्यादा जोर दें। रोजाना स्ट्रेचिंग करें, पर ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा न खिंचें। हफ्ते में कम-से-कम चार-पांच दिन सुबह में 4 किलोमीटर पैदल चलें। कंप्यूटर पर काम करते हुए
कंप्यूटर पर काम करते वक्त कुर्सी की ऊंचाई इतनी रखें कि स्क्रीन पर देखने के लिए झुकना न पड़े और न ही गर्दन को जबरन ऊपर उठाना पड़े। कुहनी और हाथ कुर्सी पर रखें। इससे कंधे रिलेक्स रहेंगे। कुर्सी ऐसी हो, जो लोअर बैक को सपोर्ट करे। पैरों के नीचे सपोर्ट के लिए छोटा स्टूल या चौकी रखें। किसी भी पॉजिशन में 30 मिनट से ज्यादा लगातार न बैठें। बैठ कर काम करते हुए या पढ़ते हुए हर घंटे के बाद पांच मिनट का ब्रेक लेना जरूरी है। अगर आप दो घंटे पर भी ब्रेक नहीं लेते हैं तो अपने शरीर के साथ ज्यादती कर रहे हैं। सिटिंग पॉश्चर का ध्यान रखें। कुर्सी के पीछे तक बैठें। खुद को ऊपर की तरफ तानें और कमर के कर्व को जितना मुमकिन हो, उभारें। कुछ सेकेंड के लिए रोकें। अब पोजिशन को थोडम रिलेक्स करें। यह अच्छा सिटिंग पॉश्चर होगा। शरीर का भार दोनों हिप्स पर बराबर बनाए रखें। रोजाना गर्दन का व्यायाम भी जरूर करें, इससे कई बीमारियों से दूर रहेंगे। आप ड्राइव कर रहे हैं तो ध्यान रखें
घुटने हिप्स के बराबर या थोड़े ऊंचे हों।
सीट को स्टेयरिंग के पास रखें, ताकि पीछे के कर्व को सपोर्ट मिल सके।
कमर के नीचे वाले हिस्से में सपोर्ट के लिए छोटा तौलिया या लंबर रोल रखें।
इतना लेग-बूट स्पेस जरूर हो, जिसमें आराम से घुटने मुड़ सकें और पैर पैडल तक आराम से पहुंच सकें। सोने का तरीका ऐसा हो
कभी भी बेड से सीधे न उठें। पहले साइड में करवट लें, फिर बैठें, उसके बाद उठें।
ऐसी पोजिशन में सोने की कोशिश करें, जिसमें आपकी बैक का प्राकृतिक कर्व बना रहे। पीठ के बल सोएं तो घुटनों के नीचे पतला तकिया या हल्का तौलिया रख लें। जिनकी कमर में दर्द है, वे जरूर ऐसा करें।
घुटनों को हल्का मोड़ कर साइड से भी सो सकते हैं, लेकिन घुटने इतने न मोड़ें कि वे सीने से लग जाएं।
पेट के बल सोने से बचना चाहिए। इसका असर पाचन पर पड़ता है। कमर में दर्द की आशंका भी बढ़ती है। कमर दर्द है तो पेट के बल बिल्कुल नहीं सोना चाहिए।
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