सीबीआई की आजादी के मुद्दे पर आज
सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होने वाली
है। एजेंसी ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया है। हलफनामे में
सीबीआई ने स्वायत्तता को लेकर कई उपाय सुझाए हैं।
न्यायमूर्ति आर एम लोढा के समक्ष दाखिल अपने 14 पृष्ठों के हलफनामे में सीबीआई ने कहा है कि उसके निदेशक का रैंक केंद्र सरकार के सचिव के समतुल्य किया जाना चाहिए। सीबीआई ने स्पष्ट किया है कि उसके निदेशक को केंद्रीय गृह मंत्री से सीधे मिलने के अधिकार दिये जाने चाहिए, न कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के माध्यम से। अभी गृह मंत्री से सम्पर्क के लिए सीबीआई निदेशक को डीओपीटी का सहारा लेना पड़ता है। जांच एजेंसी ने न्यायालय से कहा कि उसके शासकीय, अनुशासनात्मक और वित्तीय अधिकार सीमिति हैं, जिसके कारण त्वरित जांच सुनिश्चित करने की उसकी क्षमता और दक्षता प्रभावित होती है। सीबीआई का यह हलफनामा जांच एजेंसी को अधिक स्वायत्तता दिलाने के लिए किये जाने वाले उपायों के संबंध में केंद्र सरकार के हलफनामे के जवाब में आया है। केंद्र सरकार ने गत तीन जुलाई को अपना हलफनामा दायर किया था, जिस पर 10 जुलाई को सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सीबीआई को अपना जवाब देने को कहा था। सीबीआई ने न्यायालय से कहा है कि उसे किसी मामले की जांच में पूरी आजादी मिलनी चाहिए। जांच एजेंसी ने निदेशक के चयन के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति गठित करने के प्रस्ताव को तो मान लिया है, लेकिन इतना अवश्य कहा है कि इस मामले में निवर्तमान निदेशक की राय भी ली जानी चाहिए। सीबीआई ने अपने अधिकारियों के खिलापक शिकायतों की जांच के लिए जवाबदेही समिति के गठन का विरोध किया है। सीबीआई का कहना है कि इससे अनुशासनहीनता बढ़ेगी न कि घटेगी। गौरतलब है कि सीबीआई के कामकाज में अधिक पारदर्शिता लाने एवं जांच एजेंसी को अधिक स्वायत्तता दिलाने को लेकर गत तीन जुलाई को उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे में तीन सदस्यीय कॉलेजियम का उल्लेख किया गया है, जो एजेंसी के निदेशक की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार होगा। इस कॉलेजियम में प्रधानमंत्री के अलावा लोकसभा में विपक्ष के नेता और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा न्यायाधीश भी सदस्य होंगे। हलफनामे में कहा गया है कि भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी ही वरिष्ठता और भ्रष्टाचार निरोधक एवं आपराधिक मामलों की जांच के अनुभव के आधार पर सीबीआई के निदेशक दो साल के लिए नियुक्त हो सकेंगे, लेकिन सीबीआई ने इसे एक साल बढ़ाने की मांग की है। केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया था कि सीबीआई निदेशक कार्मिक विभाग के प्रति जवाबदेह होंगे। हलफनामे में कहा गया था कि किसी भी मंत्री या नौकरशाह को सीबीआई जांच में हस्तक्षेप करने या जांच एजेंसी की रिपोर्ट में छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं होगा।
न्यायमूर्ति आर एम लोढा के समक्ष दाखिल अपने 14 पृष्ठों के हलफनामे में सीबीआई ने कहा है कि उसके निदेशक का रैंक केंद्र सरकार के सचिव के समतुल्य किया जाना चाहिए। सीबीआई ने स्पष्ट किया है कि उसके निदेशक को केंद्रीय गृह मंत्री से सीधे मिलने के अधिकार दिये जाने चाहिए, न कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के माध्यम से। अभी गृह मंत्री से सम्पर्क के लिए सीबीआई निदेशक को डीओपीटी का सहारा लेना पड़ता है। जांच एजेंसी ने न्यायालय से कहा कि उसके शासकीय, अनुशासनात्मक और वित्तीय अधिकार सीमिति हैं, जिसके कारण त्वरित जांच सुनिश्चित करने की उसकी क्षमता और दक्षता प्रभावित होती है। सीबीआई का यह हलफनामा जांच एजेंसी को अधिक स्वायत्तता दिलाने के लिए किये जाने वाले उपायों के संबंध में केंद्र सरकार के हलफनामे के जवाब में आया है। केंद्र सरकार ने गत तीन जुलाई को अपना हलफनामा दायर किया था, जिस पर 10 जुलाई को सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सीबीआई को अपना जवाब देने को कहा था। सीबीआई ने न्यायालय से कहा है कि उसे किसी मामले की जांच में पूरी आजादी मिलनी चाहिए। जांच एजेंसी ने निदेशक के चयन के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति गठित करने के प्रस्ताव को तो मान लिया है, लेकिन इतना अवश्य कहा है कि इस मामले में निवर्तमान निदेशक की राय भी ली जानी चाहिए। सीबीआई ने अपने अधिकारियों के खिलापक शिकायतों की जांच के लिए जवाबदेही समिति के गठन का विरोध किया है। सीबीआई का कहना है कि इससे अनुशासनहीनता बढ़ेगी न कि घटेगी। गौरतलब है कि सीबीआई के कामकाज में अधिक पारदर्शिता लाने एवं जांच एजेंसी को अधिक स्वायत्तता दिलाने को लेकर गत तीन जुलाई को उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे में तीन सदस्यीय कॉलेजियम का उल्लेख किया गया है, जो एजेंसी के निदेशक की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार होगा। इस कॉलेजियम में प्रधानमंत्री के अलावा लोकसभा में विपक्ष के नेता और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा न्यायाधीश भी सदस्य होंगे। हलफनामे में कहा गया है कि भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी ही वरिष्ठता और भ्रष्टाचार निरोधक एवं आपराधिक मामलों की जांच के अनुभव के आधार पर सीबीआई के निदेशक दो साल के लिए नियुक्त हो सकेंगे, लेकिन सीबीआई ने इसे एक साल बढ़ाने की मांग की है। केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया था कि सीबीआई निदेशक कार्मिक विभाग के प्रति जवाबदेह होंगे। हलफनामे में कहा गया था कि किसी भी मंत्री या नौकरशाह को सीबीआई जांच में हस्तक्षेप करने या जांच एजेंसी की रिपोर्ट में छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं होगा।
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