भारतीय मूल के एक शोधकर्ता के नेतृत्व वाले दल ने चूहों में एक ऐसे जीन का
पता ल
गाया है, जिसकी मदद से टाइप 2 के मधुमेह का सटीक उपचार संभव हो सकेगा।
प्रोफेसर बेल्लूर एस प्रभाकर के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने मैड जीन को केंद्र बिंदु में रखकर अध्ययन किया और मधुमेह के मरीजों के उपचार की नई संभावना तलाशने की दिशा में कदम बढ़ाया। शिकागो स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ इलीनॉय के सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रभाकर का कहना है कि जब यह जीन सही ढंग से काम नहीं करता है कि तो रक्त में इंसुलीन नहीं पहुंचती, जिससे रक्त में सर्करा की मात्र को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पहले यह तय था कि जिन लोगों के उच्च रक्त ग्लूकोज तथा इंसूलीन के स्राव की समस्या थी, वे टाइप 2 मधुमेह की श्रेणी में आते हैं, परंतु यह स्पष्ट नहीं था कि बीमारी के लक्षणों को लेकर किस तरह का परिवर्तन होता है। इस जीन को परीक्षण करने के लिए प्रभाकर और उनके साथियों ने चूहों का एक मॉडल तैयार किया जिससे मैड जीन को हटा दिया। इसके बाद सभी चूहों के रक्त में ग्लूकोज का स्तर ऊंचा हो गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह इंसूलीन के पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंचने की वजह से हुआ।
प्रोफेसर बेल्लूर एस प्रभाकर के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने मैड जीन को केंद्र बिंदु में रखकर अध्ययन किया और मधुमेह के मरीजों के उपचार की नई संभावना तलाशने की दिशा में कदम बढ़ाया। शिकागो स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ इलीनॉय के सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रभाकर का कहना है कि जब यह जीन सही ढंग से काम नहीं करता है कि तो रक्त में इंसुलीन नहीं पहुंचती, जिससे रक्त में सर्करा की मात्र को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पहले यह तय था कि जिन लोगों के उच्च रक्त ग्लूकोज तथा इंसूलीन के स्राव की समस्या थी, वे टाइप 2 मधुमेह की श्रेणी में आते हैं, परंतु यह स्पष्ट नहीं था कि बीमारी के लक्षणों को लेकर किस तरह का परिवर्तन होता है। इस जीन को परीक्षण करने के लिए प्रभाकर और उनके साथियों ने चूहों का एक मॉडल तैयार किया जिससे मैड जीन को हटा दिया। इसके बाद सभी चूहों के रक्त में ग्लूकोज का स्तर ऊंचा हो गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह इंसूलीन के पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंचने की वजह से हुआ।
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