सर्दियों में प्यास कम लगने के कारण कम पानी पीना मूत्राशय में जलन,
संक्रमण या
अन्य बीमारियों का सबब बन सकता है। चिकित्सकों का कहना है कि यह
समस्या महिलाओं में विशेष तौर पर हो सकती है।
अत्याधुनिक सुविधाओं वाले नोवा अस्पताल में स्त्री रोग एवं प्रसूति विशेषज्ञ मालविका सभरवाल ने बताया, ''पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मूत्रमार्ग छोटा होता है, इसलिए उनमें मूत्राशय संबंधी बीमारियां होने का खतरा अधिक रहता है। वैसे तो इन बीमारियों की जद हर आयुवर्ग की महिलाएं आ सकती हैं, लेकिन नवविवाहिताओं और रजोनिवृत्ति के निकट पहुंच चुकीं महिलाओं में यह समस्या होने का जोखिम अधिक होता है।'' हर साल 15 प्रतिशत महिलाएं मूत्राशय शोथ से ग्रस्त होती हैं, इनमें भी आधी महिलाओं को जीवन में कम से कम एक बार यह समस्या जरूर हुई होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में मूत्राशय शोथ का जोखिम आठ गुना अधिक होता है। सभरवाल ने कहा, ''तपेदिक एवं बहुमूत्र रोग से पीडिम्त, गभर्वती एवं यौन संबंधों में सक्रिय महिलाओं के मूत्राशय शोथ की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है।'' चिकित्सक इसीलिए गर्भवती महिलाओं को अपना मूत्राशय कभी खाली न रखने के प्रति सावधान रहने की सलाह देते हैं। नेचर क्लीनिक की स्त्री रोग एवं प्रसूति विशेषज्ञ अर्चना धवन बजाज ने बताया, ''गर्भवती महिलाओं को कैफीन या खट्टे पेय पदार्थो जैसे संतरे का जूस आदि का अधिक सेवन करने से बचना चाहिए। ये चीजें मूत्राशय के लिए दिक्कत पैदा कर सकती हैं। उन्हें कभी भी मूत्राशय खाली नहीं रखना चहिए क्योंकि इससे मूत्राशय में जीवाणुओं के पनपने का खतरा बढ़ जाता है।'' चिकित्सक प्रतिदिन कम से कम 12 गिलास पानी पीने की सलाह देते हैं, ताकि मूत्र के जरिए संक्रमण आदि को लगातार शरीर से बाहर निकाला जा सके तथा मूत्र को गाढ़ा होने से बचाया जा सके। धवन ने बताया, ''पेशाब करते समय जलन, बार-बार पेशाब आने पर भी कम-कम पेशाब आना या आना ही नहीं, कमर के निचले हिस्से में दर्द और गाढ़ा बदबूदार पेशाब आना तथा बुखार होना मूत्राशय शोथ के लक्षण हैं।'' चिकित्सक हर तीन से छह माह में एक बार मूत्र की माइक्रोस्कोपिक जांच कराने की सलाह देते हैं। चिकित्सक मूत्राशय शोथ का उपचार करने के दौरान रोजाना करौंदे का जूस पीने की भी सलाह देते हैं। स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखकर भी इससे बचा जा सकता है।
अत्याधुनिक सुविधाओं वाले नोवा अस्पताल में स्त्री रोग एवं प्रसूति विशेषज्ञ मालविका सभरवाल ने बताया, ''पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मूत्रमार्ग छोटा होता है, इसलिए उनमें मूत्राशय संबंधी बीमारियां होने का खतरा अधिक रहता है। वैसे तो इन बीमारियों की जद हर आयुवर्ग की महिलाएं आ सकती हैं, लेकिन नवविवाहिताओं और रजोनिवृत्ति के निकट पहुंच चुकीं महिलाओं में यह समस्या होने का जोखिम अधिक होता है।'' हर साल 15 प्रतिशत महिलाएं मूत्राशय शोथ से ग्रस्त होती हैं, इनमें भी आधी महिलाओं को जीवन में कम से कम एक बार यह समस्या जरूर हुई होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में मूत्राशय शोथ का जोखिम आठ गुना अधिक होता है। सभरवाल ने कहा, ''तपेदिक एवं बहुमूत्र रोग से पीडिम्त, गभर्वती एवं यौन संबंधों में सक्रिय महिलाओं के मूत्राशय शोथ की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है।'' चिकित्सक इसीलिए गर्भवती महिलाओं को अपना मूत्राशय कभी खाली न रखने के प्रति सावधान रहने की सलाह देते हैं। नेचर क्लीनिक की स्त्री रोग एवं प्रसूति विशेषज्ञ अर्चना धवन बजाज ने बताया, ''गर्भवती महिलाओं को कैफीन या खट्टे पेय पदार्थो जैसे संतरे का जूस आदि का अधिक सेवन करने से बचना चाहिए। ये चीजें मूत्राशय के लिए दिक्कत पैदा कर सकती हैं। उन्हें कभी भी मूत्राशय खाली नहीं रखना चहिए क्योंकि इससे मूत्राशय में जीवाणुओं के पनपने का खतरा बढ़ जाता है।'' चिकित्सक प्रतिदिन कम से कम 12 गिलास पानी पीने की सलाह देते हैं, ताकि मूत्र के जरिए संक्रमण आदि को लगातार शरीर से बाहर निकाला जा सके तथा मूत्र को गाढ़ा होने से बचाया जा सके। धवन ने बताया, ''पेशाब करते समय जलन, बार-बार पेशाब आने पर भी कम-कम पेशाब आना या आना ही नहीं, कमर के निचले हिस्से में दर्द और गाढ़ा बदबूदार पेशाब आना तथा बुखार होना मूत्राशय शोथ के लक्षण हैं।'' चिकित्सक हर तीन से छह माह में एक बार मूत्र की माइक्रोस्कोपिक जांच कराने की सलाह देते हैं। चिकित्सक मूत्राशय शोथ का उपचार करने के दौरान रोजाना करौंदे का जूस पीने की भी सलाह देते हैं। स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखकर भी इससे बचा जा सकता है।
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