Thursday, 11 July 2013

दिल्‍ली में दामिनी गैंगरेप केस में पहला फैसला भले ही 25 जुलाई तक के लिए टल गया, लेकिन नेताओं के खिलाफ अदालती फैसले आने का सिलसिला गुरुवार को भी जारी रहा। सुप्रीम कोर्ट के बाद अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी नेताओं पर डंडा चलाया है। अदालत ने यूपी में होने वाली जातीय रैलियों पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह आदेश सुनाते हुए कांग्रेस, बीजेपी, सपा और बसपा को नोटिस भी जारी किया है। गौरतलब है कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर वोटरों को लुभाने के लिए सपा और बसपा ब्राह्मण रैलियां कर रही हैं। बुधवार को देश में पहली बार राजनीति को अपराधियों से मुक्त करने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि अब अगर सांसद या विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो उसकी सदस्यता निलंबित हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके पटनायक और एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने कहा कि फैसला तत्काल लागू माना जाएगा। साथ ही व्यवस्था दी कि कोई भी नेता पुलिस हिरासत या जेल में रहकर चुनाव नहीं लड़ पाएगा। यही नहीं, कोर्ट ने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने के बावजूद सांसदों, विधायकों को संरक्षण देने वाले कानूनी प्रावधान धारा 8(4) को भी निरस्त कर दिया है। यानी अपील लंबित होने तक पद पर बने रहने की अनुमति देने का प्रावधान अब वजूद में नहीं रहेगा। फैसले पर पार्टियां सावधानी से जवाब दे रही हैं। कपिल सिब्‍बल हों या भाजपा के रविशंकर प्रसाद, सबने कहा कि हम पहले फैसला पढ़ लें, फिर कुछ कहेंगे। वहीं केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के जनप्रतिनिधित्व कानून से संबंधित फैसले से पूरी तरह इत्तफाक नहीं रखती और इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक इस बारे में कानून मंत्री कपिल सिब्बल जल्द ही प्रधानमंत्री से मुलाकात कर सकते हैं और फिर सरकार अटार्नी जनरल की सलाह लेकर पुनर्विचार याचिका दायर कर सकती है। कानून के जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही मामलों में संविधान पीठ द्वारा दिए गए पूर्व फैसलों का ध्यान नहीं रखा है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक मौजूदा फैसला यह स्पष्ट नहीं करता कि ऊपरी अदालत से दोषमुक्त होने की स्थिति में क्या कोई दोबारा चुनाव लडऩे के योग्य हो सकता है। यह फैसला संसद या विधानसभा के अपने सदस्यों की रक्षा करने के विशेषाधिकार पर भी सवाल खड़ा करता है। पूर्व में पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप में 11 सांसदों को न्यायालय ने अयोग्य ठहराया था लेकिन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने संसद की सर्वोच्चता बरकरार रखते हुए उस फैसले को मानने से इनकार कर दिया था। सरकार का मानना है कि ऐसे में न्यायपालिका और विधायिका तथा कार्यपालिका के बीच ठकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। इन तमाम मुद्दों के मद्देनजर सरकार पुनर्विचार याचिका दायर करना जरूरी समझती है।

अब हाईकोर्ट ने चलाया पार्टियों पर डंडा, खतरे में पड़ सकती है इन 10 बड़े नेताओं की नेतागिरीदिल्‍ली में दामिनी गैंगरेप केस में पहला फैसला भले ही 25 जुलाई तक के लिए टल गया, लेकिन नेताओं के खिलाफ अदालती फैसले आने का सिलसिला गुरुवार को भी जारी रहा। सुप्रीम कोर्ट के बाद अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी नेताओं पर डंडा चलाया है। अदालत ने यूपी में होने वाली जातीय रैलियों पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह आदेश सुनाते हुए कांग्रेस, बीजेपी, सपा और बसपा को नोटिस भी जारी किया है। गौरतलब है कि आगामी लो
कसभा चुनाव के मद्देनजर वोटरों को लुभाने के लिए सपा और बसपा ब्राह्मण रैलियां कर रही हैं। 
 
बुधवार को देश में पहली बार राजनीति को अपराधियों से मुक्त करने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि अब अगर सांसद या विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो उसकी सदस्यता निलंबित हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके पटनायक और एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने कहा कि फैसला तत्काल लागू माना जाएगा। साथ ही व्यवस्था दी कि कोई भी नेता पुलिस हिरासत या जेल में रहकर चुनाव नहीं लड़ पाएगा। 
 
यही नहीं, कोर्ट ने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने के बावजूद सांसदों, विधायकों को संरक्षण देने वाले कानूनी प्रावधान धारा 8(4) को भी निरस्त कर दिया है। यानी अपील लंबित होने तक पद पर बने रहने की अनुमति देने का प्रावधान अब वजूद में नहीं रहेगा। फैसले पर पार्टियां सावधानी से जवाब दे रही हैं। कपिल सिब्‍बल हों या भाजपा के रविशंकर प्रसाद, सबने कहा कि हम पहले फैसला पढ़ लें, फिर कुछ कहेंगे। 
 
वहीं केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के जनप्रतिनिधित्व कानून से संबंधित फैसले से पूरी तरह इत्तफाक नहीं रखती और इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक इस बारे में कानून मंत्री कपिल सिब्बल जल्द ही प्रधानमंत्री से मुलाकात कर सकते हैं और फिर सरकार अटार्नी जनरल की सलाह लेकर पुनर्विचार याचिका दायर कर सकती है। कानून के जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही मामलों में संविधान पीठ द्वारा दिए गए पूर्व फैसलों का ध्यान नहीं रखा है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक मौजूदा फैसला यह स्पष्ट नहीं करता कि ऊपरी अदालत से दोषमुक्त होने की स्थिति में क्या कोई दोबारा चुनाव लडऩे के योग्य हो सकता है। 
 
यह फैसला संसद या विधानसभा के अपने सदस्यों की रक्षा करने के विशेषाधिकार पर भी सवाल खड़ा करता है। पूर्व में पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप में 11 सांसदों को न्यायालय ने अयोग्य ठहराया था लेकिन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने संसद की सर्वोच्चता बरकरार रखते हुए उस फैसले को मानने से इनकार कर दिया था। सरकार का मानना है कि ऐसे में न्यायपालिका और विधायिका तथा कार्यपालिका के बीच ठकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। इन तमाम मुद्दों के मद्देनजर सरकार पुनर्विचार याचिका दायर करना जरूरी समझती है।

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