Wednesday, 10 July 2013

यादों में 'डूबी' रात, उम्मीदों से 'खिली' सुबह

yaspal fatherबरेली । दिनभर हाड़तोड़ मेहनत और फिर रात नौ बजे चारपाई..। सुबह पांच बजे जागना और फिर काम में जुट जाना। बरसों से बाबूराम की जिंदगी वक्त की इन्हीं सुइयों में सिमटी हुई थी। न उससे ज्यादा खुद कभी सोचा, न किसी ने मेहरबानी की, लेकिन रविवार की रात उनके लिए बिल्कुल अलग थी..अलग 'दुनिया' में। लाख कोशिश की, मगर सो नहीं सके। पूरी रात डूबे रहे बेटे यशपाल की यादों में। जैसे ही पलक झपकतीं, उसका चेहरा सामने घूम जाता। मन में एक ही ख्याल आता रहा-आखिर कब सामने आएगा बेटा? इसी उधेड़बुन में कब रात कट गई, बाबूराम को पता ही नहीं चला। बिस्तर से उठे तो उम्मीदों भरी भोर उनके स्वागत में चहचहा रही थी।
फरीदपुर के पढ़ेरा गांव निवासी बाबूराम जिंदगी में पहली बार अपने गांव से बाहर निकले थे। डरते-डराते शहर पहुंचे थे, सिर्फ और सिर्फ बेटे यशपाल की खातिर, जो पिछले तीन साल से पाकिस्तान की 'कुख्यात' कोट लखपत जेल में कैद है। 'दैनिक जागरण' और जागर के सचिव डा. प्रदीप कुमार की कोशिशों से वह मंगलवार को रिहा हो रहा है। पाकिस्तानी अफसर अमृतसर में बाघा बॉर्डर पर उसे भारत के हवाले करेंगे। चूंकि, बाबूराम बेहद गरीब हैं, अनपढ़ हैं, लिहाजा 'जागरण' और डा.प्रदीप ने ही यशपाल को उसके घर तक पहुंचाने का जिम्मा उठाया है। बाबूराम रविवार शाम शहर पहुंचे तो डा.प्रदीप ने ही अपने घर में उन्हें पनाह दी क्योंकि सोमवार तड़के साथ में बाघा बॉर्डर निकलना था। वक्त तय था-करीब साढ़े पांच बजे। हालांकि, उनके घर में उससे पहले ही हलचल शुरू हो गई थी। आंवला के संजय सक्सेना और ड्राइवर संजय गुप्ता भी अंधेरे ही पहुंच गए थे। जागरण टीम भी मौके पर थी। सारी तैयारी कर जैसे ही डा.प्रदीप, बाबूराम को जगाने पहुंचे तो देखा वे पलंग पर बैठे हुए हैं, कुछ सोच में। सवाल पूछा-सोए नहीं क्या..? जवाब के रूप में बाबूराम की गर्दन हिली। अगला सवाल-कोई दिक्कत? इस दफा सहमे-सहमे बाबूराम में कुछ हिम्मत बंधी। दबी जुबां में ही सही, उन्होंने बेचैनी में बीती पूरी रात की कहानी बयां कर दी। कहा-साहब, इतनी लंबी रात कभी नहीं देखी। अब तो बस यशपाल से मिला दो, कलेजा फटा जा रहा है..। बाबूराम की हालत देख घर के सभी सदस्य भावुक हो गए। उनका हौसला बढ़ाया। बताया, ज्यादा वक्त नहीं है। बेटा अब उनसे दूर नहीं रहेगा। उसके बाद सभी ने चाय-नाश्ता साथ किया। फिर डा. प्रदीप और बाकी लोग अपनी निजी कार से बाघा बॉर्डर रवाना हो गए। देर शाम वे पंजाब पहुंच चुके थे। डा. प्रदीप ने बताया, कानून नौ जुलाई को दोपहर 12 बजे से पहले पाक यशपाल को भारत के सुपुर्द कर देगा।
'लाल' के इंतजार में कट रहीं 'काली' रातें
इंतजार की बेकरारी सिर्फ यशपाल के पिता ने नहीं झेली, 'लाल' को याद करते-करते मां माया देवी की आंखों में ही 'काली' रातें गुजर रही हैं। बेटा कैसा होगा, कब छूटेगा, कैसे आएगा..? इसी चिंता में मां बेचैन है। जिस घर में नौ बजे के बाद ढिबरी बंद हो जाती थी, दो दिन से वहां पूरी रात उजियारे है। माया के तो जैसे पलक ही नहीं झपक रहे। बेटियों को बार-बार जगाकर एक रट लगाए हुए हैं-भैया, आय रहो है, बाको ध्यान रखियो..।
पढ़ेरा गांव में जब से यशपाल की रिहाई की सूचना पहुंची, बाबूराम के घर में जश्न सा माहौल है। यशपाल की रिहाई में कुछ शिथिलता आई तो वे मायूस हुए, लेकिन पिछले दिनों तारीख मुकर्रर होने के बाद से खुशी का ठिकाना नहीं रहा। रविवार को जब बाबूराम अपने झोला लेकर शहर को निकले तो खुशी में माया के आंसू नहीं रुके। बोलीं, जल्द लैकर अइयो मेरे लाल कौ। जैसे ही छूटै। वहीं बॉर्डर से बात कराय दिऔ..। वो तो बाबूराम ने समझा बुझाकर शांत करा दिया वरना, माया भी बाघा बॉर्डर साथ चलने की जिद पकड़े हुए थीं। दोनों बेटियों की भी यही रट थी।
हालांकि, उनकी हसरत भले ही पूरी न हुई हो, लेकिन उनका दिल और दिमाग जरूर बाबूराम के साथ चला गया। यही वजह थी कि रविवार की रात बाबूराम के एक कुठरिया नुमा घर में रतजगा हुआ। न माया सोईं और न दोनों बेटियां। बूंदाबांदी के बावजूद देर रात आस-पड़ोस की महिलाओं का आना-जाना लगा रहा। सबकी जुबां पर एक ही चर्चा-यशपाल। इस गहमागहमी में कब सुबह हो गई, पता ही नहीं चला। चिड़ियों ने चहकना शुरू किया तो माया फटाफट काम को उठ गईं। सोमवार सुबह जल्दी-जल्दी काम निपटाए और दिन चढऩे के साथ ही फिर शुरू हो गया पंचायतों का दौर। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था, यशपाल वाकई पाकिस्तान से छूटकर आ रहा है?
किसी तरह चौपाल और यशपाल के चचरें में किसी तरह दिन तो कट गया, लेकिन शाम ढलते ही माया का दिल लाल के इंतजार में फिर हिलोरे मारने लगा। घर में चूल्हा तो चढ़ा मगर खुशी में किसी के हलक से निवाला नहीं उतरा। माया ने बताया-अब तो बेटा आय जायगो तई पेट भरके रोटी खांगे..। उसके बाद फिर वही सिलसिला..रतजगा का।
मां ने भी की साथ जाने की जिद
बाबूराम ने बताया कि घर में पत्नी माया देवी और चारों बच्चे भी यशपाल की राह ताक रहे हैं। उनसे यशपाल को लाने का वादा करके आया हूं। बोले, तीन साल पहले का वह दिन आज भी याद है, जब यशपाल दिल्ली में काम करने निकला था। उसके करीब सात माह बाद पुलिस ने उसके पाकिस्तान जेल में होने की सूचना दी थी। बेटे के लौटने की उम्मीद नहीं थी। 'दैनिक जागरण' ने आंखों की रौनक लौटाने का काम किया। बीच में खबर नहीं मिली तो मन घबराने लगा था, लेकिन अब अच्छा लग रहा है। अपनी कमाई से बचाकर यशपाल के लिए नए कपड़े खरीदे हैं। इन्हीं कपड़ों में बेटे को लेकर आऊंगा। दैनिक जागरण, सांसद मेनका गांधी, डा. प्रदीप समेत सभी का मैं आभारी हूं।
लक्ष्य की ओर बढ़ रहा प्रयास
'जागरण' के साथ ही यशपाल की वापसी की राह में डा. प्रदीप कुमार का भी विशेष योगदान है। डा. प्रदीप ने बताया कि उनका प्रयास अब लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है और सफलता की पूरी उम्मीद भी है। बताया कि यशपाल के साथ पांच अन्य कैदी भी पाकिस्तान की जेल से रिहा होंगे। यशपाल तीस मई को ही छूट जाता, लेकिन नागरिकता की पुष्टि नहीं होने के कारण देरी हो गई।
नाम दिया 'मिशन सरबजीत यूपी'
बाबूराम के साथ यशपाल को लेने जाने वालों में आंवला के डा. संजय सक्सेना भी शामिल हैं। डा. संजय कहते हैं कि मैंने यशपाल की वापसी को 'मिशन सरबजीत यूपी' का नाम दिया है। बॉर्डर पर यशपाल को गले लगाना हमारी बड़ी उपलब्धि होगी। उन्होंने सरबजीत को बचाने के लिए भी प्रयास किए थे, लेकिन उसकी मौत पर उन्हें बेहद दुख पहुंचा। इसी कारण उन्होंने यशपाल की रिहाई को यह नाम दिया। सामाजिक कार्यकर्ता डा. संजय के प्रयासों से ही सांसद मेनका गांधी ने मामले को गृह और विदेश मंत्रालय तक उठाया।
'सारथी' बने कटरा चांद खां के संजय
कटरा चांद खां में रहने वाले संजय गुप्ता यूं तो ट्रेवल एजेंसी चलाते हैं, लेकिन यशपाल की वापसी के सफर में वे 'सारथी' की भूमिका में हैं। सैकड़ों किलोमीटर दूर वे कार ड्राइव करेंगे। संजय ने बताया कि वे भाई यशपाल को वतन लाने को लेकर काफी उत्साहित और खुश हैं। बोले, वापसी पर यशपाल को मैं नए कपड़े दूंगा। 'जागरण' की इस मुहिम में शामिल होकर मुझे अच्छा लग रहा है। बोले, केंद्र सरकार से मेरा अनुरोध है कि पाकिस्तानी जेलों में बंद भारतीय की सुरक्षा के लिए वहां की सरकार पर दबाव बनाया जाए।
ऐसे पहुंचेंगे बाघा बार्डर
बाबूराम समेत चारों लोग कार से सीधे मेरठ होते हुए बागपत, मुरथल, फिर करनाल होकर अमृतसर पहुंचेंगे। सोमवार रात अमृतसर में ही ठहरना होगा। वहां से बाघा बार्डर करीब 30 किलोमीटर रह जाता है। मंगलवार सुबह वहां जाकर यशपाल को लेंगे। पाकिस्तान की लाहौर जेल से भी अटारी बॉर्डर करीब 25 किमी है।
यशपाल के स्वागत को जुटा परिवार
मंगलवार पढ़ेरा के लिए खास है। उम्मीद है, इसी दिन फरीदपुर तहसील का यह बेहद पिछड़ा गांव इतिहास रचेगा। लंबे इंतजार के बाद यशपाल अपने घर लौट सकेगा। हालांकि, अगर वक्त पर उसकी रिहाई हो भी गई तो वह बुधवार को अपनों को बीच पहुंच सकेगा।
बाबूराम बाघा बॉर्डर डा. प्रदीप के साथ जा चुके हैं। वहीं घर और गांव में यशपाल के लौटकर आने की तैयारियां तेज हो गई हैं। इस बार दोनों बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांध सकेंगी। मां- माया देवी यशपाल के आने से पहले उसकी आवाज सुनना चाहती हैं। सालों हो गए यशपाल की आवाज नहीं सुनी उन्होंने। बाबूराम ने भी हामी भर दी। मायादेवी अब बस भगवान से यही दुआ कर रही हैं कि अब कोई अड़ंगा न अटके।
अपने लिए तो देश भी विदेश जैसा
पिछले 18 सालों से गांव से नहीं निकले हैं बाबूराम। आपको शायद यकीन नहीं हो,लेकिन यह सच है। पिछले 18 साल से बाबूराम अपने गांव से बाहर नहीं निकले। जब उन्हें बताया गया कि वह दिल्ली, अंबाला, अमृतसर होते हुए करीब साढ़े सात सौ किलोमीटर लंबा रास्ता तय करने के बाद बाघा वार्डर पहुंचेंगे। उसके बाद से पाकिस्तान शुरू होगा तो वह सुनकर दंग रह गए। फिर बोले, अपने लिए तो देश भी विदेश है। उन्होंने बताया कि 1995 में एक बार ट्रेन में बैठकर दिल्ली गया था। उसके बाद से आज तक कभी गांव से बाहर नहीं निकला। जरूरत ही नहीं पड़ी। हां, अब यशपाल के मामले में एक-दो बार फरीदपुर व बरेली जरूर चला गया। वरना तो जिंदगी इसी गांव में कट गई। कार में बैठते समय बोला- साहब हमें तो रास्ता तक नहीं पता, जहां साहब [डा. प्रदीप] ले जाएंगे चला जाऊंगा।
क्या हुआ था
वर्ष 2010 की सर्दियों का मौसम था जब फरीदपुर तहसील के पढ़ेरा गांव का नौजवान यशपाल गांव से मेहनत-मजदूरी के लिए दिल्ली चला गया। इसके बाद से उसका कोई पता नहीं चला। परिवार के लोग यही समझते रहे कि यशपाल दिल्ली में होगा, लेकिन 2011 में एक दिन आई चिट्ठी ने यशपाल के घर पर वज्रपात ही कर दिया। चिट्ठी में उसके पाकिस्तान की जेल में बंद होने की सूचना थी। इसके बाद न कोई चिट्ठी आई न यशपाल की खैर खबर। गांव में रहने वाला यशपाल का परिवार इतना गरीब था कि दो जून की रोटी के लिए उसे दिन रात मशक्कत करनी पड़ती थी। फिर पाकिस्तान की जेल में बंद बेटे को छुड़ाना तो बहुत दूर की बात थी। घर से पैरवी नहीं हुई तो सरकार ने भी यशपाल को उसके हाल पर छोड़ दिया। जब सरबजीत की मौत के बाद दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट और बढ़ गई थी। ऐसे में दैनिक जागरण ने 28 अप्रैल को खबर के जरिए यशपाल के पाक जेल में कैद होने की खबर दी। न केवल खबर बल्कि यशपाल की रिहाई के लिए पैरवी भी की। जागर के सचिव डा. प्रदीप कुमार ने इसमें अहम रोल निभाया। सांसद मेनका गांधी की पैरवी पर गृह और विदेश मंत्रालय सक्रिय हुए।
चौपाल पर भी यशपाल के चर्चे
पूरे पढ़ेरा गांव में इन दिनों एक ही चर्चा है- यशपाल की। 'पल्सर' नाम से गांव में चर्चित होने वाला यशपाल मानो अब गांव का हीरो बन चुका है। अभी तक लोगों की जुबां पर सवाल था- क्या यशपाल लौटेगा? घरों से लेकर चौपाल तक यही चर्चा थी। पिछले महीने ही ग्रामीणों को पता चला था कि यशपाल की सजा 30 मई को खत्म हो रही है। इसके बाद ग्रामीणों में एक उम्मीद की लौ जागी कि गांव का बेटा लौट आएगा। पाकिस्तान सरकार द्वारा कोई जवाब न देने पर एक बार ग्रामीणों में मायूसी छा गई। ग्रामीण कहने लगे इतना आसान नहीं है पाकिस्तान से रिहा होना। इसके बाद जब पाकिस्तान सरकार ने नौ जुलाई की तारीख तय कर दी तो तय हो गया कि यशपाल लौट आएगा।
अब जबकि उसकी रिहाई का दिन आ ही गया है तो गांव के घर-घर में और चौपाल पर सभी जगह यशपाल की ही बातें हो रही हैं। कोई उसकी मोटरसाइकिल के प्रति दीवानगी के किस्से बता रहा है तो कोई उसकी पुरानी बातों में खोया है।
प्रशासन से मिले महज कोरे आश्वासन
उम्मीद है, यशपाल तो घर लौट आएगा, लेकिन यह पूरी मुहिम प्रशासन और नेताओं के संवेदनहीन रवैये के लिए भी याद की जाएगी। सरबजीत की मौत के बावजूद प्रशासन और सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने यशपाल की सुध नहीं लीं। जिले के एक मात्र मंत्री भगवत सरन गंगवार और यहां तक कि क्षेत्रीय विधायक डा. सियाराम सागर ने मामले में जुबां तक नहीं खोली। डीएम ने जुबानी जमीन देने की घोषणा की थी लेकिन उसे भी अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। कानूनी सहायता से लेकर विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभ का वायदा भी कोरा साबित हुआ। अफसर 'जागरण' के जगाने के बाद भी मददगार की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। यशपाल के परिजनों को अभी भी वायदे पूरा होने का इंतजार है। उधर, इस बारे में यशपाल मामले में प्रभारी बनाए गए एडीएम प्रशासन एके उपाध्याय ने बताया कि यशपाल का परिवार जमीन देने के लिए पात्रता की श्रेणी में नहीं आता। जमीन तभी दी जा सकती थी, जब इस संबंध में शासन से कोई विशेष आदेश जारी हो। हां, अगर कानूनी सहायता के लिए यशपाल के परिजन मांग करते तो उपलब्ध करा सकते थे।
मदद के लिए आगे नहीं आए सत्ताधारी नेता
यशपाल के मामले में तमाम नेता गांव गए। यशपाल के परिवार को मदद का आश्वासन दिया, लेकिन सत्ता पक्ष कभी मदद के लिए आगे नहीं आया। फरीदपुर के पढ़ेरा गांव में पूर्व विधायक धमर्ेंद्र कश्यप, बसपा जिलाध्यक्ष ब्रह्मंस्वरूप सागर, व्यापारी नेता राजेंद्र गुप्ता, समाजसेविका मनु नीरज, सलीम शेरवानी आदि तमाम नेता पहुंचे। सांसद मेनका गांधी ने यशपाल के लिए पैरवी की, लेकिन सत्ता में बैठी समाजवादी पार्टी का कोई नुमाइंदा गांव नहीं गया।

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