मोटे तौर पर फिल्म की कहानी में क्या-क्या होने वाला है, ये फिल्म के प्रोमोज से पहले ही साफ किया जा चुका है। मसलन, एक किरदार है संजू (इमरान हाशमी), जिसने चोरी के पैसे कहीं छिपा दिये हैं और उसकी याददाश्त खो चुकी है। उसके दो साथी पंडित (राजेश शर्मा) और इदरिस (नमित दास) इस इंतजार में हैं कि संजू की याददाश्त वापस आये तो उन्हें अपने हिस्से के पैसे मिलें। संजू की पत्नी नीतू (विद्या बालन) अपने आप में एक दिलचस्प किरदार है। उसके कपड़े पहनने का स्टाइल, बेबाक पंजाबी स्टाइल सब कुछ दिलचस्प है। वह खाना बनाने में फूहड़ है वगैरह वगैरह। अब संजू की याददाश्त वाकई खो गयी है या फिर वो सारे पैसे हड़पने के चक्कर में नाटक तो नहीं कर रहा है। महज इस छोटी-सी बात पर पूरी फिल्म कश्मीर से कन्याकुमारी तक (उदाहरण के तौर पर) सफर तय करती है। सच जानिये जनाब पूरी फिल्म में इन तीन-चार बातों के अलावा और कुछ है ही नहीं और ये सारी बातें आप फिल्म के प्रोमोज में देख ही चुके हैं। गीत-संगीत के साथ इन प्रोमोज का एक बड़ा रूप आपको सवा दो घंटे में देखना है तो जरूर सिनेमा हॉल का रुख कीजिए। इमरान हाशमी जैसे अभिनेता को पूरी फिल्म में दो टुच्चे से दिखने वाले चोरों से पिटते हुए देखना है तो खुशी से ‘घनचक्कर’ की महंगी टिकट खरीदिये और पल्ले न पड़ने वाली कहानी और क्लाईमैक्स के आगे खुद का और अपने पड़ोसी का सिर धुनना है तो जरूर घनचक्कर का दीदार कीजिए, आप स्वतंत्र हैं। दुख और ताज्जुब इस बात का है कि इस फिल्म के प्रोमोज और सितारों से हुई बातचीत ने इस फिल्म के प्रति जो क्रेज पैदा किया था, वह इस फिल्म को देख एक दर्द में तब्दील हो जाता है। इससे पहले दो बेहतरीन फिल्में बना चुके राजकुमार गुप्ता जैसे निर्देशक से वही उम्मीद की जा रही थी, जो इन दिनों अनुराग कश्यप और तिग्मांशु धूलिया या फिर इम्तियाज अली और दिबाकर बनर्जी से की जाती है। फिल्म की कमजोरी उसका ट्रीटमेंट नहीं, बल्कि कहानी और पटकथा है, जिसके आगे इसके चार किरदार बेहद आलसी और ऊबाऊ किस्म के लगते हैं। पंडित और इदरिस हाथ में तमंचा थामने के बावजूद बेहद फनी किस्म के चोर लगते हैं। बैंक डकैती भी किसी फन से कम नहीं है। संजू एक जटिल तिजोरी को किसी सूटकेस की तरह खोल डालता है। इदरिस का अंडरवियर में घूमना, संजू का वाइन पीना, हर छोटी से छोटी बात भूल जाना, नीतू का बेस्वाद खाना बनाना, क्लाईमैक्स में एक भाई साहब नामक किरदार का आना और अंत में ये साफ न होना कि उस पैसे का क्या हुआ आदि तमाम सवाल इस फिल्म को एक उलझन के रूप में पेश करते नजर आते हैं। यह फिल्म डेल्ही बेली बन सकती थी। इसमें फुकरे जैसी सफलता पाने और छा जाने के गुण थे। इसमें एक झलक तेरे बिन लादेन जैसा कटाक्ष करने की भी दिख रही थी, लेकिन ये एक घनघोर सिर दर्द के अलावा कुछ और न बन सकी।
कलाकार: इमरान हाशमी, विद्या बालन, राजेश शर्मा, नमित दास, प्रवीण डबास
निर्देशक: राज कुमार गुप्ता
निर्माता: रॉनी स्क्रूवाला, सिद्धार्थ राय कपूर
संगीत: अमित त्रिवेदी
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