उच्चतम न्यायालय न्यायिक संस्थाओं में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की
शि
कायतों के समाधान हेतु स्थाई व्यवस्था के लिये शीर्ष अदालत की पूर्व
इंटर्न की याचिका पर सुनवाई के लिये आज तैयार हो गया। इस इंटर्न ने
न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार के खिलाफ आरोप लगाये हैं।
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि वे फिलहाल न्यायमूर्ति कुमार के खिलाफ इंटर्न के आरोपों पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं। न्यायालय ने इस याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश और राष्ट्रीय हरित अधिकरण के अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार और शीर्ष अदालत के महासचिव को भी नोटिस जारी किये। इंटर्न की याचिका में इन दोनों को भी प्रतिवादी बनाया गया है।
न्यायाधीशों ने इसके साथ ही वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरिमन और के के वेणुगोपाल को इस प्रकरण में मदद के लिये न्याय मित्र नियुक्त किया है। न्यायालय ने अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती को भी इस मामले में मदद करने का निर्देश दिया है।
इस याचिका पर सुनवाई शुरू होते ही प्रधान न्यायाधीश ने सवाल किया कि कथित उत्पीड़न के मामले में इंटर्न इतनी देर से क्यों सामने आयी। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि इस तरह की शिकायत को किसी न्यायाधीश के खिलाफ उनके सेवानिवत्त होने के बीस साल बाद भी दायर की जा सकती है।
न्यायाधीशों ने सवाल किया, उसने इतना लंबा इंतजार क्यों किया हमारी आशंका है कि किसी न्यायाधीश के खिलाफ 20 साल बाद उसके 90 साल का होने पर भी शिकायत दायर की जा सकती है।
इंटर्न की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि एक बार ऐसे मामलों से निबटने की व्यवस्था होने के बाद लोगो उचित समय के भीतर ही अपनी शिकायत दायर करेंगे। उन्होंने कहा कि न्यायालय ऐसे मामले की शिकायत करने के लिये समयावधि निर्धारित कर सकता है।
न्यायालय ने कहा कि वह इन पहलुओं पर विचार करेगा। न्यायालय ने साथ ही केन्द्र सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश देते हुये याचिका की सुनवाई 14 फरवरी के लिये निर्धारित कर दी। न्यायालय ने कहा, यह स्पष्ट किया जाता है कि इस समय हम याचिका के कथन पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं।
इस इंटर्न ने याचिका में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की बैठक में पांच दिसंबर, 2013 में पारित प्रस्ताव को चुनौती दी है। इस प्रस्ताव में फैसला किया गया था कि अब शीर्ष अदालत अपने सेवानिवत्त न्यायाधीशों के खिलाफ किसी शिकायत पर विचार नहीं करेगा।
इंटर्न का कहना है कि कथित घटना के वक्त न्यायमूर्ति कुमार पीठासीन न्यायाधीश थे और इसलिए शीर्ष अदालत को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले में विशाखा प्रकरण में प्रतिपादित दिशानिर्देशों के अनुरूप उसकी शिकायत पर गौर करना चाहिए।
न्यायमूर्ति कुमार ने इन आरोपों को निराधार और असत्य करार देते हुये कहा है कि यह किसी प्रकार की साजिश लगती है। शीर्ष अदालत के प्रशासनिक पक्ष द्वारा पांच दिसंबर को पारित प्रस्ताव के मददेनजर न्यायमूर्ति कुमार के खिलाफ इंटर्न की शिकायत पर गौर करने से इंकार के बाद उसने यह याचिका दायर की है।
याचिका में इस प्रस्ताव को निरस्त करने और इस तरह की शिकायतों पर गौर करने के लिये स्थाई व्यवस्था करने का अनुरोध किया गया है।
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि वे फिलहाल न्यायमूर्ति कुमार के खिलाफ इंटर्न के आरोपों पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं। न्यायालय ने इस याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश और राष्ट्रीय हरित अधिकरण के अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार और शीर्ष अदालत के महासचिव को भी नोटिस जारी किये। इंटर्न की याचिका में इन दोनों को भी प्रतिवादी बनाया गया है।
न्यायाधीशों ने इसके साथ ही वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरिमन और के के वेणुगोपाल को इस प्रकरण में मदद के लिये न्याय मित्र नियुक्त किया है। न्यायालय ने अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती को भी इस मामले में मदद करने का निर्देश दिया है।
इस याचिका पर सुनवाई शुरू होते ही प्रधान न्यायाधीश ने सवाल किया कि कथित उत्पीड़न के मामले में इंटर्न इतनी देर से क्यों सामने आयी। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि इस तरह की शिकायत को किसी न्यायाधीश के खिलाफ उनके सेवानिवत्त होने के बीस साल बाद भी दायर की जा सकती है।
न्यायाधीशों ने सवाल किया, उसने इतना लंबा इंतजार क्यों किया हमारी आशंका है कि किसी न्यायाधीश के खिलाफ 20 साल बाद उसके 90 साल का होने पर भी शिकायत दायर की जा सकती है।
इंटर्न की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि एक बार ऐसे मामलों से निबटने की व्यवस्था होने के बाद लोगो उचित समय के भीतर ही अपनी शिकायत दायर करेंगे। उन्होंने कहा कि न्यायालय ऐसे मामले की शिकायत करने के लिये समयावधि निर्धारित कर सकता है।
न्यायालय ने कहा कि वह इन पहलुओं पर विचार करेगा। न्यायालय ने साथ ही केन्द्र सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश देते हुये याचिका की सुनवाई 14 फरवरी के लिये निर्धारित कर दी। न्यायालय ने कहा, यह स्पष्ट किया जाता है कि इस समय हम याचिका के कथन पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं।
इस इंटर्न ने याचिका में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की बैठक में पांच दिसंबर, 2013 में पारित प्रस्ताव को चुनौती दी है। इस प्रस्ताव में फैसला किया गया था कि अब शीर्ष अदालत अपने सेवानिवत्त न्यायाधीशों के खिलाफ किसी शिकायत पर विचार नहीं करेगा।
इंटर्न का कहना है कि कथित घटना के वक्त न्यायमूर्ति कुमार पीठासीन न्यायाधीश थे और इसलिए शीर्ष अदालत को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले में विशाखा प्रकरण में प्रतिपादित दिशानिर्देशों के अनुरूप उसकी शिकायत पर गौर करना चाहिए।
न्यायमूर्ति कुमार ने इन आरोपों को निराधार और असत्य करार देते हुये कहा है कि यह किसी प्रकार की साजिश लगती है। शीर्ष अदालत के प्रशासनिक पक्ष द्वारा पांच दिसंबर को पारित प्रस्ताव के मददेनजर न्यायमूर्ति कुमार के खिलाफ इंटर्न की शिकायत पर गौर करने से इंकार के बाद उसने यह याचिका दायर की है।
याचिका में इस प्रस्ताव को निरस्त करने और इस तरह की शिकायतों पर गौर करने के लिये स्थाई व्यवस्था करने का अनुरोध किया गया है।
No comments:
Post a Comment