उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि राज्य के मुजफ्फरनगर
में हुई साम्प्रदायिक हिंसा से प्रभावित लोगों के कैंप को जबरन बंद नहीं
किया जा रहा है, जैसा कि विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं। यह जानकारी एनडीटीवी
के साथ एक साक्षात्कार में मुख्यमंत्री ने दी।
गौरतलब है कि राज्य के विपक्षी दलों ने समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाया था कि सपा सरकार कैंप को जबरन बंद करा रही है। इन कैंपों में दंगों से प्रभावित लोग रह रहे हैं, जिनमें मुस्लिम समुदाय से आने वालों की संख्या अधिक है। पिछले दिनों मुलायम सिंह ने विपक्षी दलों पर आरोप लगाया था कि कैंप में रहने वाले लोग पीड़ित नहीं, बल्कि विपक्षी दलों द्वारा भेजे गए लोग हैं। इन्हीं दिनों राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी कहा था कि कैंप में कोई नहीं मर रहा है। उधर, खबर यह भी है कि उत्तर प्रदेश सरकार मुजफ्फरनगर दंगे से पहले भड़काऊ भाषण देने में नामजद हुए नेताओं के मुकदमे वापस लेने की तैयारी में है। इनमें बसपा सांसद व कांग्रेसी नेता शामिल हैं। इस बाबात न्याय विभाग के विशेष सचिव आर.एन. पाण्डेय ने मुजफ्फरनगर पुलिस-प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है। सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार ने मुजफ्फरनगर जिला प्रशासन को एक पत्र भेजा है। ये पत्र 30 दिसंबर,2013 को भेजा गया था। हालांकि शासन का कोई भी अधिकारी इस मसले पर कुछ भी कहने से इनकार कर रहा है। सूत्रों का दावा है कि जिस मुकदमे की वापसी के लिए पत्र लिखा गया है। उसमें बसपा नेता कादिर राणा समेत आधा दजर्न स्थानीय नेता शामिल हैं। इस मामले में कादिर राणा कोर्ट में सरेंडर कर जेल गए थे। बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी। गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर में 8 सितंबर को हिंसा के बाद पुलिस ने दंगा भड़काने के आरोप में कई लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए थे। ये हुए थे नामजद: मुजफ्फरनगर में 30 अगस्त को हुई पंचायत में भड़काऊ भाषण देने और शांति भंग के आरोप में बसपा सांसद कादिर राणा, नूर सलीम राणा, बसपा विधायक जमील अहमद, कांग्रेसी नेता सईदुज्जमा, सुल्तान नासिर, नौशाद कुरैशी, मौलाना जमील, पप्पू राणा, आदि के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। भाजपा ने जताया विरोध: भाजपा ने अखिलेश सरकार पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार इसके जरिए एक वर्ग विशेष को खुश करने में लगी है।
गौरतलब है कि राज्य के विपक्षी दलों ने समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाया था कि सपा सरकार कैंप को जबरन बंद करा रही है। इन कैंपों में दंगों से प्रभावित लोग रह रहे हैं, जिनमें मुस्लिम समुदाय से आने वालों की संख्या अधिक है। पिछले दिनों मुलायम सिंह ने विपक्षी दलों पर आरोप लगाया था कि कैंप में रहने वाले लोग पीड़ित नहीं, बल्कि विपक्षी दलों द्वारा भेजे गए लोग हैं। इन्हीं दिनों राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी कहा था कि कैंप में कोई नहीं मर रहा है। उधर, खबर यह भी है कि उत्तर प्रदेश सरकार मुजफ्फरनगर दंगे से पहले भड़काऊ भाषण देने में नामजद हुए नेताओं के मुकदमे वापस लेने की तैयारी में है। इनमें बसपा सांसद व कांग्रेसी नेता शामिल हैं। इस बाबात न्याय विभाग के विशेष सचिव आर.एन. पाण्डेय ने मुजफ्फरनगर पुलिस-प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है। सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार ने मुजफ्फरनगर जिला प्रशासन को एक पत्र भेजा है। ये पत्र 30 दिसंबर,2013 को भेजा गया था। हालांकि शासन का कोई भी अधिकारी इस मसले पर कुछ भी कहने से इनकार कर रहा है। सूत्रों का दावा है कि जिस मुकदमे की वापसी के लिए पत्र लिखा गया है। उसमें बसपा नेता कादिर राणा समेत आधा दजर्न स्थानीय नेता शामिल हैं। इस मामले में कादिर राणा कोर्ट में सरेंडर कर जेल गए थे। बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी। गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर में 8 सितंबर को हिंसा के बाद पुलिस ने दंगा भड़काने के आरोप में कई लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए थे। ये हुए थे नामजद: मुजफ्फरनगर में 30 अगस्त को हुई पंचायत में भड़काऊ भाषण देने और शांति भंग के आरोप में बसपा सांसद कादिर राणा, नूर सलीम राणा, बसपा विधायक जमील अहमद, कांग्रेसी नेता सईदुज्जमा, सुल्तान नासिर, नौशाद कुरैशी, मौलाना जमील, पप्पू राणा, आदि के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। भाजपा ने जताया विरोध: भाजपा ने अखिलेश सरकार पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार इसके जरिए एक वर्ग विशेष को खुश करने में लगी है।
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