एक तरफ समर्थन देने-लेने की बात चल रही है, और दूसरी तरफ उनके विरोधी उनकी
रिश्तेदारी खोज रहे हैं। ऐसे में, अक्सर एक ही रिश्तेदारी खोजी जाती है,
मौसेरे भाइयों वाली रिश्तेदारी। बस यही कहा जाता है कि चोर-चोर मौसेरे भाई
हैं। इस बार भी जब यही कहा गया, तो बात मौसेरे भाइयों के दिल को लग गई। वे
मुहावरों और कहावतों के निर्माताओं से बेहद खफा हैं। भई, चोरी का हिस्सा
चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाइयों को भी विधिवत जाता ही है, तो फिर चोरी में
उनका नाम क्यों नहीं आया? जो कुछ भी हुआ या जो कुछ भी मिला, वह बराबर-बराबर
सबको बंटा और आरोपी बना दिया सिर्फ मौसेरे भाइयों को। चोर-चोर मौसेरे भाई
ही क्यों? चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाइयों के पराक्रम को क्यों भूल गए? चोरी
के इस मुहावरे का कुछ हिस्सा चचेरे भाइयों को भी समर्पित कर देते, तो किसी
का क्या जाता? माल तो चोरी का ही है न? थोड़ी-बहुत बदनामी चचेरे, ममेरे,
फुफेरे भाइयों के हिस्से भी आ जाती तो क्या बुरा था? मुहावरों की दुनिया
में उनको जगह तो मिल जाती। कहा भी गया है कि बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ?
वैसे इस कहावत के कुछ बिंदुओं पर हिंदी मुहावरा जगत खामोश है। मसलन, सारे चोर मौसेरे भाई हुए कि सारे मौसेरे भाई चोर? अगर यह मान लें कि सारे चोर मौसेरे भाई हुए, तो जब मुहावरा बनाया जा रहा था, उन दिनों संसार में क्या चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाइयों का चलन नहीं था? दूसरी बात यह कि चोर ही मौसेरे भाई क्यों? अपने यहां की पुलिस भी तो कम हुनरमंद नहीं है। ‘पुलिस-पुलिस मौसेरे भाई’ की कहावत क्यों नहीं बनाई? वैसे यह आपत्ति ठीक नहीं है, अपने देश में उन्हें मामा कहने का प्रचलन है। यानी जो गड़बड़ है वह होगा मां की तरफ का रिश्तेदार, बाप का नहीं। मुहावरे बनाने वालों से मेरा आग्रह है कि कम से कम राजनीति के क्षेत्र में तो चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत में संशोधन का प्रस्ताव तुरंत लाएं। अब अकेले मौसेरे भाइयों से काम नहीं चलने वाला हुजूर। यह गठबंधन सरकारों का दौर है। चोरी के लिए मौसेरे ही नहीं, चचेरे-फुफेरे-ममेरे भाइयों की भी जरूरत पड़ेगी।
वैसे इस कहावत के कुछ बिंदुओं पर हिंदी मुहावरा जगत खामोश है। मसलन, सारे चोर मौसेरे भाई हुए कि सारे मौसेरे भाई चोर? अगर यह मान लें कि सारे चोर मौसेरे भाई हुए, तो जब मुहावरा बनाया जा रहा था, उन दिनों संसार में क्या चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाइयों का चलन नहीं था? दूसरी बात यह कि चोर ही मौसेरे भाई क्यों? अपने यहां की पुलिस भी तो कम हुनरमंद नहीं है। ‘पुलिस-पुलिस मौसेरे भाई’ की कहावत क्यों नहीं बनाई? वैसे यह आपत्ति ठीक नहीं है, अपने देश में उन्हें मामा कहने का प्रचलन है। यानी जो गड़बड़ है वह होगा मां की तरफ का रिश्तेदार, बाप का नहीं। मुहावरे बनाने वालों से मेरा आग्रह है कि कम से कम राजनीति के क्षेत्र में तो चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत में संशोधन का प्रस्ताव तुरंत लाएं। अब अकेले मौसेरे भाइयों से काम नहीं चलने वाला हुजूर। यह गठबंधन सरकारों का दौर है। चोरी के लिए मौसेरे ही नहीं, चचेरे-फुफेरे-ममेरे भाइयों की भी जरूरत पड़ेगी।
No comments:
Post a Comment