हर बच्चा अलग होता है, खास होता है और बेहद प्यारा होता है। अपने बच्चे की
परवरिश के दौरान यह जरूर याद रखें। अपने बच्चे को अपनी तरह से जीने के लिए
तैयार करें, ना कि किसी दूसरे के बच्चे की तर
ह। इससे वह भी खुश रहेगा और आप
भी। कैसे, बता रही हैं जयंती रंगनाथन
शिवानी बचपन में खासी जिद्दी थी। खाना खाने के नाम पर बिस्तर के नीचे घुस जाती। मां और दादी को खूब चिरौरी करके उसे खाना खिलाना पड़ता। अगर उसका स्कूल यूनिफॉर्म जरा सा भी मैला होता, तो वह स्कूल ही जाने से इनकार कर देती। चोटियों की रिबन एक लेवल पर बंधी होनी चाहिए, शूज के लेस अगर उन्नीस-बीस भी बंधे होते, तो वह खड़े-खड़े रोने लगती। शिवानी ने बाद के दिनों में अपनी जिद पर काबू पा लिया। खासकर जब उसकी बेटी रूही हुई, तो उसे लगा कि वह भी उसी की तरह जिद्दी होगी। पर नहीं। रूही जिद्दी नहीं थी, पर अपनी मां की तरह चुप नहीं बैठती थी। तरह-तरह की कहानियां बनाने का गजब का शौक था रूही को। एक दिन अपनी टीचर से कह आई कि मेरी मां रात को परी लोक चली जाती है और सुबह लौट कर आती है। उसने टीचर से यह भी कहा कि उसके घर में एक राक्षस रहता है। टीचर ने शिवानी को बुलवाया और जब उसे रूही की कहानी के बारे में बताया, तो शिवानी चौंक गई। स्कूल के बाल मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉक्टर सी.के. चंद्रा ने बताया कि हर बच्चा अलग होता है। यह जरूरी नहीं कि वह अपने पेरेंट्स की तरह हो। इसलिए हर बच्चे की परवरिश अलग तरह से होनी चाहिए। पेरेंटिंग का वैसे भी कोई तयशुदा फॉर्मूला नहीं होता। अगर बच्चा जिद्दी है, एग्रेसिव है, शर्मीला है या खाने से जी चुराता है, उसे समझाने के लिए आप एक तरह का रवैया नहीं अपना सकते। सीनियर साइकोलॉजिस्ट डॉं. मधुमती सिंह कहती हैं, ‘आप अपने बच्चे को सबसे अच्छा जानती हैं। आपको पता है कि वह किस बात पर रोता है, किस बात पर हंसता है। उसकी जरूरतें क्या हैं, उसका आई क्यू लेवल क्या है? उसी आधार पर आपको उनकी परवरिश करनी चाहिए। अगर आपका बच्चा सेंसिटिव है, जल्दी बुरा मान जाता है, घबरा जाता है, रोने लगता है, तो आप अगर उसके साथ सख्ती बरतेंगी, उसे किसी काम को जबरन करने को कहेंगी, तो वह अपनी खोल में सिमट जाएगा।’ जरूरी बात तो यह है कि आप अपने बच्चे को वह जैसा है, वैसा ही अपनाएं। उसके मूल स्वभाव को बदलने की कोशिश ना करें। नौ साल की रंजिनी अच्छा गाती थी, पर दूसरों के सामने गाते समय वह हकलाने लगती थी। रंजिनी की मम्मी पायल चाहती थी कि उसकी बेटी संगीत के रियलिटी शो का हिस्सा बने। रंजिनी स्टेज पर पहुंच कर हकलाने लगी और जज ने उसका मजाक बना दिया। इस घटना का रंजिनी पर इतना बुरा असर पड़ा कि वह डिप्रेशन का शिकार हो गई। वह अब किसी से भी बिना हकलाए बोल नहीं पाती। डॉंक्टर मधुमती कहती हैं, ‘पेरेंट्स अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे से करते हैं। यह गलत है। बच्चों से उस बात की अपेक्षा करिए, जो उनकी पहुंच के अंदर हो। किसी भी तरह का अनावश्यक दबाव उन्हें या तो विद्रोही बना देता है या दब्बू।’ आपका बच्चा कैसे है खास?
जब पहली बार अपने मुंह से वह मां कहता है, आपकी जिंदगी बदल जाती है। आपको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका बच्चा कैसा दिखता है, आपके लिए वह संसार का सबसे अनमोल रत्न है।
हर बच्चे की जरूरत अलग होती है। आपका बेटा दिन में सिर्फ दो बार दूध पीता है, बेटी चार बार पीती है। बेटा साइंस में कमजोर है और बेटी को भाषा संबंधी दिक्कतें ज्यादा होती हैं। उनकी जरूरतों और पसंद के हिसाब से आपको उनके भविष्य की तैयारी करनी होगी।
दस साल तक के बच्चे लगभग हर बात के लिए पेरेंट्स पर निर्भर करते हैं और सबसे ज्यादा विश्वास अपने माता-पिता पर ही करते हैं। बच्चों के साथ ये कभी ना करें
मनोवैज्ञानिक चिकित्सक डॉं.रमेश भंडारकर के अनुसार हर माता-पिता को इन पांच बातों से बचना चाहिए... बच्चों की छोटी से छोटी समस्या की अनदेखी ना करें। हो सकता है वह आपको अपने से जुड़ी कोई बड़ी बात बताना चाह रहा हो।
आपका बच्चा आपकी जिंदगी में रोशनी का काम करता है। पर आप उसका इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए ना करें। आपका सपना आपका है, बच्चे का नहीं। अगर आप डॉंक्टर नहीं बन पाए, तो बच्चे को इसके लिए फोर्स ना करें। वह अगर बनना चाहता है, उसकी दिलचस्पी है, तो उसे आगे बढमने में मदद करें।
अपने रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए बच्चों से राजनीति ना करवाएं। बच्चे को घर में दूसरे रिश्तेदारों के खिलाफ ना भडम्काएं। वे इससे कन्फ्यूज्ड हो जाते हैं और अपना संतुलन खो देते हैं।
बच्चे की सीमा को जानें। उस पर सीमा से आगे बढ़ने का दबाव ना डालें।
अगर आपके बच्चे को कोई तन या मन से जुड़ी समस्या है, तो उसे स्वीकार करें। बच्चे बहुत सेंसिटिव होते हैं और मां-पिता की बेचारगी भांप लेते हैं। पांच बातें जरूर रखें याद
अगर आपका बच्चा पढ़ाई से जी चुराता है, तो निश्चित ही वह ट्य़ूशन जाने से भी बचेगा। सबसे पहले यह जानने की कोशिश कीजिए कि उसे पढ़ना क्यों नहीं पसंद? कहीं वह डिस्लेक्सिक या स्लो लर्नर तो नहीं? अगर नहीं, तो वह जब पढ़ने बैठे तो उसके साथ बैठें और उसे आसान शब्दों में समझाने की कोशिश करें। हो सकता है इसकी तैयारी आपको पहले से करनी पड़े। शर्मीले बच्चों को उनकी खोल से निकालने के लिए उन्हें अपने साथ किसी क्लब में या बच्चों के ग्रुप में खेलने ले जाएं। शर्मीले बच्चे धीरे रिएक्ट करते हैं। लेकिन अपना काम बखूबी करते हैं। उनको स्पेस दें और उनके काम की तारीफ करें। आप जितना समय उनके साथ बिताएंगी, वे दूसरों के साथ उतनी जल्दी सहज होते जाएंगे।
हाइपर एक्टिव बच्चे को हर वक्त किसी काम में लगाएं। उनको एक दिन पहले ही दूसरे दिन के काम के बारे में बता दें। कभी बागवानी, तो कभी क्राफ्ट, कभी पेंटिंग तो कभी खेल-कूद। इन बच्चों को अगर चुपचाप घर बैठने को कहेंगी, तो ये तोड़-फोड़ मचाना शुरू कर देंगे। इनकी एनर्जी सही जगह पर लगाएं। वैसे हाइपर बच्चे जल्दी ही किसी काम से बोर भी हो जाते हैं, पर जो भी काम करते हैं, दिल से करते हैं। झूठ बोलने वाले या ज्यादा गपबाजी करने वाले बच्चे अपनी दुनिया के शहंशाह होते हैं। इनकी बातों पर बहुत ध्यान ना दें, ना ही गंभीरता से लें। अगर आप रस लेकर उनकी बातें सुनेंगी, उनकी बातों को चटखारे लेकर दूसरों को बताएंगी, तो उनकी यह आदत बढ़ती जाएगी। बात-बात पर रोने वाले या घबरा जाने वाले बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है। घर का माहौल अगर स्वस्थ नहीं है, कोई बीमार है, झगड़ा ज्यादा होता है या पैसे की तंगी है, तो बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होने लगती है। बच्चे पर इनका असर ना पड़ने दें। बच्चे को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उसकी स्कूल की फीस कितनी है, उसे घर और स्कूल में पढ़ाई का माहौल चाहिए। वह ऐसे लोगों के बीच रहना चाहता है, जहां वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करता हो।
शिवानी बचपन में खासी जिद्दी थी। खाना खाने के नाम पर बिस्तर के नीचे घुस जाती। मां और दादी को खूब चिरौरी करके उसे खाना खिलाना पड़ता। अगर उसका स्कूल यूनिफॉर्म जरा सा भी मैला होता, तो वह स्कूल ही जाने से इनकार कर देती। चोटियों की रिबन एक लेवल पर बंधी होनी चाहिए, शूज के लेस अगर उन्नीस-बीस भी बंधे होते, तो वह खड़े-खड़े रोने लगती। शिवानी ने बाद के दिनों में अपनी जिद पर काबू पा लिया। खासकर जब उसकी बेटी रूही हुई, तो उसे लगा कि वह भी उसी की तरह जिद्दी होगी। पर नहीं। रूही जिद्दी नहीं थी, पर अपनी मां की तरह चुप नहीं बैठती थी। तरह-तरह की कहानियां बनाने का गजब का शौक था रूही को। एक दिन अपनी टीचर से कह आई कि मेरी मां रात को परी लोक चली जाती है और सुबह लौट कर आती है। उसने टीचर से यह भी कहा कि उसके घर में एक राक्षस रहता है। टीचर ने शिवानी को बुलवाया और जब उसे रूही की कहानी के बारे में बताया, तो शिवानी चौंक गई। स्कूल के बाल मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉक्टर सी.के. चंद्रा ने बताया कि हर बच्चा अलग होता है। यह जरूरी नहीं कि वह अपने पेरेंट्स की तरह हो। इसलिए हर बच्चे की परवरिश अलग तरह से होनी चाहिए। पेरेंटिंग का वैसे भी कोई तयशुदा फॉर्मूला नहीं होता। अगर बच्चा जिद्दी है, एग्रेसिव है, शर्मीला है या खाने से जी चुराता है, उसे समझाने के लिए आप एक तरह का रवैया नहीं अपना सकते। सीनियर साइकोलॉजिस्ट डॉं. मधुमती सिंह कहती हैं, ‘आप अपने बच्चे को सबसे अच्छा जानती हैं। आपको पता है कि वह किस बात पर रोता है, किस बात पर हंसता है। उसकी जरूरतें क्या हैं, उसका आई क्यू लेवल क्या है? उसी आधार पर आपको उनकी परवरिश करनी चाहिए। अगर आपका बच्चा सेंसिटिव है, जल्दी बुरा मान जाता है, घबरा जाता है, रोने लगता है, तो आप अगर उसके साथ सख्ती बरतेंगी, उसे किसी काम को जबरन करने को कहेंगी, तो वह अपनी खोल में सिमट जाएगा।’ जरूरी बात तो यह है कि आप अपने बच्चे को वह जैसा है, वैसा ही अपनाएं। उसके मूल स्वभाव को बदलने की कोशिश ना करें। नौ साल की रंजिनी अच्छा गाती थी, पर दूसरों के सामने गाते समय वह हकलाने लगती थी। रंजिनी की मम्मी पायल चाहती थी कि उसकी बेटी संगीत के रियलिटी शो का हिस्सा बने। रंजिनी स्टेज पर पहुंच कर हकलाने लगी और जज ने उसका मजाक बना दिया। इस घटना का रंजिनी पर इतना बुरा असर पड़ा कि वह डिप्रेशन का शिकार हो गई। वह अब किसी से भी बिना हकलाए बोल नहीं पाती। डॉंक्टर मधुमती कहती हैं, ‘पेरेंट्स अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे से करते हैं। यह गलत है। बच्चों से उस बात की अपेक्षा करिए, जो उनकी पहुंच के अंदर हो। किसी भी तरह का अनावश्यक दबाव उन्हें या तो विद्रोही बना देता है या दब्बू।’ आपका बच्चा कैसे है खास?
जब पहली बार अपने मुंह से वह मां कहता है, आपकी जिंदगी बदल जाती है। आपको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका बच्चा कैसा दिखता है, आपके लिए वह संसार का सबसे अनमोल रत्न है।
हर बच्चे की जरूरत अलग होती है। आपका बेटा दिन में सिर्फ दो बार दूध पीता है, बेटी चार बार पीती है। बेटा साइंस में कमजोर है और बेटी को भाषा संबंधी दिक्कतें ज्यादा होती हैं। उनकी जरूरतों और पसंद के हिसाब से आपको उनके भविष्य की तैयारी करनी होगी।
दस साल तक के बच्चे लगभग हर बात के लिए पेरेंट्स पर निर्भर करते हैं और सबसे ज्यादा विश्वास अपने माता-पिता पर ही करते हैं। बच्चों के साथ ये कभी ना करें
मनोवैज्ञानिक चिकित्सक डॉं.रमेश भंडारकर के अनुसार हर माता-पिता को इन पांच बातों से बचना चाहिए... बच्चों की छोटी से छोटी समस्या की अनदेखी ना करें। हो सकता है वह आपको अपने से जुड़ी कोई बड़ी बात बताना चाह रहा हो।
आपका बच्चा आपकी जिंदगी में रोशनी का काम करता है। पर आप उसका इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए ना करें। आपका सपना आपका है, बच्चे का नहीं। अगर आप डॉंक्टर नहीं बन पाए, तो बच्चे को इसके लिए फोर्स ना करें। वह अगर बनना चाहता है, उसकी दिलचस्पी है, तो उसे आगे बढमने में मदद करें।
अपने रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए बच्चों से राजनीति ना करवाएं। बच्चे को घर में दूसरे रिश्तेदारों के खिलाफ ना भडम्काएं। वे इससे कन्फ्यूज्ड हो जाते हैं और अपना संतुलन खो देते हैं।
बच्चे की सीमा को जानें। उस पर सीमा से आगे बढ़ने का दबाव ना डालें।
अगर आपके बच्चे को कोई तन या मन से जुड़ी समस्या है, तो उसे स्वीकार करें। बच्चे बहुत सेंसिटिव होते हैं और मां-पिता की बेचारगी भांप लेते हैं। पांच बातें जरूर रखें याद
अगर आपका बच्चा पढ़ाई से जी चुराता है, तो निश्चित ही वह ट्य़ूशन जाने से भी बचेगा। सबसे पहले यह जानने की कोशिश कीजिए कि उसे पढ़ना क्यों नहीं पसंद? कहीं वह डिस्लेक्सिक या स्लो लर्नर तो नहीं? अगर नहीं, तो वह जब पढ़ने बैठे तो उसके साथ बैठें और उसे आसान शब्दों में समझाने की कोशिश करें। हो सकता है इसकी तैयारी आपको पहले से करनी पड़े। शर्मीले बच्चों को उनकी खोल से निकालने के लिए उन्हें अपने साथ किसी क्लब में या बच्चों के ग्रुप में खेलने ले जाएं। शर्मीले बच्चे धीरे रिएक्ट करते हैं। लेकिन अपना काम बखूबी करते हैं। उनको स्पेस दें और उनके काम की तारीफ करें। आप जितना समय उनके साथ बिताएंगी, वे दूसरों के साथ उतनी जल्दी सहज होते जाएंगे।
हाइपर एक्टिव बच्चे को हर वक्त किसी काम में लगाएं। उनको एक दिन पहले ही दूसरे दिन के काम के बारे में बता दें। कभी बागवानी, तो कभी क्राफ्ट, कभी पेंटिंग तो कभी खेल-कूद। इन बच्चों को अगर चुपचाप घर बैठने को कहेंगी, तो ये तोड़-फोड़ मचाना शुरू कर देंगे। इनकी एनर्जी सही जगह पर लगाएं। वैसे हाइपर बच्चे जल्दी ही किसी काम से बोर भी हो जाते हैं, पर जो भी काम करते हैं, दिल से करते हैं। झूठ बोलने वाले या ज्यादा गपबाजी करने वाले बच्चे अपनी दुनिया के शहंशाह होते हैं। इनकी बातों पर बहुत ध्यान ना दें, ना ही गंभीरता से लें। अगर आप रस लेकर उनकी बातें सुनेंगी, उनकी बातों को चटखारे लेकर दूसरों को बताएंगी, तो उनकी यह आदत बढ़ती जाएगी। बात-बात पर रोने वाले या घबरा जाने वाले बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है। घर का माहौल अगर स्वस्थ नहीं है, कोई बीमार है, झगड़ा ज्यादा होता है या पैसे की तंगी है, तो बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होने लगती है। बच्चे पर इनका असर ना पड़ने दें। बच्चे को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उसकी स्कूल की फीस कितनी है, उसे घर और स्कूल में पढ़ाई का माहौल चाहिए। वह ऐसे लोगों के बीच रहना चाहता है, जहां वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करता हो।
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