Sunday, 7 July 2013

फिल्म रिव्यू: यमला पगला दीवाना-2 (2स्टार)

मुंबई। आदरणीय धरम जी, अभी-अभी 'यमला पगला दीवाना 2' देख कर लौटा हूं। मैं मर्माहत और दुखी हूं। इस फिल्म की समीक्षा लिखना बड़ी चुनौती है। फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके बारे में कुछ सकारात्मक लिखा जा सके। 'यमला पगला दीवाना 2' इस दशक की एक कमजोर फिल्म है। अफसोस की बात है कि यह देओल परिवार से आई है। इस फिल्म में आप की बहू लिंडा और पोते करण का भी सृजनात्मक योगदान है। इस पारिवारिक उद्यम से अपेक्षाएं बढ़ गई थीं। मुझे उम्मीद थी कि कम से कम 'यमला पगला दीवाना' जैसी दीवानगी और मस्ती तो दिखेगी। इस फिल्म ने निराश किया। इस फिल्म से बेहतरीन कोशिश भी समीर कर्णिक की।
Yamla Pagla Deewana
Yemla Pagla diwana
दशकों से मेरी तरह करोड़ों दर्शक आप की फिल्में देखते हुए बड़े हुए हैं। याद करने बैठें तो आप की अनगिनत फिल्मों की मनोरंजक खुमारी आज भी तारी है। निश्चित ही हिंदी फिल्मों में आप के योगदान को ढंग से रेखांकित नहीं किया गया है। अभी तक आपका देय आप को नहीं मिला है, लेकिन 'यमला पगला दीवाना 2' जैसी फिल्में आप के मेरे जैसे दर्शकों और प्रशंसकों को आहत करती हैं। चुभती है 'यमला पगला दीवाना 2' जैसी मुनाफे की अफरा-तफरी। उफ्फ,52-53 सालों के बाद धर्मेन्द्र को हम किस रूप और अवतार में देख रहे हैं? अपनी ही प्रोडक्शन कंपनी से वे ऐसी साधारण फिल्म लेकर क्यों आए? इसमें आप तीनों की मौजूदगी और भी खलती है। 'अपने' और 'यमला पगला दीवाना' फिर भी एक हद तक स्तरीय भावनात्मक और कॉमिकल कोशिश थी। 'यमला पगला दीवाना 2' लाभ से प्रेरित है,फिर भी देआल परिवार का लाभान्वित नहीं करती।
'यमला पगला दीवाना 2' देखते हुए किरदारों और स्थितियों से अधिक उस उद्देश्य और इरादे पर हंसी आई, जिसकी वजह से आनन-फानन में यह फ्रेंचाइजी लाई गई। इरादा स्पष्ट था कि सफल फिल्म, देओल परिवार और कॉमेडी की त्रिवेणी से एक मुनाफेदार फिल्म बनाई जाए। हो सकता है 'यमला पगला दीवाना 2' से मुनाफा हो, लेकिन यकीनन आप तीनों घाटे में रहेंगे। सम्मान, प्रतिष्ठा और योगदान में घाटा होगा। इस बार देओल परिवार ने अपने नाम का ही बट्टा लगा दिया। एक साधारण सी फिल्म के धुआंधार प्रचार के समय भी क्या फिल्मों के जानकार के हैसियत से आप तीनों ने विचार नहीं किया कि क्या परोसने जा रहे हैं?
हिंदी सिनेमा का लोकप्रिय हिस्सा लगातार गर्त में जा रहा है। 100 करोड़ यानी 1 अरब की कमाई के पीछे सभी बेसुध हैं। यही बेसुधी 'यमला पगला दीवाना 2' में भी दिख रही है। सिनेमा कहीं पीछे छूट गया है और व्यवसाय हावी हो गया है। निश्चित ही सिनेमा व्यावसायिक कलात्मक उद्यम है। व्यवसाय होना भी चाहिए, लेकिन उसके लिए क्या अपने करिअर के हासिल को भी ताक पर रखा जा सकता है?
'यमला पगला दीवाना 2' एक साधारण फिल्म है। कहानी, संवाद, दृश्य संयोजन, फोटोग्राफी, एक्शन सभी क्षेत्रों में जल्दबाजी और फौरी तरीके से काम किया गया है। आप तीनों की प्रतिभा भी इस कमजोर फिल्म को नहीं बचा सकी। माफ करें, इस बार सनी देओल का मुक्का भी फिल्म को नहीं संभाल सका।
अंत में इतना ही कि आप तीनों इस फिल्म का स्वयं मूल्यांकन करें और अगली सामूहिक कोशिश पर पुनर्विचार करें। मेरी उम्मीदें नहीं चूकी हैं। बेहतर फिल्म की प्रतीक्षा रहेगी।
आपका,

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