Fukrey.. film |
बेरोजगार युवकों की कहानी हिंदी फिल्मों के लिए नई नहीं रह गई है। पिछले कुछ सालों में अनेक फिल्मों में हम इन्हें देख चुके हैं। मृगदीप सिंह लांबा ने इस बार दिल्ली के चार युवकों को चुना है। निठल्ले, आवारा और असफल युवकों को दिल्ली में फुकरे कहते हैं। 'फुकरे' में चार फुकरे हैं। उनकी जिंदगी में कुछ हो नहीं रहा है। वे जैसे-तैसे कुछ कर लेना चाहते हैं। सफल और अमीर होने के लिए वे शॉर्टकट अपनाते हैं, लेकिन अपनी मुहिम में खुद ही फंस जाते हैं। उनकी मजबूरी और बेचारगी हंसाती है। पंडित जी की मक्कारी और भोली पंजाबन की तेजाबी चालाकी फुकरों की जिंदगी को और भी हास्यास्पद बना देती है।
फिल्म के दो किरदार लाली और जफर शुरू में अपनी कोशिशों में नाकामयाब होते हैं। उनके प्रति हमार सहानुभूति बनती है, लेकिन हनी और चूचा तो बेशर्म और चालाक हैं। उनकी बेवकूफियों पर तरस नहीं आता। मजेदार है कि फिल्म एक घटनाओं में चारों किरदारों के मिल जाने के बाद हमें चारों की कामयाबी जरूरी लगने लगती है। लेखकों ने बहुत खूबसूरती से इन चरित्रों को घटनाओं में डालकर हमारी संवेदना जागृत कर दी है। फिर उनका निकम्मापन भी हमें बुरा नहीं लगता। हम उन्हें सफल होते देखना चाहते हैं।
'फुकरे' एक सीधी सी कहानी पर नहीं चलती। इसमें घटनाओं और प्रसंगों की अद्भुत गति है। फिल्म के कई दृश्यों में जबरदस्त हंसी आती है। नए किस्म की यह कॉमेडी हिंदी फिल्मों को नया विस्तार और आयाम देती है। चारों अभिनेताओं ने अपने किरदारों को संयत तरीके से निभाया है। वरुण और मनजोत थोड़े ज्यादा अच्छे दिखते हैं। फिल्म को पंकज त्रिपाठी और रिचा चड़्ढा के अभिनय से मजबूती मिली है। दोनों ही कलाकार जबरदस्त फॉर्म में हैं। वे अपने परफारमेंस से फिल्म के प्रभाव को बढ़ाते हैं।
suuperb film,,,
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