प्रमुख कलाकार : रनवीर सिंह, सोनाक्षी सिन्हा
निर्देशक : विक्रमादित्य मोटवानी
निर्माता : एकता कपूर, शोभा कपूर, अनुराग कश्यप, विकास बहल, मधु मटेंना, विक्रमादित्य मोटवानी
संगीत : अमित त्रिवेदी
स्टार : 4.5
आप किसी भी पहलू से 'लुटेरा' का उल्लेख करें। आप पाएंगे कि चाहे-अनचाहे उसकी मासूमियत और कोमलता ने आप को भिगो दिया है। इस प्रेम कहानी का धोखा खलता जरूर है,लेकिन वह छलता नहीं है। विक्रमादित्य मोटवानी ने अमेरिकी लेखक ओ हेनरी की कहानी 'द लास्ट लीफ' का सहारा अपनी कहानी कहने के लिए लिया है। यह न मानें और समझें कि 'लुटेरा' उस कहानी पर चित्रित फिल्म है। विक्रम छठे दशक के बंगाल की पृष्ठभूमि में एक रोचक और उदास प्रेम कहानी चुनते हैं। इस कहानी में अवसाद भी है,लेकिन वह 'देवदास' की तरह दुखी नहीं करता। वह किरदारों का विरेचन करता है और आखिरकार दर्शक के सौंदर्य बोध को उष्मा देता है। अपनी दूसरी फिल्म में ही विक्रम सरल और सांद्र निर्देशक होने का संकेत देते हैं। ठोस उम्मीद जगाते हैं।
फिल्म बंगाल के माणिकपुर में दुर्गा पूजा के समय के एक रामलीला के आरंभ होती है। बंगाली परिवेश,रोशनी और संवादों से हम सीधे बंगाल पहुंच जाते हैं। विक्रम बहुत खूबसूरती से बगैर झटका दिए माणिकपुर पहुंचा देते हैं। फिल्म की नायिका पाखी रायचौधरी (सोनाक्षी सिन्हा)को जिस तरह उसके पिता वात्सल्य के साथ संभाल कर कमरे में ले जाते हैं,लगभग वैसे ही दर्शकों को संभालते हुए विक्रम अपनी फिल्म में ले आते हैं। आप भूल जाते हैं कि थोड़ी देर पहले थिएटर में आने के समय तक आप 2013 की यातायात समस्याओं को झेल रहे थे। याद भी नहीं रहता कि आप की जेब में मोबाइल है और आप को बेवजह देख लेना चाहिए कि कहीं कोई मैसेज तो नहीं आया है।
फिल्म सीधे बंगाल की धरती पर विचरती है। हम इस समाज और इसके किरदारों को सत्यजित राय की अनेक फिल्मों में देख चुके हैं। विक्रम यहां सत्यजित राय की शैली का युक्तिपूर्ण और सामयिक इस्तेमाल कर अपने किरदारों को पेश कर देते हैं। फिर उनके हिंदी संवादों से हम हिंदी फिल्मों की सिनेमाई दुनिया में आ जाते हैं। 'लुटेरा' का पीरियड और परिवेश चुभता नहीं है। निश्चित ही इसके लिए फिल्म के प्रोडक्शन डिजायनर और कॉस्ट्यूम डिजायनर समत अन्य तकनीशियनों को भी धन्यवाद देना होगा कि उनकी काबिलियत से यह फिल्म संपूर्णता को छूती नजर आती है।
फिल्म में पाखी के पिता भीलों के राजा की कहानी सुनाते हैं,जिसकी जान तोते में बसती थी। पाखी की जान का रिश्ता पत्ती से बन जाता है। फिल्म का यह रोचक दृष्टांत है। पाखी के शांत और सुरम्य जीवन में किसी मोहक राजकुमार की तरह वरूण (रनवीर सिंह) प्रवेश करता है। अचानक पाखी के मन की की थिर झील में हिलोरें उठने लगती हैं। भावनाओं की कोमल कोपलें फूटती हैं। वरूण भी इस प्रेम को स्वीकार करता है। पाखी के पिता को भी वरूण अपनी बेटी के लिए होनहार और उपयुक्त लगता है।
दोनों के परिणय सूत्र में बंधने-बांधने की तैयारियां शुरू होती हैं कि ़ ़ ़इस कि के बाद फिल्म मोड़ लेती है। यहां से विक्रम कहानी और चरित्रों को अलग दिशा और उठान में जाते हैं। उन्होंने दोनों प्रमुख कलाकारों के साथ बाकियों को भी हुनर दिखाने के अवसर दिए हैं।
Lootera movie review |
पाखी के जमींदार पिता के रूप में बरूण चं
फिल्म के गीत-संगीत और सिनेमैटोग्राफी का जिक्र होना ही चाहिए। अमित त्रिवेदी और अमिताभ भट्टाचार्य की जोड़ी ने भावपूर्ण और परिवेशात्मक संगीत देता है। केवल मोनाली ठाकुर के स्वर में 'संवार' की 'सवार' ध्वनि खलती है। फोटोग्राफी में महेंद्र शेट्टी के सटीक एंगल और विजन से फिल्म की खूबसूरती बढ़ गई है। और हां फिल्म के निर्माताओं को धन्यवाद कि उन्होंने ऐसे विध्वंयात्मक मनोरंजन के दौर में विक्रमादित्य की सोच को संबल दिया।
अवधि-187 मिनट
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