नागपुर। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बलात्कार पीडिताओं के इलाज को लेकर नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी अस्पतालों से कहा है कि पीडिताओं के मेडिकल और फोरेंसिक परीक्षणों के लिए अलग से कमरें बनाएं।
मंत्रालय ने रेप पीडिताओं के टू फिंगर टेस्ट को गैर कानूनी करार दिया है। मंत्रालय ने कहा कि यह अवैज्ञानिक है। डॉक्टरों से बलात्कर शब्द इस्तेमाल नहीं करने को कहा गया है क्योंकि यह कानूनी परिभाषा है। दिशानिर्देशों में साफ कहा गया है कि मेडिकल जांच के वक्त डॉक्टर और पीडिता के अलावा तीसरा व्यक्ति कमरे में नहीं होना चाहिए। अगर डॉक्टर पुरूष है तो वहां महिला होनी चाहिए।
पहले बलात्कार पीडिताओं की जांच केवल पुलिस के कहने पर होती थी लेकिन अब ऎसी नहीं होगा। अगर पीडिता अस्पताल जाती है तो बिना प्राथमिकी के भी डॉक्टरों को उसकी जांच करनी होगी। डॉक्टरों को पीडिता को जांच के तरीके और विभिन्न प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी देनी होगी। जानकारी ऎसी भाषा में देनी होगी जिसे मरीज आसानी से समझ सके।
विशेषज्ञों की मदद लेकर स्वास्थ्य शोध विभाग (डीएचआर)ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च(आईसीएमआर)के साथ मिलकर आपराधिक हमलों से जुड़े मामलों को डील करने के लिए राष्ट्रीय दिशानिर्देश तैयार किए है। उम्मीद की जा रही है कि इनसे भयानक मेडिकल प्रोसेस खत्म हो जाएगा।
यौन शोषण का शिकार होने के बाद भी पीडिताओं को मेडिकल परीक्षणों के नाम पर प्रताडित होना पड़ता है। डीएचआर ने यौन हिंसा के मानसिक और सामाजिक प्रभावों से निपटने के लिए नई नियमावली बनाई है। इसमें काउंसलिंग का प्रावधान शामिल है जिससे पीडिताओं के दुख को कम किया जा सके। नई गाइडलाइंस उन हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स पर उपलब्ध होगी जो यौन हिंसा की पीडिताओं के लिए काम करते हैं।
आईसीएमआ के महानिदेशक डॉ.एमवी.कटोच ने नवंबर 2011 में लिंग एवं स्वास्थ्य पर विशेषज्ञों का समूह गठित किया था। नए दिशानिर्देश बनाए के लिए डॉक्टर एम.ई.खान(यौन हिंसा एवं अनुसंधान पहल के सचिव)की अध्यक्षता में यह समूह गठित किया गया था ताकि जब रेप विक्टिम प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र या जिल अस्पताल में पहुंचे तो इन निर्देशों का पालन किया जाए।
इसके बाद क्लीनिकल फोरेंसिक मेडिकल यूनिट प्रभारी इंद्रजीत खांडेकर को ये दिशानिर्देश तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई। दिशानिर्देश लोगों और विशेषज्ञों को उपलब्ध कराए गए और उनकी राय ली गई। 16 दिसंबर 2013 को इन्हें जारी किया गया।
मंत्रालय ने रेप पीडिताओं के टू फिंगर टेस्ट को गैर कानूनी करार दिया है। मंत्रालय ने कहा कि यह अवैज्ञानिक है। डॉक्टरों से बलात्कर शब्द इस्तेमाल नहीं करने को कहा गया है क्योंकि यह कानूनी परिभाषा है। दिशानिर्देशों में साफ कहा गया है कि मेडिकल जांच के वक्त डॉक्टर और पीडिता के अलावा तीसरा व्यक्ति कमरे में नहीं होना चाहिए। अगर डॉक्टर पुरूष है तो वहां महिला होनी चाहिए।
पहले बलात्कार पीडिताओं की जांच केवल पुलिस के कहने पर होती थी लेकिन अब ऎसी नहीं होगा। अगर पीडिता अस्पताल जाती है तो बिना प्राथमिकी के भी डॉक्टरों को उसकी जांच करनी होगी। डॉक्टरों को पीडिता को जांच के तरीके और विभिन्न प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी देनी होगी। जानकारी ऎसी भाषा में देनी होगी जिसे मरीज आसानी से समझ सके।
विशेषज्ञों की मदद लेकर स्वास्थ्य शोध विभाग (डीएचआर)ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च(आईसीएमआर)के साथ मिलकर आपराधिक हमलों से जुड़े मामलों को डील करने के लिए राष्ट्रीय दिशानिर्देश तैयार किए है। उम्मीद की जा रही है कि इनसे भयानक मेडिकल प्रोसेस खत्म हो जाएगा।
यौन शोषण का शिकार होने के बाद भी पीडिताओं को मेडिकल परीक्षणों के नाम पर प्रताडित होना पड़ता है। डीएचआर ने यौन हिंसा के मानसिक और सामाजिक प्रभावों से निपटने के लिए नई नियमावली बनाई है। इसमें काउंसलिंग का प्रावधान शामिल है जिससे पीडिताओं के दुख को कम किया जा सके। नई गाइडलाइंस उन हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स पर उपलब्ध होगी जो यौन हिंसा की पीडिताओं के लिए काम करते हैं।
आईसीएमआ के महानिदेशक डॉ.एमवी.कटोच ने नवंबर 2011 में लिंग एवं स्वास्थ्य पर विशेषज्ञों का समूह गठित किया था। नए दिशानिर्देश बनाए के लिए डॉक्टर एम.ई.खान(यौन हिंसा एवं अनुसंधान पहल के सचिव)की अध्यक्षता में यह समूह गठित किया गया था ताकि जब रेप विक्टिम प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र या जिल अस्पताल में पहुंचे तो इन निर्देशों का पालन किया जाए।
इसके बाद क्लीनिकल फोरेंसिक मेडिकल यूनिट प्रभारी इंद्रजीत खांडेकर को ये दिशानिर्देश तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई। दिशानिर्देश लोगों और विशेषज्ञों को उपलब्ध कराए गए और उनकी राय ली गई। 16 दिसंबर 2013 को इन्हें जारी किया गया।
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