Friday 27 December 2013

मां-बेटी का रिश्ता है यह सबसे खास

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मां, बेटी की हर जरूरत को समझती है। उसकी परेशानियां, खुशियां, इच्छाओं को भला मां से बे हतर कौन जानेगा? पर ऐसा नहीं है कि बेटी इस मामले में कहीं पीछे हैं। वे भी मां की परछाई ही होती हैं। मां का सबसे ज्यादा ख्याल बेटी ही रखती है। दरअसल ये एक ऐसा बंधन है, जो प्यार की कभी न टूटने वाली डोर से बंधा है। हालांकि कभी-कभी कुछ बातें इस रिश्ते में दूरियां ला सकती हैं, पर ये दूरियां ज्यादा दिनों की नहीं होतीं। बस जरूरत है दोनों को कुछ बातों का ध्यान रखने की-
माएं ये ध्यान रखें 1. आप पढ़ाई में अव्वल रही होंगी, पर बेटी को अपना उदाहरण देकर उसके मन में असंतोष को जन्म न दें। उसकी कक्षा की कुछ लड़कियां भी उससे पढ़ाई में आगे हो सकती हैं, उनसे तुलना न करें। हर बच्चा अपने में असाधारण हैं। तुलना उसके मन में नाराजगी और कुंठा को जन्म दे सकती है। 2. सिर्फ पढ़ाई पर जोर नहीं होना चाहिये। उसके व्यक्तित्व के बहुआयामों को समझने के लिये उसे हर विधा आजमाने का मौका जरूर दें। नृत्य, संगीत, कला, खेल। आप तो उसके अंदर छुपे कलाकार से चमत्कृत हो ही जाएंगी, आप उसे भी अनगिनत खुशियां दे पाएंगी। 3. उसकी भी समस्याएं हैं, पर समस्याओं को समस्या कहकर न पूछें। ‘आज क्या-क्या हुआ’ पूछ कर आप पूरे दिन की जानकारी रुचिपूर्वक सुनें। इतना थोड़ा सा समय देकर आप शायद उसकी सबसे अच्छी मित्र बन जाती हैं। साथ ही मित्रों से, टीचर्स के साथ आप उसके रिश्तों को भी पहचान पाती हैं, जो आज बहुत जरूरी है। यदि बच्चों की पूरी दिनचर्या को मां एकाग्रचित्त हो कर सुनें तो कई बार उनके बाल जीवन की परेशानियों और संभावित दुर्घटनाओं को रोक सकती हैं। 4. बेटी से नाराज होकर कभी भी सार्वजनिक स्थल पर या घर के अंदर भी अतिथियों के सामने उस पर अपना रोष व्यक्त न करें। आप उसे अपनी नाराजगी का अहसास फिर कभी करवा सकती हैं, जैसे बातचीत सीमित करके या स्पष्ट रूप से, पर शांतिपूर्वक अपनी बात कहकर। 5. आपका दिमाग कभी-कभी बड़ा अशांत हो उठता है, घर या बाहर की परिस्थितियों से। अपनी परिस्थितियों में घुटिये नहीं, बल्कि बिटिया को साझी बनाइये। परिस्थितियां बदल तो नहीं जाएंगी, पर उसका साथ आपमें एक नई हिम्मत और ऊर्जा देगा। बेटी के लिये मां से ऊंचा कोई दूसरा आदर्श नहीं होता, इसलिए मां को कभी भी स्थितियों से हार नहीं माननी चाहिये, क्योंकि वही संदेश आपकी बेटी ग्रहण करेगी। आपका दृष्टिकोण ही उसका जिन्दगी के प्रति नजरिया तय करेगा। बेटी का फर्ज है ये.. 1. मां, घर में रहें या बाहर, वह दिन भर काम ही करती हैं। ऐसे में यदि बिटिया अपने हाथों से मां को चाय की प्याली या जूस का गिलास पकड़ाए, तो मां का मन खुश हो उठता है। 2. आपको स्कूल में या कॉलेज में एक वातावरण मिलता है, उसका अपना असर होता है, जबकि घर में मां कुछ दूसरी बात कहती नजर आती है, ऐसे में सामंजस्य मुश्किल हो जाता है। पर ध्यान रहे कि मां के ऊपर आप अपना गुस्सा न निकालें। मां को समझाइये कि क्यों आप मां का चाहा या सोचा नहीं कर पा रहीं। ज्यादा उम्मीद है कि मां आपकी बात समझ जाये और अपनी इच्छा न मनवाये। 3. कभी-कभी मां को ऑरगेनाइज होने में मदद करिए। यदि मां की छोटी-छोटी चीजें उनके डॉक्युमेन्ट्स आप संभाल कर फोल्डर में रख दें और मां को उनकी याद दिला दें, तो मां को बहुत तसल्ली और सुकून मिलेगा। 4. अपनी समस्यायें, उलझनें मां से कभी न छुपायें। मां भी तो उम्र के इस दौर से गुजर चुकी हैं, जिससे आप गुजर रही हैं। जिंदगी से तब वो कैसे रूबरू हुई थीं, आप उनके अनुभवों से सीख सकती हैं। मां को यदि आपने सब बातों से वाकिफ रखा, तो कोई समस्या या व्यक्ति आपको परेशानी में नहीं डाल सकता। 5. मां को उनके बीते दिनों की याद ताजा करवायें। उनके पुराने मित्रों के फोन नम्बर खोज कर मां को दें। गुजरे हुये दिन शायद मां के सबसे अच्छे दिन रहे हों। मां को भी अहसास होगा कि उसकी बिटिया उससे अलग नहीं, बल्कि उसकी प्रतिमूर्ति है, मन ही मन वह आपकी कृतज्ञ रहेगी और आपका यह कदम आप दोनों को और भी जोड़ेगा।

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