Saturday, 31 December 2011

2012 में होने वाली 10 अहम बातें




साल 2012 में दुनिया को परिवर्तन का इंतजार है। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलावों के दौर से गुजर रही दुनिया में इस साल भी कई बदलाव देखने को मिलेंगे। अमेरिका और चीन सहित कई देशों में नए मुखिया आ सकते हैं। भारत में भी राष्‍ट्रपति और उपराष्‍ट्रपति के चुनाव होंगे। विज्ञान और तकनीक की दुनिया में कई बड़ी खोज होने की उम्‍मीद हैं तो खेलों का महाकुंभ लंदन में आयोजित किया जा रहा है। आइए नजर डालते हैं ऐसी घटनाओं पर जिन पर पूरी दुनिया की निगाहें जमी रहेंगी। 

भारत में नया राष्‍ट्राध्‍यक्ष
जुलाई 2012 में देश में नए राष्ट्रपति होंगे और महीने भर बाद ही उपराष्ट्रपति पद पर भी कोई नया चेहरा होगा। चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार और रणनीति पर सबकी नजर रहेगी। सत्ता के गलियारों में कई सवाल घुमड़ रहे हैं। मसलन, क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शासनाध्यक्ष से राष्ट्राध्यक्ष की ओर कदम बढ़ाएंगे? क्या वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी सर्वोच्च संवैधानिक आसन की शोभा बढ़ाने को तैयार हो जाएंगे? क्या बेहद सादगी पसंद रक्षा मंत्री एके एंटनी राष्ट्रपति बनना पसंद करेंगे? क्या सुशील कुमार शिंदे अपना भाग्य आजमाएंगे? या उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी अपनी पदोन्नति की पुख्ता दावेदारी साबित कर देंगे? 

अगर प्रणब  या एंटनी को आगे बढ़ाने का मन बनाया जाता है तो केंद्रीय कैबिनेट का ढांचा भी आमूल-चूल बदल जाएगा। इसका असर कांग्रेस के अंदरूनी सत्तातंत्र पर भी पड़ेगा। लेकिन प्रणब दा के समर्थक ऐसी संभावना को सिरे से खारिज करते हैं। वैसे, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का भी रसूख अच्छा है। वे मुसलमान हैं और राज्यसभा के सभापति के नाते उन्होंने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है।
यूपी चुनावः राहुल गांधी की परीक्षा
साल 2011 राहुल गांधी को लेकर तमाम अटकलों के बीच बीता। 2012 में एक बार फिर सियासी मैदान में यक्ष प्रश्न शायद यही रहेगा कि, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की अगली भूमिका क्या होगी? क्या उनकी ताजपोशी का फैसला पांच राज्यों में आसन्न विधानसभा चुनाव की डगर से तय होगा? इनमें से उत्तर प्रदेश के चुनाव को राहुल ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाया है। वे रात दिन एक करके कांग्रेस की ‘सेहत’ और ‘किस्मत’ इस बड़े राज्य में संवारने की मशक्कत कर रहे हैं। हालांकि पार्टी में तमाम नेता मानते हैं कि चुनावी सियासत से इतर कांग्रेस के युवा महासचिव की अगली पारी का ताना बाना रचा जा चुका है, बस घोषणा के लिए सही समय का इंतजार है।
राहुल गांधी का बेधड़क अंदाज,पार्टी का मूड और उनकी कही हुई बातों पर सरकार के एक पांव पर खड़े होने की अदा से संदेश और निहितार्थ साफ भी है। वह यह कि, पार्टी और सरकार में उनके नेतृत्व को स्वाभाविक तौर पर स्वीकार किया जा चुका है। अब वे अपनी कथित ‘बड़ी भूमिका’ जिसे सरकार और पार्टी में उनके अगुवा होने के तौर पर परिभाषित की गई है, उसका वक्त भी शायद खुद ही तय करेंगे।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव
करीब साल भर के महंगे और थकाऊ चुनाव प्रचार के बाद 6 नवंबर 2012 को अमेरिका अपना नया राष्ट्रपति चुनेगा। साल 2011 की शुरुआत में ओबामा सशक्त उम्मीदवार लग रहे थे लेकिन आर्थिक मंदी ने उनकी उम्मीदों पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। अग्रणी रिपब्लिकन उम्मीदवार भी कोई खास मजबूत नहीं हैं। साल 2012 में अमेरिका में बेरोजगारी की दर 9 प्रतिशत रहने की आशंका है। 1940 के बाद यह किसी भी चुनाव वर्ष में सर्वाधिक होगी। यदि हालात 2011 से बेहतर नहीं हुए तो ओबामा की व्हाइट हाउस से विदाई तय है।


चीन में बदलेगा हाईकमान

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को साल 2012 में मुश्किल वक्त का सामना करना होगा। पिछले एक दशक में इसके सर्वोच्च नेतृत्व में सबसे बड़े बदलाव होंगे। हांगकांग का मुखिया और ताइवान की सरकार भी इसी साल तय की जाएगी। चीन में राजनीतिक बदलावों का देश की अर्थव्यस्था पर भी असर होगा। अक्टूबर में होने वाली पार्टी की 18वीं कांग्रेस में पार्टी की नई कोर कमेटी चुनी जाएगी जो 25 सदस्य पोलित ब्यूरो का चुनाव करेगी। लेकिन पिछले 20 साल में यह पहली बार होगा जब राष्ट्रपति हू जिंताओ और प्रधानमंत्री वेन जियावाओ इसका हिस्सा नहीं होंगे। आर्थिक तौर पर चीन आंशिक मुश्किलों का सामना करेगा। 2011 में चीन के जीडीपी की विकासदर 9 प्रतिशत रही है जो गिरकर 8.3 प्रतिशत तक आ सकती है।

लंदन ओलंपिक
2012 में लंदन में होने वाले ओलंपिक में विश्व के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी खेल की दुनिया में अपनी चमक बिखरने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं तो लंदन भी दुनिया को अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत से मंत्रमुग्ध करने के लिए खास तैयारियां कर रहा है। इसमें कोई शक नहीं है कि लंदन ओलंपिक 2012 साल का सबसे बड़ा ‘मेगा शो’ होगा। सोने का तमगा हासिल करने की होड़ में भारत भी है। ऐसे में 121 करोड़ भारतीयों की दुआओं के असर को देखना दिलचस्प होगा।


दिमाग को समझेगा इंसान

ब्रह्मांड की सबसे जटिल संरचना मानव मस्तिष्क को समझने के लिए मानव जाति साल 2012 में खास कोशिश करेगी। इस साल मस्तिष्क की अंदरूनी संरचना, नसों की वायरिंग और शरीर के अन्य हिस्सों से उनके संबंध को समझने के लिए ब्रैन मैपिंग की जाएगी। यह निश्चित तौर पर ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति को समझने का सबसे बड़ा प्रयास होगा। कौन क्या करने वाला है और भविष्य कैसा होगा यह जानना हमेशा ही दिलचस्प रहा है। मानव हमेशा भविष्य की योजनाएं बनाता रहा है कि लेकिन उसके व्यवहार की अनिश्चितता कई बार योजनाओं को गड़बड़ कर देती है। मानवीय संवेदनाओं, भावनाओं और उसके आगामी कदमों को समझने का प्रयास भी वैज्ञानिक साल 2012 में करेगा। यदि यह पता लगा लिया जाए कि कौन किस परिस्थिति में कैसे व्यवहार करेगा तो सटीक योजनाएं बनाना संभव हो पाएगा।
कैंसर का इलाज?
यदि मानवता के भाग्य ने साथ दिया तो साल 2012 में कैंसर को पूरी तरह समझा जा सकेगा, भले ही इसका पक्का इलाज न विकसित हो पाए। इस साल कैंसर को पूरी तरह समझने के प्रयास और आगे बढ़ सकेंगे। यदि मानवता ने इसे पूरी तरह समझ लिया तो इसका इलाज तक पहुंचना भी संभव हो ही जाएगा। उम्मीद की एक कारण यह भी है कि अब सस्ती और तीव्र जीन सीक्वेंसिग तकनीक यानि कैंसर जीनोम को अब ओद्योगिक स्तर पर भी बनाया जा सकता है। कैंसर के अब तक ज्ञात ५० प्रकार के ट्यूमर को समझने के लिए ब्रिटेन के कैंब्रिज से लेकर चीन के  शैनझेन तक जीन सीक्वेंसिग लैब्स साझा प्रयास करेंगी।

तकनीक का युद्ध
यह साफ है कि इंटरनेट पर सर्च में गूगल बादशाह है, सोशल नेटवर्किंग का ताज फेसबुक के सर है तो सामान बेचने में अमेजन का कोई सानी नहीं है। लेकिन अब भी सर्च, नेटवर्किंग और सेल के क्षेत्र में प्रतिद्वंदिता जारी है। माइक्रोसॉफ्ट का सर्च इंजन बिंग गूगल को टक्कर देने की कोशिश कर रहा है तो गूगल स्वयं सोशल नेटवर्किंग में फेसबुक को टक्कर दे रहा है। ये इंटरनेट में युद्ध के बड़े रणक्षेत्र हैं लेकिन साल 2012 में यह देखना दिलचस्प होगा कि तकनीक के युद्ध में मोबाइल पेमेंट, लोकेशन और ऑगुमेंटेड रियलटी (संवर्धित वास्तविकता) के क्षेत्र में कौन अपनी बादशाहत स्थापित करेगा। अभी इन्हें छोटा माना जा रहा है होगा लेकिन इंटरनेट की सच्चाई यह भी है कि सोशल नेटवर्किंग भी कभी इतना ही छोटा था और चंद सालों में ही यह सबसे बड़ा क्षेत्र बन चुका है। भारत में 2012 में भी सोशल मीडिया का भी बोलबाला रहेगा और साल के आखिर तक भारत दुनिया में फेसबुक का दूसरा सबसे बड़ा यूजर बेस बन जाएगा।

अफ्रीका में क्रांति
उत्तरी अफ्रीका में साल 2011 में हुई सफल क्रांति पर दक्षिण अफ्रीका में नजर रखी गई। इसी की तर्ज पर अफ्रीका के इस हिस्से में भी साल 2012 में विरोध प्रदर्शनों की योजनाएं बनाईं गई हैं। सहारा के इस क्षेत्र में सत्तावादी सामंतों का लंबे वक्त से गद्दी पर कब्जा रहा है। त्रिपोली, काहिरा और ट्यूनिस में प्रदर्शनकारियों की कामयाबी ने उगांडा के लोगों को भी हौसला दिया है। अंगोला और इक्वीटोरियल गिनी क्रांति के लिए तैयार हैं। प्रदर्शनों के लिए बहाने की जरूरत नहीं है। नौकरी, भुखमरी, गरीबी से तंग जनता का सड़कों पर आना तय है। डोमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, नाइजर, चाड, माली, नाइजीरिया, सुडान में भी साल 2012 में क्रांति की नई इबारत लिखी जा सकती है।
मीडिया
एओएल हफिंगटन पोस्‍ट मीडिया समूह की प्रेसिडेंट व एडिटर-इन-चीफ एरियाना हफिंगटन ने एक कांफ्रेंस में मीडिया, खास कर न्‍यू मीडिया के क्षेत्र में 2012 के लिए अपनी दो मुख्‍य भविष्‍यवाणी बताई हैं। उन्‍होंने कहा कि आज मीडिया के सामने सबसे ज्‍यादा संकट साख का है। ऐसे में एक किलर ऐप होना चाहिए जो किसी भी खबर की सत्‍यता उसी क्षण जांच सके। फिर उन्‍होंने 'आत्‍मा के लिए एक जीपीएस' की भविष्‍यवाणी की। उन्‍होंने इस बात की जरूरत यह कहते हुए बताई कि तकनीक ने एक-दूसरे से तो लोगों को जोड़ दिया है, लेकिन लोग अपने आप से कट गए हैं। एरियान ने कहा कि उनकी भविष्‍यवाणी हकीकत बन सके तो मीडिया के क्षेत्र में क्रांति आ सकती है। उन्‍होंने यह भी बताया कि न्‍यू मीडिया को अपना 'सोशल ग्राफ' विकसित करना चाहिए। पाठकों की पसंद-नापसंद को अपने स्‍तर पर आंकना चाहिए और उन्‍हें उसके मुताबिक कंटेंट देना चाहिए।

खत्म होगी दुनिया?
माया कैलेंडर को आधार बनाकर साल 2011 में धरती के मृत्युलेख कई बार लिखे जे चुके हैं। लोगों के फेसबुक अपडेट्स से लेकर अखबारों के संपादकीय तक में धरती के अस्तित्व के समाप्त होने पर मानवीय भावनाओं का खूब प्रदर्शन हुआ। किसी ने साल 2011 को अंतिम वर्ष मानकर जिया तो किसी ने इस पर चुटकुले गढ़ कर इसे भी मनोरंजन का जरिया बना लिया। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि माया कैलेंडर के मुताबिक 21 दिसंबर 2012 को धरती के विनाश की खबरों पर समाज के एक बड़े तबके ने यकीन भी किया। वैसे साल 2012 को जीवन का अंतिम साल समझकर जीना बहुत कुछ नया हासिल करने का कारण भी बन सकता है। आप तय कर लीजिए कि आप इस साल धरती का मृत्युलेख लिखेंगे या कामयाबी की नई इबारत।  

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