यूरो-जोन संकट और दुनिया की खस्ता होती अर्थव्यवस्था का दबाव अब भारत में साफतौर पर दिखने लगा है। मंदी की आहट तेज हो रही है। इसका सीधा असर कंपनियों के फायदे और उनसे जुड़े कर्मचारियों की किस्मत पर दिखने लगा है। कई निजी कंपनियों में कर्मचारियों की छंटनी अक्टूबर से ही शुरू हो गई है। इन कंपनियों में आईटी, टेलीकॉम जैसे बड़े पैमाने पर नौकरियां देने वाले सेक्टर शामिल हैं।
ऊंची ब्याज दरों, महंगाई, सरकार के स्तर पर फैसले न ले पाना और डॉलर के मुकाबले लगातार अपनी चमक खोता रुपया ऐसी प्रमुख वजहें हैं, जिससे जीडीपी पर नकारात्मक असर पड़ा है। विकास दर घटने का सीधा असर कंपनियों के कामकाज और उनकी आमदनी पर पड़ रहा है। ऐसे में कर्मचारियों की नौकरियों पर तलवार लटकनी शुरू हो गई है। हालांकि, इस बार हालात सितंबर, 2008 जितने बुरे नहीं हैं। लेकिन जानकार इस बात पर सहमत हैं कि यूरोप अपने कर्ज संकट से नहीं उबर पाता है और अमेरिकी अर्थव्यवस्था चरमराती है तो देश में कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी होगी। अभी देश में कुछ ही कंपनियों या बड़ी कंपनियों के कुछ विभागों में ही लोगों की नौकरियां जा रही हैं।
सीनियर पेशेवरों की ऑनलाइन जॉब सर्विस हेडहॉन्चोस.कॉम के सीईओ उदय सोढ़ी के मुताबिक, 'वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा असली है और इसका असर अर्थव्यवस्था के सभी सूचकों पर साफ दिखेगा, जिसमें नौकरी भी शामिल है।' हालांकि, सोढ़ी यह मानते हैं कि भारत में नौकरियों की संख्या घटेगी, लेकिन ऐसा नहीं होगा कि नौकरी मिलनी पूरी तरह से बंद हो जाएगी। सोढ़ी के मुताबिक, ' नौकरी के अवसरों में यह कमी आईटी, निर्माण क्षेत्र, वित्तीय कंपनियों के रिटेल का काम, खुदरा बाज़ार और एफएमसीजी जैसे सेक्टरों में देखी जा सकती है। हालांकि, राहत की बात यह है कि दवा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, शिक्षा और बुनियादी ढांचे जैसे सेक्टर इस मंदी का मुकाबला करेंगे और इन सेक्टरों में नौकरी के अवसरों पर बहुत कम असर पड़ने की उम्मीद है।'
वहीं, एक अन्य एक्सपर्ट राजेश ए.आर. का कहना है कि नौकरी के अवसरों में गिरावट बड़े शहरों (मेट्रो) में ज़्यादा होगी। जबकि ए और बी ग्रेड के शहरों में मंदी की नौकरियों पर मार कम होगी। राजेश ने बताया कि एफएमसीजी सेक्टर की कंपनियां ए और बी ग्रेड के शहरों में सेल्स और कस्टमर सपोर्ट स्टाफ को नौकरियां देंगी। इसके पीछे उनका तर्क है कि छोटे शहरों और कस्बों में मनरेगा जैसी योजनाओं के चलते लोगों के पास कम से कम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी है। राजेश के मुताबिक इन कस्बाई शहरों में मंदी का ज़्यादा असर नहीं पड़ेगा।
पर्पललीप नाम की कंपनी के सीईओ अमित बंसल का कहना है कि मझोली आईटी कंपनियां नौकरियों में कटौती करेंगी। लेकिन बडी़ आईटी कंपनियां जैसे विप्रो, टीसीएस और इन्फोसिस में ऐसा नहीं होगा क्योंकि उनका अपने ग्राहकों से लंबा करार है। बंसल ने कहा, 'मझोली आईटी कंपनियों में हमने देखा है कि वे नौकरी देने में सुस्ती दिखा रही हैं। ऐसी कंपनियों में 70 से 75 फीसदी नौकरी फ्रेशर को दी जाती है। अगर आर्थिक हालात खराब हुए तो इसी क्षेत्र में नौकरियां पर मार पड़ेगी।'
बंसल ने यह भी बताया कि इस साल मझोली आईटी कंपनियों ने करीब एक लाख फ्रेशर को नौकरी दी है। लेकिन अगर मंदी आई तो साल 2012 में इन नौकरियों में 30 फीसदी तक गिरावट आ सकती है। बंसल का मानना है कि नौकरियों में कमी आ रही है, लेकिन अभी यह छुपी हुई है। बंसल ने यह भी बताया कि हर साल के आखिर में मझोली आईटी कंपनियां अगले साल के लिए जरूरी कर्मचारियों में से करीब आधे को नौकरी देती हैं। उनके मुताबिक लेकिन इस आंकडे़ में भी करीब 15 से 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की जा रही है
ऊंची ब्याज दरों, महंगाई, सरकार के स्तर पर फैसले न ले पाना और डॉलर के मुकाबले लगातार अपनी चमक खोता रुपया ऐसी प्रमुख वजहें हैं, जिससे जीडीपी पर नकारात्मक असर पड़ा है। विकास दर घटने का सीधा असर कंपनियों के कामकाज और उनकी आमदनी पर पड़ रहा है। ऐसे में कर्मचारियों की नौकरियों पर तलवार लटकनी शुरू हो गई है। हालांकि, इस बार हालात सितंबर, 2008 जितने बुरे नहीं हैं। लेकिन जानकार इस बात पर सहमत हैं कि यूरोप अपने कर्ज संकट से नहीं उबर पाता है और अमेरिकी अर्थव्यवस्था चरमराती है तो देश में कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी होगी। अभी देश में कुछ ही कंपनियों या बड़ी कंपनियों के कुछ विभागों में ही लोगों की नौकरियां जा रही हैं।
सीनियर पेशेवरों की ऑनलाइन जॉब सर्विस हेडहॉन्चोस.कॉम के सीईओ उदय सोढ़ी के मुताबिक, 'वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा असली है और इसका असर अर्थव्यवस्था के सभी सूचकों पर साफ दिखेगा, जिसमें नौकरी भी शामिल है।' हालांकि, सोढ़ी यह मानते हैं कि भारत में नौकरियों की संख्या घटेगी, लेकिन ऐसा नहीं होगा कि नौकरी मिलनी पूरी तरह से बंद हो जाएगी। सोढ़ी के मुताबिक, ' नौकरी के अवसरों में यह कमी आईटी, निर्माण क्षेत्र, वित्तीय कंपनियों के रिटेल का काम, खुदरा बाज़ार और एफएमसीजी जैसे सेक्टरों में देखी जा सकती है। हालांकि, राहत की बात यह है कि दवा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, शिक्षा और बुनियादी ढांचे जैसे सेक्टर इस मंदी का मुकाबला करेंगे और इन सेक्टरों में नौकरी के अवसरों पर बहुत कम असर पड़ने की उम्मीद है।'
वहीं, एक अन्य एक्सपर्ट राजेश ए.आर. का कहना है कि नौकरी के अवसरों में गिरावट बड़े शहरों (मेट्रो) में ज़्यादा होगी। जबकि ए और बी ग्रेड के शहरों में मंदी की नौकरियों पर मार कम होगी। राजेश ने बताया कि एफएमसीजी सेक्टर की कंपनियां ए और बी ग्रेड के शहरों में सेल्स और कस्टमर सपोर्ट स्टाफ को नौकरियां देंगी। इसके पीछे उनका तर्क है कि छोटे शहरों और कस्बों में मनरेगा जैसी योजनाओं के चलते लोगों के पास कम से कम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी है। राजेश के मुताबिक इन कस्बाई शहरों में मंदी का ज़्यादा असर नहीं पड़ेगा।
पर्पललीप नाम की कंपनी के सीईओ अमित बंसल का कहना है कि मझोली आईटी कंपनियां नौकरियों में कटौती करेंगी। लेकिन बडी़ आईटी कंपनियां जैसे विप्रो, टीसीएस और इन्फोसिस में ऐसा नहीं होगा क्योंकि उनका अपने ग्राहकों से लंबा करार है। बंसल ने कहा, 'मझोली आईटी कंपनियों में हमने देखा है कि वे नौकरी देने में सुस्ती दिखा रही हैं। ऐसी कंपनियों में 70 से 75 फीसदी नौकरी फ्रेशर को दी जाती है। अगर आर्थिक हालात खराब हुए तो इसी क्षेत्र में नौकरियां पर मार पड़ेगी।'
बंसल ने यह भी बताया कि इस साल मझोली आईटी कंपनियों ने करीब एक लाख फ्रेशर को नौकरी दी है। लेकिन अगर मंदी आई तो साल 2012 में इन नौकरियों में 30 फीसदी तक गिरावट आ सकती है। बंसल का मानना है कि नौकरियों में कमी आ रही है, लेकिन अभी यह छुपी हुई है। बंसल ने यह भी बताया कि हर साल के आखिर में मझोली आईटी कंपनियां अगले साल के लिए जरूरी कर्मचारियों में से करीब आधे को नौकरी देती हैं। उनके मुताबिक लेकिन इस आंकडे़ में भी करीब 15 से 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की जा रही है
No comments:
Post a Comment