Wednesday, 21 December 2011

अमेरिकी बिल से कॉल सेंटरों पर लटकी तलवार


 वॉशिंगटन. मंदी की आशंकाओं के बीच उन अमेरिकी कंपनियों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, जो भारत जैसे देशों में आउटसोर्सिंग के जरिए काम करवा रही हैं। 

अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा में एक विधेयक पेश किया गया है, जो पास हुआ तो उन कंपनियों को अमेरिकी सरकार की तरफ से ग्रांट और गारंटीशुदा लोन मिलना बंद हो जाएगा, जो भारत जैसे देशों में नौकरियां दे रही हैं।

यूएस कॉल सेंटर वर्कर एंड कंस्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट नाम के इस विधेयक को दो सांसदों- टिम बिशप और डेविड मैकिनले ने पेश किया है।  जानकारों का मानना है कि अगर यह कानून बना तो अमेरिकी कंपनियां दबाव में आकर भारत में अपने काम या तो बंद कर देंगी या फिर काफी हद तक कम कर देंगी, जिसका सीधा असर भारत में कॉल सेंटरों में काम कर रहे लाखों युवाओं पर पड़ेगा।


बिशप ने बिल के समर्थन में कहा, 'आउटसोर्सिंग हमारी अर्थव्यवस्था के लिए एक आफत है और हम बेरोजगारी की दर को कम क्यों नहीं कर पा रहे हैं?' अमेरिकी सरकार संरक्षणवादी आर्थिक नीतियों की लंबे समय से वकालत करती रही है। अमेरिकी कांग्रेस में पेश ताजे संरक्षणवादी विधेयक पास होकर कानून बना तो अमेरिकी कंपनियों के कॉल सेंटरों में काम कर रहे प्रतिनिधियों को अपने लोकेशन की स्पष्ट जानकारी देनी होगी। इसके अलावा कॉल सेंटर कर्मियों को अपने ग्राहकों की कॉल अमेरिका में मौजूद कॉल सेंटरों में ट्रांसफर करने का भी विकल्प भी देना होगा। 

इसके अलावा विधेयक के मुताबिक श्रम मंत्री उन नियोक्ताओं की सूची तैयार करेंगे, जो अमेरिका से बाहर कॉल सेंटर चला रहे हैं। वहीं, अमेरिकी कंपनियों को विदेश में कॉल सेंटर स्थापित करने से 120 दिन पहले जानकारी देनी होगी।

कॉल सेंटर बिल को अमेरिका के बड़े कॉल सेंटर यूनियन कम्युनिकेशन वर्कर्स ऑफ अमेरिका (सीडब्लूए) का समर्थन भी हासिल है जो अमेरिका में काम कर रहे 1.5 कॉल सेंटर कर्मी शामिल हैं। सीडब्लूए ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि भारत जैसे देशों में आउटसोर्स किए गए कॉल सेंटरों में धोखाधड़ी को रोकने के लिए अपर्याप्त सुरक्षा इंतजाम हैं। 
 
अमेरिका के प्रस्तावित विधेयक का 14 अरब अमेरिकी डॉलर के भारतीय कॉल सेंटर उद्योग पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है। भारत जैसे देश में मौजूद कन्वर्जिस, टेलीपर्फॉमेंस और सिटेल जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियों के कामकाज पर प्रस्तावित बिल का असर पड़ सकता है।

इन्फोसिस के पूर्व एचआर प्रमुख मोहनदास पाई ने अमेरिकी संसद में पेश कॉल सेंटर बिल पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा है कि अमेरिका संरक्षणवादी नीतियां अपना रहा है। पाई के मुताबिक, 'अमेरिकी अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है इसलिए अमेरिका घबराहट में ऐसे कदम उठा रहा है। कॉल सेंटर के मामले में फिलीपींस जैसे देश भारत से आगे निकल रहे हैं, यही वजह है कि ऐसे कानून का भारत से ज्‍यादा फिलीपींस पर असर पडे़गा।'

लेकिन बीपीओ उद्योग के जानकार यह भी मान रहे हैं कि हो सकता है कि यह बिल अमेरिकी संसद में पेश भले हो गया है, लेकिन वह पास नहीं होगा। जेनपेक्ट के उपाध्यक्ष प्रमोद भसीन के मुताबिक, 'मैं इसलिए नहीं चिंतित हूं क्योंकि अमेरिका में चुनाव करीब हैं और ऐसे समय में वहां ऐसे मुद्दे उठते रहेंगे। वहां ऐसे विधेयक पेश होते रहते हैं, लेकिन उनमें से कई पास नहीं होते हैं।'
आपकी रायक्या मौजूदा ग्लोबलाइजेशन के दौर में ऐसी संरक्षणवादी आर्थिक नीति सही है? क्या भारत को अमेरिका के आगे विरोध नहीं जताना चाहिए? भारत इस बारे में क्या कर सकता है? इन मुद्दों पर अपनी राय जाहिर कीजिए।  

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