Monday, 19 December 2011

खस्ता हुई ड्रैगन की आर्थिक हालत, बजी खतरे की घंटी!



चीन की अर्थव्‍यवस्‍था खतरे में पड़ती दिख रही है। जाने माने अर्थशास्‍त्री पॉल क्रुगमैन ने यह आशंका जताई है। अमेरिकी अखबार ‘न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स’ के लिए लिखे अपने खास लेख में क्रुगमैन ने चीन की मौजूदा आर्थिक हालत का जिक्र किया है।   
 
उनका कहना है कि रियल इस्‍टेट की कीमतों में इजाफा होने के बाद निर्माण क्षेत्र में आई बूम से हाल में चीन की अर्थव्‍यवस्‍था में काफी बढ़ोतरी देखी गई थी। साख में भी वृद्धि दर में तेजी दर्ज की गई। हालांकि यह परंपरागत बैंकिंग के चलते नहीं बल्कि अनियंत्रित ‘शैडो बैंकिंग’ के चलते हुआ जिस पर न तो सरकार की नजर है और न ही बैंक गारंटियों का इन्‍हें समर्थन मिला है।   
 
रियल एस्टेट क्षेत्र में तो हालात बिगड़ते जा रहे हैं और चीन सरकार बाजार में अरबों रुपये डाल रही है। सरकार ने वहां अपने पैसे से कई बड़ी टाउनशिप डेवलप की है। ये सभी निर्माण समय पर पूरे हुए लेकिन इनके खरीदार बाजार में नहीं हैं। सच तो यह है कि वहां कोई रहता भी नहीं है। अब हालात यह है कि चीन के तेज विकास दर का बुलबुला फूटने लगा है।   
 
अर्थव्‍यवस्‍था से जुड़े आंकड़े विज्ञान की कल्‍पना का उबाऊ रूप लगते हैं लेकिन चीन के आंकड़े कल्‍पना की पराकाष्‍ठा को पार कर गए हैं। पिछले एक दशक के दौरान चीन की अर्थव्‍यवस्‍था के बारे में सबसे अहम बात यह दिखती है कि किस तरीके से यहां घरेलू खर्च बढ़ा है। ऐसे वक्‍त में चीन में उपभोक्‍ता का खर्च जीडीपी का महज 35 फीसदी है जो अमेरिका का आधा है।  
 
क्रुगमैन कहते हैं, ‘ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर चीन के उत्‍पादों और सेवाओं का उपभोग कौन कर रहा है। अर्थव्‍यवस्‍था में उपभोक्‍ता की हिस्‍सेदारी कम हुई है और उत्‍पादन जारी रखने के लिए ट्रेड सरप्‍लस पर निर्भरता बढ़ी है। लेकिन सबसे बड़ी चिंता निवेश में होने वाले खर्च को लेकर है जो जीडीपी का करीब-करीब आधा हो गया है। 

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