Thursday 14 November 2013

प्रियंका का बाजा बजाने आयी कंगना

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कंगना रनौत को देख ऐसा लगता है कि वो काया के किरदार से अब भी बाहर नहीं निकली हैं। उनके चेहरे पर भाव न के बराबर दिखते हैं। इस बीच जब भी वो थोड़ा-सा मुस्कुराती हैं तो लगता है कि क्या ये वही लड़की है, जो अपने दम पर हिमाचल के मंडी इलाके से अकेले दिल्ली आयी और बिना किसी की उंगली पकड़े मुंबई जा पहुंची अपना करियर संवारने।

जी हां, ये वही कंगना हैं, जिन्होंने पहले ‘फैशन’ में प्रियंका का बैंड बजाया और अब ‘कृष 3’ में प्रियंका को धूल चटा रही हैं। अब उनकी ‘रज्जो’ भी तो आ रही है।
प्रोमो देख ऐसा लगता है कि ‘रज्जो’ आज के जमाने की फिल्म नहीं है?
अच्छा, मुझे तो ऐसा नहीं लगता। आज के जमाने की नहीं तो किस जमाने की फिल्म लगती है ‘रज्जो’। आज तो ‘ये जवानी है दीवानी’ और ‘कृष 3’ जैसी फिल्में आ रही हैं। ऐसी फिल्में तो अस्सी-नब्बे के दशक में आती थीं। देखिए, आप जिन फिल्मों की बात कर रहे हैं, उनमें से एक साइंस फिक्शन है और दूसरी एक रोमांटिक फिल्म। ऐसी फिल्में शहरों में पसंद की जाती हैं। लेकिन अगर कोई फिल्म मुंबई के नागपाड़ा या देश के ग्रामीण इलाके से संबंधित है तो उसमें भी देश का एक अलग रंग दिखाई पड़ता है। और ये निर्माता पर निर्भर करता है कि वो कब और कैसी फिल्म बनाना चाहता है। फिर भी आज के जमाने में एक तवायफ की स्टोरी में कितना स्कोप दिखाई पड़ता है?
देखिये, मैं ये कहूंगी कि ‘रज्जो’ केवल एक तवायफ की कहानी नहीं है। ये एक डांसर की कहानी है, जो कड़े संघर्ष के बाद एक बड़ी डांसर बनती है। और भी बहुत कुछ है फिल्म में, जो फिल्म देखने पर पता चलेगा। हनी सिंह के जमाने में ‘रज्जो’ का गीत जुल्मी रे जुल्मी कहां टिकता है?
इस फिल्म में हनी सिंह के गीतों का स्कोप नहीं है। ये जहां की कहानी है, वहां हनी सिंह नहीं, बल्कि दर्द भरे नगमे गूंजते हैं। गैरों पे करम, अपनों पे सितम.. तरह के गीत वहां सुनाई देते हैं। ऐसे में हनी सिंह का रैप कहां चल सकता है! वैसे मैं बता दूं कि जुल्मी रे जुल्मी.. गीत को यू ट्यूब पर लाखों हिट्स मिले हैं। पीछे मुड़ कर देखती हैं तो क्या लगता है कि रज्जो के रोल के लिए आपने काफी मेहनत की, या सिर्फ निर्देशक ने जो कहा, वो किया?
सच कहूं तो रज्जो का किरदार वाकई काफी मुश्किल था। मैंने इसके लिए बहुत मेहनत की है। कई तरह की फिल्में करके मैं कुछ कम्फर्टेबल सी हो गयी थी। इस फिल्म में इस तरह का डांस करना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। ‘वो लम्हे’ या ‘गैंगस्टर’ से ज्यादा चैलेंजिग रहा ये किरदार?
वो फिल्में मुझे भी काफी चैलेंजिंग लगती हैं। उन किरदारों में एक तरह का मनोविज्ञान हावी नजर आता है, जो रज्जो के किरदार में नहीं है। फिर भी मैं कहूंगी कि रज्जो ज्यादा मुश्किल किरदार है। ऐसा किरदार मैंने पहले कभी नहीं किया। ये सपनों का किरदार है। हवा में उड़ने जैसा। मीठा सा किरदार है। ऐसा मैंने पहले कभी नहीं किया। इसलिए ये किरदार काफी मुश्किल रहा। ‘कृष 3’ की सफलता से आप बेहद खुश दिख रही हैं। क्या इसमें अपने म्यूटेंट के किरदार के लिए आपने हॉलीवुड फिल्म ‘एक्स-मैन’ सिरीज के किरदारों से प्रेरणा ली है?
बिलकुल नहीं, इस किरदार के लिए मैंने किसी फिल्म या किरदार को स्टडी नहीं किया। मेरा मानना है कि म्यूटेंट के कॉन्सेप्ट को बेशक पहले पश्चिमी देशों में अपनाया गया हो, लेकिन हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी इनका जिक्र मिलता है। रामायण या महाभारत में ऐसे किरदार मिलते हैं, जो भेष बदलने में माहिर थे। इसलिए मैंने किसी विदेशी किरदार को स्टडी नहीं किया, बल्कि अपने देसी अंदाज में काया के किरदार को निभाया है। मैंने इसमें अपनी कल्पना का इस्तेमाल किया है, ताकि ये और वास्तविक लग सके, क्योंकि यह एक फिक्शन कैरेक्टर है। क्या वजह है कि काया के किरदार के लिए कभी हां, कभी ना के रुख के बाद आप अचानक मान गयी थीं?
‘काइट्स’ के दौरान मेरे कुछ अनुभव (निर्देशक अनुराग बसु संग) अच्छे नहीं रहे थे, इसलिए जब कृष 3 के लिए काया के किरदार का प्रस्ताव मेरे पास आया तो मैंने स्क्रिप्ट बिना सुने ही मना कर दिया था। तभी मुझे पता लगा कि इस रोल के लिए बहुत-सी लड़कियों के ऑडिशन हो रहे हैं। फिर मुझे राकेश जी ने एक बार फिर बुलाया और कहा कि तुम फिर से विचार करो। उन्होंने मुझे समझाया तो मुझे भी ऐसा लगा कि वो इतने बड़े निर्देशक हैं और इतने विश्वास के साथ इस रोल की बात कर रहे हैं तो मैं मान गयी। ‘कृष 3’ के क्लाइमैक्स में ऐसा लगता है कि आपका किरदार एकदम से खत्म कर दिया गया है। आपको नहीं लगता कि उसे थोड़ा और आगे बढ़ाया जा सकता था?
नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। मेरे किरदार को ठीक ढंग से शेप किया गया है। वैसे भी ये फिल्म कृष की है, मेरा काम उसमें उतना ही है, जितना दिखाया गया है।

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