Sunday, 11 December 2011

हवेलियां अब भी बयां करतीं हैं गुजरे जमाने का रुतबा



 राजधानी शुरू से ही शान-ओ-शौकत वाली रही है। यही वजह है कि सालों बाद भी हवेलियों के रुतबे में कोई कमी नहीं आई है। यह दीगर बात है कि वक्त के साथ उनमें रहने वालों और उनकी संख्या में बदलाव आया हो। अलबत्ता मुगलों और अंग्रेजों के जमाने में जिन हवेलियों में एक ही परिवार रहता था वहीं आज के दौर में दर्जनों परिवार रह रहे हैं। अपने वक्त के मशहूर शायर मीर तकी मीर, मिर्जा गालिब और हकीम रोशन अली की बल्लीमारान में हवेलियों का रुतबा आज भी बरकरार है। 


जामा मस्जिद के पास अजमल खां की हवेली आजम खां, चांदनी चौक में छुन्नामल, बेगम समरू, खजांची की हवेली उस वक्त के रईसों की कहानियां बयां कर रही हैं। गुजरे जमाने की शान कुछ हवेलियों पर बिल्डरों की नजर है। मिर्जा गालिब की ससुराल में जो हवेली थी आज उसके आधे हिस्से में स्कूल चल रहा है और बाकी का हिस्सा दूसरे लोगों के कब्जे में है। इसी तरह से कूचा पंडित में फखरुद्दीन अली अहमद की हवेली में भी कई परिवार रह रहे हैं। इसके अलावा चांदनी चौक बाग दीवार में तो हवेलियों की लाइन लगी हुई है। कई हवेलियां बंद या फिर उनमें व्यावसायिक गतिविधियां चल रही हैं। लालकुंआ के रोदग्रान इलाके में लाल पत्थर की बिल्डिंग आज भी बाहर से पुराने वक्त की शान को बयां कर रही है। इस इमारत में रहने वाले अथरमीर हाशमी ने बताया कि बिल्डिंग करीब 1836 में बनी थी। लाल पत्थर से बनी हवेली में रंग-रोगन की आज भी जरूरत नहीं है। रोशनी और हवा के लिए कई खिड़कियां बनी हुई हैं। 

इमारत के अंदर के हिस्से को वक्त और जरूरत के हिसाब से जरूर बदला है।

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