Sunday, 11 December 2011

दिल्ली शहर के बसने की है अनोखी कहानी, सुन हैरान रह जाएंगे!


इतिहासकारों की मानें तो दिल्ली एक शहर के रूप में सात बार बसी और फिर उजड़ी। यह सिलसिला 1191 से शुरू हुआ जब तोमर वंश से कुतुबुद्दीन एबक ने किला राय पिथौरा पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। वर्तमान में यह स्थान दिल्ली के अधचीनी गांव के पास है जहां आज भी किले की दीवारों के कुछ अवशेष मौजूद हैं।

दूसरे प्रयास में 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने इस स्थान को चुना। एएसआई के पुरातत्वविद मोहम्मद केके के अनुसार, पश्चिम एशिया में मंगोल के लगातार हो रहे हमले के कारण पश्चिम और मध्य एशिया में सलजुकों का साम्राज्य छिन्न भिन्न हो रहा था, जिस वजह से वहां के कई वास्तुकारों ने दिल्ली में शरण ली और अपने साथ सलजुकी वास्तुकला की परंपरा भी ले आए। यही किले के वस्तु शिल्प में भी नजर आती है। यह किला भी आज खंडहर में तब्दील हो गया है। 
तीसरी बार 1321 में गयासुद्दीन तुगलक ने यहां शासन किया। तुगलकाबाद दिल्ली के सात शहरों में से तीसरा शहर था। लाल बलुआई पत्थर से बने इस किले के अवशेष कुतुबमीनार से करीब 8 किलोमीटर पूर्व आज भी नजर आते हैं। इसकी दीवारें ही अवशेष के रूप में मौजूद हैं। इसके बाद सन् 1325 में मुहम्मद बिन तुगलक ने इस शहर को फिर से बसाने का प्रयास किया और यहां 1351 तक शासन किया। पांचवीं दिल्ली के रूप में फिरोजशाह तुगलक ने इसे 1351 में चुना।

कहा जाता है कि 1388 तक यहां एक बार भी महामारी और बाहरी आक्रमण नहीं हुए। इसके बावजूद यह फिर उजड़ी। इंद्रप्रस्थ काल के ढांचा वाले पुराना किले को 1538 में शेरशाह सुरी ने अपने हाथों में लिया और यहां दीनपनाह नाम से इस स्थान की नींव रखी। अंत में शाहजहानाबाद के रूप में 1638 में दिल्ली एक शहर के रूप में स्थापित होती दिखी।

इसी शहर में आज का चांदनी चौक और लालकिला आता है। एएसआई के अनुसार शाहजहानाबाद को घेरने वाली प्राचीर और शहर का प्रारूप 1650 में तैयार हुआ जो 1857 तक अपने मूल रूप में रहा। इसके बाद ब्रिटिश शासन काल में यह फिर से राजधानी के रूप में अपनाई गई। जो आज एक खूबसूरत बसी राजधानी के रूप में हमारे सामने मौजूद है।

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