महंगाई की मार से जूझ रही जनता की जेब अब रसोई गैसे की कीमत से जलेगी। सरकार रसोई गैस और केरोसिन की सब्सिडी खत्म करने की तैयारी में है। अगले साल पहली अप्रैल से सिलेंडर पर सब्सिडी खत्म करने की योजना बन चुकी है। यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी यूआईडीएआई के प्रमुख नंदन निलेकणी ने इस बारे में फॉर्मूला सरकार के हवाले कर दिया है।
इस फॉर्मूले के मुताबिक सब्सिडी का फायदा लोगों की कमाई के आधार पर मिलेगा। सरकार जिन लोगों को सब्सिडी के लायक मानेगी, उन्हें सब्सिडी का रुपया सीधे उनके बैंक खाते में जमा कर दिया जाएगा। बैंक खाता आधार संख्या से जुड़ा होगा।
सिलेंडर पर नकद सब्सिडी की पायलट परियोजना हैदराबाद और मैसूर में चल रही है, जबकि केरोसीन पर नकद सब्सिडी की पायलट परियोजना अलवर में चल रही है। इसे पहली अप्रैल से पूरे देश में लागू करने की योजना है। इसके लिए राज्य सरकारों को 31 मार्च तक तैयारी कर लेनी है। इससे पहले पेट्रोलियम और गैस पर बनी संसद की स्थायी समिति रसोई गैस पर सब्सिडी पूरी तरह खत्म करने की सिफारिश कर चुकी है। समिति की रिपोर्ट के मुताबिक जिनकी सालाना आमदनी छह लाख रुपये या इससे ज्यादा है उन्हें रसोई गैस पर सब्सिडी देना सरकार तुरंत बंद कर दे। साथ ही साथ, गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों को मुफ्त में एलपीजी कनेक्शन देने की स्कीम अगले 5 साल तक और जारी रखी जाए।
हालांकि फिलहाल पेट्रोलियम मंत्रालय ने एलपीजी गैस के सिलेंडरों का कोटा तय करने की योजना टालने का फैसला किया है। मंत्रालय के प्रस्ताव के मुताबिक आयकर अदा करने वाले लोगों के लिए साल भर में महज चार सिलेंडर ही रियायती दर (सब्सिडी के साथ) पर देने की बात कही जा रही है। प्रस्ताव के मुताबिक यदि चार से अधिक सिलेंडर की जरूरत पड़ी तो इसे बाजार के दाम पर लेना होगा। ऐसा होता है तो आम तौर पर अगर आप हर साल आठ से नौ सिलेंडर रिफिल कराते हैं तो आपका बजट 1100 से 1300 रुपये तक बढ़ जाएगा।
देश की राजधानी दिल्ली में एक सिलेंडर रिफिल कराने में करीब चार सौ रुपये लगते हैं जौ मौजूदा बाजार मूल्य से 260 रुपये कम है। इसमें सरकार और तेल कंपनियां सब्सिडी देती हैं।
मंत्रलाय ने पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी की वजह से सरकारी खजाने का बोझ कम करने और सिर्फ जरूरतमंदों को ही सरकारी सब्सिडी का फायदा मिलना सुनिश्चित कराने के मकसद से ऐसा प्रस्ताव लाया था। सरकार का मानना है कि सस्ते सिलेंडर का कोटा तय करने पर हर साल करीब 12 हजार करोड़ रुपये की बचत हो हो सकती है। लेकिन अब मंत्रालय के आधिकारिक सूत्र बता रहे हैं कि इस योजना को कुछ समय के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
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