Tuesday 27 December 2011

यादों के झरोखे से : बरेली में लिखी गई बच्चन की प्रेम कहानी



 सत्तर साल पहले बड़े दिन की छुट्टियों में घटित हुई यह प्रेम कहानी सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की किसी भी हिट फिल्म की पटकथा से ज्यादा रोमांटिक और रोमांचक है। सन् 1941 में क्रिसमस की छुट्टियों में तेजी सूरी अगर बरेली नहीं आतीं तो शायद उनकी हरिवंश राय बच्चन से भेंट नहीं होती और न ही पिता और पहली पत्नी की मृत्यु से दु:ख के सागर में डूबे महाकवि के ‘नीड़ का निर्माण फिर’ संभव हो पाता। अमिताभ बच्चन भी तब नहीं होते। बच्चन ने नीड़ का निर्माण फिर नाम से अपनी आत्मकथा में ऐसी ही कठोर सर्दियों में एकाएक घटित हुए तेजी सूरी से अपने पहली नजर में प्यार को सार्वजनिक किया है।



ऐसे हुआ सूत्रपात



पिता और पत्नी की मृत्यु तथा एक असफल प्रेम के बाद इलाहाबाद में बच्चन जी के लिए यह भूलने की कोशिशों का दौर था, जिसे उन्होंने क्या भूलूं और क्या याद करें का नाम दिया है। उधर, लाहौर में तेजी सूरी भी इसी तरह के हालात से गुजर रही थीं। तेजी की सगाई आक्सफोर्ड में पढ़े एक युवक से हो चुकी थी, मगर विरोधी विचार उन्हें करीब नहीं आने दे रहे थे। मंगेतर का परिवार उनका पुराना परिचित था और उस घर में वह बहुत पसंद की जाती थीं, मगर उनका अपना दिल उधर नहीं था। तेजी कोई आम भारतीय लड़की होतीं तो शायद चुपचाप विवाह कर लेतीं, मगर मनोविज्ञान की टीचर होने के नाते वह ऐसे बेमेल विचारों की सगाई को शादी में बदलने पर सवाल उठाने लगी थीं। यह बात उनकी प्रिंसिपल प्रेमा जौहरी भी बखूबी जानने लगीं थीं।



ऐसे हुआ मिलान



प्रिंसिपल प्रेमा जौहरी के पति प्रोफेसर प्रेम प्रकाश जौहरी तब बरेली कालेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे और बच्चन जी के अंतरंग मित्र थे। दोनों टूटे दिलों को जोड़कर एक करने का ख्याल इन्हीं प्रोफेसर साहब की सूझ थी। उन दिनों बच्चन जी किसी कवि सम्मेलन के सिलसिले में पंजाब के अबोहर शहर गए हुए थे। प्रोफेसर साहब ने उन्हें तार भेज दिया कि इलाहाबाद लौटते समय वह यहां रुकें। 31 दिसम्बर की सुबह बच्चन बरेली पहुंचे। प्रोफेसर साहब की इस कोठी में 31 दिसंबर की सुबह चाय पर बच्चन जी का घर की दूसरी मेहमान तेजी से पहला परिचय हुआ।



बच्चन ने लिखा है कि उनका रूप प्रथम दृष्टि में किसी को भी अभिभूत करने को पर्याप्त था। अगर उन्होंने ही अपनी करण ²ष्टि से मुझे एकटक नहीं देखा होता, तो उन्हें देखते ही मेरी आंखें नीची हो जातीं। शाम को प्रकाश दंपति बच्चन और तेजी को फिटन यानि बग्घी से घुमाने ले गए। यहीं बच्चन को पहला प्रेम स्पर्श मिला, जब तेजी ने उनके कंधे पर हाथ रखा। अचानक तेजी ने कहा कि मन करता है कि साईस (बग्घी चालक) की बगल वाली सीट पर बैठूं। 




ऐसे परवान चढ़ा प्यार



फिर, उसी रात इलाके के नामी वकील और कवि रामजी शरण सक्सेना के घर संगीत कार्यक्रम में दोनों आस-पास बैठे। रात में प्रकाश जी के घर लौटे, तो उन्होंने बच्चन जी से नववर्ष के स्वागत में कविताएं सुनाने को कहा। उस द्विपदी कविता के अंतिम बोल थे, उस नयन में बह सकी कब, इस नयन की अश्रुधारा। इतने में तेजी की आंखे बहने लगीं, तभी बच्चन भी रोने लगे। यह देखकर प्रकाश, प्रेमा कमरे से निकल गए और बच्चन के शब्दों में, हम-दोनों एक-दूसरे के गले लिपटकर रोने लगे, चौबीस घंटे भी नहीं गुजरे थे कि दो अजनबी जीवनसाथी हो चुके थे।

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