Tuesday 22 November 2011

आठ मुख्यमंत्रियों और 16 केंद्रीय मंत्रियों ने सुझाए बदलाव के बिंदु!



ज्यादातर केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों का मानना है सरकारी नौकरियां सीमित हैं। इसलिए नीतियों को युवाओं के स्किल डेवलपमेंट पर फोकस होना चाहिए।

प्रधानमंत्री 2007 में स्किल डेवलपमेंट मिशन के तहत 50 करोड़ युवाओं की ट्रेनिंग की बात कर चुके हैं। उद्योग एवं वाणिज्य राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया कि नेशनल स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के लिए हजार करोड़ की राशि मंजूर की गई है।

यह तो हुई नीति और बजट की बात। लेकिन जमीन पर क्या? केंद्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री हरीश रावत ने स्वीकार किया कि स्किल डेवलपमेंट पर बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ी। नए क्षेत्रों में आईटीआई खुलने की रफ्तार भी धीमी है।

हालांकि वे इस ढिलाई के लिए कॉपरेरेट सेक्टर को कुसूरवार मानते हैं। 16 केंद्रीय मंत्रियों और आठ मुख्यमंत्रियों ने दैनिक भास्कर की इस पहल को सराहा। केंद्रीय मंत्रियों ने कहा है कि राज्य सरकारों की भूमिका इस काम में सबसे अहम है। इसकी वजह है।

स्थानीय जरूरतों, खामियों और खूबियों को राज्य की सरकारें ही बेहतर जानती हैं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेकसिंह अहलुवालिया ने कहा, हर उद्योग की अपनी जरूरतें हैं। राज्य सरकारों को चाहिए कि वे अपने यहां स्थापित उद्योगों से इस बारे में निरंतर पूछें। बाजार की जरूरतों के मुताबिक स्किल डेवलपमेंट की योजना बनाएं।उद्योगों की मदद से नए कोर्स भी शुरू किए जा सकते हैं।

कोयला राज्यमंत्री प्रतीक पाटिल अकेले मंत्री हैं, जिन्होंने कहा कि उनके संसदीय क्षेत्र सांगली के युवा घर छोड़कर दूसरे राज्यों में जाना तो दूर मुंबई या पुणो भी नहीं जाते। उनका मानना है कि अगर राज्य सरकारें चाहें तो रोजगार के अवसरों की कहीं कोई कमी नहीं है।

नीतियों और योजनाओं के स्तर पर भी काफी कुछ करने की गुंजाइश है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री डॉ. तुषार चौधरी कहते हैं, शिक्षा और रोजगार में हमारे यहां कोई तालमेल नहीं है।

जैसे-दक्षिण गुजरात में यूनिवर्सिटी में हीरा या कपड़ा उद्योग से जुड़े कोई कोर्स नहीं हैं। जबकि यहां मूल कारोबार इसी के हैं। भूतल परिवहन मंत्री सीपी जोशी ने कहा, रोजगार जैसे अहम मसले पर दलों को भी अपनी नीतियां बनानी चाहिए। रोजगार सिर्फ सरकारी क्षेत्र तक सीमित नहीं है इसलिए निजी क्षेत्र की नीतियां भी वैसी ही बनानी होंगी।

बेहतर अवसरों के नाम पर दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू, हैदराबाद जैसे गिने-चुने शहरों के नाम ही सामने हैं, जहां गांव-शहरों के शिक्षित युवा या बेपढ़े-लिखे लोग काम की तलाश में रुख करते रहे हैं। वजह साफ है। उनके अपने राज्यों में अपेक्षित मौके जो नहीं हैं।

मजबूरी में युवाओं के इस एकतरफा बहाव पर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कहती हैं, देश के सभी छह सौ जिला मुख्यालयों में बिजली, पानी, सड़क, सार्वजनिक परिवहन, स्कूल और अस्पताल के नेटवर्क का कायाकल्प हो तो हालात बदलते देर नहीं लगेगी।

मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में खराब इन्फ्रास्ट्रक्चर एक बड़ा स्पीड ब्रेकर रहा है। इसलिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान कहते हैं कि हमें ज्यादा से ज्यादा सड़क नेटवर्क पर ध्यान केंद्रित करना पड़ा है ताकि बाहरी निवेश आए और काम के अवसर बढ़ें। वित्त राज्यमंत्री नमोनारायण मीणा का साफ कहना है कि गांवों को मजबूत बनाए बिना लोगों को रोका नहीं जा सकता। सिर्फ रोजगार ही नहीं, बुनियादी सुविधाएं भी चाहिए।

छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे खनिज संपन्न नए राज्य कम-लिखे युवाओं को ध्यान में रखकर कदम रहे हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमनसिंह बताते हैं, राज्य में 30 हजार करोड़ का निवेश हुआ है। जाहिर है काम के मौके बढ़ेंगे।

ऐसे में हमें युवाओं को दक्ष भी करना होगा। हर जिले में राजमिस्त्री से लेकर टेक्नीशियन तक का प्रशिक्षण दे रहे हैं। उद्योगों के साथ मिलकर नए आईटीआई और पॉलीटेक्निक कॉलेज खोले जा रहे हैं। जबकि झारखंड के मु यमंत्री अर्जुन मुंडा अगले पांच साल में दस लाख युवाओं को प्रशिक्षण देने की बात कर रहे हैं।

केंद्र-राज्य: दोष मढ़ने का सिलसिला जारी

केंद्र और राज्य सरकारों ने एक दूसरे पर भी दोष मढ़े। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ ने तर्क दिया कि केंद्र सरकार नीतियां बनाती है। राज्य सरकारें जमीन पर अमल में लाती हैं। उनका जि मा बड़ा है।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल केंद्र की अनदेखियां गिनाने लगे। उन्होंने बताया कि उत्तर-पूर्वी राज्यों की तरह हिमाचल भी पहाड़ी प्रदेश है। लेकिन औद्योगिक पैकेज की अवधि केंद्र सरकार ने तीन साल कम की। भानुपली-बिलासपुर-बैरी रेल लाइन से केंद्र सरकार पीछे हटी।

इस बारे में केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन ने कहा, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों ने गांवों में केंद्रित योजनाएं बनाईं तो वहां अवसर भी बढ़े। जबकि मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों इस तरफ कतई ध्यान नहीं दिया।

इनसे सीधी बात

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया

भूतल परिवहन मंत्री सीपी जोशी

संसदीय कार्य राज्यमंत्री हरीश रावत

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रम मंत्री वीरभद्र सिंह,

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री डॉ. तुषार चौधरी

महिला व बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ

ग्रामीण राज्य विकास मंत्री प्रदीप जैन

दूरसंचार राज्य मंत्री सचिन पायलट

उद्योग एवं वाणिज्य राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया,

वित्त राज्यमंत्री नमोनाराण मीणा

आदिवासी मामलों के मंत्री महादेवसिंह खंडेला

कोयला राज्य मंत्री प्रतीक पाटिल

रेलराज्य मंत्री भरतभाई सोलंकी

खनिज राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार दिनशा पटेल

कृषि राज्यमंत्री चरणदास महंत

मुख्यमंत्री

नरेंद्र मोदी गुजरात, अशोक गेहलोत राजस्थान, शिवराजसिंह चौहान मध्यप्रदेश, शीला दीक्षित दिल्ली, डॉ. रमनसिंह छत्तीसगढ़, अर्जुन मुंडा झारखंड, प्रेमकुमार धूमल हिमाचल प्रदेश।


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