Sunday 2 February 2014

मैं भी गांधी

हमारे भीतर हैं गांधी
गांधी जी असहयोग आंदोलन के जरिए भारत का शुद्धिकरण चाहते थे। भ्रष्टाचार और राजनीतिक आतंकवाद उन्हें परेशान करते थे। इसीलिए 6 दिसंबर 1928 के यंग इंडिया में उन्होंने लिखा, एक दिन भ्रष्टाचार सबके सामने आएगा, भ्रष्टाचारी चाहें उसे जितना छिपाने की कोशिश करें। इसलिए ये हरेक नागरिक की जिम्मेदारी होगी कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाए और अपने अधिकारों के लिए लडे। जब भी कोई रिश्वतखोरी का मामला सामने आए, तो उसे तुरंत जड से खत्म करें। भ्रष्ट लोगों को सजा दिलाने, उन्हें पद से बर्खास्त करने के लिए कोई कसर न रहने दें। मेरा भी यही मानना है कि आज जब देश में भ्रष्टाचार एक कैंसर की तरह जड जमा चुका है, तो इसे खत्म करने की पहली और सबसे ज्यादा जवाबदेही यहां के नागरिकों की है। मेरा मत है कि आज भी हरेक इंसान में एक गांधी मौजूद है, सिर्फ उसे पहचानने की जरूरत है।
लापरवाही बनी आदत
अफसोस की बात है कि आज लापरवाही एक राष्ट्रीय दोष बन चुका है। आसपास घटने वाली घटनाओं से सरोकार खत्म होता जा रहा है। किसी को किसी की परवाह नहीं है। अपना काम बन जाना चाहिए, फिर चाहे उसके लिए रिश्वत ही क्यों न देनी पडे। इसलिए आज समाज में इतना कुछ घटित हो रहा है, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक हिंसा और यौन शोषण जैसी तमाम बुराइयां सामने आ रही हैं।
गुम हुई ईमानदारी
महात्मा गांधी कहते थे कि एक इंसान जो सोचता है, वही बनता है। वह अगर अपने काम में ईमानदारी नहीं रखेगा और उसमें जरूरत से ज्यादा सामान रखने या छिपाने की प्रवृत्ति होगी, तो उससे भ्रष्टाचार को बढावा मिलेगा। आज यही हो रहा है, जो महंगाई का भी एक बडा कारण है। गांधी जी का मानना था कि प्रकृति ने इंसान की जरूरत के लिए सब कुछ दिया है, उसकी लालच के लिए नहीं। इसलिए अगर आज लोग ये समझ लें कि अपने स्वार्थ के लिए किसी का शोषण नहीं करना है, फिर वह इंसान हो, पशु या पर्यावरण, तो हम एक सभ्य समाज और राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।
अहिंसा में है बडी ताकत
मैं जब विभिन्न सेशंस या कैंप्स में युवाओं से बात करती हूं, तो वे गांधी जी को जानने में रुचि लेते हैं। देश के युवाओं से कहना चाहूंगी कि अगर उन्हें तरक्की करनी है, तो गांधी जी की विचारधारा को समझना होगा, जो बताती है कि अहिंसा और मानवता में कितनी ताकत है। कुछ समय पहले हुए निर्भया कांड के बाद जिस तरह जनता ने अपनी शक्ति पहचान कर, बिना किसी नेता के खुद से आंदोलन छेडा था, वह इसी का परिणाम कहा जाएगा।
शिक्षा में जरूरी करुणा
समाज में जिस तरह से हिंसा बढ गई है, इसके लिए कहीं न कहीं हमारे पारिवारिक और सामाजिक संस्कार के अलावा शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार है। लडकियों की शिक्षा पर जोर दिया जाता है, लेकिन ज्यादा जरूरी है लडकों को सही से शिक्षित करना। उन्हें सशक्त बनाना है। अगर सुरक्षित भविष्य चाहिए, तो उनमें बचपन से ही अहिंसा के उदाहरण देने होंगे। संभव है कि 90 प्रतिशत तक हिंसा पर काबू पा लिया जाए। इसके अलावा शिक्षा का मतलब सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि करुणा जगाना भी है।
राष्ट्र से मिलती है पहचान
गांधी जी का मानना था कि भ्रष्टाचार तभी खत्म होगा, जब इसमें शामिल लोगों को ये समझ में आ जाएगा कि राष्ट्र का अस्तित्व उनसे नहीं है, बल्कि उनका राष्ट्र से है। तब देश की स्थिति कुछ और होगी। हम सभी जानते हैं कि भारत जितनी बौद्धिक संपदा कहीं और नहीं है। किसी दूसरे राष्ट्र से इसकी तुलना नहीं की जा सकती है, फिर क्यों गलत रास्ते पर चलें।
क्षमा में है शक्ति
गांधी जी ने राजनीति में रहते हुए नैतिक मूल्यों का कभी त्याग नहीं किया। हालांकि उनके साथ के लोगों ने गलतियां भी कीं, लेकिन गांधी जी ने उन्हें क्षमा कर दिया। गांधी जी कहते थे, जब भी आपका सामना किसी विरोधी से हो, तो उससे प्यार से पेश आएं, इसलिए वे खुद अपने विरोधियों को क्षमा करके आगे बढते गए। वे जैसे निर्भीक थे, दूसरों को भी वैसा ही बनने की प्रेरणा देते थे। भले ही कई लोग उनके विचारों से असहमति रखते थे, लेकिन गांधी जी ने उन्हें भी दोस्त माना और हमेशा अपनी चेतना की आवाज सुनी।
सर्व-धर्म सम-भाव
गांधी जी ने बाइबल, टॉलस्टॉय और श्रीमद्भगवद्गीता को बडे ध्यान से पढा था। वे सर्व-धर्म सम-भाव में विश्वास रखते थे। वे कहते थे कि अगर हम अपने धर्म का सम्मान चाहते हैं, तो दूसरों के धर्म का भी सम्मान करना होगा। अगर आप सामने वाले शख्स में ईश्वर को नहीं पाते हैं, तो ईश्वर की तलाश करना बेकार है। इसलिए हरेक स्त्री और पुरुष की यह जिम्मेदारी है कि वह दुनिया के हरेक धर्मशास्त्र को जाने।
सर्वोदय का सपना
अंतिम सांस लेने से पहले गांधी जी देश में सर्वोदय आंदोलन शुरू करना चाहते थे, ताकि हर दिशा, हर समुदाय तक विकास की रोशनी पहुंच सके। उनके जाने के बाद आचार्य विनोबा भावे ने इस सपने को साकार करने की कोशिश की, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। (तारा गांधी, महात्मा गांधी की पौत्री एवं गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति और कस्तूरबा गांधी नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट की वाइस चेयरपर्सन हैं)
जनाग्रह वॉयस ऑफ पीपल
रमेश रामनाथन (को-फाउंडर, जनाग्रह) एजुकेशन : बिट्स पिलानी से ग्रेजुएट। येल यूनि.से एमबीए। सिटी बैंक, न्यूयॉर्क में किया काम।
इनवेस्टमेंट बैंकर रमेश रामनाथन न्यूयॉर्क के सिटी बैंक में टॉप पोजिशंस पर काम कर रहे थे, जबकि उनकी आर्किटेक्ट वाइफ स्वाति रामनाथन भी अमेरिका की रिनाउंड कंपनी में जॉब कर रही थीं। दोनों लग्जीरियस लाइफ लीड कर रहे थे। इस तरह यूएस में रहते हुए करीब 10 साल बीत गए थे, तभी एक दिन दोनों ने डिसाइड किया कि उन्हें सोशल सेक्टर में काम करना है, अपने देश के लिए कुछ करना है, जिसके लिए इंडिया लौटना होगा और इस तरह साल 1998 में दोनों बेंगलुरु लौट आए। इसके तीन साल बाद 2001 में शुरू हुआ जनाग्रह, जो गांधी जी के सत्याग्रह से इंस्पायर्ड था।
अमेरिका में दिखी राह
रमेश रामनाथन कहते हैं, अमेरिका को लोग मैटेरियलिस्टिक देश मानते हैं, लेकिन वहां की सोसायटी में इंप्रूवमेंट के लिए पब्लिक की ओर से काफी इनिशिएटिव लिया जाता है। आम लोग और उन जैसे प्रोफेशनल्स वॉलंटियर के तौर पर लोकल इश्यूज को सॉल्व करने के लिए एफर्ट लगाते हैं। इन सबने उनके मन में काफी डीप इंपैक्ट डाला। रमेश ने बताया कि अमेरिका में टाउन बजट की प्लानिंग में भी पब्लिक का पार्टिसिपेशन होता है। लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं, अपने आइडियाज रखते हैं। उनमें डिफरेंसेज होते हैं, लेकिन अपनी बात रखने से संकोच नहींकरते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने अमेरिका में डेमोक्रेसी का एक बिल्कुल नया चेहरा देखा और इस तरह स्वाति के साथ फैसला लिया कि 5000 मील दूर रहकर इंडिया में चेंज नहीं लाया जा सकता, बल्कि वहां जाकर ही कुछ किया जा सकता है। गांधी जी ने भी कहा था, पहले आपको अपने अंदर वह बदलाव लाने होंगे, जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं। रमेश कहते हैं, जनाग्रह ने छोटे लेवल से शुरुआत की। कॉलोनीज में डोर-टु-डोर गार्बेज कलेक्शन किया, पा‌र्क्स को डेवलप किया, स्ट्रीट लाइट्स की प्रॉब्लम सॉल्व की।
पार्टिसिपेटिव डेमोक्रेसी
गांधी जी ने कभी नहीं कहा कि कोई इंसान बुरा होता है। रमेश कहते हैं कि उन्होंने भी कभी गवर्नमेंट या सिस्टम की बुराई नहीं की, बल्कि वे रिप्रेजेंटेटिव डेमोक्रेसी को पार्टिसिपेटिव डेमोक्रेसी बनाना चाहते हैं। सोशल और दूसरे चेंजेज लाने में लोगों की भागीदारी बढाना चाहते हैं। इसीलिए बेंगलुरु शहर की बजट प्लानिंग में आम पब्लिक को शामिल करने के लिए जनाग्रह ने एक कैंपेन चलाया। इसमें सैयद किरमानी, देवी शेट्टी, नंदन नीलेकणी के अलावा 2000 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। इस कैंपेन के जरिए सरकार से मांग की गई थी कि वह शहर के हर वार्ड के डेवलपमेंट के लिए कम से कम 50 लाख रुपये अलॉट करे। इस तरह जब 2001-02 का बजट तैयार हुआ, तो उसमें 10.7 करोड रुपये का काम लोगों द्वारा आइडेंटिफाई किया गया था। यह जनाग्रह की पहली सक्सेस थी।
अर्बन प्लानिंग
रमेश ने बताया कि जब वे यूएस से लौटे, तो देखा कि इंडिया में अर्बन प्लानिंग की कोई स्कीम,कोई स्ट्रक्चर नहीं है। चीन में जहां एक लाख से ज्यादा अर्बन प्लानर्स को हर साल ट्रेनिंग दी जाती है। वहीं, इंडिया में अभी काफी सुधार की जरूरत है। रमेश कहते हैं, वह 2004 का साल था, जब यूपीए सरकार अपने पहले बजट में कई नई स्कीम्स लॉन्च करने जा रही थी, लेकिन अर्बन प्लानिंग को लेकर कोई योजना नहीं थी। जनाग्रह ने प्लानिंग कमीशन, अर्बन डेवलपमेंट मिनिस्ट्री और पीएमओ तक, इस इश्यू को उठाया। 6 महीने तक कई राउंड की मीटिंग हुई। इसके बाद आखिरकार अथॉरिटीज कनवींस हुईं और शहरों के री-डेवलपमेंट के लिए 2005 से जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूबल मिशन को लागू किया गया। रमेश इस मिशन के नेशनल टेक्निकल एडवाइजर हैं। वे कहते हैं कि इस स्कीम में कम्युनिटी पार्टिसिपेशन लॉ एक इंपॉटर्ेंट पार्ट है जो अर्बन सिटीजंस को एरिया सभा के जरिए अपनी बात रखने का एक प्लेटफॉर्म देता है।
फाइट अगेंस्ट करप्शन
रमेश कहते हैं कि इंडिया में दो तरह के करप्शन्स हैं, होलसेल और रिटेल। आम पब्लिक का सामना सबसे ज्यादा रिटेल करप्शन से होता है, जिसे बंद किया जा सकता है, अगर पब्लिक ये डिसाइड कर ले कि वह करप्शन को टॉलरेट नहीं करेगी। रमेश सवाल करते हैं कि जब कंपनीज अपनी क्वॉर्टरली या एनुअल रिपोर्ट पब्लिश कर सकती हैं, तो लोकल एडमिनिस्ट्रेशन क्यों नहीं। उन्होंने बताया कि जनाग्रह का टाटा टी के साथ किए गए जागो रे कैंपेन को काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला था। इसी के बाद www.ipaidabribe.com स्टार्ट किया गया। ये एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां पब्लिक करप्शन से रिलेटेड अपने एक्सपीरियंस को रिकॉर्ड कर सकती है। रमेश के मुताबिक आने वाले सालों में इस प्लैटफॉर्म के जरिए काफी कुछ चेंज लाया जा सकता है। इस तरह जनाग्रह की कोशिश है कि वे अर्बन प्लानिंग, अर्बन मैनेजमेंट, लेजिटिमेट पॉलिटिकल रिप्रेजेंटेशन और पब्लिक पार्टिसिपेशन के जरिए इंडिया में बडा बदलाव ला सकें।

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