Monday 3 February 2014

बंगाल का हाल बांग्लादेश जैसा: तसलीमा

TASLIMA NAsreen
नई दिल्ली। निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने कहा है कि उनके महिलावादी लेखन के बावजूद महिला नेता उनके प्रति सहानुभूति नहीं रखती हैं। उनके मुताबिक महिलाओं के मुद्दे पर लड़ने के लिए आम औरत पार्टी होनी चाहिए।
उन्होंने अपनी नवीनतम किताब 'निषिद्धो' को कोलकाता में चल रहे पुस्तक मेले से हटा दिए जाने और उस पर प्रतिबंध लगाए जाने की आशंका जताई है। विवादास्पद लेखिका ने कहा कि वास्तव में इस प्रकार के प्रतिबंध एक लेखक की मौत जैसे हैं। वर्ष 2012 में इसी मेले में उनकी किताब 'निर्बासन' के विमोचन को रद कर दिया गया था। उन्होंने कहा है कि पश्चिम बंगाल में अधिक बदलाव नहीं आया है और उन्हें कोलकाता लौटने की कोई उम्मीद नहीं है। पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश जैसी ही स्थिति है। पश्चिम बंगाल सरकार ने भी मुझे अवांछित व्यक्ति बना दिया है। यह सरकार मेरी किताबों के अलावा मेरे द्वारा लिखी गई पटकथा वाले टीवी धारावाहिक पर भी प्रतिबंध लगा रही है। पश्चिम बंगाल सरकार मुझे कोलकाता पुस्तक मेले में भाग लेने की अनुमति नहीं दे रही है। माकपा के शासनकाल में ऐसा हुआ था। मैंने सोचा था कि ममता बनर्जी के सत्ता में आने से कुछ बदलाव आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।' उनकी किताब निषिद्धो को कोलकाता पुस्तक मेले में रखा गया है, लेकिन वह इसे लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि इस किताब को नौ फरवरी को मेले की समाप्ति तक इसमें रखा जाएगा कि नहीं।
प्रतिबंध से पहले मेरी किताब खरीद लो: तसलीमा
उन्होंने कहा कि मैं इसे लेकर इतनी आशंकित हूं कि मैंने ट्वीट किया कि जो लोग इस किताब को खरीदना चाहते हैं वे इसे जल्द ही खरीद लें। वे मेरी किताब पर प्रतिबंध लगा रहे हैं जो कि वास्तव में एक लेखक की मौत जैसी है। 2012 में ऐसा किया गया था और एक बार फिर से ऐसा किया जा सकता है। यदि यह सिलसिला जारी रहता है तो पश्चिम बंगाल बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसा ही होगा जहां अभिव्यक्ति की आजादी लगभग नहीं के बराबर है। तसलीमा ने कहा कि यह अजीब है कि मैं पिछले तीन दशक से महिलाओं के बारे में लिख रही हूं, लेकिन तीन महिलाओं शेख हसीना [बांग्लादेश की प्रधानमंत्री], खालिदा जिया [बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री] और ममता बनर्जी ने मेरा जीवन दूभर कर दिया है।

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