Sunday 23 February 2014

परेशान न कर दे सर्दी-जुकाम

Image Loadingमौसम बदलने पर सर्दी, जुकाम, खांसी, गला खराब आदि समस्याएं आम हो जाती हैं। डायबिटीज, बीपी, एलर्जी आदि से पीड़ित व्यक् तियों के बीमार होने की आशंका भी बढ़ जाती है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि विशेष सावधानी बरती जाए, ताकि आप स्वस्थ रह सकें।
तन-मन को रोमांचित करने वाला यह मौसम कई तरह की बीमारियां लेकर आया है। मौसम का बदलता मिजाज, सुबह-शाम की ठंड और  दोपहर की अच्छी धूप कॉमन कोल्ड, ब्रोंकाइटिस, सर्दी-जुकाम, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, गले में खराश और फेफड़ों और सिर में जकड़न, अस्थमेटिक अटैक, बुखार व अन्य कई मौसमी बीमारियों को न्योता दे रहा है। डॉक्टरों का मानना है कि हर रोज तापमान में आ रहे उतार-चढ़ाव के चलते सबसे ज्यादा बीमारियों का खतरा अस्थमा, डायबिटीज, हाई बीपी और दिल के मरीजों को है, इसीलिए वह विशेष तौर पर अपनी दवा, खानपान और व्यायाम का ध्यान रखें।  बच्चों और बुजुर्गों को अधिक खतरा
बुजुर्ग, बच्चों और वे लोग भी इस मौसम की चपेट में खूब आते हैं, जिनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। मूलचंद मेडसिटी के कंसलटेंट (पीडिएट्रिक्स) डॉ. गौरव जावा बताते है कि तापमान  में आए बदलाव के कारण इन दिनों करीब 35 प्रतिशत छोटे बच्चों रेस्पिरेटरी संक्रमण के साथ कफ और खांसी जैसी समस्याओं से पीड़ित होकर हॉस्पिटल आ रहे हैं। अक्सर स्कूल से आते समय गर्मी रहती है। ऐसे में बच्चों अपने गरम कपड़े उतार देते हैं। एकदम गर्मी से ठंड या ठंड से गर्मी के कारण बच्चों में शुरू में नाक बहने, छींक, आंखों से पानी आने और हल्की खांसी की समस्या दिखती है। छोटे बच्चों जब सांस लेते हैं तो उनकी नाक से आवाज आने लगती है, छींकें आने लगती हैं, नाक बंद होने लगता है, आंख से पानी निकलने लगता है, चिड़चिड़ापन और कभी-कभी वे वायरल के लक्षण और बुखार से भी परेशान हो जाते हैं। नाक, कान, गले में संक्रमण
बुजुर्गों व अन्य लोगों की हालत भी अलग नहीं है। मूलचंद मेडसिटी की कंसलटेंट (ईएनटी) डॉ. चंचल पाल बताती हैं कि गले कि खराश, गले, नाक और कान के संक्रमण के मरीजों में मौसम के बदलाव के साथ 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। बढ़ते प्रदूषण के कारण धूल के कण सांस नली से शरीर में जाते हैं, जिसकारण संक्रमण होता है। इससे गला खराब होता है। इस मौसम में सांस नली में संक्रमण की समस्या भी बढ़ जाती है। आंखें लाल तो नहीं होतीं?
इस बदलते मौसम के कारण कंजक्टिवाइटिस से पीड़ित रोगियों में भी 20 प्रतिशत वृद्घि हुई है। मूलचंद आई क्लीनिक के कंसलटेंट डॉ. सतीश  मेहता बताते हैं कि कंजक्टिवाइटिस इन दिनों होने वाले वायरल संक्रमणों में से एक है। इसके आरंभिक लक्षणों में आंखें लाल होना, उनमें जलन होना और आंखों से पानी निकलना शामिल हैं। यह रोग बड़ी आसानी से फैलता है, इसलिए इसमें सावधानी की जरूरत है। सावधानी नहीं बरतने पर यह संक्रमण एक आंख से दूसरी आंख  में भी हो सकता है। साफ-सफाई ही इस रोग से बचने का सबसे अच्छा उपाय है। अपनी आंखों  पर ज्यादा जोर न डालें। बेहतर होगा कि ऐसे में घर से बाहर न निकलें, ताकि दूसरे लोग इसकी चपेट में न आएं। किन बातों का रखें ख्याल
- कान में दर्द होने पर बिना डॉक्टर की सलाह के किसी भी तरह की दर्द निवारक दवा का सेवन न करें।
- गला खराब हो तो गर्म नमक के पानी से गरारे करें।
- नहाने के तुरंत बाद कानों को अच्छी तरह से पोंछ कर सुखाना चाहिए।
- ठंड या जुकाम होने पर तुलसी के 8-10 पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर पी लें या तुलसी के 10 पत्तों को पौना गिलास पानी में उबालें और जब वह आधा रह जाए तो उस पानी को पिएं।
- विटामिन-सी और जिंक से भरपूर चीजों का ज्यादा सेवन करें। इनमें आंवला, संतरा या मौसमी आदि हो सकते हैं।
- इस मौसम में सुबह-शाम की ठंड रह गयी है। ऐसे में अपने कपड़ों और पहनावे पर ध्यान दें। हमें लगता है कि अब तो ठंड चली गयी और हम गर्म कपड़ों का इस्तेमाल छोड़ देते हैं। ऐसे में इस बदलते मौसम की सुबह-शाम की सर्द हवा हमें अपनी गिरफ्त में लेकर बीमार कर देती है।
- इस मौसम में मॉल, बाजार आदि भीड़ वाली जगहों पर जाने से बचें।
- सूप, जूस, गुनगुना पानी इत्यादि का खूब सेवन करें।
- अदरक, शहद, काली मिर्च, लौंग आदि का खाने में इस्तेमाल करें।
- खाना खाने से पहले और खाने के बाद हाथ अच्छी तरह साफ करें।  डॉ. श्रीकांत शर्मा, कंसलटेंट, इंटरनल मेडिसिन, मूलचंद मेडसिटी ज्यादा बीमार पड़ते हैं तो वैक्सीन लगवाएं
यह मौसम खासकर उन लोगों के लिए ज्यादा तकलीफदेह होता है, जिनको एलर्जी की समस्या है, शुगर से पीड़ित हैं, लंग पहले से कमजोर है, जिनका पहले ट्रांसप्लांट हुआ हो। ऐसे लोगों में बीमारी जल्दी बढ़ती है और ज्यादा गंभीर रूप धारण कर सकती है, इसलिए मौसम का थोड़ा भी असर दिखे तो डॉक्टर के पास जाने में देर न करें।  आपको मौसम में बदलाव के समय सर्दी, जुकाम, बुखार आदि होता है तो साल में एक बार एंफ्लुएंजा वैक्सीन जरूर लगवाएं। इसके लिए उपयुक्त समय फरवरी और सितम्बर का होता है। जिन्हें सांस की पुरानी समस्या है, उन्हें एक बार न्यूमोकोकल वैक्सीन भी लगवाना चाहिए।

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