Saturday 26 April 2014

नरेंद्र मोदी

दूसरे लौह पुरुष कहलाने की चाहत रखने वाले नरेन्द्र मोदी का उदय भारतीय राजनीति के ऐसे संक्रमण काल मे हुआ है जब देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। देश में एक तरफ कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार है जिसने बीजेपी को एक दशक से सत्ता में आने से रोक रखा है तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के उदय ने बीजेपी और कांग्रेस जैसी नेशनल पार्टियों के परांपरागत वोट बैंक में सेध लगा दी है। तमाम चुनावी सर्वों में नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनावों 2014 में प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत उम्मीदवार बनकर उभरे हैं। राजनीतिक हलकों में इसे मोदी लहर कहा जा रहा है। इस लहर के असर ने कांग्रेस के नायक राहुल गांधी और संप्रग सरकार की उपलब्धियों तक को आम चर्चा से बाहर कर दिया है। यही नहीं लोकसभा चुनाव 2014 को लोग मोदी केंद्रित चुनाव तक कहने लगे है। यह पहली बार है कि चुनाव में सत्तााधारी पार्टी के नेता के बजाए विपक्ष के उम्मीदवार को इतनी प्राथमिकता मिल रही है।

मोदी का पूरा नाम नरेंद्र दामोदरदास मोदी है। मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को मेहसाणा जिला के बडनगर में हुआ था। मोदी ने गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है। वे 2001 से लेकर आज तक तीसरी बार गुजरात के मुख्ययमंत्री चुने गए हैं। बेहद साधारण परिवार में जन्में नरेन्द्र विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये तथा अविवाहित रहकर अभी तक संघ की परांपरा का निर्वाह कर रहे हैं।

मोदी ने पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम किया फिर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये। 1991 में सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा में लालकृष्ण आडवाणी के साथ रहे नरेन्द्र मोदी पहले भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मन्त्री फिर महामन्त्री बनाये गये।

2001 में केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद उन्हें गुजरात राज्य की कमान सौंपी गयी। हालांकि उनका कार्यकाल और कार्यप्रणाली विवादास्पसद रही है। 2002 के गुजरात नरसंहार को लेकर विपक्षी दल उनकी आलोचना करते रहे हैं। लोकसभा चुनावों में भी विपक्ष ने इसे एक बड़ा मसला बना रखा है। अप्रैल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष जाँच दल भेजकर यह जानना चाहा कि कहीं गुजरात नरसंहार में नरेन्द्र मोदी की साजिश या भूमिका तो नहीं है। यह विशेष जाँच दल दंगों में मारे गये पूर्व काँग्रेसी सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था।

दिसम्बर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने एस०आई०टी० की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। इसके बाद कुछ अखबारों में छपी खबरों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा बिना कोई फैसला दिये अहमदाबाद के ही एक मजिस्ट्रेट को इसकी निष्पक्ष जाँच करके अबिलम्ब अपना निर्णय देने को कहा। अप्रैल 2012 में एक अन्य विशेष जाँच दल ने फिर ये बात दोहरायी कि यह बात तो सच है कि ये दंगे भीषण थे परन्तु नरेन्द्र मोदी का इन दंगों में कोई भी प्रत्यक्ष हाथ नहीं।

2013 में गोआ में आयोजित भाजपा कार्यसमिति द्वारा नरेन्द्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव अभियान की कमान सौंपी गयी थी। उसके बाद दिल्ली में उन्हें अगले लोकसभा चुनाव के लिये पार्टी की ओर से प्रधानमन्त्री पद का अधिकृत उम्मीदवार घोषित कर दिया। मोदी ने प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद चुनाव अभियान की कमान राजनाथ सिंह को सौंप दी और प्रत्याशी के रूप में पूरे देश का दौरा शुरू कर दिया। वैसे मोदी की यह राह भी आसान नहीं थी उन्हें बीजेपी के पितामह कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी का विरोध सहना पड़ा है। मोदी के राजनीतिक इतिहास को देखते हुए एक बात कही जा सकती है कि जितना उनका मुखर विरोध होता वह उतना ताकतवर होकर उभरते हैं।

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