Sunday 29 September 2013

2 अक्तूबर

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नाटक को सबने खूब पसंद किया। खासतौर पर धीरज के महात्मा गांधी के निभाए किरदार की सबने दिल खोलकर तारीफ की। इसके लिए उसे प्रिंसिपल सर से इनाम भी मिला। इनाम मिलने के पश्चात् धीरज यह सोच रहा था कि जब उसके द्वारा एक अच्छे इनसान के निभाए रो ल से सब इतना खुश हैं तो अगर वह खुद भी अच्छा बन जाए तो लोगों को कितनी खुशी होगी।
आठवीं कक्षा में पढ़ने वाला धीरज अपनी कक्षा का सबसे शरारती लड़का था। नाम भले ही उसका धीरज था, लेकिन उसमें नाममात्र का भी धीरज नहीं था। उसे हर काम की जल्दी रहती थी। अपनी इसी जल्दबाजी की आदत के कारण वह अकसर गलती करता और पकड़े जाने पर अपना दोष दूसरों के सिर मढ़ देता। अपनी इस आदत की वजह से उसे कई बार डांट भी खानी पड़ती थी। लेकिन इसके बावजूद उसमें कोई सुधार नहीं हुआ। दरअसल, धीरज अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। उसके माता-पिता दोनों नौकरी करते थे। इकलौता बेटा होने के कारण उसकी हर इच्छा कहते ही पूरी हो जाती थी। इसी वजह से धीरे-धीरे उसकी आदतें बिगड़ रही थीं। ऐसा नहीं है कि उसकी इन आदतों से उसके माता-पिता अनजान थे। उन्होंने उसे कई बार प्यार से और कई बार डांट कर भी समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ। यही हाल उसका स्कूल में था। टीचरों के अलावा उसके दोस्त भी उसे समझाते, लेकिन उसने तो जैसे न सुधरने की ठान ली थी। चूंकि वह पढ़ने-लिखने में ठीक-ठाक था और स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता था, इसलिए उसके टीचर और दोस्त उसकी इस कमी के बावजूद उसे माफ कर दिया करते थे। लेकिन वे सब अंदर ही अंदर उससे दुखी थे। वे चाहते थे कि वह शरारतें करना बंद कर एक अच्छे विद्यार्थी की तरह रहे। आज इतिहास का पीरियड खत्म होने के बाद मास्टरजी ने सब बच्चों को रोक लिया। उन्होंने कहा, ‘तुम सब बच्चों को एक जरूरी बात बतानी है।’ ‘क्या बात, मास्टरजी,’ सब बच्चों ने एक साथ कहा। ‘तुम्हें याद है, आज से सातवें दिन कौन सी तारीख है?’ मास्टरजी ने बच्चों से पूछा। सब बच्चों ने एक साथ कहा, ‘दो अक्तूबर, यानी हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म दिवस।’ ‘ठीक कहा बच्चो! एक बात और, हर साल की तरह इस बार भी स्कूल में रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में एक नाटक भी खेला जाएगा, जिसका शीर्षक है— दो अक्तूबर। जो बच्चे इस नाटक में हिस्सा लेना चाहते हैं, वे अपना नाम मुझे लिखवा दें, क्योंकि कल से ही इसकी रिहर्सल शुरू होनी है। समय कम है।’ धीरज ने भी अपना नाम लिखवा दिया। अगले दिन क्लास के बाद नाटक में हिस्सा लेने वाले छात्र इतिहास के शिक्षक शर्मा जी के पास पहुंच गए। शर्मा जी ने सब बच्चों को उनका रोल समझा दिया। धीरज को इस नाटक में महात्मा गांधी का रोल मिला था। सबको उनका रोल समझा दिया गया। रिहर्सल शुरू हो गई। मास्टर जी छात्रों की रिहर्सल से खुश थे, बस चिंता उन्हें धीरज को लेकर थी, क्योंकि नाटक के मुख्य किरदार गांधी जी का अभिनय वह ठीक से नहीं कर पा रहा था। उन्होंने अपनी चिंता उसे बता दी। धीरज भी समझ नहीं पा रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है। उसने मास्टर जी को भरोसा दिलाया कि वह इस रोल को अच्छी तरह से निभाएगा। इसी तरह रिहर्सल करते हुए दो दिन बीत गए, लेकिन धीरज की समस्या वहीं की वहीं बनी हुई थी। रिहर्सल के बाद मास्टर जी ने उसे अपने पास बुलाया और कहा, ‘जानते हो, तुम्हारी क्या समस्या है? तुम क्यों नहीं यह रोल ढंग से कर पा रहे हो?’ ‘नहीं मास्टर जी, मैं तो पूरी कोशिश कर रहा हूं, लेकिन फिर भी पता नहीं मुझे क्यों परेशानी हो रही है, धीरज ने कहा।’ मास्टर जी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘मैं बताता हूं कि असल परेशानी क्या है।’ धीरज आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगा। मास्टर जी ने कहा, ‘तुम कुछ दिन अपनी शरारतें और झूठ बोलने की आदत छोड़ दो और गांधी जी जैसा सच्चा और ईमानदार बनने की कोशिश करो। सब ठीक हो जाएगा। तुम्हारे लिए यह मुश्किल है, लेकिन कोशिश करके देखने में कोई बुराई नहीं हैं।’ धीरज को भी लगा कि अगर इससे उसे अपना रोल अच्छी तरह से करने में मदद मिलती है तो मास्टर जी की बात मान लेने में कोई बुराई नहीं है। यह सोच कर वह रिहर्सल की तैयारी में लग गया। आखिर दो अक्तूबर का दिन भी आ गया। स्कूल के हॉल में सब इकट्ठा थे। कार्यक्रम की शुरुआत में प्रिंसिपल सर ने महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी के चित्र पर माला पहनाई और उनके भाषण के बाद रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुए। कार्यक्रम के अंत में उनके नाटक की बारी आई। शर्मा जी ने मंच से कहा, ‘अब आपके सामने एक नाटक प्रस्तुत किया जाएगा, जिसका शीर्षक है— दो अक्तूबर।’ पर्दा उठते ही नाटक शुरू हो गया। नाटक में दिखाया गया कि किस प्रकार स्वतंत्रता सेनानियों ने हमारे देश को विदेशी शासकों के चंगुल से आजाद करवाया। हमें भी इस आजादी के महत्त्व को समझना चाहिए और इस आजादी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। नाटक खत्म होने के बाद हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। नाटक को सबने खूब पसंद किया। खासतौर पर धीरज के महात्मा गांधी के निभाए किरदार की सबने तारीफ की। इसके लिए उसे प्रिंसिपल सर से इनाम भी मिला। इनाम मिलने के पश्चात् धीरज यह सोच रहा था कि जब उसके द्वारा एक अच्छे इनसान के निभाए रोल से सब इतना खुश हैं तो अगर वह खुद भी अच्छा बन जाए तो लोगों को कितनी खुशी होगी। आज उसे सारी बातें समझ में आ रही थीं कि क्यों उसके माता-पिता, टीचर्स और दोस्त उसे अच्छा बनने की सलाह देते थे। यह सोचते-सोचते उसने निश्चय किया कि आज से वह सबको अच्छा इनसान बनकर दिखाएगा। सिर्फ दूसरों की नजर में ही नहीं, बल्कि खुद की नजर में भी।

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