Sunday 29 September 2013

MOVIE REVIEW : दी लंचबॉक्स

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कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिन्हें बस देखते रहो। बार-बार देखो। कहीं से भी, किसी भी हिस्से से देख लो, अच्छी ही लगती हैं। निर्देशक रितेश बत्र की फिल्म ‘दि लंचबॉक्स’ भी उन्हीं में से एक है। दिल करता है कि ये फिल्म कभी खत्म ही न हो। फिल्म के दो मुख्य पात्र साजन फर्नाडीस (इरफान खान) और इला (निमरत कौर) के बीच अनदेखा-अनजाना सा रोमांस बस यूं ही चलता रहे। इला, फर्नाडीस को गलती से यूं ही लजीज खाना बना-बनाकर भेजती रहे और फर्नाडीस उस लजीज खाने को पसंद करते हुए भी अपनी रूखी-सूखी प्रतिक्रियाएं देता रहे।

साजन और इला का एक लाइन वाले कागज के पन्नों पर चिट्ठियों की शक्ल में पनपा ये रोमांस किसी लजीज पकवान की तरह बेहद धीमी आंच पर पका लगता है। इस रोमांस में गिले-शिकवे और रूठने-मनाने के मसाले तो हैं, लेकिन ऐसे नहीं जो जुबान पर हमला करें। न तीखे मसालों जैसे संवाद हैं और न ही आंखों में पानी ला देने वाला धुंआ छोड़ता तेज तड़का। फिर भी ये रोमांस महज पौने दो घंटे की फिल्म में बांधे रखता है। डर लगता है कि अगर आप कहीं उठकर गये तो कोई आपकी मनपसंद डिश पर झपट्टा न मारे ले।

यह कहानी है एक बच्चे की मां इला और रिटायर हो रहे एक विधुर साजन फर्नाडीस की। इला अच्छी-खासी दिखती है। घर के कामकाज में उलझी रहती है, तो बनने-संवरने का समय नहीं मिलता। शाम को पति जब घर आता है तो वो बन संवर जाती है। फिर भी पति महाशय की नजर उस पर नहीं पड़ती। एक दिन इला के पति का लंचबॉक्स गलती से फर्नाडीस के पास पहुंच जाता है। रेडियो से नई-नई  रेसिपी बनाकर अपने पति का मूड बदलने की कोशिश कर रही इला की जिंदगी बस यहीं से यू-टर्न ले लेती है।
वैसे इन रेसिपीज में उसकी एक आंटी के अनुभव का छौंक न लगे तब तक मजा नहीं आता। ये एक दिलचस्प संयोग है कि एक दूसरे छोर से आंटी की केवल आवाज आती है, वो कभी दिखाई नहीं देती। खैर, उधर गलती से पहुंचे लंचबॉक्स से मिस्टर फर्नाडीस की पौने बारह हो गयी है। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि उन्हें इतना स्वादिष्ट खाना भी नसीब हो सकता है। अब किसकी गलती से किसके पास ये लंचबॉक्स पहुंचा, ये परदे पर देखने वाली चीज है। लेकिन जल्द ही इस बात का खुलासा भी हो जाता है कि ये सब इला और फर्नाडीस की मर्जी से हो रहा है। लंचबॉक्स के जरिये इला फर्नाडीस को मिलने वाली चिट्ठियों पर ब्रेक लगाती है और एक दिन फर्नाडीस से मिलने का प्रोग्राम बनाती है। फर्नाडीस साहब भी शेव वगैरह करके पूरी तैयारी के साथ ऑफिस जाते हैं, लेकिन  इससे आगे कुछ भी कहना इस फिल्म के साथ बेमानी होगी। बाकी आप परदे पर देखें। हां, इला और फर्नाडीस के इस रोमांस के बीच शेख (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) नामक सलाद भी है, जो कभी-कभी  लंचबॉक्स के साथ आता-जाता रहता है।

खान-पान के पारखी लिखते रहे हैं कि किसी भी स्वादिष्ट व्यंजन का पहला काम है अपनी लुक से खाने वाले का दिल जीतना। वो काम इस फिल्म में बखूबी दिखता है। जी हां, पर्दे पर जो भी खाना लंचबॉक्स में पैक किया गया है, उसे देख मुंह में पानी आ जाता है और ये कमाल है उस फूड स्टाइलिस्ट का, जिसने पूरी फिल्म में लंचबॉक्स को स्वादिष्ट व्यंजनों से सजाया है। रितेश बत्र का निर्देशन बेहद सधा हुआ है और इरफान एवं नवाजुद्दीन जैसे अनुभवी कलाकारों संग निमरत कौर जैसी नई तारिका के साथ उन्होंने परंपरागत ढांचे से निकल रोमांस का जो खाका बुना है, वो काबिलेतारीफ है। ऐसी कहानियां लोग कम पचा पाते हैं, जिसमें दो मुख्य पात्रों के बीच रोमांस तो है, लेकिन वो कभी एक दूजे से मिल नहीं पाए। जिन लोगों ने बहुत दिनों से कोई नई डिश नहीं चखी है, वो इस लंचबॉक्स का लुत्फ जरूर उठाएं। सितारे : इरफान खान, निमरत कौर, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, लिलिट दुबे
निर्देशक, लेखक-पटकथा : रितेश बत्र
निर्माता : गुनीत मोंगा, अनुराग कश्यप, अरुण रंगाचारी
बैनर : यूटीवी मोशन पिक्चर्स, धर्मा प्रोडक्शंस़, डार मोश पिक्चर्स, सिख्या एंटरटेनमेंट

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