Sunday 29 September 2013

पेड़ के 50 पैर?

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धीरे-धीरे दोस्तों का आना कम हो गया और तेजू का मन चिडिम्यों की बातें सुनने में, उनके बच्चों को खेलता देखने में रमने लगा। आखिरकार एक दिन पग्गू अपने बच्चों के साथ वहां से उड़ गई। उस दिन तेजू को लगा कि बस यही मौका है यहां से भागने का। उसने अपने जमीन में धंस गए पचास पैर बाहर निकालने की कोशिश की।
वो पेड़ थोड़ा अजीब था। तुम्हारी तरह उसका भी एक नाम था तेजू। उसका यह नाम रखा था उसके दोस्त बिल्लू हाथी ने। तेजू इसलिए, क्योंकि पेड़ बिल्लू हाथी, चारू जिराफ और पिक्की हिरण से तेज दौड़ता था। पेड़ दौड़ता था? बिलकुल, उसके पचास पैर जो थे। तेजू मस्तमौला पेड़ था, हरे-हरे पत्ते वाला। अपने ऊपर कभी  किसी पक्षी को घोंसला बनाने नहीं देता, जैसे ही कोई चिडिया या तोता तेजू के ऊपर बैठने की कोशिश करते, तेजू तेजी से भागने लगता और बेचारे डर कर भाग जाते। चारू, बिल्लू और पिक्की तेजू के पक्के यार थे। अकसर वे चारों सैर पर निकल पड़ते, कभी पहाड़ पर रेस लगाने लगते, तो कभी बीच जंगल में पिकनिक मनाते। चारू, बिल्लू और पिक्की तेजू के घने छायादार पत्तों  के नीचे सो जाते। एक दिन शाम की बात है। तेजू नदी किनारे अपने दोस्तों के साथ गपशप कर रहा था। जब वह चलने को हुआ, तो उसे चींचीं की जोर की आवाज सुनाई दी। तेजू ने गुस्से से पूछा, ‘ये मेरे ऊपर कौन आकर बैठ गया है? क्या तुम्हें पता नहीं है कि मैं एक जगह ठहरने वाला पेड़ नहीं हूं। मेरे पचास पांव हैं और मैं हमेशा चलता रहता हूं।’
चींचीं करने वाली पग्गू चिडिया बोली, ‘देखो पेड़, मैं बहुत दूर से आई हूं। तुम्हारे जंगल में नई हूं। मैंने बस आधे घंटे पहले अंडा दिया है। अगर तुम अभी हिलोगे, तो मेरे अंडे गिर कर टूट जाएंगे।’ पग्गू चिडिया रोने लगी, तो तेजू का दिल पिघल गया, ‘अच्छा रोओ मत। मैं अभी कहीं नहीं जा रहा। पर सुबह होने से पहले अपने अंडे लेकर तुम कहीं दूर निकल जाना।’ पग्गू चिडिया सोच में पड़ गई कि वह सुबह तक अंडों को लेकर कैसे जाएगी? कहां जाएगी? सुबह हुई तो तेजू ने अपने पत्ते हिलाने शुरू किए, चिडिया जाग गई और उड़ कर उसके पास आ गई, ‘पेड़ भैया, प्लीज, मुझे कुछ दिन यहां रहने दो। जैसे ही अंडों से बच्चे बाहर निकलेंगे, मैं यहां से चली जाऊंगी।’ चिडिया की रोनी आवाज सुन तेजू मान गया। कुछ ही दिनों की तो बात है। इसके बाद चिडिया अपने बच्चों के साथ हो जाएगी फुर्र। तेजू से वैसे तो रोज ही बिल्लू, चारू और पिक्की मिलने आते थे, पर एक ही जगह पर बैठे-बैठे सब बोर होने लगे। बिल्लू मनमौजी था, उसे घूमने-फिरने में मजा आता था। अब वे तीनों कभी तेजू के नीचे बैठ कर ताश खेलते, तो कभी कुछ पका कर खाते। धीरे-धीरे पग्गू चिडिया के अलावा भी दूसरी कई चिडिया तेजू पर अपना घोंसला बना कर रहने लगीं। एक दिन तेजू ने रीनू कोयल को कहते सुना, ‘इस जंगल का सबसे घना पेड़ है तेजू। मैं तो यहीं घोंसला बना कर रहूंगी।’ तेजू जोर से चिल्लाया, ‘नहीं, मेरे ऊपर कोई घोंसला नहीं बनाएगा।’ रीनू तुनक कर बोली, ‘जब पग्गू यहां रह सकती है, तो मैं क्यों नहीं?’ तेजू चुप रह गया। पर उसने तय कर लिया था कि जिस दिन पग्गू के चूजे अंडे से बाहर आएंगे और उड़ने लगेंगे, वह अपनी डालियां झटक कर दूसरे घोंसलों को गिरा देगा। पग्गू के बच्चे बड़े होने लगे। दिन भर वे चहचहाते, कभी इस डाल, कभी उस डाल कूदते। फिर धीरे-धीरे वे उड़ने लगे। तेजू के तीनों दोस्त उसका इंतजार करके थक गए। एक दिन चारू ने कह ही दिया, ‘तेजू, देख मुझे नहीं लगता कि अब कभी तू हमारी तरह दौड़ पाएगा। तेरे ऊपर तो घोंसलों की भरमार है। तेरे पैर भी अब जमीन के अंदर धंसने लगे हैं।’ तेजू ने लाचारी से उसकी तरफ देख कर कहा, ‘बस कुछ दिन और मेरे दोस्त।’ धीरे-धीरे दोस्तों का आना कम हो गया और तेजू का मन चिडियों की बातें सुनने में, उनके बच्चों को खेलता देखने में रमने लगा। आखिरकार एक दिन पग्गू अपने बच्चों के साथ वहां से उड़ गई। उस दिन तेजू को लगा कि बस यही मौका है यहां से भागने का। उसने अपने जमीन में धंस गए पचास पैर बाहर निकालने की कोशिश की। पर यह क्या? उसके पैर तो जमीन से निकले ही नहीं। वे सभी जमीन के अंदर जा कर जड़ बन गए थे। तेजू उदास हो गया कि अब वह कभी पहले की तरह दौड़ नहीं पाएगा, खेल नहीं पाएगा। शाम को जब सब चिडियां और दूसरे पक्षी थक-हार कर घर लौटे और उनके बच्चे हंसने-खेलने लगे तो तेजू की सब शिकायतें दूर हो गईं। अब यही तो उसका परिवार है, और कितना मजा आता है सबके साथ रहने में और सबको सहारा देने में। उस दिन से तेजू राम वहीं जम गए। अब तो उसे तेजू कोई बुलाता भी नहीं है। उसके नए दोस्तों को उसका यह नाम नहीं पता ना। तुम कभी जंगल जाओ, तो सबको बता देना कि कभी उसका नाम तेजू था और उसके पचास-पचास पैर थे और सबसे बड़ी बात... वह हिरण से तेज दौड़ता था।

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