Wednesday 25 September 2013

सिनेमा की पाठशाला

Image Loading
सिनेमा का भाषा ज्ञान कराने वाले पुणे के फिल्म और टेलीविजन इंस्टीटय़ूट के इतिहास में सितारों और नामी फिल्मकारों की लंबी सूची दिखती है। दुनिया के अग्रणी फिल्म स्कूलों में इस संस्थान का शुमार होता है तो वहीं यहां की शिक्षापद्धति अपने आप में कई पीढियों की आदर्श रही है। पुणे फिल्म इंस्टीटय़ूट के बारे में बता रहे हैं अंकुर चौधरी
सिनेमा पश्चिम की देन है और इसके निर्माण में कैमरा, कई मशीनें, तकनीक और धीरे-धीरे परिपक्व हुई इसकी दृश्य-श्रव्य भाषा से इसके क्राफ्ट की तैयारी होती है। इसमें सभी कला विधाओं का भी समावेश होता है। एक फिल्म के निर्माण में सैकड़ों लोगों की मेहनत और आपसी तालमेल जरूरी होता है। आजादी के तुरंत बाद ही भारतीय सरकार ने फिल्म माध्यम के महत्व को समझा और 1951 में एक फिल्म स्कूल का प्रस्ताव तैयार किया। 1961 में देश का पहला राष्ट्रीय फिल्म शिक्षण संस्थान, जो आज एफटीआईआई (फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) के नाम से जाना जाता है, महाराष्ट्र के पुणे शहर में अस्तित्व में आया। सफल शुरुआत, अंतरराष्ट्रीय पहचान
अपने जमाने की बेहतरीन फिल्मों का निर्माण कर चुके प्रभात स्टूडियो को भारत सरकार ने खरीदकर उसमें काम करने वाले ज्यादातर विशेषज्ञों को इस संस्थान का अंग बनाया। दरअसल इस संस्थान की प्रेरणा रूस के नामी फिल्म स्कूल ‘वीजीआईके’ से ली गई थी। 1970 तक भारतीय फिल्म संस्थान दुनिया के शीर्ष पांच संस्थानों में शुमार हो चुका था। आज भी यह दुनिया के शीर्ष 50 फिल्म स्कूलों में आता है। एफटीआईआईके शुरुआती वर्ष इसका स्वर्णिम काल माना जाता है। इस दौर में त्विक घटक, सतीश बहादुर, एस़ बी़ ठाकुर और भास्कर चंदावरकर जैसे उच्चकोटि के सिनेकर्मी और शिक्षकों ने असाधारण बौद्धिक वातावरण तैयार किया। पाठ्यक्रम
इंस्टीट्यूट में मौजूदा समय में कई कोर्सेज चल रहे हैं, जो मुख्यत: फिल्म और टीवी विंग में विभाजित हैं। टीवी के सभी कोर्स एक वर्ष की अवधि तक सीमित हैं और शिक्षा पूरी तरह से डिजिटल है। यहां की प्रथम और मुख्य पहचान तीन साल का डिप्लोमा कोर्स है, जिसमें डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी, एडिटिंग, साउंड रिकॉर्डिग प्रमुख हिस्से हैं। इसके अलावा आर्ट डायरेक्शन का दो वर्षीय डिप्लोमा भी यहां कराया जाता है, जिसे फिल्म विभाग में होने वाले प्रोजेक्ट्स के साथ जोडम गया है। एक्टिंग कोर्स भी दो साल का होता है। एक वर्ष का स्क्रिप्ट राइटिंग का कोर्स भी यहां कराया जाता है। योग्यता
इंस्टीट्यूट में दाखिले के लिए जरूरी है कि छात्र किसी भी विषय में ग्रेजुएट हो। हां, साउंड के कोर्स के लिए 12वीं कक्षा में एक विषय भौतिकी होना अनिवार्य है। यह बाध्यता फिल्म और टेलीविजन दोनों में है। एंट्रेंस टेस्ट में सामान्य ज्ञान, तमाम कला क्षेत्रों से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों और घटनाओं की जानकारी के अलावा किसी भी विषय पर लेखन क्षमता को भी परखा जाता है। पहला पडमव पार करने के बाद ओरिएंटेशन के लिए इंस्टीट्यूट में ही बुलाया जाता है, जहां प्रत्याशियों को हर कोर्स से रूबरू करा कर कुछ टास्क दिए जाते हैं और उनकी क्षमताओं को आंका जाता है। अंतिम पडमव इंटरव्यू है, जहां एक्सपर्ट्स का एक पैनल योग्यता का आकलन करता है। प्रति वर्ष नये दाखिले का कोई निश्चित महीना तय नहीं है। इंस्टीट्यूट की वेबसाइट से इसकी जानकारी लेते रहना चाहिए। www.ftiindia.com. तकनीकों का संगम
एफटीआईआई दुनिया के उन कुछ चुनिंदा फिल्म स्कूलों में आता है, जहां लगातार अपडेट हो रही डिजिटल तकनीक के साथ छात्रों को सिनेमा की शुरुआती तकनीक और कार्यप्रणाली (एनालॉग) से अवगत कराया जाता है। साथ ही साउंड और एडिटिंग की एनालॉग लीनियर मशीनों पर छात्रों को प्रोजेक्ट करने होते हैं। 16 एमएम व 35 एमएम श्वेत-श्याम फिल्म को डेवलप करने वाली एकमात्र लैब इसी संस्थान में है। डायरेक्टर डी. ज़े  नारायण
‘फिल्म इंस्टीट्यूट का रचनात्मक माहौल देख कर मैं हर दिन आश्चर्य और गर्व की अनुभूति करता हूं। यहां विज्डम ट्री के नीचे बैठ कर अध्यापक और छात्र देर रात तक सिनेमा पर चर्चा करते हैं.. आजाद ख्यालों के साथ ऊंची उडमन भरने की तैयारी करते हैं.. यह संस्थान वाकई एक अद्भुत जगह है। मैं यहां आने में इच्छुक सभी छात्रों का स्वागत करता हूं, लेकिन इतना जरूर कहना चाहूंगा कि एक बार आप यहां आ गए तो निकलते-निकलते पहले जैसे नहीं रह पाएंगे। संस्थान आपके जेनेटिक कोड में अभूतपूर्व परिवर्तन कर आपको आजाद चिडिम्या बन उडम्ने का मौका देगा!’ फीस
संस्थान में चल रहे सभी पाठ्यक्रमों की फीस हाल ही में एक अहम फैसले के बाद एक समान की गई है। फिल्म विंग के कोर्सेज की ट्यूशन, हॉस्टल एवं सिक्योरिटी फीस मिला कर जहां एक वर्ष के 72,380 रुपये देने पड़ते हैं, वहीं सभी अन्य पाठ्यक्रमों में यह योग 75,380 हो जाता है।

No comments:

Post a Comment