Saturday 21 September 2013

'हॉरर स्टोरी' देखने के लिए हिम्मत चाहिएः विक्रम भट्ट

विक्रम भट्ट
उनके खाते में 25 फिल्में जुड़ चुकी हैं और बॉलीवुड में हॉरर जॉनर की फिल्में बनाने में उनका कोई सानी नहीं. गुलाम, कसूर औऱ आवारा पागल दीवाना ने उन्हें खास पहचान दिलाई तो राज और 1920 सीरीज ने उन्हें हॉरर फिल्मों का बेताज बादशाह बना डाला. वे कम बजट फिल्मों से बड़े चमत्कार करना जानते हैं, और बतौर प्रोड्यूसर उनकी न्यू ऐज हॉरर फिल्म हॉरर स्टोरी रिलीज हो गई है. बजट और बड़े स्टार्स की की बजाए कहानी में यकीन रखने वाले 44 वर्षीय प्रोड्यूसर-डायरेक्टर-राइटर विक्रम भट्ट से खास बातचीतः

आपको हॉरर फिल्में बनाने का आइडिया कहां से आया?
मैंने कभी भी कुछ सोच कर नहीं किया है, सब होता चला गया. पहले राज बनाई और 1920, इस तरह सिलसिला शुरू हो गया.

डायरेक्शन तो ठीक है, लेकिन कहानी भी खुद ही लिख लेते हैं?
जो कहानी मुझे अद्भुत लगती है, मैं उसी पर काम करता हूं. इसलिए कहानी खुद ही लिखता हूं. अगर कोई कहानी मुझे ही अपील नहीं करेगी तो मैं दूसरों से क्या उम्मीद कर सकता हूं.

हॉरर स्टोरी को आप अपनी बाकी हॉरर फिल्मों से कैसे अलग मानते हैं?
यह एकदम नए ढंग की कोशिश है. यह हार्डकोर हॉरर मूवी है. बिल्कुल हॉलीवुड की तर्ज पर. 

हॉलीवुड की तर्ज तो ठीक है, इसके अलावा और क्या खास है?
सबसे बड़ी खासियत यह है कि यूथ को फोकस करके बनाई गई फिल्म है. फिल्म स्पीड से चलती है. एक रात की कहानी है, और इतनी डरावनी की इसे देखने के लिए हिम्मत चाहिए.

आपकी हॉरर फिल्में देखकर कभी ऐसे लोग मिले जिन्होंने अपने अनुभव आपसे साझे किए हों? 
बहुत लोग मिलते हैं. अपने किस्से साझे करते हैं. कोई कहता है फिल्म बना लो तो किसी का यही कहना होता है कि किसी से साझा मत करना. जो लोग अपने एक्सपीरियंस बांटने के लिए कहते हैं उन्हें मैं अपनी फिल्मों में बतौर सिक्वेंस इस्तेमाल कर लेता हूं. बाकी सब अपने सीने में दफन कर लेता हूं.

अकसर आप की नई स्टारकास्ट को लेकर फिल्म बनाने की कोशिश क्यों रहती है?
मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है कि स्टार को लेकर फिल्म बनाऊं या न बनाऊं लेकिन अच्छी फिल्म बनाऊं. अगर कहानी अच्छी है तो सब कुछ अच्छा हो जाता है. ऐसा नहीं है कि मैं नई स्टारकास्ट के साथ काम करता हूं. राज-3 या फिर क्रिएचर में ऐसा नहीं है.

क्रिएचर भी हॉरर मूवी है क्या?
नहीं, वह एकदम नया जॉनर है. यह फिल्म जुरासिक पार्क या एनाकोंडा की तरह अलग प्राणियों पर आधारित है. एक अलग किस्म का प्राणी जो बेकाबू हो जाता है तो क्या होता है. यह भारत की क्रिएचर बेस्ड पहली फिल्म होगी.

आप हॉरर फिल्में बनाते हैं, क्या कोई ऐसा वाकया आपके साथ भी पेश आया है?
कई बातें तो खुद के अनुभव पर ही आधारित होती हैं लेकिन हम उन्हें किसी से शेयर नहीं कर सकते क्योंकि जिस पर बीतती है, वहीं उस बात को समझ सकता है. बाकी के लिए वह सिर्फ एक मजाक है. इसलिए मेरे साथ क्या हुआ यह मैं अपने तक ही सीमित रखता हूं.

आप टाइट बजट में फिल्में कैसे बना लेते हैं?
टाइट बजट में फिल्में बना लेता हूं, इसीलिए तो कमा लेता हूं. जितना बजट टाइट होगा, फिल्म को कमाने में उतनी ही मुश्किल कम होगी. आप खुद ही सोचें अगर एक फिल्म 100 रु. में बनी है तो उसे सिर्फ 150 रु. कमाने हैं, अगर वही फिल्म 500 रु. में बने तो सोचो 750 रु. कमाने पड़ेंगे. मेरा यही ट्रेड सीक्रेट है कि कम बजट में फिल्म बनाओ फायदे के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी. 

No comments:

Post a Comment